जी हां, अब भी होती है हिंदी उपेक्षा का शिकार. जबकि आज हिंदी में बहुत सारे रोजगार उपलब्ध है. लगभग हर सरकारी विश्वविद्यालय से लेकर के विभागों में हिंदी के पृथक से कर्मचारी एवं अधिकारी रखे जाते हैं. उसके बावजूद भी हिंदी उपेक्षा का शिकार होती है.
इसका सबसे बड़ा कारण यह है की हमारा देश 200 वर्षों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा. इस वजह से देश के इलीट वर्ग, जिसे हम सरल भाषा में कहें तो अमीर लोग, ऐसा मानते हैं कि विकास का पैमाना अंग्रेजी एवं अंग्रेजों की नकल करना है.
फिर यह नकल भाषा से लेकर खान-पान, रहन-सहन, पहनावा आदि सब में अपनाई जाती है. इस तरह की मानसिकता वाले लोग अंग्रेजी को प्राथमिकता देते हैं और हिंदी को हेय दृष्टि से देखते हैं. अर्थात उसकी उपेक्षा करते हैं.
यदि आप किसी पार्टी में या किसी कार्यक्रम में साधारण कपड़े पहन कर के चले गए या उस कार्यक्रम में आप हिंदी भाषा बोल रहे हैं या उस कार्यक्रम में आप बहुत सामान्य से नजर आ रहे हैं तो एक तरह से उस कार्यक्रम का हिस्सा आपको नहीं माना जाएगा. क्योंकि उस कार्यक्रम में जो लोग हैं. वे अंग्रेजी बोलते हैं. अंग्रेजी स्टाइल के कपड़े पहनते हैं एवं अंग्रेजी स्टाइल में रहते हैं.
आप यदि हिंदी बोलते हैं तो पिछड़े, गवार, जाहिल और अनपढ़ तक समझे जाएंगे. यहां तक कि बहुत सारी जगह पर आप यदि प्रार्थना पत्र हिंदी में लिख देते हैं तो भी आपको ऐसे देखा जाता है जैसे कि आपको कोई ज्ञान ही नहीं है या जैसे कि आप किसी दूसरे देश से आ गए हैं. इस तरह से जब तक हिंदी की उपेक्षा होती रहेगी, हिंदी को इस तरह से देखा जाता रहेगा तब तक हिंदी को सम्मान नहीं मिल सकता और हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं बन सकती. जबकि हिंदी में भी सारी खूबियां हैं जो एक राष्ट्रभाषा में होनी चाहिए.
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