“विपत्ति में पड़े हुए हर व्यक्ति को आशा होती है राम की. आज भी
राम को अपने संकटों के निवारण की आशा मानते हैं लोग.’’ मैंने यह बात इनवर्टेड कोमा
में इसलिए लिखी है क्योंकि इसके पीछे डेड और आगे एक कारण है अर्थात कुल मिलाकर के
ढाई कारण हुए. ये ढाई कारण हैं, ढाई अक्षर नहीं. कहीं आप लोग इसे ढाई अक्षर के चक्कर
में प्रेम की पोथी न समझ बैठें. वैसे
प्रेम से मुझे कोई एतराज नहीं है. पर प्रेम कबीर और कृष्ण की तरह खुले मन और उपवन
में होना चाहिए, न कि किसी आश्रम के बंध कक्ष में. जहां गुरु मंत्र के बहाने प्रेम
को दर्शन के बजाए प्रदर्शन का विषय बना करके उसे परास्त करने की पराकाष्ठा में
तिलक वाले और दाढ़ी वाले दोनो ही अग्रणी रहते हो और न ही प्रेम किसी बुद्धा गार्डन
में खुले रुप से विकसित होती पाश्चत्य संस्कृति में युवा पीढ़ी की भड़काऊ रह की
तरह होना चाहिए. और सबसे बड़ी बात प्रेम के नाम पर सिर्फ और सिर्फ प्रेम हो कुछ
अन्य नहीं.
खैर में प्रेम प्रकरण की चर्चा बाद में करूंगा. मैं बात कर रहा
था कारणों की. अर्थात ढाई कारणों की. इनमें से एक कारण तो यह है कि यह बात मैंने
एक सभा में भाषण में कही थी. दूसरा कारण यह है कि इस बात पर ताली भी बजी थी.
क्योंकि आजकल कवि सम्मलेन हो या नेताओं की रैली ताली बजाने वाले किराए के लाने
पड़ते हैं या कह के बजवाई जाती हैं, वैसे ही ताली बज जाए तो बात में करामात होती
है. और आधा कारण है कि एक पार्टी के लोग इस बात पर खुश हो गए थे और एक पार्टी के
लोग नाराज हो गए थे. लेकिन उसी समय एक सज्जन ने मुझे टोका. वे बोले –‘भाई साहब यह
त्रेता युग नहीं है, यह कलयुग है, कलयुग. यहाँ राम नहीं अब आसाराम हैं.’
मैंने कहा –‘अजी मुझे भी पता है, यह कलयुग है. राम अब नहीं है,
लेकिन कलयुग में भी आशा है राम की. यह क्या कम भक्ति है.’ लोगों ने फिर ताली बजाई.
मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि लोग ताली किसके लिए बजा रहे हैं. क्योंकि न आशा है
राम के आने की और न आशा है आसाराम के आने की. और मेरा नाम इतना बड़ा है नहीं कि
लोग मेरी बात पर ताली बजाने लगें. इस बात पर मैं सकपकाया और मैंने महसूस किया मेरी
पेशानी पर पसीना आ गया है. क्योंकि यह पसीना मेहनत के बाद किसान के तन पर आने वाले
परिश्रम की महक की तरह महसूस नहीं हो रहा था. इसलिए मैंने तुरंत अपना हाथ अपने
चेहरे पर फेरा पसीना पोंछने के लिए तो मुझे महसूस हुआ मैंने कई दिन से दाढ़ी नहीं
बनाई है. इसलिए वह बढ़ गई है. झट से मैं सारा माजरा समझ गया. संभवत इसी कारण लोग
मुझे अपनी आशाओं का राम या आसाराम के भक्त के रूप में समझ रहे हैं. मैंने कहा मैं
तो एक थियेटर का कलाकार हूं. इसलिए दाढ़ी बढ़ा रखी है. आसाराम तो जेल में बंद है.
फिर भी आप लोग……….’’ लोगों ने मेरी बात सुनी ही नहीं और जयकारा लगाते हुए एक सज्जन
बोले- ‘जेल में तो भगवान रहे हैं जी. रहे क्या हैं जेल में ही पैदा हुऐ हैं. इसलिए
जेल बुरी चीज नहीं है’. किसी दूसरे सज्जन ने कहा –‘अजी दुनिया भ्रष्ट हो चुकी है
भ्रष्ट. इसलिए आसाराम जैसे संत लोगों को जेल में रहना पड़ रहा है. अच्छे सच्चे लोग
आजकल जेल में रहते हैं.’ कोई तीसरा बोला –‘अजी
भगवान हमेशा बंद कोठरी में रहते हैं.’ चौथा बोला –‘हां, किसी भी मंदिर में देख लो.
ताले के अंदर रहते हैं भगवान. क्योंकि शैतान खुले में घूम रहे हैं. इसलिए भगवान
अंदर हैं.’ एक बोला-‘ऐसे मत बोलो नहीं तो कुछ लोग तुम्हें जेल में बंद कर देंगे.’
वह बोला- ‘ऐसे कैसे बंद कर देंगे.’ मैंने कहा –‘डर क्यों रहे हो. जेल में संत रहते
हैं, भगवान रहते हैं, अच्छे और सच्चे लोग रहते हैं, ऐसा तुम ही तो कह रहे हो, तो
तुम भी जेल में रहो.’ वह भारतीय नेता की तरह तुरंत पूरे जोश में आकर के बोला –‘अजी
अभी फैसला आ जाता है पूज्य बापू आसाराम रिहा हो जाएंगे. उन्हें कोई भी बंधी बनाकर
नहीं रख सकता.’ तभी जोर से जयकारा लगा और उसके बाद खबर आई की –‘जेल का मेल आसाराम
का पूरा नहीं हुआ है. इसलिए वह आजीवन कारावास में रहेंगे.’ भक्त जिस आशा को लेकर
आसाराम के लिए आए थे, वह टूट गई. क्योंकि उधर आसाराम को भी राम की आशा थी इधर
भक्तों को भी आशा थी राम की.
प्रदीप प्रसन्न
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