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Tuesday, April 17, 2018

प्रसिद्ध नाटककार असगर वजाहत आए अलवर : Famous playwright Asgar Wajahat came to Alwar



तेरा होना तलाशूँपुस्तक लोकार्पण
विनय मिश्र की ग़ज़लों में अपना समय और समाज मौजदू है-असगर वज़ाहत
विनय मिश्र के दूसरे ग़ज़ल संग्रह तेरा होना तलाशँू के लोकार्पण अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए ख्यातिलब्ध कथाकार, नाटककार एवं आलोचक प्रो. असगर वज़ाहत ने कहा कि विनय मिश्र की गजलों में विचार और संवेदना की जो पैनी धार हैवह समकालीन कविता की अंतर्वस्तु को समृद्ध करती है। उन्होंने कहा कि दिलचस्प बात यह है कि विनय मिश्र अपनी गजलों में किसी प्रकार का यूटोपिया नहीं खड़ा करते बल्कि वे अपने समय एवं समाज के जटिल यथार्थ को बड़ी ही बेबाकी और ईमानदारी से व्यक्त करते हैं। विनय मिश्र हिन्दी के प्रतिनिधि गजलकार हैं जिन्होंने अपनी गजलों में अपने समय को गहराई से उकेरा है और अपनी प्रयोगधर्मिमा और कलात्मक अभिव्यक्ति से हिन्दी कविता को समृद्ध किया है।

पुस्तक लोकार्पण एवं गजल विमर्श समारोह में विनय मिश्र ने अपनी गजलों का पाठ भी किया एवं अपनी गजल यात्रा से लेकर हिन्दी कविता एवं हिन्दी में गजल की विकास यात्रा को विस्तार से उठाया। उन्होंने कहा कि वैसे तो गजल, गजल है लेकिन जिस तरह से उर्दू में गजल की एक लंबी परंपरा है, उसी तरह हिन्दी में भी गजल की एक समृद्ध परंपरा है। अमीर खुसरो, कबीर, निराला, त्रिलोचन, शमशेर, सूर्यभानु गुप्त, भवानी शंकर, दुष्यंत कुमार और अदम गोंडवी इसी हिन्दी कविता पंरपरा के गजलकार हैं। समकालीन गजलों की शुरूआत दुष्यंत कुमार से होती है। आज की गजल में आमजन का दुख, दर्द और विसंगतियों का क्रूर यथार्थ यानी अपने समय का खुरदुरापन पूरी ईमानदारी के साथ मौजूद है।
इस निराशावादी परिवेश में जहां अन्याय और अत्याचार की पराकाष्ठा सत्ता के सामने पर फैलाकर चहूं ओर व्याप्त हो रही है। ऐसे माहौल में उम्मीद का दामन नहीं छोडते हैं विनय मिश्र। इसीलिए वे कहते हैं लगातार बातें करते रहें, संवाद होता रहे, हम मिलते रहें तो कुछ हल निकलेगा। जरूर निकलेगा। वे कहते हैं-
मिट न जाए जिन्दगी का स्वर चलो बातें करें।

बेजुबां कर दे हमको डर चलो बातें करें।।
हाशिए पर ही सही कोई जगह तो हैं यहां
फिर न जाने कब मिले अवसर चलो बातें करें।।

ऐसे जीना है कभी सोचा न था,
जी रहा था और मैं जिन्दा न था.  
इसको कहते हैं मुकद्दर का बहाव,
मैं जहाँ डूबा वहां दरिया न था. 


समारोह में आधार वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ जनधर्मी आलोचक डॉ. जीवन सिंह ने कहा कि तेरा होना तलाशूँविनय मिश्र का दूसरा ग़ज़ल संग्रह है। ग़ज़ल लेखन उनको सबसे प्रिय रहा है जबकि वे गीत, दोहे और मुक्त छंद की कविता भी उतने ही समर्पित भाव से लिखते हैं तथा कविता के सभी समकालीन काव्य रूपों की गतिशीलता के लिए सामूहिक प्रयास में विश्वास रखते हैं। यह खुशी की बात है कि उनके संकल्प ने उनके ग़ज़ल संग्रह के लोकार्पण समारोह को हिंदी ग़ज़ल के राष्ट्रीय विमर्श का आयोजन बना दिया है। उनके पास ग़ज़ल कहने का अपना मुहावरा है और समकालीन समय की जटिलताओं की समझ भी। यही वह आधार है जो बतलाता है कि हिंदी ग़ज़ल की परंपरा को विकसित करने में उनकी भूमिका महŸवपूर्ण है।

दिल्ली से आए प्रखर युवा आलोचक डॉ. दिनेश कुमार ने कहा कि वर्तमान समय में हिंदी ग़ज़ल की जो स्थिति है उसमें ग़ज़ल की रचना ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि उसे हिंदी कविता की मुख्यधारा में स्थापित करने के लिए सचेत-सांगठनिक प्रयास करने की भी जरूरत है। विनय मिश्र उन थोड़े से गजलकारों में हैं जो रचनाशीलता के साथ-साथ सांगठनिक प्रयास में भी सक्रिय हैं ताकि हिंदी गजल, हिंदी कविता की मुख्यधारा में स्थापित हो सके।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ से आए कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रो. शंभूनाथ तिवारी ने कहा कि विनय मिश्र हिंदी और उर्दू दोनों की शब्दावली को लेकर एक आमफहम भाषा में जनसंवादी ग़ज़लें लिख रहे हैं। समकालीन ग़ज़लकारों में विनय मिश्र एक बड़ा नाम है। विनय मिश्र आम आदमी की समस्याओं, उनकी चिंताओं तथा पीड़ाओं को समझते हैं एवं उनकी आवाज को, उनके दर्द को अपनी गजल का विषय बनाते हैं। सामाजिक एवं राजनीतिक विडंबनाओं एवं व्यवस्था विरोध का स्वर उनकी गजलों में हर तरफ मौजूद है।

इस समारोह की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ जनधर्मी कवि, आलोचक एवं प्रतिष्ठित पत्रिका अलाव के संपादक रामकुमार कृषक कहा कि हिंदी ग़ज़ल की रचनात्मक यात्रा के अनेक स्तरों को उद्घाटित करने वाले ग़ज़ल कवियों में विनय मिश्र की अपनी पहचान और प्रतिबद्धताएं हैं। समकालीन यथार्थ से कन्नी काटनेवाले कवि वे नहीं हैं और उनकी रचनाशीलता के अनेक आयाम हैं। इसके बावजूद ग़ज़ल के शिल्प, उसकी संस्कृति को वे गहरे तक समझते हैं और हिंदी की समूची काव्य परंपरा में गजल को पृथक नहीं मानते हैं। वे उसके प्रगतिशील लेकिन भारतीय जीवन मूल्यों के साथ हैं। इसलिए उनमें एक खास तरह का खुलापन और स्वायत्तता बोध है।

बनारस से आई युवा कथाकार ज्योत्स्ना प्रवाह का कहना था कि विनय मिश्र की गज़लों में बनारस का मिजाज बोलता है। इस निराशावादी युग में भी उनके यहां आशाओं के दीप जलाने की बात बार-बार नजर आती है। परिश्रम के बाद पेशानी पर आए हुए पसीने की खुशबू का एहसास इनकी ग़ज़लों में महसूस होता है। इसके अलावा बरेली से आए युवा कवि एवं आलोचक डॉ. लवलेश दत्त, जम्मू-कश्मीर से शायरा अनु जसरोटियाजुगमंदिर तायल, न्यायधीश सतीश कौशिक, पत्रकार राजेश रवि आदि ने विनय मिश्र को बधाई दी एवं अपने विचार प्रकट किए। शहर के अनेक गणमान्य लोग जिनमें डॉ. कैलाश पुरोहित, , रेवती रमण शर्मा, प्रो. अनूप सिंह नादान, दौलत वैद्य, हरिशंकर गोयल, डॉ. श्याम शर्मा वशिष्ठ, अंजना अनिल, डॉ. अंशु वाजपई, डॉ. आराधना सारवान, देशराज मीणा, रामवतार आलोक, मास्टर प्यारे सिंह, रेणु मिश्रा, डॉ. प्रदीप प्रसन्न, डॉ. वेदप्रकाश यादव,  रामचरण राग, के एल सिरोहि, राज राज गुप्ता, डॉ. रमेश बैरवा, मुंशी खान, रेणु अस्थाना, दलीप वैरागी, हितेश जैमन, अखिलेश, अविनाश सिंह, राजेश महिवाल ललित धनावत, हेमराज सैनी, अशोक शुक्ल,राधे मोहन राय, पद्म मिश्र, दीपक चंदवानी, विमल अस्थाना, चिन्मय पारासर, खेमेंदर चन्द्रावत आदि साहित्य प्रेमी सभागार में मौजूद थे। कार्यक्रम का गरिमापूर्ण संचालन डॉ. सीमा विजयवर्गीय एवं आभार, राजकीय कला महाविद्यालय, अलवर के प्राचार्य डॉ. रमेश चंद्र खंडूडी ने व्यक्त किया।

2 comments :

  1. बहुउपयोगी समीक्षा के लिए धन्यवाद! साथ ही आपने मुझे ऐसे सार्थक साहित्यिक कार्यक्रम में अपनी भागीदारी करने का जो अवसर प्रदान किया, उसके लिए भी आपका बेहद शुक्रिया । इस कार्यक्रम ने मेरी साहित्य के प्रति रूचि तो बढ़ाई ही साथ ही मुझे ग़ज़ल जैसी समृद्ध विधा का महत्वपूर्ण परिचय भी प्राप्त हुआ । इसके अलावा असग़र वज़ाहत साहब, रामकुमार कृषक जी, जीवन सिंह मानवी जी जैसे प्रबुद्ध साहित्यकारों के बहुमूल्य विचार प्राप्त हुए । पुनः धन्यवाद !

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    1. धन्यवाद हितेश जी, रपट पढने एवं अपने सुझाव देने के लिए एवं कार्यक्रम में सहयोग के लिए.

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