हास्य को प्रस्तुत करना टाइमिंग पर निर्भर है।
यदि टाइमिंग गड़बड़ा गई तो हास्य अपना प्रभाव पैदा नहीं कर पायेगा। टाइमिंग अर्थात
वह समय सीमा जिसमें आपको संवाद बोलना हैए यदि वह पल चूक गया तो संवाद का भावार्थ
एवं प्रभाव दोनों ही परिवर्तित हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में दर्शक तो उससे जुड़ ही
नहीं पता है बल्कि अभिनेता भी उससे ठीक से नहीं जुड़ पाता है। उस समय दर्शक की
प्रतिक्रिया न आने का यही कारण होता है।
दूसरे भावों की अपेक्षा हास्य को प्रस्तुत करना
आसान काम नहीं है। अभिनेता के लिए एक बड़ी चुनौती है हास्य को प्रस्तुत करना।
क्योंकि हास्य में सबसे बड़ी दिक्कत है कि वह हमेशा आरोही क्रम में ही बढ़ना चाहता
है। दर्शक जब एक बार हास्य से जुड़ता है तो वह उसके चरमोत्कर्ष की ओर जाने की
अपेक्षा रखता है और यही अपेक्षा स्वयं अभिनेता की भी होती है।
लेखक के लिखने के बाद उस रस को चरमोत्कर्ष तक
पहुंचाने की जिम्मेदारी निर्देशक, अभिनेता और अंत में दर्शक की होती है। इन तीनों
के तालमेल में यदि कहीं पर कमी आती है तो कॉमेडी का प्रभाव उत्पादन कहीं न कहीं स्थिल हो जाता
है। कहने का तात्पर्य है यह है कि हास्य को प्रस्तुत करना निःसंदेह चुनौती का काम
है। इसलिए कॉमेडी नहीं होती तो हंसना कैसे होतो.
Post a Comment