बहुत सारे लोग यह मानते होंगे कि हिंदी राष्ट्रभाषा है. जबकि वास्तविकता यह है कि हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है, हिंदी राजभाषा है. जबकि राजभाषा भी हिंदी पूरी तरह नहीं है. संविधान प्रदत्त राजभाषा होने के बाद भी हिंदी में राजकार्य का काम नहीं होता है. राज का कार्य अधिकतर अंग्रेजी भाषा में ही होता है.
जबकि हिंदी भारत की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है. अर्थात बहुसंख्यक लोग हिंदी बोलते हैं और हिंदी में वे तमाम गुण, खूबियां मौजूद हैं जो किसी देश की राष्ट्रभाषा के अंतर्गत होनी चाहिए. लेकिन बावजूद इसके हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया है.
14 सितंबर 1949 को संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया बल्कि राजभाषा का दर्जा दिया गया, और यह कहा गया भी देश अंग्रेजों का गुलाम था. अभी अभी आजाद हुआ है. अधिकतर काम करने वाले लोग अंग्रेजी ही जानते हैं. अतः 15 साल तक ही छूट दी जाए. तब तक अंग्रेजी में ही काम करें. लेकिन 15 साल बाद धीरे-धीरे हिंदी में काम करने के अभ्यस्त हो जायेंगे, और फिर हिंदी को राष्ट्रभाषा बना दिया जाएगा.
15 साल बाद यानी कि 1965 में जब इसकी बैठक हुई, तब यह कहा गया की अभी भी पूर्णत: हिंदी भाषा में काम करने का तरीका लोगों को नहीं आया है. अनेक मामलों में हिंदी सक्षम भी नहीं राज काज के लिए. अतः इस निर्णय को अनिश्चित काल के लिए टाल दिया गया.
पता नहीं हिंदी को कब राष्ट्रभाषा बनाया जाएगा. जबकि हिंदी में सारी खूबियां हैं राष्ट्रभाषा बनने की. हिंदी में प्रचुर मात्रा में साहित्य उपलब्ध है. देश के बहुसंख्यक लोगों के द्वारा हिंदी भाषा बोली जाती है. यह भाषा अपने देश की संस्कृति, यहां के रीति रिवाज आदि का प्रतिनिधित्व करती है. इस की लिपि बहुत सहज, सरल और सुगम है. इन सब शर्तों के बावजूद भी हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया है. जबकि दे देना चाहिए और तुरंत देना चाहिए.
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