दोस्त महाभारत तो आपने देखी होगी या फिर महाभारत की कहानी आपने सुनी होगी. निश्चित रूप से भारतीय दृष्टि से महाभारत एवं रामायण दो ऐसे महाकाव्य हैं जिनकी कहानियां हम लोग जानते हैं. लेकिन उसके बावजूद भी बहुत सारी कहानियां इनकी ऐसी है जिससे हम अनभिज्ञ है.
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हो सकता है आप में से कुछ लोगों ने महाभरत पढ़ी भी हो. हालांकि ऐसे कम लोग ही हैं जो महाभारत पढ़ते हैं. मगर देखी अधिक लोगों ने है. महाभारत के अंदर दो ऐसे किरदार है जो वास्तव में बहुत ही अनूठे और विशिष्ट हैं. एक द्रोपदी. और एक कर्ण.
द्रोपती का विवाह 5 पुरुषों के साथ हो जाता है. कर्ण बहुत बड़े महाबली होने के बावजूद भी एक सम्मानजनक जिंदगी नहीं जी पाते हैं. क्या आपको पता है कि इन दोनों में प्रेम था. द्रोपदी कर्ण के प्रति आकर्षित थी. क्यों नहीं हो पाई इनकी शादी. हम बताते हैं आपको इस कहानी के बारे में.
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द्रोपदी करण के प्रति आकर्षित थी. क्योंकि कर्ण पराक्रमी योद्धा और महान दानवीर के रूप में जाने जाते हैं और निश्चित रूप से बहुत बलशाली योद्धा भी थे कर्ण. उनकी इन्हीं विशेषताओं के कारण ही द्रोपदी कर्ण की और मोहित हुई.
यह बात जन कर्ण को पता लगी तो वह भी द्रोपदी से प्रेम करने लगे. द्रोपदी उनसे प्रेम करती है तो कर्ण भी धीरे-धीरे द्रोपदी की ओर आकर्षित होने लगे. आपको पता होगा कर्ण कुंती पुत्र थे और विवाह से पूर्व सूर्य देव की कृपा से उनका जन्म हुआ था. भारतीय संस्कृति में विवाह से पूर्व पैदा होने का मतलब लोक लाज त्याग देना और आनैतिक मानना.
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इसी डर की वजह से कुंती ने कर्ण को गंगा नदी में बहा दिया था. बड़े होने पर करण एक महान धनुर्धर बने. अलग अलग राज्य में जाकर उन्होंने अपनी प्रतिभा से लोगों को प्रभावित किया. अनेक पुरस्कार भी जीते.
इसी प्रकार एक बार करण राजा द्रुपद के राज्य में आयोजित एक कार्यक्रम में गए. वहां अपनी प्रतिभा को जब उन्होंने दिखाया तो यह देख कर राजा द्रुपद एवं उनकी पुत्री द्रोपदी उनकी कुशलता पर खुश हुए.
कुछ समय बात रजा दुरपद ने द्रोपदी के स्वंवर की घोषणा कर दी. राजा द्रुपद के साथ साथ कर्ण एवं द्रोपदी दोनों को यह विश्वास था कि इस प्रतियोगिता में कर्ण द्रोपदी को वर ले जायेंगे. द्रोपदी पहले ही इस बात को स्वीकार कर चुकी थी.
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स्वंवर की शर्त को आप जानते ही है. कढ़ाई में खोलते हुए तेल में मछली की परछाई को देखकर ऊपर घूमती हुई मछली की आंख में तीर मारना था. और कर्ण के लिए यह असंभव नहीं था. लेकिन कर्ण जन स्वयंवर में पहुंचे उन्हें स्वयंवर में भाग लेने की अनुमति नहीं मिली. कारण कि उनका लालन पोषण एक निम्न जाती के यहाँ हुआ था इसलिए उसे सूत पुत्र माना गया. और एक सूत पुत्र को क्षत्रिय राजकुमारी के स्वंवर में भाग लेने की अनुमति नहीं मिल सकती. यही कारण था की कर्ण और द्रोपदी का प्रेम अधूरा ही रह गया.
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