महाभारत एवं रामायण दो ऐसी महाकाव्य जो भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में बहुत अधिक प्रसिद्ध है. इन दोनों की कहानियां इतनी विस्तृत, विशेष और रहस्यमई हैं की जिनके बारे में आज भी नए-नए रहस्य उदघाटित होते रहते हैं. लोगों ने अनेक बार महाभारत एवं रामायण टीवी सीरियल के माध्यम से देखी होगी, हिंदी और दूसरी भाषाओं के तर्जुमें के आधार पर पढ़ी होगी या मूल संस्कृत में भी कुछ लोगों ने पढ़ी होगी लेकिन बावजूद इसके इन की अनेक विशेषताएं ऐसी हैं, इनके अनेक अर्थ ऐसे हैं जिनके बारे में आज भी लोग अनभिज्ञ हैं.
आइए महाभारत का एक ऐसा ही प्रसंग आज हम आपको बताते हैं. एक बार चित्रसेन अर्जुन को संगीत की शिक्षा दे रहे थे. उसी समय वहां पर इंद्र की अप्सरा उर्वशी प्रकट हो गई. उर्वशी अर्जुन के यौवन को देखकर उन पर मोहित हो गई.
उर्वशी ने अर्जुन से कहा- हे अर्जुन आपको देखकर मेरे हृदय में आपके लिए विशेष जगह बन गई है. कृपया आप मेरे साथ बिहार करें, मेरी इच्छा को शांत करें.’
उर्वशी की इस तरह की बात सुनकर अर्जुन बोले- हे देवी हमारे पूर्वजों ने आप के साथ विवाह किया है. इस वजह से आप का भी और हमारे वंश का भी एक तरह से गौरव बढ़ा है. उस लिहाज से आप हमारे वंश की जननी होने के नाते हमारी मां के समान हैं. मैं आपको एक मां के रूप में मानता हूं. मां के रूप में ही प्रणाम करता हूं.
अर्जुन की यह बात सुनकर उर्वशी को बहुत क्रोध आया. उर्वशी को अपने रूप पर बहुत गर्व था. उर्वशी को यह लगा मुझ जैसी खूबसूरत अप्सरा की बात को इस तरह से न मानने वाला व्यक्ति घमंडी है. क्रोध में आकर उर्वशी ने अर्जुन को श्राप दे दिया की तुम एक वर्ष के लिए नपुंसक बनोगे. क्योंकि तुमने नपुंसकों वाली बात कही है. इतना कहकर उर्वशी चली गई.
अर्जुन एवं सारे पांडव 1 वर्ष तक अज्ञातवास के लिए गए हुए थे. एक तरह से अर्जुन यह श्राप उस एक अज्ञातवास के वर्ष के समय काम आया. अर्जुन एक वर्ष के लिए नपुंसक बन गए थे. लेकिन जैसे ही एक वर्ष समाप्त हुआ वे ठीक हो गए. इसीलिए 1 वर्ष के दौरान अर्जुन वृहन्नला के रूप में ही रहे.
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