दोस्तों इस शीर्षक को पढ़ कर के आप को बहुत अटपटा लगा होगा और आप हैरान भी हो रहे होंगे कि ऐसे कैसे हो सकता है. औरत तो चरित्रहीन होती है. हर कोई औरत तो नहीं लेकिन अनेक औरतें ऐसी होती है जो चरित्रहीन होती है. ऐसा आपने सुना होगा.
लेकिन मेरा सवाल यह है कि सिर्फ औरत ही चरित्रहीन होती है क्या? पुरुष चरित्रहीन क्यों नहीं होते? उन पर इस तरह के इल्जाम या इस तरह के जुमले क्यों नहीं कहे जाते. यह पुरुष मानसिकता और पुरुष सत्ता की सोची समझी साजिश है. जिसके तहत वह सिर्फ औरतों को दबाए रखना चाहते हैं.
अपने आप को सेफ रखने का पुरुषों ने एक सरल तरीका निकाल लिया है. औरत के कैरेक्टर को प्रश्न चिन्ह के कटघरे में खड़ा कर दो. लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए जब एक उंगली आप किसी दूसरे की तरफ उठाते हैं तो फिर शेष उंगलियां आपकी अपनी तरफ होती है. लेकिन आप उन उंगलियों को अनदेखा कर देते हैं. अक्सर लोग भी यही देखते हैं की एक उंगली किसकी तरफ उठी हुई है.
लेकिन कोई भी औरत यदि चरित्रहीन होती है तो उसमें सबसे बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका पुरुष की होती है. पुरुष भी उसके साथ उतना ही भागीदार है. उसे इस काम में लिप्त करने के लिए. पुरुष जैसे घर की दहलीज के बाहर कदम रखता है तो वह अपने तथाकथित चरित्र को त्याग कर हर जगह अपनी आंखों में वासनाओं की पूर्ति की आकांक्षा लेकर चलता है.
पुरुष यही मानता है कि स्त्रियां कभी आजाद नहीं रहनी चाहिए. बचपन में अपने पिता के अंकुश में, जवानी में पति के अंकुश में, बुढ़ापे में पुत्रों के अंकुश में स्त्री को रहना चाहिए. यह बात मनु स्मृति से लेकर अनेक ग्रन्थ भी कहते हैं. यानि भ्रूण से लेकर के वृद्धावस्था तक औरतों को इस तरह से अंकुश में रखने की यह साजिश पुरुष सत्ता की मानसिकता है.
जिसके तहत औरत हमेशा दबी, कुचली, दमित, पीड़ित, प्रताड़ित और शोषित रही है. औरत की इस खामोशी, इस बेबसी का हमेशा लाभ पुरुषों ने उठाया है. औरत को चरित्रहीन बनाता कौन है. सिर्फ अकेली औरत के लिए जिम्मेदार नहीं है. औरत के साथ साथ पुरूष भी चरित्रहीन होते हैं. ऐसा भी कहना हमें शुरू करना पड़ेगा. एक महिला के अस्तित्व की, उसके सम्मान की रक्षा तभी हम कर पाएंगे. एक स्त्री अर्थात मां, बहन, पत्नी, बेटी इनका सम्मान भी हम तभी कर पाएंगे.
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