लेकिन प्रेम का दायरा आजकल बहुत सीमित कर दिया गया है. विशेष रूप से युवा पीढ़ी एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने को ही प्रेम मन लेती है. हालांकि वह भी प्रेम की एक परिभाषा है. लेकिन सिर्फ वही प्रेम नहीं है.
श्रीकृष्ण कहते हैं - प्रेम का मतलब होता है संवेदनात्मक, भावनात्मक रूप से आपका किसी दूसरे व्यक्ति के साथ जुड़ना. जैसे कोई मां अपने बच्चे से प्रेम करती है. पिता अपने पुत्र से प्रेम करता है. एक भाई अपने भाई से प्रेम करता है. ठीक इसी प्रकार से एक प्रेमिका एक प्रेमी सेप्रेम करती है.
प्रेम में हम किसी का भी अहित नहीं चाहते. यदि वास्तव में सच्चा प्रेम है तो. हां विवाद हो सकता है, झगड़े हो सकते हैं. श्री कृष्ण प्रेम के लिए कहते हैं - प्रेम अनैतिक नहीं है. प्रेम तो एक जिम्मेदारी है, एक दायित्व है. यदि आप इसको ठीक से निर्वहन करते हैं तो इससे पवित्र कोई दूसरा भाव नहीं है.
हर व्यक्ति को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार है. लेकिन यह अधिकार एक विशेष उम्र के बाद होना चाहिए. उसमें शारीरिक एवं बौद्धिक रूप से जब परिपक्वता आ जाए तब. वैचारिक रूप से मतभेद हो सकते हैं लेकिन उससे नफरत या दुश्मनी नहीं.
प्रेम करने के बाद आप का उत्तरदायित्व आपकी जिम्मेदारी अधिक बढ़ जाती है. आप उस दायित्व को समझें और उसका निर्वहन करें. विवाह का मतलब सिर्फ प्रेम को पाना नहीं होता बल्कि जीवन का एक ऐसा नया मोड़ है, एक नई शुरुआत है जो आपके भविष्य का निर्माण करता है, जो आपको जिम्मेवारी सिखाता है.
Post a Comment