भरतमुनि के अनुसार मूल परूप से नौ रस माने गए हैं. उन नौ रूपों में हास्य रस रसों का राजा नहीं है.
रसों का राजा कहा जाता है श्रंगार को. लेकिन बावजूद इसके हास्य रस इतना ज्यादा
प्रभावी, लोकप्रिय है कि वह उम्र के हर पड़ाव के व्यक्ति की जबान पर होता है. पूरी
दुनिया में जितनी भी फिल्में बनती है, चाहे वह किसी भी भाषा की हो उनमें से सो
फिल्मों में से लगभग 60 फिल्में हास्य रस की फिल्में होती है. अर्थात
कॉमेडी फिल्में होती है.
जीवन के हर प्रकार के रिश्ते में हास्य रस
प्रमुख होता है और हास्य रस इसलिए भी प्रमुख होता है ताकि दुख, अवसाद, करुण इन
तमाम तरह के नकारात्मक रसों की समाप्ति जीवन से हो जाए. इसलिए हर वक्त, हर उम्र
में आवश्यकता है कॉमेडी की.
कॉमेडी यदि नहीं होगी तो यह मान के चलिए जीवन एकदम
निरर्थक हो जाएगा. जीवन की सार्थकता, जीवन का बना रहना तभी तक उसका सफल और अच्छा
है जब तक जीवन में सुख समृद्धि है, खुशहाली है, आनंद है. जिसे कि लोग मनोरंजन कहते
हैं. किसी भी प्रकार से व्यक्ति मनोरंजन करना चाहता है, करवाना चाहता है. कॉमेडी एक ऐसा माध्यम है जो की सोशल मीडिया लाखों की
संख्या में लोगों को अपना दीवाना बना रहा है.
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