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Monday, April 23, 2018

promise of laughing but crying Matsy Theater Festival : हंसाने का वादे करके रुला गया मत्स्य थियेटर फेस्टिवल


हंसाने का वादे करके रुला गया मत्स्य थियेटर फेस्टिवल
फाल्गुन का महिना भारतीय दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. इस माह में होली का बहुत ही खूबसूरत त्योहार आता है जो हर प्रकार के भेदभाव को मिटाकर सभी को अनेक रंग में रंग देता है. पूरे माहोल को रंगमय बना देता है. इस माह में फसल भी पक जाती है. इसी माह में 27 तारीख को रंगो का त्योहार आता है. जिसे नाटक करने वाले अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस के नाम से मनाते हैं. 27 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस के रूप में पूरे देश में थिएटर प्रेमी उत्सव के रूप में मनाते हैं. जिसके अंतर्गत गोष्ठियां, नाटक चर्चा एवं विशेष रूप से नाट्य प्रस्तुतियां की जाती हैं.

अलवर में भी लगातार नाटक एवं रंगकर्म को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ उत्साही युवा रंगकर्मी इस प्रयास में लगे हुए हैं की अलवर का नाटक जगत भी समृद्ध हो. इसी प्रयास के तहत रंग संस्कार थिएटर ग्रुप गत चार वर्षों से लगातार अलवर में रंगकर्म के माध्यम से यह कोशिश कर रहा है. इस वर्ष रंग संस्कार थियेटर ग्रुप (इकाई राज लोक विकास संस्थान अलवर) एवं संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से अलवर में अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस के अवसर पर तीन दिवसीय कार्यक्रम मत्स्य थिएटर फेस्टिवलके रूप में आयोजित किया गया। जिसके अंतर्गत देश के प्रख्यात नाटकों का मंचन किया गया। मत्स्य थियेटर फेस्टिवल की परिकल्पना अवलर के रंगकर्मियों की प्रस्तुति को लेकर की गई थी। लेकिन अफसोस की अलवर की एक भी नाट्य प्रस्तुति इस अवसर पर नहीं हो सकी। जबकि अलवर में रंगकर्म एवं नाट्य गतिविधियों को विकसित करने की कोशिश का ही नाम इस तरह के समारोह का आयोजन करना है। हालांकि यह भी नहीं कहा जा सकता कि अलवर के रंगकर्मियों ने कोशिश नहीं की, परन्तु वे सफल नहीं हो पाये। दूसरी कल्पना इस फेस्टिवल के पीछे यह थी कि अलवर के रंगकर्मी एवं दर्शक देश में होने वाले नाटकों से यहीं अपने शहर में रूबरू हो सकें और नाटकों के महत्त्व को जान सकें। ऑडिटोरियम को लेकर अलवर में एक बड़ी समस्या है। इसका किराया बहुत-बहुत ज्यादा है। संभवतः लगातार नाट्य प्रस्तुतियां भी उस समस्या के समाधान का कोई मार्ग प्रशस्त कर सकें। ये सभी मुद्दे मत्स्य थियेटर फेस्टिवल की परिकल्पना में निहित थे। भविष्य में इनका समाधान होगा ऐसी आशा है।

मत्स्य थिएटर फेस्टिवल के अंतर्गत देश के चार प्रसिद्ध नाटकों का मंचन हुआ। 27 मार्च को दो नाटकों का मंचन हुआ-किंग ऑफ टेªजेडीऔर दो वर्दियां। पहला नाटक किंग ऑफ़  ट्रेजेडीखेला गया. किंग ऑफ़ ट्रेजेडीनाटक कुलदीप कुणाल द्वारा लिखित है और इसे निर्देशित किया के. डी. उर्फ कशिश देवगन ने. हास्य के बहुत बड़े जादूगर कहे जाने वाले चार्ली चैप्लिन के जीवन पर आधारित यह नाटक लोगों को बहुत पसंद आया. चार्ली चैप्लिन की जीवनी को संगीतमय प्रस्तुत कर कलाकारों ने लोगों को प्रभावित किया.
चार्ली चैप्लिन जो लोगों को अक्सर हंसाते हुए नजर आते हैं, निश्चित रूप से अपने चेहरे के हाव भाव से, एक्सप्रेशंस एवं एक्टिंग से हंसाने का माद्दा जितना चार्ली चैप्लिन में है संभवत इतना बड़ा कलाकार दुनिया में कोई और दूसरा नजर नहीं आता है. लेकिन इस हंसी के पीछे कितना अवसाद, कष्ट एवं कितनी दर्द भरी कहानी है इसका एक बेहतरीन नमूना किंग ऑफ ट्रेजेडीके कलाकारों ने अपनी बेहतरीन अदाकारी से स्टेज पर प्रस्तुत किया. किंग ऑफ़ ट्रेजेडीकी संगीतमय प्रस्तुति ने अलवर के दर्शकों को निश्चित रूप से बहुत प्रभावित किया. नाटक के कलाकारों ने अपनी खूबसूरत अभिनय क्षमता एवं प्रस्तुति के माध्यम से चार्ली चैप्लिन को प्रताप ऑडिटोरियम के रंगमंच पर जैसे साक्षात खड़ा कर दिया, इस तरह का आभास किंग ऑफ़ ट्रेजेडीनाटक को देखते हुए हुआ. किंग ऑफ़ ट्रेजेडीनाटक में मंच पर अभिनय करने वाले कलकारों में-अक्षय रावत-चार्ली चैप्लिन की भूमिका में, चार्ली चैप्लिन की मां हाना की भूमिका निभाई रूबी चौहान ने, चार्ली के फादर चार्ल्स स्पेंसर की भूमिका निभाई प्रयास दुबे ने, चार्ली के भाई सिंधे की भूमिका निभाई शिवम शर्मा ने, डॉलर करेंसी के रूप में समीर खान, नरेटर के रूप में शनि, दूसरे नरेटर के रूप में मनीला, कोरस में मानसी शर्मा, मैनेजर के रूप में अंकित. नाटक का डायरेक्शन, परिकल्पना एवं नृत्य संयोजन के डी उर्फ कशिश देवगन ने किया.

चार्ली चैप्लिन के बाद 8.30 बजे प्रस्तुत हुआ नाटक दो वर्दियांदो वर्दियांनाटक के लेखक हैं डॉ. जगबीर राठी एवं करण सैनी एवं निर्देशन किया डॉ. जगबीर राठी ने. दो वर्दियांनाटक एक पुलिस वाले की कहानी है. उसके पास एक आर्मी मैन आता है और वह पुलिसवाला आर्मी मैन को अपने जीवन की दास्तान सुनाता है. आमतौर पर पुलिस वाले देखने में हमें बहुत ही ठीक नहीं दिखाई देते हैं अर्थात हम उनको नकारात्मक दृष्टि से देखते हैं एवं यह वास्तविकता भी है. अधिकतर पुलिसवाले नकारात्मक होते हैं लेकिन यह सोचने की आवश्यकता है की वे नकारात्मक पुलिस वाले बनते क्यों हैं. जबकि उस पुलिस वाले के पीछे भी एक व्यक्ति है. उसका भी अपना परिवार है. वह भी एक सामाजिक व्यक्ति है. वह भी अपने परिवार एवं समाज के बारे में सोचता है लेकिन उसकी भी अनेक मजबूरियां हैं. दो वर्दियांनाटक इसी तरह की अनेक सकारात्मक बातें सोचने के लिए मजबूर करता है. हरियाणवी भाषा के पुट के डायलॉग लगातार लोगों को प्रभावित करते हैं. पुलिसवाला आर्मी मैन को अपनी दास्तां सुनाता है कि किस प्रकार से उसके भी जीवन में अनेक तरह के कष्ट आए हैं. कैसे-कैसे लोगों से उनका पाला पड़ा है. बड़े अफसर एवं नेताओं का दबाव एवं डंडा उनके ऊपर कैसे घूमता रहता है तथा यह पुलिस वाला जो देश हित एवं देश की रक्षा के बारे में शपथ ले कर यह वर्दी धारण करता है लेकिन बड़े आकाओं के दबाव के आगे उसकी सारी शपथ धरी रह जाती है. इस नाटक में समाज के अनेक पक्षों पर गंभीर कटाक्ष किया गया है। जैसे आजकल की युवा पीढ़ी का भटकाव, बाबाओं के कारनामें, एक राजनेता द्वारा अपने ही पुत्र को सत्ता के लिए मरवाने की कोशिश आदि।
इन सब घटनाओं में पुलिस स्टेशन का दृश्य बहुत कुछ हकीकत कहता है। वहां होने वाली घटनाओं को नाटक बेहतर तरीके से प्रस्तुत करता है। डॉ. जगबीर राठी, करण सिंह एवं राजकुमार धमकड का अभिनय काफी प्रभावी रहा। अनेक प्रकार की विसंगतियों पर कटाक्ष करता हुआ दो वर्दियांनाटक निश्चित रूप से दर्शकों को सोचने के लिए मजबूर करता है. रोहतक से आए हुए कलाकारों के द्वारा प्रस्तुत दो वर्दियांनाटक अनेक प्रश्न खड़े करता है. बेहतरीन अदाकारी एवं खूबसूरत संवादों के लिए यह नाटक दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ पाया. दो वर्दियांनाटक में अभिनय करने वाले कलाकारों में डॉ. जगबीर राठी, करण सैनी, डॉ. प्रताप राठी, राजकुमार धमकड़, विश्व दीपक तिरका, अनिल बागड़ी, अलकेश दलाल, जोगिंद्र, अजमेर कुंदु आदि थे. मंच परे की व्यवस्था इन कलाकारों ने संभाली-संगीत अशोक शर्मा, कॉस्ट्यूम-अजमेर कुंदु, मेकअप-यशु दास, टेक्निकल मैनेजर-ऋषभ वर्मा, प्रोडक्शन-अनिल बागड़ी, सुपर विजन-डॉ. प्रताप राठी. ये दोनों ही नाटक हरियाणा कला परिषद मल्टी आर्ट कल्चरल सेंटर के सहयोग से खेले गए।

अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस के उपलक्ष्य पर आयोजित मत्स्य थिएटर फेस्टिवल कि इन दोनों ही बेहतरीन नाटकों की प्रस्तुति के द्वारा संस्कार थिएटर ग्रुप ने साबित कर दिया कि अलवर में अच्छे नाटक प्रस्तुत हो सकते हैं. अच्छे नाटक देखे जा सकते हैं. रंग संस्कार थिएटर ग्रुप लगातार प्रयास कर रहा है की अलवर में प्रसिद्ध तथा बेहतर नाटक प्रस्तुत हों और धीरे-धीरे नाटक करने वाले, नाटक देखने वाले दोनों ही इस बात से प्रेरित हों और लगातार यहां पर भी रंगकर्म सक्रिय हो तथा रंगकर्म से जुड़ी समस्याओं का समाधान हो. अलवर के सभी रंगकर्मी मिलकर के साझा प्रयास करें तो इस तरह की समस्या का समाधान हो सकता है.
अनेक असुविधाएं एवं संकटों के बाद भी लगातार अलवर के युवा एवं उत्साही रंगकर्मी अलवर में रंगकर्म को सक्रिय रखने में पुरजोर कोशिश कर रहे हैं. आधुनिक एवं तकनीक भरी इस दुनिया में रंगमंच जैसी कला सामाजिक सरोकारों से सीधा ताल्लुक रखती है. इस तरह की कलाओं को प्रोत्साहन देने के लिए आम लोगों का सहयोग बहुत जरूरी है. अलवर के दर्शक नाटक के प्रति विशेष रुचि रखते हैं. अलवर में प्रस्तुत नाटकों में दर्शकों की प्रतिक्रिया से यही प्रतीत होता है.

28 मार्च को जयपुर के कलाकारों के द्वारा राजपूतानानाटक प्रस्तुत किया गया। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि यह राजस्थान की कहानी पर आधारित नाटक है. राजस्थान का नाम पहले राजपूताना था. इस नाटक के अंतर्गत राजस्थान के अनेक पक्षों को उठाया गया है. रसों के राजा रसराज के पास पञ्च तत्त्व रस की तलाश में आते हैं. सर्वप्रथम रसराज उन्हें जिस विशेष क्षेत्र का नाम बताते हैं वह नाम होता है राजस्थान. रसराज उन्हें राजस्थान भेजते हैं और कहते हैं कि राजपूताना की नारी पूर्ण रुप से रसों का भंडार है. अतः आप वहां जाइए. वहां आपको श्रृंगार, सौंदर्य, अद्भुत, शौर्य, प्रेम, शांत, करुणा और सोम्य आदि रसों का एक अनूठा संगम राजपूनाता की नारी में दिखाई देगा.

पञ्च तत्व यह सुनकर बहुत प्रसन्न होकर राजस्थान की भूमि पर प्रवेश करते हैं. राजस्थान की भूमि में वहां की स्त्री को देखते हैं तो रसराज के द्वारा बताई गई नारी की वे तमाम विशिष्टताएं उसकी वीरता, शौर्य, सौंदर्य, करुणा आदि उन्हें उसमें कुछ भी दिखाई नहीं देता है. उन्हें राजपूनाता की जो स्त्री दिखाई देती है वह तो डरी-सहमी है, संकोची है, चुप है, समाज में हर तरफ से शोषित है. स्त्री के शौर्य और वीरता की अद्भुत गाथा कि जिस कल्पना में पंच तत्त्व राजस्थान की भूमि पर आते हैं, वह सारी कल्पना उनकी धराशाई हो जाती है. उन्हें लगता है की शायद रसराज ने उन्हें गलत जगह पर भेज दिया है. क्योंकि जिस राजपूताना प्रदेश की नारी की प्रशंसा रसराज कर रहे थे या तो वह राजपूताना प्रदेश यह नहीं है या फिर यहां की नारियां ऐसी नहीं हैं. लेकिन जब उन्हें पता लगता है की वे सही जगह पर आए हैं. लेकिन आधुनिक परिवेश के बदलाव में नारी का अस्तित्व, उसका सम्मान, उसकी वीरता, उसका शौर्य, साहस, बलिदान, करुणा, त्याग, तपस्या आदि कहीं खो गए हैं। तो वे  नारी को एहसास दिलाते हैं. याद दिलाते हैं उसे पुराने ऐतिहासिक क्षणों को और कहते हैं की  तुम वह नहीं हो जो दिखाई दे रही हो, तुम असीम क्षमताओं की भण्डार हो, तुम पुंज हो, ज्वाला हो, तेजस्विनी हो, सृजक हो, निर्मात्री हो. तुम अबला नहीं सबला हो. याद करों अपने इतिहास को कभी मीरा की भक्ति और श्रृंगार की मूरत के रूप में तुम जानी जाती थी. याद करो हाडी के साहस, वीरता और बलिदान की कहानी की निशानी तुम ही हो. वह तुम्हारी ही प्रतिछाया थी. इतिहास में तुम्हारी ही गाथाएं लिखी जाती थी. पन्नाधाय की अद्भुत बलिदानी कहानी तुम ही हो. सौंदर्य, प्रेम, स्वाभिमान और खुद्दारी का प्रतिक पदमावती हो तुम. इतनी बड़ी और अद्भुत शक्ति की पुंज होकर भी तुम क्यों चुप हो. नारी को अपने अतीत की याद आती है. वह शोषण की चक्की में पिस रही है इसलिए शोषण के विरुद्ध आवाज उठाती है. शोषण करने वालों को चेतावनी देती है की मुझे अपमानित मत करों. वह चिंगारी बनकर फिर से पैदा हो जाती है. जब नारी चिंगारी बनती है तो विस्फोट होता है. वह कहती है नारी की बेइज्जती मत कीजिए, उसका सम्मान कीजिए और उससे प्रेम कीजिए, उसे प्रेम दीजिए. क्योंकि यदि नारी चिंगारी बन जाएगी तो सब कुछ को खाक कर देगी. इन चारों स्त्रियों की कथा को कलाकारों ने मंच पर बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत कर नारी के विशिष्ट रूप को दिखाया। लंबे लंबे वस्त्रों एवं बांस के डंडों से निर्देशक ने अनेक दृश्यों को मंच पर कल्पित कर नाटक में अनेक प्रयोगात्मक कार्य किए जो दर्शकों को बहुत पसंद आए।

जयपुर से आए कलाकारों ने राजपूताना की बेहतरीन प्रस्तुति के माध्यम से लोगों को अंत तक नाटक से जोड़े रखा. नाटक की प्रकाश व्यवस्था ने नाटक को जीवंत कर दिया. नाटक में संवाद बहुत ही खूबसूरत हैं. निश्चित रूप से लेखक राजस्थान के ऐतिहासिक पक्ष की वह विशेषता यहां पर उजागर करता है जिसके लिए राजस्थान की अपनी अलग पहचान है. कलाकारों ने अपनी अभिनय क्षमता के आधार पर उसे साकार भी किया.
तपन भट्ट द्वारा निर्देशित और लिखित नाटक राजपूताना निश्चित रूप से अपने खूबसूरत संवादों की वजह से एक यादगार नाटक रहा. नाटक में मंच पर भूमिका निभाने वालों में विशाल भट्ट, अभिषेक झाँकल, संवाद भट्ट, अन्नपूर्णा शर्मा, रिमझिम भट्ट, अखिल चौधरी, झिलमिल भट्ट, शिप्रा शर्मा, अभिषेक शर्मा, विष्णु सैन, तपन भट्ट एवं सौरभ भट्ट थे. इस प्रस्तुति को खूबसूरत बनाने में सहयोग दिया हारमोनियम पर सौरभ भट्ट, ढोलक पर शैलेंद्र शर्मा, तबला-पुरुषोत्तम शर्मा. प्रकाश व्यवस्था संभाली शहजोर अली ने. रूप सज्जा-विष्णु सैन, प्रस्तुति नियंत्रक-वासुदेव भट्ट.


रंग संस्कार थिएटर ग्रुप लगातार सक्रिय एवं सुचारु से रंगमंच करने का प्रयास कर रहा है. 27 एवं 28 मार्च को ऑडिटोरियम में नाटक शुरू होने से पहले अलवर के रंगकर्मियों ने ऑडिटोरियम के बाहर एक नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया. नाटक का नाम था-होश में कब आओगे। नाटक देखने आए दर्शक एकदम से वहां पर रुकने लगे. नुक्कड़ नाटक का विषय था कि हम नाटक क्यों करते हैं एवं कहाँ करें. हास्य के माध्यम से लोगों को जोड़ते हुए कलाकारों ने बताया की हम नाटक क्यों करते हैं. नाटक की क्या विशेषताएं हैं एवं आप नाटक क्यों देखते हैं. नाटक करने के लिए हमारे पास पहले जगह नहीं थी. लेकिन अब ऑडिटोरियम उपलब्ध है. बड़ी समस्या यह है कि इस ऑडिटोरियम की दर बहुत महंगी है. अलवर के रंगकर्मियों के लिए बहुत बड़ी समस्या है ऑडिटोरियम बुक करवाना. हम रंगकर्मी ऑडिटोरियम बुक करवाने के लिए पैसे की व्यवस्था करें या नाटक की रिहर्सल करें. जयपुर में रविंद्र रंगमंच, जयपुर में बिरला ऑडिटोरियम, जोधपुर का टाउन हॉल या अन्य ऑडिटोरियम का किराया मात्र 2000 से 10000 हजार प्रतिदिन है लेकिन प्रताप ऑडिटोरियम जो अलवर में बना हुआ है जो निश्चित रूप से बहुत ही सुंदर बना हुआ है इसकी कीमत प्रतिदिन एक लाख के करीब बैठती है. राजस्थान में इस ऑडिटोरियम की कीमत सबसे अधिक है। ऐसी स्थिति में रंगकर्मी कैसे नाटक कर सकता है. जबकि अनेक जगह पर तो गैर सरकारी ऑडिटोरियम भी मात्र 10 से 15 या 20000 हजार में प्रतिदिन के हिसाब से मिल जाते हैं. 
जबकि प्रताप ऑडिटोरियम सरकारी है और यह सरकारी ऑडिटोरियम आम जनता के लिए, सामाजिक सरोकार के कार्यों के लिए, रंगमंच जैसी गतिविधि जो समाज एवं कला को जीवित रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाती है, उनके लिए होना चाहिए. और उनके लिए कम से कम किराये पर उपलब्ध होना चाहिए. जबकि यह बहुत महंगा है। इस तरह के अनेक सवाल नुक्कड़ नाटक के माध्यम से अलवर के रंगकर्मियों ने उठाए और दर्शकों से उन्होंने अपील की कि आप लोग भी इसके लिए सवाल उठाएं. दर्शको से कहा आप लोग एक एक पोस्ट कार्ड कलेक्टर को, यूआईटी चेयरमैन को भेजीए. अपना पूरा एड्रेस उसमें लिखिए और अपना सुझाव लिखिए. निश्चित रूप से अलवर के रंगकर्मियों के लिए यह एक बड़ी समस्या है. लेकिन फिर भी रंग संस्कार थियटर ग्रुप एवं अलवर के रंगकर्मी प्रशंसा के पात्र हैं. जो की इतनी जद्दोजहद एवं कठिन परिस्थितियों के बाद भी नाटक कर रहे हैं और लगातार कर रहे हैं. इस प्रभावी नुक्कड़ नाटक का लेखन एवं निर्देशन किया वरिष्ठ रंगकर्मी एवं लेखक दलीप वैरागी ने। दलीप वैरागी ने पूर्व में भी अनेक नुक्कड़ एवं लघु नाटकों को लेखन एवं निर्देशन किया है। हालांकि व्यस्तताओं के कारण हाल के दिनों में वे कम लिख रहे हैं। लेकिन बेहतर लिख रहे हैं। नुक्कड़ नाटक में अभिनय करने वाले कलाकारों में-अविनाश सिंह, राजेश महीवाल, अखिलेश, नरेन्द्र सिंह, बजरंग चौहान, हितेश जैमन, विश्वनाथ, संजय सैनी, सुनील, दलीप वैरागी, शुभम गुप्ता थे।  


29 मार्च को नटसम्राटनाटक का मंचन किया गया. आंखें, कांटे जैसी अनेक फिल्मों में आर्ट डायरेक्टर के रूप में काम कर चुके जयंत देशमुख द्वारा निर्देशित नाटक नटसम्राटएक नाटककार की कहानी है. वि वा शिरवाडकर द्वारा लिखित नटसम्राटनाटक बहुत ही प्रसिद्ध एवं चर्चित है.
नटसम्राटएक अभिनेता के आत्मालाप की कहानी है. यह कहानी प्रसिद्ध सेक्सपीरियन  अभिनेता गणपतराव रामचंद्र बेलवलकर की है. गणपतराव थियेटर का राजा अर्थात नटसम्राट की उपाधि प्राप्त होने के बाद थियटर से रिटायर हो चुका है. गणपतराव बेहद संजीदा और बेहतरीन अभिनेता रहे हैं. इसीलिए उन्हें नटसम्राट की उपाधि दी जाती है. गणपतराव नाटक करते एवं नाटक जीते हैं. थिएटर के लिए पूर्णतया समर्पित गणपतराव बहुत बड़े और विशिष्ट कलाकार के रूप में जाने जाते हैं. लेकिन उनकी पत्नी कावेरी सरकार एवं उनके दोनों बच्चे एक लड़का, लड़की यह मानते हैं कि गणपतराव बेलवलकर नाटक को घर पर ले आए हैं.अर्थात उनकी जीवनचर्या थिएटर आर्टिस्ट की ही बनी रहती है. गणपतराव बेलवलकर अपनी जिंदगी में सेक्सपियर के अनेक नाटक खेलते हैं. उन्होंने हेमलेट, जूलियस सीजर, किंग लियर, जैसे अनेक महान और प्रसिद्ध नाटक खेले हैं. इन सब नाटकों के किरदारों को करते हुए उन्हें बहुत गौरव महसूस हुआ है. अब उसकी अपनी जिंदगी भी किंग लियर की तरह हो गई है. गणपतराव से वह देखी नहीं जाती है. नाटक करने वाले कलाकार को आमतौर पर उसके परिवार वाले नापसंद करते हैं एवं परिवार का तालमेल नाटककार के जीवन से कैसे होता है उसी का एक ताना-बाना नाटक नटसम्राटप्रस्तुत करता है. एक नाटककार के वृद्ध जीवन का बहुत ही कडुआ सच इस नाटक में बयां होता है। सारी दुनिया जिसे अपनाती है, अपना ही परिवार, स्वयं के बेटे-बहु, बेटी-दामाद उसे ठुकराते हैं। यह वृद्ध दंपत्ति अपने घर से बेघर होकर फुटपाथ पर रहने को मजबूर होता है। सभी लोगों के दिल में राज करने वाला नाट्य कलाकार अपने ही घर के लोगों के दिल में चुबता है।

नाटक करके व्यक्ति सामाजिक रूप से सभी से जुड़ने का प्रयास करता है लेकिन यथार्थ में देखें तो अनेक नाटककार ऐसे हैं जो सबसे पहले परिवार से कटते हैं. घर परिवार उन्हें पसंद नहीं करता है और यह यथार्थ पूर्व में भी था एवं आज भी है. सामाजिक संरचना के दायरे में नाटक जैसे कि बाहर की चीज है. वह इस कैटेगरी में जैसे आता ही नहीं है. परिवार के सभी लोगो को बेचैनी होने लगती है. जबकि नाटक का काम यही बेचैनी पैदा करना है. क्योंकि नाटक करता भी वही व्यक्ति है जिसके मन में बेचैनी हो. समाज की विसंगतियों के प्रति, विद्रूपता के प्रति. सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक आदि किसी भी प्रकार से होने वाले अन्याय के प्रतिरोध में खड़ा होने वाला यह नाटक, नाटक नहीं बल्कि सामाजिक समरसता की ओर कदम बढ़ाने वाली वह तलवार है, जो असामाजिकता, अन्याय एवं किसी भी प्रकार के असंगत को काटने के लिए खड़ी होती है.

नटसम्राटनाटक में नटसम्राट अर्थात गणपतराव बेलवलकर की प्रमुख भूमिका अदा करने वाले आलोक चटर्जी ने अपने खूबसूरत और बेहतरीन अभिनय से लोगों को अनेक जगह पर तालियां बजाने के लिए के साथ-साथ आंसू बहाने के लिए मजबूर कर दिया. आलोक चटर्जी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से स्नातक हैं. अलोक चटर्जी अनेक सीरियलों एवं नाटकों में अभिनय कर चुके हैं. अनेक नाटककार एवं फिल्म अभिनेताओं के साथ भी अलोक चटर्जी काम कर चुके हैं. जैसे-इब्राहिम अल्काजी, राम गोपाल बजाज, देवेंद्र राज अंकुर, अनुराधा कपूर, रोबिन  दास, मोहन महर्षि, इरफान खान, राजपाल यादव, नसरुद्दीन शाह, अनुपम खेर, हिमानी शिवपुरी आदि। देश के बहुत ही संजीदा और बेहतरीन अभिनेताओं में आलोक चटर्जी का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है. नटसम्राटनाटक में अन्य कलाकारों में कावेरी बेलवलकर की भूमिका मे थी रश्मि मजूमदार, नदंन की भूमिका में सुनील गायकवाड, शारदा की भूमिका में ज्योति दुबे, सुधाकर की भूमिका में राहुल तिवारी, नलिनी की भूमिका में अंजली सिंह, सुहासिनी की भूमिका में एंजेल चंदनानी, विठोबा की भूमिका में जैकी भावसार, महादेव की भूमिका में गौरव सराठे, मि. कलवंकर की भूमिका में हरीश वर्मा, मिसेज कलवंकर की भूमिका में रश्मि आचार्य, राजा की भूमिका में अंश पयान सिन्हा. इन सभी कलाकारों ने भी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया।

नाटक में बहुत सारे लोग हमें दिखाई देते हैं अभिनय करते हुए, लेकिन इस अभिनय को और भी प्रभावी बनाने में जिन लोगों की बहुत बड़ी भूमिका होती है, वे अक्सर हमें दिखाई नहीं देते हैं लेकिन उनके बिना नाटक संभव नहीं। मेकअप, लाइट, सेट, रूप सज्जा आदि की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है नाटक में. इनको अभिनीत करने वाले हमे दिखाई नहीं देते हैं क्योंकि वे मंच के पीछे होते हैं. ये कलाकार थे-मंच व्यवस्था-सुनील गायकवाड, मंच सज्जा-हरीश वर्मा व जैकी भावसार, प्रकाश परिकल्पना-कमलेश कुमार वर्मा व दिनेश नायर, वेशभूषा परिकल्पना-रश्मि आचार्य व गौरव सराठे, रूप सज्जा-हरीश वर्मा, मंच सामग्री-गौरव सराठे व प्रदीप, संगीत संचालन-शरद मोटवानी, मूल मराठी लेखक वि वा शिरवाडकर, नटसम्राट नाटक का अनुवाद किया सच्चिदानंद जोशी ने. नटसम्राट का बहुत ही संजीदा खूबसूरत संगीत तैयार किया उमेश तरकशवार ने. मंच परिकल्पना, प्रयोग एवं निर्देशन जयंत  देशमुख.

नटसम्राटनिश्चित रूप से एक बेहतरीन और खूबसूरत नाटक लिखा गया है और इस खूबसूरत नाटक को निर्देशित किया जयंत देशमुख ने. जयंत देशमुख देश के बहुत प्रसिद्ध फिल्म एवं टेलीविजन आर्ट प्रोडक्शन मैनेजर के रूप में जाने जाते हैं. देशमुख ने अनेक फिल्मों में आर्ट डायरेक्टर एवं प्रोडक्शन मैनेजर के रूप में काम किया है. गोविंद निहलानी, प्रकाश झा, राम गोपाल वर्मा, अनुराग कश्यप जैसे फिल्मी निर्देशकों के साथ जयंत देशमुख काम कर चुके हैं. जयंत देशमुख ने राजनीति, आरक्षण, बवंडर, तेरे नाम, नमस्ते लंदन जैसी अनेक फिल्मों में प्रोडक्शन डिजाइन का काम किया है। तारक मेहता का उल्टा चश्मा, यह रिश्ता क्या कहलाता है, लाडो, शोभा सोमनाथ की, तेरे लिए आदि सीरियलों में भी आर्ट मैनेजर का काम किया है. इनकी एक मराठी फिल्म गणपति बप्पा एवं हिंदी फिल्म रिजवान अभी आने वाली है.
नाटक से पूर्व प्रेस वालों से बात करते हुए नटसम्राटनाटक के निर्देशक जयंत देशमुख ने कहा कि निश्चित रूप से अलवर जैसे शहर में इतना खूबसूरत ऑडिटोरियम होना एक बहुत बड़ी बात है. रंग संस्कार थिएटर ग्रुप एवं इस पूरे कार्यक्रम के संयोजक देशराज मीणा से बात हुई तो पता लगा कि यहां पर इस ऑडिटोरियम में अनेक समस्याएं हैं. उन समस्याओं के बावजूद भी देशराज मीणा एवं अलवर के रंगकर्मी लगातार थिएटर कर रहे हैं, यह बहुत बड़ी बात है. नटसम्राटनाटक मूलतः एक नाटककार की कहानी को बयां करता है और वह कहानी सीधे-सीधे परिवार से और समाज से जुड़ती है. एक नाटककार एवं उसके परिवार के जीवन में किस तरह की समस्याएं आती हैं, उन्हीं को बयाँ करता है नटसम्राट. हम नाटक नटसम्राट के अंदर नाटककार की अनेक समस्याएं आपके सामने इंगित कर रहे हैं लेकिन देशराज मीणा जैसे थिएटर के लगभग सभी लोग इन समस्याओं को यथार्थ जिंदगी में झेल रहे हैं। ऐसे जुनूनी, खुद्दारी और कला को समर्पित लोगों को हमें प्रोत्साहित करना चाहिए, इनकी हौसला अफजाई करनी चाहिए और लगातार इसी तरह के आयोजन कर सकें इसके लिए हमें उनका सहयोग करना चाहिए. अलवर की जनता यहां के प्रशासन एवं राजनेताओं से यह अपेक्षा और निवेदन करता हूं की अलवर जैसे शहर में जो दिल्ली और जयपुर के बीच में है, जहां पर इतना खूबसूरत ऑडिटोरियम बना हुआ है, उस का बेहतर इस्तेमाल होना चाहिए. अलवर में बेहतर नाटक हो रहे हैं और भी हो सकते हैं, बशर्ते कि ऑडिटोरियम में जो कुछ थोड़ी-बहुत तकनीकी दिक्कत है, उसमें कुछ सुधार हो जाए और साथ ही साथ देशराज मीणा एवं रंग संस्कार थिएटर ग्रुप से जुड़े हुए हैं जो भी इसमें साथी हैं या अलवर के रंगकर्मी हैं जो नाटक करना चाहते हैं-प्रताप ऑडिटोरियम में उन्हें कम से कम किराये पर यह मिल सके. मैं पूरे देश में अनेक जगह पर नाटक कर रहा हूं, जितना जुनून यहां के नाटक प्रेमियों में नाटक कर्मियों में दिखाई देता है उतना अन्य जगह कम होता है. यदि इस ऑडिटोरियम की कीमत कम हो जाए एवं आप सब का सहयोग सकारात्मक रूप से इन अलवर के रंगकर्मियों के साथ हो तो मेरा मानना है कि मुंबई और दिल्ली से बेहतर रंगकर्म अलवर में होना शुरू हो जाएगा. आपको हो सकता है मेरी बात ठीक नहीं लगती हो लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं पूरे देश भर में जब मैं घूमता हूं तो देखता हूं, देशराज जैसा, उनकी टीम जैसा जुनून बहुत कम जगह एवं कम लोगों में दिखाई देता है. इन समस्याओं के कारण इन रंगकर्मियों का जुनून कहीं समाप्त न हो जाए, कहीं मर न जाए इसलिए आप सबसे निवेदन है सहयोग कीजिए और इस ऑडिटोरियम की खूबसूरती भी तभी है जब इसके अंदर कार्यक्रम हों, थिएटर हो, नाटक हो, कला, साहित्य, संस्कृति से जुड़ी गतिविधियां लगातार हों.

कार्यक्रम के प्रथम दिन का बेहतरीन संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी सतीश शर्मा ने किया। सतीश शर्मा ने कहा-इस तीन दिवसीय खूबसूरत मत्स्य थिएटर फेस्टिवल में जो भी प्रस्तुतियां आपको दिखाई दी. उन बेहतरीन खूबसूरत प्रस्तुतियों को पीछे से बहुत बड़ा सहयोग देने वाले अलवर के रंगकर्मियों का बहुत बड़ा योगदान है. इनके बिना यह संभव नहीं था. जिनमे विश्वनाथ मीणा, दलीप वैरागी, अखिलेश, हितेश कुमार जैमन, शुभम गुप्ता, संजय सैनी, विनीत भारती, अविनाश सिंह, राजेश महिवाल, नीलाभ ठाकुर, राजीव वर्मा एवं हेल्पिंग हैंड अलवर के अनेक साथी हैं.
प्रस्तुति-
डॉ. प्रदीप कुमार
ग्राम/पोस्ट-बास कृपाल नगर,
तहसील-किशनगढ़-बास, जिला-अलवर,
राजस्थान, पिन नं. 301405, मोबाईल नं.-9460142690,
ब्लॉग-दृश्य अदृश्य- http://pradeepprasann.blogspot.in,
youtube chainal-pradeep prasann





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  1. बेहतरीन और कसा हुआ रिव्यू है। अलवर जैसी जगह सारी असुविधाओं के बीच इस नाट्य उत्सव का होना उत्साहजनक है। यदि अगली बार से अलवर की ओर से भी प्रस्तुति हो तो अधिक सार्थक होगा। आयोजकों को इस आयोजन हेतु दिल से बधाई और भविष्य के लिए शुभकामनाएं। नाट्यकर्म एक यज्ञ है और यह चलता रहना ही समाज के लिए कल्याणकर होगा।

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    1. धन्यवाद सर, आपकी टिप्पणी बहुत महत्त्वपूर्ण है और अगली बार अलवर की प्रस्तुति हो ऐसा प्रयास किया जायेगा.

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  2. सार्थक एवं सुंदर रिव्यू ।
    नम्रता सिंह

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