महाभारत एक ऐसा महाकाव्य है जो सदियों से भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में प्रचलित है. एक ऐसा महा आख्यान है जिसमें अनेक कहानियां आज भी ऐसी है, जिनके बारे में हम पूर्णत: नहीं जानते.
कृष्ण की लीला महाभारत के साथ भी जुड़ी हुई है एवं वह स्वतंत्र रूप से भी है. आइए आज हम आपको एक ऐसे ही प्रसंग के बारे में बताते हैं, जब कृष्ण ने बांसुरी न बजाने का प्रण ले लिया था.
राधा की मृत्यु हुई तो उस समय कृष्ण राधा के पास थे. राधा ने कृष्ण से अंतिम बार अपनी अंतिम इच्छा के रूप में बांसुरी सुनने का निवेदन किया. हालाँकि उस समय कृष्ण राधा की हालत देखकर बहुत दुखी थे, उनका मन बांसुरी बजाने का बिलकुल भी नहीं था. लेकिन राधा के आग्रह या कहिए एक तरह से प्रेमादेश को कृष्ण टाल न सके.
देवी राधा ने जब अंतिम समय अंतिम बार बांसुरी सुनाने का निवेदन किया तो श्री कृष्ण ने बांसुरी बजाई. स्वर लहरी की गजब की तान बजाई. इसलिए राधा के कहने पर श्री कृष्ण ने अपनी बांसुरी बजाई. लेकिन जब राधा ने प्राण त्याग दिए तो कृष्ण ने अपनी बांसुरी तोड़ दी. फिर कभी भी बांसुरी न बजाने का एक तरह से वचन ले लिया.
क्योंकि आप जानते हैं कृष्ण और राधा का प्रेम आदर्श प्रेम माना जाता है. इस प्रेम की लोग मिसाल देते हैं. यही कारण था उनके सात्विक, निर्मल प्रेम के वशीभूत होकर कृष्ण अपनी बांसुरी की मधुर तान छेड़ते थे. कृष्ण ने सोचा जब बांसुरी को सुनने वाली, बांसुरी के स्वर लहरी को समझने वाली इस दुनिया में नहीं रही तो मैं बांसुरी किस के लिए बजाऊं. क्यों बजाऊं.
कृष्ण ने प्रण लिया बांसुरी कभी नहीं बजाऊंगा. राधा की मृत्यु शैया पर ही उन्होंने बांसुरी त्याग दी. बांसुरी और उसकी स्वर लहरी दोनों को ही कृष्ण ने राधा को समर्पित कर दिया. बांसुरी तोड़कर झाड़ियों में फेंक दी और फिर कभी न बजाने का प्रण ले लिया. राधा और कृष्ण का बचपन एक साथ व्यतीत हुआ था. वहीं पर ही प्रेम की अनुभूति का एक का जन्म हुआ था.
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