दोस्तों आप जानते होंगे कि हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है. संविधान के नियम के तहत इसे राजभाषा तो बनाया गया लेकिन राष्ट्रभाषा नहीं. जबकि भारत में यदि कोई राष्ट्रभाषा बन सकती है तो वह हिंदी ही है.
क्योंकि राष्ट्रभाषा बनने के लिए जो योग्यता किसी भाषा में होनी चाहिए वे हिंदी में बहुत अधिक हैं. किसी भी देश की भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए निम्न पायदानों पर खरा उतरना चाहिए.
वह भाषा उस देश के बहुसंख्यक लोगों के द्वारा बोली जानी चाहिए.
उस भाषा में देश का साहित्य प्रचुर मात्रा में लिखा हुआ होना चाहिए.
धर्म, साहित्य, संस्कृति, इतिहास एवं समाज के अनेक मुद्दों पर उस भाषा में पुस्तकें उपलब्ध होनी चाहिए.
वह भाषा अपने देश की संस्कृति, परंपरा, रीति रिवाज आदि को प्रस्तुत करने वाली होनी चाहिए.
उस देश की सांस्कृतिक विरासत उस भाषा में मौजूद होनी चाहिए.
वह भाषा जिस लिपि में लिखी जाती है वह लिपि सुगम, सरल व सहज होनी चाहिए. ये तमाम शर्तें हिंदी भाषा में मौजूद है. इन शर्तों पर हिंदी भाषा खरी उतरती है, तो उसे राष्ट्रभाषा का दर्जा क्यों नहीं दिया जाना चाहिए?
लेकिन कुछ अंग्रेजी मानसिकता के उच्च अधिकारियों के कारण हिंदी भाषा को संविधान में प्रदत्त राजभाषा होने के बाद भी राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया है. यह इस देश के संविधान, देश की भाषा, देशवासियों तथा हिंदी प्रेमियों के साथ बहुत बड़ा अन्याय है.
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