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Sunday, November 18, 2018

Awesome rendition of a playful drama in Alwar : अलवर में रही फंदी नाटक की गजब की प्रस्तुती


राजस्थान संगीत नाटक अकादमी जोधपुर एवं रंग संस्कार थियेटर ग्रुप अलवर (इकाई -राज लोक विकास संस्थान, अलवर) के सहयोग से आयोजित तीन दिवसीय युवा नाट्य समारोह के अंतिम दिन आज महावर ऑडिटोरियम में डॉ शंकर शेष का लिखा हुआ एवं हरिप्रसाद वैष्णव द्वारा निर्देशित नाटक फंदी खेला गया. रंग संस्कार थियेटर ग्रुप के संयोजक देशराज मीणा ने बताया की मूलत: हमारी संस्था का यही उद्देश्य है  कि लगातार रंगकर्म अलवर शहर में करते रहे. हम यह भी चाहते हैं कि अलवर शहर में जितनी भी संस्थाएं हैं वे भी  हर महा कोई न कोई प्रस्तुति देती रहे, तो निसंदेह अलवर शहर में कलात्मक रूप से नाटक  की गतिविधियां लगातार चलती रहे और इस से जो कई बार या कई जगह पर यह सवाल उठता है कि अलवर में रंगकर्म एक तरह से मर रहा है, वह खत्म हो. फिर या तो इस इस तरह के सवाल उठेंगे ही नहीं या उनका जवाब मिल जाएगा. दूसरा हमारा यह भी प्रयास रहता है की हर तरह के नाटक हमारे शहर में भी हो.  क्योंकि नाटक अलग अलग रंग और रस के होते हैं. कुछ नाटक सिर्फ हँसाते हैं, कुछ रुलाते हौं, कुछ सोचने के लिए विवश करते हैं, कुछ समाज में व्याप्त असंगतियों पर कटाक्ष करते हैं. अत: इन सबका अपना महत्त्व है. लेकिन यह भी सच है की हर रंग और हर रस हर किसी को पसंद नहीं आता है. लेकिन जिसको जो रंग या रस पसंद है वह उसी से सम्बंधित नाटक करें लेकिन अन्य रंग और रस के नाटक देखे जरुर. इसी से विविधता आती है. इसलिए रंग संस्कार थियेटर ग्रुप, अलवर (इकाई -राज लोक विकास संस्थान, अलवर) की यह भी कोशिश रहती  है कि देश के श्रेष्ठ नाटकों को अलवर में प्रस्तुत किया जाए. अलग अलग रंग अलग-अलग रस की नाटक प्रस्तुत हो सके. नाटकों की जो विशेषता है और विविधता है उसे समझ सके एवं उसका रस अलवर के दर्शन भी ले सके.
credit: third party image reference

इसी क्रम में आज फंदी नाटक का मंचन जोधपुर के कलाकरों द्वारा आज किया गया. फंदी  नाटक जीवन के सभी स्तरों पर सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक विसंगतियां हैं उन पर चोट करता है. डॉ. शंकर शेष ने फंदी  नाटक के माध्यम से मूल रूप से कानून-व्यवस्था पर और उसके साथ साथ असाध्य बीमारियों जैसे कि कैंसर, एड्स आदि जिनका इलाज काफी जटिल एवं असंभव सा है, उन मरीजों को इच्छा मृत्यु का अधिकार होना चाहिए ऐसी सवालों को बड़े ही तर्क पूर्ण ढंग से उठाया और इसके साथ ही समाज में व्याप्त छोटे-छोटे रूपों में फैला हुआ भ्रष्टाचार, बेईमानी, रिश्वत घोटाले  आदि पर भी बहुत करारा व्यंग्य किया है. इस नाटक में अनेक जगह पर सामाजिक सरोकारों की बात भी की गई है. जैसे चिकित्सकों के द्वारा मर्जी की फीस लेना. दवाई कंपनियों के द्वारा मनमर्जी के दाम लेना. कोर्ट कचहरी या बिजली घर में बैठे अफसर से लेकर चपरासी तक रिश्वत लेना आदि. इन सब कारणों की वजह से आम आदमी न तो अपना इलाज करवा पाता है और न  अपना काम करवा पाता है. कहीं न कहीं भ्रष्टाचार के जाल में फंस  कर के वह अधमरा  हो जाता है और मानसिक रूप से इतना परेशान हो जाता है की इस दर्द से छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या करना चाहता है. लेकिन सवाल यह है कि आत्महत्या भी वह अपनी मर्जी से नहीं कर सकता. उसे यह अधिकार भी मिलना चाहिए. इच्छा मृत्यु का.


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हरिप्रसाद वैष्णव ने अपने खूबसूरत निर्देशन के माध्यम से इस नाटक को बहुत ही गजब जा सजाया. उनकी मंच परिकल्पना एवं नाटक की प्रस्तुति से यह साफ जाहिर हो गया की एक निर्देशक नाटक को अलग दृष्टिकोण से देख कर के उसे इस तरह से भी प्रस्तुत कर सकता है कि दर्शक सोचने के लिए मजबूर हो जाए. फंदी  नाटक में मुख्य रूप से तीन पात्र हैं. जिनमे फंदी की भूमिका में महेश चोधरी. वकील की भूमिका में सुरेश पंवार और वार्डर की भूमिका में हरीश शर्मा. इन तीनों ही लोगों ने  बेहद खूबसूरत और गजब का अभिनय किया. महेश चौधरी ने अपने संजीदा एवं व्यंग्यात्मक लहजे के संवादों के माध्यम से दर्शकों को बार बार ताली बजाने के लिए मजबूर कर दिया. वकील के  अभिनय ने  सुरेश पवार ने अपने जबरदस्त कटाक्षों के माध्यम से यह साबित कर दिया की अभिनय की ताकत किसी भी रूप से कमजोर नहीं है. बॉर्डर के रूप में हरीश शर्मा ने अपने अभिनय से  लोगों की  खूब तारीफ बटोरी. मंच पर जिन लोगों की भूमिका इस नाटक को सजाने में रही उनमें मंच सज्जा कैलाश गहलोत, महावीर विश्नोई एवं  त्रिलोक गोस्वामी की रही. रूप सज्जा का कार्य किया कैलाश गहलोत ने किया. इस नाटक को खूबसूरत संगीत से सजाया रघुवर सिंह ने. संगीत नाटक को बहुत प्रभावी बनाता है और उसकी भूमिका कम नहीं होती है. फंदी नाटक में लोगों ने इस बात को महसूस भी किया. प्रकाश की व्यवस्था संभाली स्वयं नाटक के निर्देशक हरिप्रसाद वैष्णव ने. निश्चित रूप से संगीत एवं प्रकाश दोनों ही एक तरह से नाटक के पात्र होते हैं. नाटक के हिस्से होते हैं. क्योंकि नाटक के बारे में कहा जाता है कि संपूर्ण कलाओं का महाकुंभ है नाटक. फंदी नाटक एक बेहतरीन प्रस्तुति रही अलवर के दर्शकों के लिए. कार्यकर्म का संजीदा और प्रभावी संचालन किया वरिष्ठ रंगकर्मी सतीश शर्मा ने. 
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