दुनिया में कब, कहां, किसकी किस्मत पलट जाए कुछ नहीं कहा जा सकता. राजा से रंक और रंक से राजा बनते हुए व्यक्ति को देर नहीं लगती है. और राजनीति तो ऐसी है ही जिसमें कब, कहां, किसकी किस्मत और कहानी बदल जाए कुछ नहीं कहा जा सकता.
अक्सर ऐसी कहानियां फिल्मों में तो हम देखते हैं और सुनते हैं कि किसी की जिंदगी एक दम से गरीब से बहुत अमीर हो गई और अमीर से एकदम से गरीब हो गई. लेकिन हकीकत में ऐसा होता है. चाहे कम ही होता है, लेकिन फिर भी होता जरूर है.
आज हम आपको एक ऐसी महिला की कहानी बता रहे हैं, जो कभी लाल बत्ती में घूमती थी, लेकिन आज बकरियां चरा रही है. बड़ी मुश्किल से अपने परिवार का लालन-पालन कर रही है. मध्य प्रदेश की रहने वाली एक महिला की कहानी है यह. इस महिला का नाम है जूली.
आदिवासी महिला जूली मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के बदरवास की रहने वाली है. यह महिला कुछ वर्षों पहले आदिवासी जिले बदरवास में पंचायत अध्यक्ष के चुनाव के लिए कड़ी हुई थी. उन्हीं का प्रतिनिधित्व करते हुए जुली को पंचायत अध्यक्ष बनाया गया था. इस चुनाव में जुली ने बड़े पैमाने पर जीत हासिल करते हुए पंचायत अध्यक्ष के पद को प्राप्त किया था.
जिला पंचायत के पद पर पहुंचने के बाद जूली के खूब ठाट बाट थे, बदे ऐसो आराम से रह रही थी. उन्हें लाल बत्ती की गाड़ी में मिली हुई थी. पीछे कई गाड़ियां तैनात घूमती थी. राजनीति में आने के बाद नेता जिस तरह से अपना घर पहले भरता है, जनता का बाद में अक्सर ऐसा ही सोचता है.
लेकिन जूली ने ऐसा नहीं किया. जूली ने गांव की एवं आसपास के लोगों की बहुत सेवा की. उनकी जरूरत से अधिक सेवा करना अपना धर्म समझा. यही कारण है की उसने अपने लिए, अपने परिवार के लिए कुछ काम नहीं किया. उसका नतीजा यह हुआ की आज वह जहाँ रही है, उसकी हालत बहुत बदतर है. बकरियां चरा कर अपने परिवार का गुजारा कर रही है. पंचायत अध्यक्ष पद पर रहने के बाद भी जूली के पास एक अच्छा मकान भी नहीं है. हालांकि सरकार की ओर से उसे घर कागजों में मिला था, लेकिन वास्तव में उसे अभी तक वह मिला भी नहीं है.
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