अलवर शहर के साहित्यकार, कवि एवं कलाप्रेमी शहर में लगातार
साहित्यिक एवं कलात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देने की कोशिश करते रहते हैं। इसी क्रम
में 15 अप्रैल 2018 को युवा कवि एवं आलोचक विनय मिश्र के
ग़ज़ल संग्रह ‘तेरा होना तलाशूँ’ का लोकार्पण हुआ। इस कार्यक्रम में देश
के वरिष्ठ एवं ख्यातिलब्ध साहित्यकार उपस्थित रहे। प्रतिष्ठित कथाकार, नाटककार एवं समीक्षक असगर वजाहत इस
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। जन धर्मी समीक्षक एवं अलाव पत्रिका के संपादक, वरिष्ठ कवि रामकुमार कृषक ने कार्यक्रम की
अध्यक्षता की। विशिष्ट अतिथियों में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ से प्रोफेसर शंभूनाथ तिवारी, इग्नू दिल्ली से युवा आलोचक डॉ. दिनेश
कुमार, बनारस से युवा कथाकार ज्योत्स्ना प्रवाह, जम्मू से आईं युवा शायरा अनु जसरोटिया
इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे।
नया आयाम एवं सरगम संस्थान की ओर से आयोजित यह
पुस्तक लोकार्पण एवं विमर्श समारोह हिंदी ग़ज़ल की विरासत को और अधिक विस्तृत एवं
विकसित करेगा। दुष्यंत कुमार एवं अदम गोंडवी की परंपरा को आगे ले जाने वाले कवि
विनय मिश्र अपनी कविताओं में लगातार यह कोशिश करते हैं कि अपने समय एवं समाज के
सरोकारों को बेबाकी से रेखांकित किया जा सके। ‘तेरा
होना तलाशूँ’ उनका पांचवा कविता संग्रह है लेकिन गजल
कि यह उनकी दूसरी किताब है। इससे पूर्व उनकी चार पुस्तकें ‘सच और है’, ‘समय की आंख नम है’, ‘सूरज तो अपने हिसाब से निकलेगा’ और इस पानी में आग’ प्रकाशित हो चुकी हैं।
देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में
लगातार कविता, गजल, गीत, दोहे एवं अपने आलोचनात्मक आलेखों के
माध्यम से विनय मिश्र अपने समय की तमाम विसंगतियों पर अपनी कलम चलाते हैं साथ ही उनका
यह लगातार प्रयास होता है कि अलवर शहर में साहित्यिक गतिविधियां भी सुचारु रुप से
चलती रहें और शहर के सभी रचनाधर्मी और समाजकर्मी एक साथ जुड़कर काम करें। यह
कार्यक्रम उसी श्रृंखला की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी रही ।
इन दिनों हिंदी में जो ग़ज़ल की चर्चा चल रही है, उनके मध्य कवितामई वातावरण बनाने में
विनय मिश्र की महत्वपूर्ण भूमिका है। हिंदी कविता के परिसर को बड़ा करने एवं ग़ज़ल को
स्थान दिलाने का प्रयास जो कर रहे हैं उन थोडे़ से लोगों में विनय मिश्र का नाम
अग्रणी पंक्ति में है। मनुष्य के कोमल मनोभावों से लेकर समाज के क्रूरतम यथार्थ की
जो अभिव्यक्ति विनय मिश्र की गजलों में हो रही है। वह निश्चय ही हिंदी कविता में कुछ
नया जोड़ती है। गजल लिख देना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि गजल को आंदोलनात्मक रूप से
लोगों तक ले जाना, हिंदी कविता की सही समझ लोगों तक
पहुंचे यह भी एक आंदोलनात्मक बड़ा काम विनय मिश्र जैसे लोग कर रहे हैं, जो कि बहुत महत्त्वपूर्ण है।
इस निराशावादी परिवेश में जहां अन्याय और
अत्याचार की पराकाष्ठा सत्ता के सामने पर फैलाकर चहूं ओर व्याप्त हो रही है। ऐसे
माहौल में उम्मीद का दामन नहीं छोडते हैं विनय मिश्र। इसीलिए वे कहते हैं लगातार
बातें करते रहें, संवाद होता रहे, हम मिलते रहें तो कुछ हल निकलेगा। जरूर
निकलेगा। वे कहते हैं-
मिट न जाए जिन्दगी का स्वर चलो बातें करें।
बेजुबां कर दे हमको डर चलो बातें करें।।
हाशिए पर ही सही कोई जगह तो हैं यहां
फिर न जाने कब मिले अवसर चलो बातें करें।।
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