अकबर और बीरबल के किस्से तो आपने बहुत सुने होंगे. निश्चित रूप से मुगल दरबार में अकबर के राज्य में नवरत्न थे. उसमें से बीरबल एक खास रतन था, जो एक कवि, राजनीतिक, चतुर दिमाग वाला, त्वरित उत्तर देने वाला व्यक्ति था.
बादशाह अकबर हमेशा उसे अपने साथ रखते थे. अकबर बीरबल को सिर्फ एक रत्न नहीं बल्कि एक अच्छा मित्र भी समझते थे. खुशी और गम की सारी बातें बादशाह अकबर बीरबल के साथ शेयर करते थे. निश्चित रूप से बीरबल उन्हें उचित मार्गदर्शन भी करता था.
1586 ईस्वी में अकबर की सल्तनत पर यूसुफजई समुदाय के लोगों ने आक्रमण कर दिया. इस विद्रोह को शांत करने के लिए अकबर ने अपने वजीर जैन कोका खान को भेजा. लेकिन वह हार गया और वापस आ गया.
उसके बाद अकबर ने पूरा सैन्य दल बीरबल के नेतृत्व भेजा. जब बीरबल युद्ध क्षेत्र में पहुंचा तो अन्य मुस्लिम राजाओं ने हिंदू राजा के नेतृत्व में युद्ध करने के लिए मना कर दिया. लेकिन बीरबल ने युद्ध किया और इस युद्ध में बीरबल के साथ आठ हजार सैनिक लड़े.
विपक्षी दल ने जबरदस्त आक्रमण किया. बीरबल और बीरबल की सेना वहीं समाप्त हो गई. जब बीरबल के शव को खोजा गया, तो वह कहीं पर नहीं मिला. तब अकबर ने सभी आठ हजार सैनिकों का हिंदू रीति के साथ अंतिम संस्कार किया. बीरबल का भी अंतिम संस्कार उसी रिती के साथ हुआ.
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