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Tuesday, January 30, 2018

Sunny Leone has done this on stage with such a person that you will be stunned after listening : सनी लियोन ने स्टेज पर किया इस शख्स के साथ ऐसा काम कि सुनकर आप रह जाएंगे दंग



सनी लियोन सोशल मीडिया पर अत्यधिक सर्च करने वाली एवं चर्चा में रहने वाली एक्ट्रेस के रूप में जानी जाती है. उनकी अनेक फिल्में भी हिट हुई है. उनकी फैन  फॉलोइंग भी काफी खासी है और सनी लियोन सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय भी रहती है.


सनी लियोन ने हाल ही में सोशल मीडिया twitter और इन्स्टाग्राम  अकाउंट पर एक वीडियो पोस्ट किया है. जिसमें वो नागिन डांस करती हुई नजर आ रही है. सनी लियोन का यह वीडियो रियलिटी शो splitsvilla ट्रेड  की शूटिंग का है. इसे उन्होंने अपने फ्रेंड्स के साथ शेयर किया है. 

इस वीडियो में टीम मेंबर के साथ ब्लैक गाउन में नागिन डांस करती नजर आ रही हैं सन्नी लिओनी. यकीनन सनी लियोन गाउन में बहुत ही खूबसूरत लग रही हैं.

खलनायक फिल्म के ‘नायक नहीं खलनायक हूँ मैं’ गाने पर वे डांस क्र रही हैं. और डांस में एक शक्स के साथ इस तरह से, इस मुद्रा में डांस कर रही है की बड़ा ही नजदीकी मामला है लग रहा है. इसको देखकर सब लोग अचम्भित हैं. सन्नी लिओन इस डांस में शक्स के साथ इस तरह की मुद्रा बनाती हैं जो की बहुत ही उतेजक हैं.

Monday, January 29, 2018

Girls are the most searched by these four websites, knowing you will go to the square : लड़कियां सबसे ज्यादा ये चार वेबसाइटस सर्च करती हैं, आप भी चौक जाएंगे जानकर




दोस्तों आजकल स्थितियां बहुत तेज गति से बदल रही है. इंटरनेट पर हर चीज उपलब्ध है. मार्केट, विज्वल और इंटरनेट का जमाना है यह. पहले चीजें लेने के लिए व्यक्ति मार्केट जाता था. अब इंटरनेट के माध्यम से मार्केट व्यक्ति के पास आ गया है. उसकी जेब में आ गया है. इस डिजिटल जमाने में हर कोई समस्या समाधान तुरंत चाहता है. हर कोई आजकल अपने लिए सुविधाएं तुरंत चाहता है और खास तौर से आज की युवा पीढ़ी इससे बहुत ही जुड़ी हुई रहती है. लड़के और लड़कियां आजकल के युवा वर्ग के लोग दोनों ही वेबसाइट के माध्यम से अपने क्रीज को बढ़ा रहे हैं. अत्यधिक वेबसाइट देखने में यही वर्ग सबसे अधिक लगा रहता है. आज हम आपको बताते हैं कि लड़कियां सबसे अधिक कौन कौन सी साइट देखती हैं.


ब्यूटी एंड मेकअप
लड़कियां हमेशा यही चाहती है की वह सबसे अधिक सुंदर दिखाई दे. लोग उनकी तारीफ  में कुछ कहे. इसलिए वह हमेशा अपने आप को सुंदर दिखाने की कोशिश में नए-नए ब्यूटी के प्रोडक्ट की जानकारी लेने के लिए इस तरह की वेबसाइट को सर्च करती रहती है.


शॉपिंग वेबसाइट
लड़कीयां अपनी खूबसूरती दिखाने के लिए शॉपिंग के मामले में भी कम नहीं है. चाहे वह कपड़े हो या सेंडिल या अन्य साधन. लड़कियां शॉपिंग वेबसाइट को भी जबरदस्त सर्च करती हैं. 


सोशोल वेबसाइट
आजकल की लड़कियां सोशल वेबसाइट पर भी जबरदस्त सक्रिए रहती हैं. अपने दोस्तों के साथ संपर्क रखने के लिए तथा नए-नए दोस्त बनाने के लिए भी सोशल मीडिया के facebook, इन्स्टाग्राम, ट्विटर इत्यादि पर भी अत्यधिक जानकारी एकत्रित करने के लिए सर्च  करती है.


फूड-हैल्थ सम्बंधित बेबसाइट
खाने से लेकर अपने शरीर को मेंटेन रखने के मामले सभी लड़कियां लड़कों की अपेक्षा ज्यादा सचेत रहती हैं. स्वास्थ संबंधित अपने फिगर को मेंटेन करने के लिए वे इस तरह की नई नई वेबसाइटस सर्च करती रहती हैं. जिनसे वह उचित पैमाने पर अपनी डाइट रख सके.

Karishma Sharma said I have no problem getting nude : करिश्मा शर्मा ने कहा मुझे न्यूड होने में कोई दिक्कत नहीं है


बॉलीवुड में आए दिन कोई-न-कोई ऐक्ट्रेस  किसी न किसी कारण से चर्चा के केंद्र में बनी रहती है. इन दिनों रागिनी mms2 फिल्म जो एक वेब सीरिज के रूप में बन रही है, की हीरोइन करिश्मा शर्मा अपनी हॉट तस्वीरों के कारण एवं अपने हॉट स्टेटमेंट के कारण चर्चा ने है. वे जब से फिल्म इंडस्ट्री में आईं हैं उन्होंने एक तहलका मचा  दिया है.

रागनी एम् एम् एस २ फिल्म के लिए बेब सीरीज में उनके हॉट सीन बहुत जबरदस्त चर्चा की केंद्र में है और वह अक्सर इसी तरह का बयान देती है, जो लोगों को चोंका देते हैं. इस बार तो उन्होंने ऐसा बयान दे डाला है जिसको सुनकर के निश्चित रुप से आप लोग दंग रह जाएंगे.

करिश्मा शर्मा ने सब के सम्मुख एलान कर दिया है कि अगर स्टोरी  की डिमांड हुई तो उन्हें न्यूड होने मेरे कोई दिक्कत नहीं है. अभी तक प्रसारित वेब सीरिज  में करिश्मा ने इस तरह के दृश्य दिखाएं भी हैं जो निश्चित रुप से बहुत ही तंग कपड़ों में नजर आते हैं. 

इसके अलावा भी करिश्मा शर्मा ने एक्ट्रेस साक्षी प्रधान के साथ लेस्बियन सेक्स सिन पर  भी काम किया था. जब उनसे पूछा गया इस तरह के सिन से उन्हें कोई दिक्कत तो नहीं होती है, तो करिश्मा का कहना था मुझे कोई दिक्कत नहीं. जब स्टोरी की डिमांड इस तरह के सिन की होती है और लोग उसे देखना चाहती हैं तो करने में मुझे क्या दिक्कत है.

उन्होंने कहा जब यह सीन लेस्बियन सेक्स जब सूट किया गया तो वहां  डायरेक्टर अकेला था. बस एक दो लोग मौजूद और थे. उसी मेरी मां ने भी देखा है. उन्हें  भी कोई परेशानी नहीं है. आजकल फिल्मों  में सब बेहद नॉर्मल हो गया है और यह नई जनरेशन की नई सोच की डिमांड के आधार पर चीजें हो रही है. जिनसे किसी को कोई परेशानी नहीं है. न करने वाले को न देखने वाले को.

There is nothing but Aishwarya and Deepika in front of the beauty of Chris Gayle's wife. : क्रिस गेल की पत्नी की खूबसूरती के आगे ऐश्वर्या और दीपिका भी कुछ नहीं है



क्रिकेट का खेल पूरी दुनिया में ही बहुत लोकप्रिय है और विशेष रुप से भारत के अंदर क्रिकेट के प्रेमी बहुत अधिक है. अभी कुछ दिनों बाद ही ipl होने वाला है और ट्वंटी-ट्वंटी मैच का यह क्रिकेट का फॉर्मेट खेल लोगों के द्वारा अत्यधिक पसंद किया जाता है. इस खेल के अंदर कोई देश किसी देश के विरुद्ध नहीं खेलता है. बल्कि भारत के ही राज्य एवं शहरों के नाम से बनाई गई टीमों में अनेक देशों के मिश्रित खिलाडी खेलते हैं.

क्रिकेट जगत में बल्लेबाज के रूप में प्रसिद्ध वेस्टइंडीज के क्रिस गेल अपने लंबे छक्कों की वजह से बहुत प्रसिद्ध है. आज हम क्रिस गेल  के बारे में नहीं बल्कि उनकी पत्नी की खूबसूरती के बारे में बात कर रहे हैं. क्रिस गेल की पत्नी का नाम नताशा है.

नताशा बहुत ही खूबसूरत है. वह 5 फिट 6 इंच की है. नताशा खूबसूरती के मामले में बॉलीवुड और हॉलीवुड की अभिनेत्री को भी पीछे छोड़ देती है. क्रिस गेल की पत्नी का नाम वैसे तो नताशा है लेकिन किस गेल के परिवार के लोग उसे ताशा कहकर पुकारते हैं.

नताशा व्यावसायिक रुप से फैशन डिजाइनर है. गेल अपनी पत्नी को बहुत प्रेम करते हैं. इस बात का खुलासा क्रिस गेल बहुत बार मीडिया में दिवे इंटरव्यू के माध्यम से कर चुके हैं. नताशा ने एक बहुत ही खूबसूरत बेटी को जन्म दिया था 2016 में. उसका नाम लक्ष है. वः भी नताशा की तरह बहुत सुंदर और क्यूट है.

Saturday, January 27, 2018

In Dalit literature, Dalit women do injustice to injustice : दलित साहित्य में दलित नारियां करती हैं अन्याय का प्रतिकार



’यत्रनार्यस्तु पूज्यतंे रमतंे तत्र देवता’ एवं ’जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीबयसी’ अर्थात् ’जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवता वास करते हैं, तथा ’हे जन्मदात्री धरती माँ, तू स्वर्ग से भी महान है’ ऐसा कहे जाने वाले भारत देश में स्त्रियों को बदहाल जिंदगी जीने को विवश किया जाता है। यह अपने आप में चिंतनीय विषय है। बल्कि होना यह चाहिए प्राणी के नाते स्त्री का ही नहीं सभी का सम्मान किया जाना चाहिए। पुरुष मानसिकता के वर्चस्व के आगे स्त्री दबी, मौन, सहमी और डरी हुई रही और इसमें भी दलित स्त्री की स्थिति तो बहुत ही दयनीय रही। प्राचीन काल से वर्तमान काल तक भारतीय दलित नारी की सामाजिक यात्रा पर अगर हम गौर करें, तो हम पाएँगे कि दलित नारी को अनेकानेक बंधनों एवं बर्बर अत्याचारों के दौर से गुजरना पड़ा है। आज महिलाओं में शिक्षा के प्रति जागरुक होने के कारण कुछ जागृति आई है तथा थोड़ा बहुत सम्मान भी उन्हें मिलने लगा है। लेकिन दलित महिलाओं में शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार अभी भी बहुत कम मात्रा में है। दलित महिलाएं अधिकतर अशिक्षित हैं। किसी का परिवार उसके साथ उसके संघर्ष में सहयोगी है, जबकि किसी का परिवार उसकी प्रगति, शिक्षा, विचार, स्वतंत्रता का विरोधी है। महिला की शिक्षा एवं जागरुकता के प्रति पुरुषों की मानसिकता, दलित हो या सवर्ण एक जैसी ही नजर आती है। सदियों से दलित महिलाओं का जातीय शोषण सवर्णों द्वारा किया जाता रहा है, उस शोषण, अन्याय के प्रति आज कुछ दलित महिलाओं ने विद्रोह करना शुरु कर दिया है। इस विद्रोह में, इस पहल में कुछ पिता, मित्र, सहयोगी या पति उसके साथ हैं, तो कुछ नहीं भी हैं। दलित समाज की महिलाएँ अपने परिवार और समाज में नाना प्रकार के शोषण का शिकार हैं, क्योंकि वे नारी हैं। यह दोहरी मार दलित समाज की महिलाएँ झेल रही हैं। हिन्दी दलित कहानियों में दलित नारी के विविध रुप, समस्या, स्थिति, परिवेश, संघर्ष, विद्रोह, जातिगत हीनबोध, पीड़ा, विवशता, अस्पृश्यता, आर्थिक संकट, आदि को दलित एवं गैरदलित कहानीकारों ने अपनी कहानियों के माध्यम से प्रकट किया है। दलित महिलाओं की संवेदनाओं उनके अस्तित्व, अस्मिता एवं स्वतंत्रता आदि के प्रश्नों को उपर्युक्त मुद्दों के माध्यम से कहानीकारों ने व्यक्त किया है। यहां दलित स्त्री की पीड़ा, दुख, उत्पीड़न एवं उसके अधिकारों से संबंधित कुछ प्रश्न दलित कहानियों के माध्यम से उठाये गए हैं।
आजादी के बाद आए परिवर्तन तथा महिलाओं की स्थिति के बारे में अनीता भारती अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहती हैं-‘‘सवाल है कि देश की आजादी के छह दशक के ज्यादा गुजर जाने के बाद भी दलितों में भी दलित की स्थिति में मरती जीती दलित स्त्री की स्थिति में क्या कोई परिवर्तन आया है? आज कई राज्यों में दलित स्त्रियों की शिक्षा की दर बेहद चिंतनीय है। स्वास्थ्य, आवास और बुनियादी सहूलियतें सुविधाएं और अधिकार दोनों में ही उसकी हालत शोचनीय है। हालांकि यहां का नारीवाद गरीब वर्ग की बात करके समझता है कि उसने दलित महिलाओं की तकलीफों पर बात कर ली है, लेकिन ऐसा कहकर वे बड़ी चालाकी से दलित महिलाओं की मूल समस्याओं पर बात करने से पल्ला झाड़ लेता है।’’  मूलतः जिस तरह की प्रगति होनी चाहिए थी वह हुई नहीं। आर्थिक, शैक्षिण, सामाजिक स्तर से आज भी दलित महिलाएं विपन्न ही हैं। उनमें जागरुकता के साथ साथ पुरुष एवं सवर्ण समाज के मन में भी उनके प्रति भेदभाव को समाप्त करने की भावना का जगना अतिआवश्यक है।
दलितों की आर्थिक स्थिति दयनीय होने के कारण उनका सामाजिक स्तर गिरता जा रहा है। ये लोग झुग्गी झोंपडी, पुनर्वास कालोनियां, गंदी बस्ती और देहात में अनेक अभावों के साथ जीवन व्यतीत करते हैं। अशिक्षा, गरीबी, पिछड़ेपन के कारण इस वर्ग की स्त्रियां स्वस्थ जीवन जीने से वंचित रहती हैं। इनके संतुलित भोजन, रहने के लिए आवास, पहनने के लिए कपडे़, स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित इलाज आदि समय पर एवं आवश्यकतानुसार नहीं मिल पाते हैं। इन कारणों से मानसिक कुंठा, मानसिक तनावा, आदि विभिन्न प्रकार के मानसिक तथा शारीरिक रोगों से ग्रसित हो जाती हैं। दलित महिलाएं पढ़ाई लिखाई और समुचित वातावरण के अभाव में परिवार नियोजन के महत्त्व को भी नहीं समझ पाती हैं। वे इस कहावत को सच मानकर ‘जिसने चोंच दी है वह चुग्गा भी देगा’ के प्रभाव में नौ नौ या दस दस बच्चे पैदा करती हैं। हालांकि इसमें पुरुष वर्ग का तथा परिवार का दबाव एवं बेटे की इच्छा ये भी कारण होते हैं। क्योंकि दलित स्त्री ही नहीं, स्त्री को ही निर्णय लेने का अधिकार तो न के बराबर है। लेकिन इन सबका प्रभाव तो दलित स्त्री के मन तथा तन पर ही पड़ता है। सहन तो उसे ही करना पड़ता है। अधिक बच्चे पैदा करने के कारण तथा पति के द्वारा प्रताड़ित करने एवं पीटने के कारण वह अनेक बिमारियों की शिकार हो जाती है। इस तरह के माहौल में जीने वाली अधिकतर दलित महिलाएं अक्सर अनीमिया, तपेदिक, कैंसर आदि रोगों से पीड़ित होकर समय से पूर्व ही मर जाती हैं।
दलित स्त्री शिक्षित होते हुए भी उसे दलित होने के कारण कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। दलित समाज में स्त्री शिक्षा को महत्त्व नहीं दिया जाता। वे तो बेटी को पराया धन मानकर जल्द से जल्द अपनी जिम्मेदारी पूरी करने में विश्वास करते हैं। सूरजपाल चौहान की ‘बदबू’ कहानी में संतोष के साथ भी यही होता है। संतोष अपने कस्बे के दलित परिवार की पहली लड़की थी, जिसने इंटर कॉलेज की परीक्षा सत्तर प्रतिशत में पास की थी। उसके साथ की दूसरी सवर्ण लड़कियाँ उच्च शिक्षा पाने शहर में जाती हैं। संतोष भी आगे पढ़ना चाहती है, किन्तु उसके पिता किशोरी उसे आगे नहीं पढ़ाना चाहते, वे तो उसकी शादी के लिए उतावले हो जाते हैं। संतोष लाख मिन्नतें करती है, किन्तु किशोरी नहीं मानता। दो वर्ष हो जाते हैं लेकिन उनकी बिरादरी में दसवीं पास लड़का भी नहीं मिल पाया। संतोष की माँ अपना सारा गुस्सा उस पर उतारते हुए कहती है-’’तुझे इतना पढ़ा-लिखाकर तो हमने आफत मोल ले ली, अब बिरादरी में तेरी बराबर पढ़ा-लिखा लड़का ही नहीं मिलता.....हमारी तो किस्मत ही फूट गई।’’ 
हरिजन समाज में आज भी शिक्षा का अभाव है। लड़के हों या लड़कियाँ, ऐसे परिवार बहुत कम होंगे जो अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाते हैं। संतोष जैसी होशियार पुत्री पाकर किसी भी माता-पिता को खुशी होती, किन्तु दलित माता-पिता होने के कारण उन्हें खुशी तो दूर बल्कि अधिक चिंता होने लगती है, कि इसके योग्य वर कहाँ से ढूंढा जाए। यह वह स्थिति है जिससे वास्तव में अनेक दलित माता पिताओं को गुजरना पड़ता है। शिक्षा का प्रचार प्रसार अभी उस मात्रा में नहीं हुआ है जिस तरह से होना चाहिए। विशेष रूप से स्त्री शिक्षा की दृष्टि से। जब तक स्त्रियों को शिक्षा नहीं मिलेगी वे उन्नति नहीं कर पायेंगी। संतोष के योग्य लड़का तो नहीं मिलता, लेकिन 9वीं फेल रजिन्दर से उसका विवाह तय हो जाता है। रजिन्दर दिल्ली में एम.सी.डी. में सफाई कर्मचारी का काम करता था। संतोष के पिता हरिजन थे, किंतु उन्होंने कभी सफाई का काम नहीं किया था, न ही संतोष के परिवार ने ही ऐसा काम किया था। जब उसे इस बात का पता चलता है कि उसकी शादी एक सफाई कर्मचारी से हो रही है, तो उसने विवाह करने से इन्कार कर दिया, इस पर परिवार वाले कहने लगे-’’बेटी धन को अधिक पढा़ना-लिखाना अच्छा नहीं हैै, इस लड़की को देखो सभी के सामने कतर-कतर जुबान चलाती है....इसने तो सारी लाज-शर्म ही उतारकर रख दी।’’  यदि दलित स्त्रियों के जीवन को देखा जाए तो उनका जीवन शोषण, उत्पीड़न, अत्याचार, अन्याय और अभावों से परिपूर्ण है। पशुवत स्थितियों की तरह दलित नारी का जीवन बदतर है। निरक्षरता, अशिक्षा और सामाजिक दृष्टि से पिछडे़पन के कारण दलित महिलाएं अंधविश्वास और पांखडों से पूरी तरह जकड़ी हुई हैं। इनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव रहता है। जिसके कारण इनमें अनेक प्रकार की कुरीतियां एवं पाखंड भरे हुए हैं। मोहनदास नैमिशराय कहते हैं-‘‘इस सबके बावजूद दलित नारियों में प्रतिरोध की चेतना जाग रही है, क्योंकि उनमें जुल्म अत्याचारों और अन्याय के खिलाफ एकजुट होकर अपनी हार को जीत में बदलने का विश्वास पैदा हो गया है। दलितों की नई पीढी उस विश्वास को और मजबूत आधार देना चाहती है।’’
शिक्षा पाने से व्यक्ति जागरुक बनता है। उसे अपने अधिकार का ज्ञान होता है, साथ ही अपने कर्त्तव्य को भली-भाँति समझने तथा उनका निर्वहन करने में वह सक्षम बनता है। लेकिन जहाँ सारे अशिक्षित लोग हों वहाँ संतोष के मनोभावों को भला कौन समझता? संतोष की पढ़ाई से न तो उसके मायके वाले खुश थे और न ही उसके ससुराल वाले ही। बल्कि ये तो उनकी समस्या बन जाती है। सफाई कर्मचारी की नौकरी में भी रिश्वत देकर रजिंदर को काम मिलता है। हमारे देश में बेरोजगारी इतनी है कि ऐसे काम के लिए भी लोग रिश्वत देने को तैयार हैं। संतोष सोच में पड़ जाती है कि-’’दूसरे समाज के पढे़े़-लिखे तो दूर अनपढ़ होेकर भी यह काम नहीं करते........वे दूसरा अन्य काम करके अपना जीवन यापन कर लेतेे हैं। लेकिन यह गंदगी से भरा काम कतई नहीं करते, आखिर, हमारी जाति बिरादरी के लोग ही यह काम क्यों करते हैं?’’
संतोष का यह प्रश्न वर्ण व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न लगाता है। आखिर शुद्र ही ऐसा काम क्यों करते हैं? क्या वे मनुष्य नहीं हैं? सवर्ण और उनमें ऐसा क्या अंतर है, जिससे वे इस गंदगी भरे कार्य को करने के लिए आज भी मजबूर हैं। मनुष्य होकर मनुष्य का मैला ढा़ेना कहाँ तक उचित है। इक्कीसवीं सदी में प्रवेश करके भी आज दलित समाज कितना पिछड़ा हुआ है। संतोष जैसी पढ़ी-लिखी युवती को मजबूरन मैला उठाने का कार्य करना पड़ता है। इस कार्य को करने के बाद उसे जो रोटी-सब्जी मिलती है। उसे खाकर अपना पेट भरना पड़ता है। जब से संतोष ने सफाई का काम शुरु किया था, तब से वह गुमसुम बनकर रहने लगती है। उसे अपने ही शरीर से बदबू आती हुई महसूस होती है। हर वस्तु में उसे मलमूत्र नजर आने लगता है, यहाँ तक कि पति का स्पर्श भी उसे आनंद की अनुभूति नहीं, बल्कि बदबू का अहसास कराता है। अनचाहे इस काम से संतोष की हालत दिन-प्रतिदिन खराब होने लगती है। वह अपने को इस दिनचर्या में सहज नहीं कर पाती। उसके जीवन में आनंद और खुशियों के स्थान पर उदासीनता और बदबू फैल जाती है।
सदैव ही सिद्धान्तों की आड़ में दासता, अमानवीय शोषण, अन्याय, अवहेलना और प्रताड़ना झेलता दलित समाज कीड़े-मकोड़ों का सा जीवन जी रहे हैं और उससे मुक्ति का आह्वान लिए दलित कहानियाँ, दलितों के लिये जीवन के नये रास्ते खोलती प्रतीत हो रही हैं। इनके लघु कलेवर में भी महान और व्यापक उद्देश्य अंकित है। कहीं शिक्षा के अभाव में उनसे मन माना ब्याज ले रहे हैं तो कहीं कोरे कागजों पर अँगूठें लगवाकर उनकी जमीनें हड़पी जा रही हैं, उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे हैं। इतना अन्याय सहकर भी सदियों से मूक वेदना लिए दलित वर्ग जी रहा है लेकिन कहते हैं कि चींटी भी दाब पाकर काट लेती है तब दलित समुदाय भी अपने साथ हो रहे अन्याय के प्रति मुखर विद्रोह कर रहा है। इसी क्रम में दयानंद बटोही की कहानी ‘सुरंग’ है, जिसमें शिक्षित और उच्च शिक्षित अपने अधिकारों की माँग के साथ अन्याय का भी विरोध कर रहे हैं। वह सदियों की दासता से मुक्ति पाना चाहता है और अन्याय की जंजीरों को तोड़ना चाहता है। वह अपनी गुलामी के लिये तथाकथित सवर्ण समाज के सभ्य लोगों से जवाब भी चाहता है-‘‘गुलाम हूँ। पराधीनता की जंजीर टूटनी है। आज तक आप जैसे तानाशाहों ने अँधेरे में हम लोगों को रखा है अब मैं आप से पूछता हूँ, आप क्यों मुझे रिसर्च नहीं करने देगें?’’  इस क्यों के जवाब में वह समाज के ठेकेदारो से अपने प्रति हो रहे अन्याय का जवाब चाहता है वह डॉ. विष्णु से कहता है-‘‘डॉ. साहब अब आप पुराने दिन भूल जाएं। अब तक आप लोग अंधेरे के बीच कुतर-कुतर कर हम दलितों को खाते डकराते रहे हैं। अब आपको ही नहीं पचेगा।’’  प्रत्येक कदम पर उनकी योग्यताओं को नकार कर उन पर जातिगत तल्ख टिप्पणी होती है। यह परिवर्तन उसकी जागरुकता का परिणाम है। अपने प्रति होने वाले अन्याय का प्रतिकार उसकी आवाज में आने लगा है।
डॉ. मंजू सुमन कहती हैं-‘‘बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में स्वतंत्रता के बाद नई शिक्षा के प्रभाव से और सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के प्रयत्नों से समाज में नारी के प्रति दृष्टिकोण में कुछ बदलाव आया है। बदलती सामाजिक, आर्थिक, नैतिक, धार्मिक, राजनैतिक परिस्थितियों ने भी स्त्री के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण बदलने में सहयेाग दिया है। धीरे धीरे नारी शिक्षा प्राप्त करने लगी, शिक्षा से वह अपनी योग्यतानुसार विशिष्ट पदों पर नौकरी करने लगी। नई शिक्षा ने पुरानी परंपराओं को तथा धार्मिक बंधनों को कुछ शिथिल किया। इसका अधिक लाभ स्त्रियों को मिला, क्योंकि सबसे ज्यादा बंधनों की जकड़ में नारी को ही धर्म ने बांध रखा था। जिससे की वह स्वतंत्रत नहीं पा रही थी और अपने अधिकारो से वंचित थी। संयुक्त परिवार व्यवस्था टूटने तथा स्वतंत्र परिवार शूरू होने से प्राप्त स्वतंत्रता ने नैतिक सामाजिक बंधनों को भी शिथिल किया। राजनीतिक परिवर्तन के बाद नारी को कानूनी रूप में समानता का अधिकार मिला। इन सब परितर्वनों के बाद भी दलित स्त्री की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और धार्मिक स्थिति में कोई अंतर नही आया। क्योंकि इस दलित समाज पर बरसों से अनेकों रूढियां लाद दी गई थीं। जिनका प्रतिरोध करने के बजाय वह उन्हें सही मानकर उन धर्म कर्म के बंधनों में बंधा रहा।’’ 
दलितों की स्त्रियों का शारीरिक शोषण करके उनके आत्मसम्मान को पद दलित किया जाता है। जिसको केन्द्र में रखकर मोहनदास नैमिशराय की कहानी ‘रीत’ लिखी गयी है, जिसमें कहानी पात्र फूलो को शादी की रात जमींदार की हवेली में गुजारनी पड़ती है। उसके साथ हुए इस अन्याय पर उसके ससुराल के लोग भी विवशतावश चुप रहकर इस अन्याय को झेल जाते हैं लेकिन फूलो का पति बुलाकी पाँच वर्ष बाद आके उसके साथ हुए अन्याय का प्रतिशोध जमींदार की हवेली में आग लगाकर लेता है और कहता है कि-‘‘फूलो, अब कोई जमींदार गाँव की किसी औरत की इज्जत खराब नहीं करेगा। मैंने उनका वंश सदा-सदा के लिए खत्म कर दिया है।’’  अन्याय का प्रतिकार दलितों के मन में आया है। लेकिन अन्याय को मुख्य रूप से सहा दलित स्त्री ने है। दलित स्त्री के साथ होने वाले इस तरह के अनैतिक कार्यों के प्रति दलितों में एक चेतना का विकास होने लगा है। शिक्षा तथा अपने अधिकारों के प्रति जागरुकता के कारण यह संभव हुआ है। लेकिन अभी इस जागरुकता की पताका को व्यापक रूप से फैलना शेष है। अनेक जगह पर अज्ञान, उत्पीड़न, अत्याचार का तम आज भी पसरा हुआ है। उसके खिलाफ उजास की किरण का सूरज का उदय, दलित महिलाओं के जागरुक होने से ही होगा।
बुद्धशरण हंस की कहानी ‘आकाश मेरे पास’ में शिक्षा प्राप्ति के प्रति अटूट लगन कथा नायिका चंपा को अपने पौत्र को डाक्टर बनाने की प्रेरणा का काम करता है। वह कहती है-‘‘अब मेरे खानदान में कोई मेहतर नहीं बनेगा। शिक्षा का दीया उजाला ही देगा, अँधेरे को भगाएगा। मेरा बेटा पुचु पढ़ा लिखा और इस योग्य तो बना कि उसने मेरे पंचम को डाक्टर बनने योग्य पढ़ाया। डाक्टर बाबू उद्देश्य निष्फल नहीं होता और परिश्रम बेकार नहीं जाता।’’  शिक्षा के प्रति लगाव का दूसरा पहलू सवर्ण वर्गांे में दलितों के शिक्षित होने से बढ़ती असुरक्षा की भावना भी पैदा कर रही है जो हिंसा और अत्याचार के रूप में अभिव्यक्त होती है। राजेंद्र बड़गूजर की कहानी ‘इनाम’ में यह बखूबी व्यक्त हुआ है। गाँव सरपंच की ओर से आँठवी कक्षा में प्रथम आने पर एक हजार रूपये के इनाम की घोषणा की जाती है। यह बात दलित छात्र चंद्रशेखर के मन में बैठ जाती है। वह मेहनत करके प्रथम आता है। लेकिन जब वह अपने पिता के साथ सरपंच के पास इनाम के लिये जाता है तो वह मुकर जाता है। चंद्रशेखर के पिता उससे कहते हैं कि-‘‘तू घबरा मत बेटा। मैं तुझे पढ़ाऊँगा। जहाँ तक तुम पढ़ सको, पढ़ो। हमें किसी की खैरात की जरूरत नहीं।’’  शिक्षा के प्रति जागरूकता और उसके महत्व को प्रतिपादित कर सुशीला टाकभौरे की कहानी ‘सिलिया’ भंगी समाज की उस होनहार लड़की की कहानी है जो उच्च शिक्षा पाने की लालसा पाले एक आज्ञाकारी एवं गम्भीर स्वभाव की लड़की है। वह मन ही मन अपने समाज में सुधार लाने के लिये दृढ़ संकल्प है। सिलिया शिक्षा के द्वारा अपने सोए हुए समाज के लिये जागरुक एवं प्रेरणा देने वाली पात्र है। ओमप्रकाश वाल्मीकि की कहानी ‘पच्चीस चौका डेढ़ सौ’ शिक्षा के अभाव में धोखा और ठगी द्वारा दलितों को मूर्ख बनाये जाने की समस्या को दर्शाती है और दलितों को अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए शिक्षित होने को प्रोत्साहित करती है। दलित कहानियों ने दलितों की सभी समस्याओं के समाधान के रूप में शिक्षा की मुख्य भूमिका को दर्शाया है। मुद्राराक्षस कहते हैं-‘‘दलित स्त्री के पास हैसियत बना सकने के सवर्ण स्त्री सरीखे अवसर बहुत कठिन होते हैं। ऐसी स्त्रियां बिरले ही मिलती हैं, जिनके पति कुछ व्यापार करते हों या फिर किसी बड़ी नौकरी में हों। सच बात यह है कि प्रायः वामपंथियों सहित सभी गैर दलित पार्टियों में सवर्णों का ही वर्चस्व है। देश की जो सबसे बड़ी पार्टियां हैं, वे पूरी तरह न सिर्फ सवर्ण वर्चस्व वाली हैं बल्कि सवर्ण मानसिकता की हैं। हृदय से वे महिला आरक्षण के सवाल पर बहुत खुश नहीं थीं। उन्हें लग रहा था कि इस आरक्षण से विधायिकाओं में एक तिहाई सीटों पर सवर्ण पुरुष के अधिकार समाप्त हो जायेंगे। उनके लिए गनीमत यही थी कि भले उनके अधिकार वाले स्थान एक तिहाई कम हो जाएं, अंततः उन दो पर आयेंगी तो सवर्ण महिलाएं ही।’’  दलित स्त्री के प्रति इस तरह की सोच उसकी प्रगति में बाधा है। लेकिन शिक्षा के प्रति चेतना ने दलित नारी के मन में एक उम्मीद की किरण जगाई है। वह अपने साथ होने वाले अन्याय का विरोध करती है। यह विरोध उसने घर से लेकर समाज के अनेक पक्षों पर प्रारंभ किया है।




The emergence and development of the Hindi plays of Prasad era : प्रसाद युग के हिन्दी नाटकों का उद्भव एवं विकास


(पौराणिक, ऐतिहासिक एवं सामाजिक समस्या नाटक)


भारतेन्दु युग के बाद एवं प्रसाद युग के पूर्व अर्थात् इन दोनों के मध्य का काल जिसे हिन्दी साहित्य में द्विवेदी युग कहा जाता है, इस युग में नाटकों का प्रायः अभाव दिखाई देता है। जहां भारतेन्दु युग में नाटकों की आधुनिक रंगमंच के संदर्भ में एक विशिष्ट पहचान व परम्परा बनी थी वहीं इस युग में नाटक पारसी रंगमंच एवं मात्र उपदेश कथा तक ही सीमित हो गए। मुख्यतः रोमांचकारी तथा अलौकिक कथाओं को ध्यान में रखते हुए ज्यादातर नाटक लिखे गए। ये नाटक अधिकतर पौराणिक एवं ऐतिहासिक पात्रों व कथाओं को लेकर लिखे गए किन्तु इनमें वह ऐतिहासिक माहौल व नाट्यकला नहीं दिखाई देती जो भारतेन्दु युग के नाटकों में परिलक्षित होती है। इस युग के कुछ प्रमुख नाटक हैं-‘शिवनंदन सहाय’ का ‘सुदामा’, ‘ब्रजनंदन सहाय‘ का ‘उद्धव‘, ‘लक्ष्मीप्रसाद‘ का ‘उर्वशी‘, ‘हरिदास माणिक‘ का ‘पांडव प्रताप‘, ‘सदानंद अवस्थी‘ का ‘नागानंद‘ आदि। डॉ. ओमप्रकाश सिंहल कहते हैं-इस युग के ‘‘नाटकों में पौराणिक आख्यानों एवं चरित्रों के माध्यम से जनता को उपदेश देने की प्रवृत्ति ही प्रधान है। प्रायः नाट्यकला का उपयुक्त विकास इनमें नहीं मिलता और अभिनय तत्व भी गौण है।’’1
प्रसाद युग के पौराणिक नाटक
भारतेन्दु के पश्चात जयशंकर प्रसाद का प्रादुर्भाव हिन्दी नाटकों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपलब्धि है। जयशंकर प्रसाद ने एक मात्र पौराणिक नाटक ‘जनमेजय का नागयज्ञ‘ लिखा। डॉ. बालेन्दु शेखर तिवारी कहते हैं-‘‘जनमेजय का नागयज्ञ में उन्हांेने केवल पुराख्यान ही नहीं प्रस्तुत किया है अपितु जातीय संघर्ष की चेतना को वाणी देने का यत्न भी किया है। नवीनता की दिशा में ऐसा प्रस्थान प्रसाद कालीन अन्य पौराणिक नाटकों में नहीं लक्षित होता है।‘‘2
प्रसाद युग के पौराणिक नाटकों में केवल पुरातन आदर्शों को ही व्याख्यायित नहीं किया बल्कि नये विचार एवं नई चेतना को इन नाटकों का केन्द्र बनाकर समसामयिक जीवन तथा उससे संबंधित समस्याओं की व्याख्या करते हुए जीवन का विश्लेषण भी किया गया है। इन नाटकों केे कथानक यद्यपि पुराणों के हैं परन्तु फिर भी नाटककारों ने अपनी कल्पना शक्ति के द्वारा इनमंे नवीनता एवं मौलिकता का उद्भव किया है। इस काल के अन्य पौराणिक नाटक हैं-उदयशंकर भट्ट के ‘विद्रोहिणी अम्बा‘, ‘मत्स्यगंधा‘, ‘विश्वामित्र‘, ‘सागर विजय‘, हरिकृष्ण प्रेमी का ‘पाताल विजय‘, सेठगोविन्द दास का ‘कर्तव्य कर्ण‘, कैलाशनाथ भटनागर के ‘भीष्म प्रतिज्ञा‘, ‘श्रीवत्स‘, देवराज दिनेश का ‘रावण‘, लक्ष्मीनारायण मिश्र का ‘नारद की वीणा‘, सुदर्शन का ‘अंजना‘, गोविन्द वल्लभ पंत का ‘वरमाला‘, आचार्य चतुरसेन शास्त्री के ‘मेधना‘ व ‘श्रीराम‘ आदि विशेष उल्लेखनीय हैं।
प्रसाद युग के ऐतिहासिक नाटक
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से प्र्रारम्भ हुआ ऐतिहासिक नाटक प्रसाद के यहां आकर एक पूर्ण रूप ग्रहण करता है। ऐतिहासिक नाटक पूरी रमणियता से प्रसाद के प्रासाद में आकर ही खिलता व प्रस्फुटित होता है। तात्कालिक ब्रिटिश शासन का विरोध जयशंकर प्रसाद अपने ऐतिहासिक नाटकों के माध्यम से करते हैं। जयशंकर प्रसाद अपने ऐतिहासिक नाटकों से भारतीय जनता में स्वतंत्रता तथा संघर्ष की भावना भी व्याप्त करते हैं। वे स्वयं विशाख नाटक की भूमिका में लिखते हैं-‘‘मेरी इच्छा भारतीय इतिहास के अप्रकाशित अंश में से उन प्रकांड घटनाओं का दिग्दर्शन कराने की है, जिन्होंने हमारी वर्तमान स्थिति को बनाने का बहुत कुछ प्रयत्न किया है, और जिन पर कि वर्तमान साहित्यकारों की दृष्टि कम पड़ती है।’’3 जयशंकर प्रसाद ने अपने  ऐतिहासिक नाटकों के माध्यम से कोरा इतिहास वर्णन नहीं किया है बल्कि उन ऐतिहासिक घटनाओं एवं पात्रों के माध्यम से तत्समय को पुर्नउल्लेखित किया है। जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ऐतिहासिक नाटक हैं-‘राज्यश्री‘, ‘अजातशत्रु‘, ‘स्कदगुप्त‘, ‘चन्द्रगुप्त‘, ‘ध्रुवस्वामिनी‘। प्र्रसाद ने अपने नाटकों में इतिहास प्रसिद्ध पात्रों के माध्यम से वर्तमान समय की अव्यवस्था के खिलाफ लड़ने के लिए आम जन को प्रेरित किया है। आम जनता मंे उत्साह तथा जोश का प्रचार प्रसार किया है। प्रसाद के समान राष्ट्रीय चिंतन को प्रमुखता देते हुए हरिकृष्ण प्रेमी ने भी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाले नाटक लिखे जैसे-‘रक्षा बंधन‘, ‘शिवा साधना‘, ‘प्रतिशोध‘ और ‘शतरंज के खिलाड़ी‘ आदि। इन नाटकों मंे हरिकृष्ण प्रेमी ने हिन्दु मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया एवं मुगल, मराठा और राजपूतों के स्वर्णिम संघर्ष पूर्ण इतिहास को लिखा है। ऐतिहासिक नाटकों की कड़ी में उदयशंकर भट्ट का भी विशेष योगदान रहा है। इनके प्रमुख ऐतिहासिक नाटक हैं-‘विक्रमादित्य‘, ‘मुक्ति दूत‘, ‘दाहर‘, ‘सिंध पतन‘ आदि।
प्रसाद युग के अन्य ऐतिहासिक नाटक हैं-लक्ष्मीनारायण मिश्र के ‘गरूड़ ध्वज‘, ‘अशोक‘, ‘वितस्ता की लहरें‘, सेठ गोविन्ददास के ‘कुलीनता‘, ‘महात्मा गांधी‘, गोविन्द वल्लभ पंत का ‘राजमुकुट‘, चन्द्र गुप्त वेदालंकार का ‘अशोेक‘, पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र का ‘महात्मा ईसा‘, उपेन्द्रनाथ अश्क का ‘जय पराजय‘, सुदर्शन का ‘सिकन्दर‘ आदि इस काल की उल्लेखनीय रचनाएं हैं।
इन नाटकों की सामान्य विशेषता है-इतिवृत्तात्मकता, सहज भाषा, चरित्रों का असहज विकास, लम्बे संवाद, पात्रों की बहुसंख्या, स्वसंवादों की अत्यधिकता। अधिकांश नाटकों पर प्रसाद के नाटकों की छाया दिखाई देती है।
प्रसाद युग के सामाजिक नाटक
जयशंकर प्रसाद एवं इस युग के नाटककारों ने मूलतः ज्यादातर ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व राष्ट्रीय चेतना वाले नाटक लिखे। किन्तु इन मंे समाज में व्याप्त तात्कालिक समस्याओं को ही उठाना उनका मुख्य उद्देश्य रहा। उस समय मंे परिवार का विघटन, रिश्तों का टूटना, वैवाहिक संबंधों में विच्छेदिता का प्रभाव, जीवन पद्धति मंे परिवर्तन, परम्पराओं, जाति संबंधों, वर्गों एवं वर्णाें में बंटा समाज आदि समस्याएं प्रमुख रूप से उभर रही थीं। अतः तत्समय के नाटककारों ने इन्हीं समस्याओं को अपने नाटकों का केन्द्र बिंदु बनाया। प्रसाद का नाटक ध्रुवस्वामिनी ऐतिहासिक नाटक के साथ-साथ सामाजिक समस्या नाटक की श्रेणी मंे भी रखा जा सकता है। स्त्री विवाह, पुनर्विवाह, धर्म की व्याख्या और स्त्री की रक्षा आदि समस्याएं इस नाटक मंे प्रमुख रूप से आती हैं। प्रसाद युग मंे सामाजिक समस्याओं के नाटकों को प्रधानता लक्ष्मीनारायण मिश्र ने दी। उन्हांेने समस्या प्रधान नाटकों को पृथक-पृथक विषयों के द्वारा खूब मंडित किया। डॉ. दशरथ ओझा कहते हैं-‘‘समस्या नाटक के आधुनिक जन्मदाता मिश्र जी माने जाते हैं। इस पद्धति का पहला नाटक ‘सन्यासी‘ 1927 ई. में लिखा गया है।’’4
प्रसाद के अतिरिक्त पृथ्वीनाथ शर्मा ने ‘दुविधा‘, ‘साध‘ और ‘अपराधी‘ आदि नाटकों मंे व्यक्तिवादी समस्याओं को स्थान दिया है। कानून और नैतिकता के मध्य व्यक्ति कैसे अपने आप को असहाय महसूस करता है, यह इन नाटकों मंे दर्शाया गया है। राजनीति की दखल भी इन सामाजिक समस्या प्रधान नाटकों में परिलक्षित होती है। स्वार्थ के लिए एक दूसरे को नीचा दिखाना एवं अपने लाभ के लिए दूसरे का अहित करना आदि समस्याओं को ‘सिद्धांत स्वातंन्न्य‘, ‘सेवापथ‘, ‘त्याग का ग्रहण‘, ‘संतोष कहां‘, ‘पतित सुमन‘, ‘पाकिस्तान‘ तथा ‘प्रेम और पाप‘ आदि नाटकों मंे सेठ गोविन्द दास ने उठाया है। वृन्दावनलाल वर्मा ने ‘धीरे धीरे‘, ‘राखी की लाज‘, ‘बांस की फांस‘ एवं ‘मंगलसूत्र‘ आदि नाटकों मंे स्त्री-पुरूष के संबंधों की समस्या को अपना विषय बनाया है।
इनके अलावा-हरिकृष्ण प्रेमी के ‘छाया‘, ‘बंधन‘, उपेन्द्रनाथ अश्क के ‘स्वर्ग की झलक‘, ‘छठा बेटा‘, ‘कैद और उड़ान‘, कृपानाथ मिश्र का ‘मणि गाोस्वामी‘, प्रेमसहाय सिंह का ‘नवयुग‘, पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र के ‘डिक्टेटर‘, ‘चुम्बन‘, ‘आवारा‘, सूर्यनारायण शुक्ल का ‘खेतिहर देश‘, गणेश प्रसाद द्विवेदी का ‘सोहाग बिंदी‘ आदि इस युग के प्रमुख सामाजिक समस्या प्रधान नाटक हैं।

संदर्भ सूची-
1. डॉ. नगेन्द्र व डॉ. हरदयाल, सं., ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास‘, प्रकाशन मयूर, ए-95, सेक्टर-5, नौएडा-201301, सैंतीसवां पुनर्मुद्रण संस्करण-2010, डॉ. गोपाल राय, ‘छायावाद युग: गद्य साहित्य’, पृ.-495
2. बालेन्दु शेखर तिवारी व बादामसिंह रावत, सं. ‘हिन्दी नाटक के सौ वर्ष‘, गिरनार प्रकाशन, पिलाजीगंज, महेसाना, उ. गुजरात-384001, प्रथम संस्करण-1990, पृ.-73
3. जयशंकर प्रसाद, ‘प्रसाद वाऽ्.मय रचनावली-द्वितीय खण्ड‘, प्रसाद प्रकाशन, प्रसाद मंदिर, गोवर्द्धन सराय, वाराणसी, प्रथम संस्करण-1990-91, पृ.-160
4. डॉ. दशरथ ओझा, ‘हिन्दी नाटक उद्भव एवं विकास‘, राजपाल एण्ड सन्स, कश्मीरी गेट, दिल्ली-110006, संस्करण-2008, पृ.-264   


प्रदीप कुमार



Lost a leader : एक नेता खो गया


 एक नेता खो गया

एक आदमी भीड़ में खो गया है

लगता है वह नेता तो नही हो गया है

अरबों की जनसंख्या में आदमी खो जाये तो मिल जाता है

पर नेता को तो सी बी आई का प्रमुख भी नहीं पकड़ पाता है

किसी ने कहा श्रीमान जी आम जनता तो ज्यादा है नेता कुछ है

फिर भी जनता उसके सामने तुछ है

इतना बड़ा आनुपातिक अन्तर

उसके बाद भी नेता मदारी जनता बन्दर

विशिष्ट मि़़त्रों के अनुसार

समाचार सूत्रों के अनुसार

अरबों की जनसंख्या में नेता का खो जाना विशेष है

शून्य काल में बहस के लिए इस मुद्दे के अलावा कुछ न शेष है 


Friday, January 26, 2018

After watching the film Padmavat, Rajputs said that the film is being enhanced by our pride : पद्मावत फिल्म को देखने के बाद राजपूतों ने कहा फिल्म तो बढ़ा रही है हमारी शान

फिल्म पद्मावत जब से बननी प्रारंभ हुई है तब से ही विवादों के घेरे में घिरी हुई है. पिछले कुछ दिनों से इस फिल्म का नाम एवं इसके कुछ दृश्य परिवर्तित करके इसे 25 जनवरी को रिलीज कर दिया गया है. 25 जनवरी से पहले जब इस फिल्म का प्रीमियर देखने के लिए प्रशासन ने राजपूत संगठनों के कुछ लोगों को बुलाया तो उनके बयान ही बदल गए.

इससे पहले पद्मावत को रिलीज नहीं करने के लिए राजपूत संगठन जोर दे रहे थे. उनका कहना था कि यदि पद्मावत फिल्म थिएटर में लगाई गई तो हल्ला बोल देंगे. थिएटर को तोड़ देंगे एवं हिंसा पर उतर आएंगे. लेकिन जब राजपूत संगठनों के लोगों ने पद्मावत फिल्म का प्रीमियर देखा तो उनके बयान बदल गए.
राजपूत योगेश ठाकुर एवं रविंद्र सिंह ने बताया कि पद्मावत फिल्म देखने से पहले हम लोगों को अनेक भ्रांतियां थी और हम भ्रमित थे कि यह फिल्म राजपूत संगठनों की, राजपूत समाज की एवं राजपूत स्त्रियों की छवि को धूमिल करती हुई प्रदर्शित हो रही है और हमें यह भ्रम था कि इस फिल्म में अनेक आपत्तिजनक बातें दिखाई गई है. जो भारतीय राजपूताना इतिहास की छवि को कहीं धूमिल करने की कोशिश की जा रही है. लेकिन फिल्म देखने के बाद यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया है कि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है. जिससे कि भारतीय इतिहास एवं राजपूताना इतिहास की छवि बेकार होती हो.

सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बाद पद्मावत फिल्म बुधवार को प्रीमियम के रूप में लांच की गई थी. प्रीमियम देर शाम को लॉन्च किया जाना था. लेकिन राजपूत संगठन के लोग सुबह से ही थियेटरों में जाकर इसका विरोध कर रहे थे और तमाम जगह पर इस तरह की विरोधात्मक बातें सुनाई दे रही थी. विशेष रूप से मध्यप्रदेश एवं राजस्थान के राजपूत संगठनों एवं सरकारों ने भी इस फिल्म को यहां रिलीज न करने की घोषणा कर रखी थी.

प्रीमियम के समय बैठक में डीसी ने राजपूतों को सलाह दी कि वह पहले फिल्म का प्रीमियर देखें, प्रीमियर देखने के बाद यदि उन्हें कोई आपत्ति हो फिल्म के किसी भी दृश्य को लेकर तो इसकी शिकायत करें. फिर इसका विरोध करें, तो आपका विरोध जायज लगता है. डीसी की सलाह के अनुसार राजपूतों की 31 सदस्यों की कमेटी विशेष रूप से बनाई गई. इन इक्कतीस  लोगों को पद्मावत फिल्म का प्रीमियर विशेष रुप से दिखाया गया. फिल्म देखने से पहले जो विरोध, गुस्सा और विक्षोभ इन राजपूतों के लोगों का दिखाई दे रहा था फिल्म देखने के बाद वह एक तरफ से बदल गया.

अबोहर के 2 सिनेमाघरों में कड़ी सुरक्षा के मध्य वीरवार को फिल्म पद्मावत दिखाई गई. इससे पूर्व राजपूत महासभा और जय राजपूताना संघ के कुछ पदाधिकारियों ने पद्मावत फिल्म का जमकर विरोध किया था.

Thursday, January 25, 2018

Ranvir Singh lost his virginity at the age of 12 : रणवीर सिंह ने 12 वर्ष की उम्र में खो दिया था अपना कौमार्य

बॉलीवुड के मोस्ट वांटेड कुंवारों में से एक गिने जाने वाले रणवीर सिंह अपने अलग अलग अंदाज के कारण अक्सर चर्चा में रहते हैं. पिछले कुछ दिनों से पद्मावत फिल्म को लेकर के चल रहे विवाद के कारण भी वे अक्सर चर्चा में बने रहे हैं.

निसंदेह उनके अभिनय एवं अभी तक फिल्मों में निभाए गए रोल के आधार पर वह अपने आप को एक बेहतरीन अभिनेता के रूप में  साबित कर चुके हैं. उनकी फैन फॉलोइंग भी जबरदस्त है तथा काम के प्रति उनका जज्बा और ऊर्जा देखते ही बनता है. वे हर समय कोशिश करते हैं, बेहतर करें और आगे रहे. बहुत जल्दी करें.

संभवत यही कारण है कि उन्होंने 12 वर्ष की उम्र में ही अपना कौमार्य खो दिया था. सुनने में निसंदेह यह बहुत अजीब लगता होगा. लेकिन यह सच है और यह सच किसी और ने नहीं बल्कि स्वयं रणवीर सिंह ने बयां किया है. उन्होंने एक इंटरव्यू के माध्यम से बताया कि मैंने 12 वर्ष की उम्र में ही अपना कौमार्य खो दिया था. मैं सब चीजें बहुत जल्दी शुरू करना चाहता था. इसलिए मैंने बहुत जल्दी शुरू भी कर दी. मैं हर चीज में सबसे आगे रहना चाहता था. इसलिए स्कूल में अक्सर मेरी शिकायत आती रहती थी. मेरे दोस्तों के माता-पिता अक्सर मेरी शिकायत करते थे कि रणवीर सिंह हमारे बच्चों को बिगाड़ रहा है. इसलिए हमारे बच्चों से उसे दूर रखा जाए और इस तरह की स्थितियों में कई बार मैं मुसीबतों में भी फंस जाता था. लेकिन मेरे अंदर कुछ अलग करने का, कुछ नया करने का, सबसे जल्दी करने का कीड़ा कुलबुलाता रहता है. पटा नहीं वह कीड़ा मेरे अंदर था या मैं ही कीड़ा था.
रणवीर सिंह ने एक कंडोम का विज्ञापन भी किया है. जबकि अन्य बॉलीवुड स्टार्स कंडोम का विज्ञापन करने की हिम्मत जल्दी से नहीं जुटा पाते. रणवीर सिंह ने खुलासा किया कि कंडोम का विज्ञापन वे स्वयं करना चाहते थे अर्थात उन्हें ही यह विज्ञापन करने की बहुत जल्दी थी. इसलिए उन्होंने स्वयं कंपनी से संपर्क किया इस विज्ञापन के लिए.


फिलहाल रणवीर सिंह अपनी फिल्म पद्मावत के कारण चर्चाओं में है. जिसमें उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी का बहुत ही जबरदस्त किरदार निभाया है. उनके काम की खूब तारीफ हो रही है.

Wednesday, January 24, 2018

Ram Gopal Varma compares with a porn star Mika Malkova to Deepika Padukone : रामगोपाल वर्मा ने दीपिका पादुकोण की तुलना की पोर्न स्टार मिया माल्कोवा से


राम गोपाल वर्मा की
फिल्में अपने कंटेंट या किसी दूसरे कारण से अन्य फिल्मों से बेहद ही अलग होती है
और इसीलिए उनकी फिल्मों का एक खास दर्शक भी है. 26 जनवरी को रामगोपाल वर्मा की फिल्म ‘गॉड
सेक्स एंड ट्रुथ’ रिलीज होने वाली है. इसके ठीक 1 दिन पहले बहु विवादित और चर्चित फिल्म
दीपिका पादुकोण की फिल्म ‘पद्मावत’ भी रिलीज होने वाली है.


दोनों ही फिल्मों का अलग-अलग तरह से विरोध किया जा रहा है. राम गोपाल वर्मा की इस  फिल्म में सनी लियोन के बाद किसी दूसरी पोर्न स्टार ने काम किया है. उसका नाम है मिया मालकोवा. मिया मालकोवा  एक चर्चित पोर्न स्टार है. विशेष रूप से ‘गॉड सेक्स एव्द ट्रुथ’ फिल्म का विरोध करने का कारण भी यही है की इस फिल्म में एक पोर्न स्टार का काम करना लोगों को पसंद नहीं आ रहा है.

इसी के चलते हैं राम गोपाल वर्मा ने अपनी फिल्म की तुलना पद्मावत के साथ की है. साथ ही साथ उन्होंने दीपिका पादुकोण और मिया माल्कोवा की भी तुलना की है. राम गोपाल वर्मा ने 2 ट्वीट किए हैं. पहले ट्वीट में उन्होंने लिखा है कि मेरी फिल्म ‘गोड सेक्स एंड ट्रुथ’ जो कि 26 जनवरी को पद्मावत के साथ ही रिलीज होने जा रही है 1 दिन पहले, इन दोनों में से मिया माल्कोवा और दीपिका पादुकोण के बीच में जो बेहतर होगा उसकी जीत होगी. दूसरे ट्वीट में उन्होंने कहा है कि मिया माल्कोवा की फिल्म और दीपिका पादुकोण की फिल्म पद्मावत और गोड सेक्स एंड ट्रुथ में यही अंतर है कि एक सामाजिक विवाद की फिल्म है और दूसरी ऐतिहासिक विवाद की.



Shahrukh Khan's heroine took divorce with her husband : शाहरुख खान की इस हीरोइन ने लिया अपने पति से तलाक


हॉलीवुड हो या
बॉलीवुड आए दिन कुछ न कुछ इस तरह की चर्चाएं और खबरें वहां होती रहती हैं की कुछ
विशेष और अटपटा लगने लगता है. सिनेमा जगत की बहुत ही बेहतरीन अभिनेत्रियों में से
एक वलूजा डिसूजा आजकल चर्चाओं के केंद्र में है. 
वलूजा डिसूजा की गिनती भारत की बेहतरीन मॉडल्स में होती है. वलूजा डिसूजा बेहतरीन मॉडल्स के साथ-साथ एक अभिनेत्री भी है. आपको पता होगा कि शाहरुख खान की एक फिल्म आई थी फैन. इस फिल्म में वलूजा डिसूजा ने भी काम किया था. वलूजा डिसूजा ने मार्क रॉबिंसन से पांच साल पहले शादी की थी लेकिन किसी कारण से यह रिश्ता ज्यादा दिन तक नहीं चल सका. इन दोनों के बीच में अनबन होने की वजह से यह रिश्ता टूट गया है.
वलूजा डिसूजा 3 बच्चों की मां है. लेकिन आपसी मतभेद के कारण इन दोनों के मध्य तलाक हो गया है. मार्क की दखल अंदाजी के कारण वलूजा डिसूजा अपना काम और अपना कैरियर ठीक से नहीं बना पा रही है. इसलिए उन्होंने अपने पति को छोड़ दिया है. अब खबर यह आई है कि जल्दी ही वलूजा डिसूजा सलमान खान की आने वाली फिल्म दबंग 3 में उनकी हीरोइन के रूप में नजर आएंगी.


Tuesday, January 23, 2018

Anupam Kher and Ali Fazal Films nominated in Oscars : ऑस्कर में नामांकित हुई अनुपम खेर और अली फजल की फिल्में


फिल्म जगत के लिए  बहुत ही बड़ा  पुरस्कार माना जाता है आस्कर, और इसमें कोई शक नहीं की भारतीय फिल्म इंडस्ट्री विश्व की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री है और हर बार यह कोशिश की जाती है कि यहां से कोई एक बेहतरीन फिल्म वहां पर नामांकित हो ऑस्कर पुरस्कार अर्जित करें.
भारतीय फिल्म अभिनेता अली फजल की भूमिका वाली फिल्म ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ को 90 वे फिल्मफेयर एकेडमी अवार्ड में दो नामांकन मिले हैं तथा अनुपम खेर की भूमिका वाली ‘द बिग सिक’ को एक विशेष श्रेणी में नामांकन मिला है. जबकि फैंटेसी फिल्म ‘द शेप ऑफ़ वाटर’ को  सबसे अधिक तेरह  नामांकन मिले हैं.

‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ एक बहुत ही खूबसूरत फिल्म है. जिसके अंदर यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि किस तरह से रानी विक्टोरिया और उनके एक भारतीय नौकर जिसका नाम अब्दुल करीम था, उनकी मध्य में ऐसे अनोखे संबंध के बारे में बताया गया है जो विशिष्ट और रोचक है. वही संबंध किस प्रकार कर रहा, इसे भी इस फिल्म में बताया गया है.
यह फिल्म अपनी कहानी के साथ साथ बहुत ही खूबसूरत डिजाइन के कारण ही काफी चर्चा में रही है. इसलिए पूरी आशा थी कि इस फिल्म के पास यह मौका है की यह अपने डिजाइन, मेकअप एवं कोस्ट्यूम  के आधार पर पुरस्कार अर्जित करेगी. फिल्म में अली फजल ने अब्दुल की बहुत ही खूबसूरत भूमिका को अभिनीत किया है. जबकि  रानी विक्टोरिया की भूमिका को हॉलीवुड की वरिष्ठ अभिनेत्री जूडी डेंच ने बहुत ही खूबसूरती के साथ निभाया है.
अनुपम खेर की फिल्म द बिग सिक को मौलिक लेखन पटकथा की श्रेणी में नामांकन किया गया है. यह फिल्म बहुत ही खूबसूरत लिखी गई है. मूलत: पाकिस्तान के  निवासी कुमैल नानजियानी और एमिली वी गार्डन ने यह फिल्म लिखी है.
‘द शेप ऑफ़ वाटर’ एक गूंगी महिला और जलीय  राक्षस के बीच की प्रेम कहानी पर आधारित फिल्म है. यह बहुत ही खूबसूरत फिल्म बनी है. इसीलिए यह फिल्म सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ पटकथा आदि  की श्रेणी में नामांकित हुई है.

आपको यह बता दें कि भारत की ओर से आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में ऑस्कर के लिए ‘न्यूटन’ को भेजा गया था लेकिन विदेशी भाषा की फिल्म श्रेणी के चयन की प्रक्रिया में वह पहले ही दौर में बाहर हो गई थी. चिली, रूस, हंगरी, स्वीडन और  लेबनान आदि देशों की फिल्मों को अंतिम सूची में नामांकन किया गया.

Katrina Kaif does believe in closing the mine on this ‘khan’ : कैटरीना कैफ करती है इस खान पर आंख बंद करके भरोसा


हिंदी सिनेमा की बहुत बेहतरीन अदाकारों में से एक मानी जाती है कैटरीना कैफ. उनकी काफी फिल्में  बहुत ही उम्दा और बेहतरीन रही है और बॉक्स ऑफिस पर भी सर चढ़ कर बोली हैं. लेकिन पिछले साल सलमान खान के साथ आई टाइगर जिंदा है की रिकॉर्ड तोड़ कामयाबी और कमाई के बाद तो कैटरीना कैफ का जादू सर चढ़ कर बोल रहा है और उनका कैरियर एक नया उफान  लेता हुआ नजर आ रहा है.

आपको बता दें कि अब सलमान खान के बाद कैटरीना कैफ तीनों खानों के साथ लगातार बेहतरीन फिल्में करने वाली है. आमिर खान के साथ वह अगली फिल्म ठग्स ऑफ हिंदुस्तान में नजर आएंगी, तो वहीं पर शाहरुख खान के साथ जीरो में बेहतरीन किरदार करते हुए दिखाई देंगी. इन दिनों कैटरीना कैफ के सितारे जबरदस्त चमक रहे हैं.
हाल ही में कैटरीना कैफ ने एक इंटरव्यू में कहा कि उन्हें बॉलीवुड के एक  खान पर ईतना भरोसा है की वे  उस पर आंख बंद करके भी विश्वास कर सकती है. अब ये  खान कौन है. आइए हम आपको बताते हैं, हो सकता है आप में से अधिकतर लोग सलमान खान का नाम सोच रहे होंगे, तो हम आपकी जानकारी के लिए बता दे आप  गलत सोच रहे हैं.

दरअसल  कैटरीना कैफ ने जिस खान  पर आंख बंद करके भरोसे की बात कही है उस खान का नाम शाहरुख खान है. इन दिनों कैटरीना कैफ शाहरुख खान के साथ जीरो फिल्म कर रही है और इसी दरमियान शाहरुख खान की जमकर तारीफ कर रही है. उन्होंने कहा कि शाहरुख खान की लगन, मेहनत और काम करने के उनके जज्बे के कारण तथा सहयोगी आर्टिस्टों के साथ उनके व्यवहार के कारण उनके ऊपर मैं आंख बंद करके भरोसा कर सकती हूं. साथ ही उन्होंने कहा कि मुझे बहुत खुशी है कि मैं शाहरुख खान के साथ फिल्म कर रही और लोगों ने जीरो फिल्म का टीजर अत्यधिक पसंद किया है.


कैटरीना कैफ ने कहा कि शाहरुख खान का काम करने का अंदाज और तरीका दोनों ही बहुत बेहतरीन है. इसलिए तमाम चीजों को देखते ही उन पर आंख बंद करके भरोसा किया जा सकता है. इस इंटरव्यू में कैटरीना कैफ ने जीरो फिल्म के निर्देशक आनंद एल राय की भी तारीफ की, दोनों ही तारीफों का मूल इशारा किस ओर है यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन इसमें कोई शक नहीं शाहरुख खान के चाहने वालों की कमी नहीं है.

Monday, January 22, 2018

What did Shahrukh Khan say, he will be made again Papa : शाहरुख खान ने यह क्या कह दिया, वो फिर से बनेंगे पापा


शाहरुख खान बच्चों से बहुत प्यार करते हैं. परफेक्ट पापा की भूमिका निभाना वे बेहद अच्छी तरह से जानते हैं. इसीलिए उन्हें बच्चे बहुत पसंद है. सुहाना और आर्यन के बाद उन्होंने एक अन्य बच्चे के लिए सरोगेसी मदद से उनका तीसरा बच्चा अबराम पैदा हुआ. लेकिन शाहरुख शायद अभी और बच्चे चाहते हैं. इसीलिए उन्होंने चोथे बच्चे की प्लानिंग कर दी है.

शाहरुख खान की फिल्में तो जबरदस्त होती ही हैं. उनका रोमांटिक और मजाकिया अंदाज  उनके फैंस के साथ-साथ उनके साथ काम करने वाले फिल्म अभिनेता और अभिनेत्रियों को भी बहुत पसंद आता है. अपने चाहने वालों को अक्सर वे निराश नहीं करते हैं. बेहद खूबसूरत और मजेदार जवाब देने की कोशिश करते हैं. शाहरुख खान से जब भी कोई सवाल पूछा जाता है तो वे इस तरह का जवाब देने की कोशिश करते हैं जिससे माहौल गमगीन होने के बजाय मस्ती और आनंद में बदल जाए. चाहे वह सवाल मीडिया करे या फिर उनके फैंस, या  साथ काम करने वाले एक्ट्रेस के या अन्य लोगों.

लेकिन हाल ही में एक और बच्चे की खबर शाहरुख खान के घर में आने की सुनकर  सभी लोग अचम्भित हो  गए हैं. लेकिन जल्द ही लोगों ने अंदाजा लगा लिया की शाहरुख खान के जवाबों में अक्सर इस तरह की मस्ती भरी बातें होती है.

दरअसल हुआ यह कि उनके एक नए शो टेड टॉक्स इंडिया नई सोच कि शूटिंग के दौरान उन्होंने एक ही नाम को कई बार शूटिंग के दौरान बोला. उन्हें एक नाम लेना था आकांक्षा. लेकिन बार-बार रीटेक  हो रहा था. यह नाम ठीक से ले नहीं पा रहे थे.. ऐसे में शाहरुख खान को आइडिया आया  और उन्होंने सबके साथ मस्ती करने के लिए कहा मैं इस नाम को लेने में इसलिए बार-बार अटक रहा हूं क्योंकि यह बहुत अम्बरिंग हो रहा है. वैसे अक्सर मेरे साथ ऐसा होता नहीं है लेकिन जब होता है तो विशेष बात होती है. मुझे लगता है कि जल्द ही मेरा चौथा बच्चा आने वाला है और मैं उसका नाम भी आकांक्षा ही रखूंगा.

शाहरुख खान की यह बात लोगों को बहुत पसंद आई.. सोशल मीडिया से लेकर अनेक जगह पर यह बात आगे चल पड़ी. लेकिन बहुत जल्दी स्पष्ट हो गया कि शाहरुख खान ने अपने  मस्ती वाले अंदाज में एक मजाक के रूप में यह बात कही थी.






Sunday, January 21, 2018

What did Sunny Leone say about sex education? : सेक्स एजुकेशन को लेकर सनी लियोन ने यह क्या कह दिया


एक्ट्रेस सनी लियोन अपनी फिल्मों के कारण या किसी अन्य कारण से अक्सर चर्चा में रहती हैं एवं सोशल मीडिया से लेकर के ग्रामीण चौपालों तक उनकी खबरें किसी ना किसी कारण से पहुंच ही जाती हैं. कई बार तो विवाद भी धारण कर लेती हैं लेकिन इन सबके बावजूद भी सनी लियोन की फैन फॉलोइंग जबरदस्त है. उनके चाहने वाले उन्हें फॉलो करते रहते हैं और उनसे जुड़ी हुई बातों को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं.

हाल ही में सनी लियोन ने सेक्स एजुकेशन को लेकर के एक विशेष बात सामने रखी है. कर्नाटक  में हो रहे उनके शो को लेकर के प्रदर्शन और विरोध पर उन्होंने यह बात कही है. उन्होंने कहा कि मुझ जैसी कलाकार की लाइफ और इज्जत नॉर्मल लड़कियों से कहीं बेहतर होती है, कई मामलों में.
सनी लियोन ने कहा कि सेक्स एजुकेशन पर यदि हमें कुछ सीखना है, जानना है, तो  कोई अध्यापक हमें नहीं सिखाएगा बल्कि यह तो हमारे मां-बाप से ही सीखा जा सकता है, हमारे दोस्तों से सीखा जा सकता है लेकिन मां-बाप से अच्छा अध्यापक इस विषय का कोई और हो ही नहीं सकता.

वहीं उन्होंने कर्नाटक में उनके खिलाफ हो रहे उनके शौ के विरोध प्रदर्शन को लेकर उन्होंने यह कहा कि एक कलाकार की कला का इस तरह से विरोध करना कहां तक उचित है, इसका क्या कारण है, इस विरोध का मैं नहीं समझ पा रही हूं.


Saturday, January 20, 2018

These films will explode in 2018 : 2018 में करेंगी ये फिल्में धमाका


2017 का हैंगओवर लगभग उतर चुका है और नए साल की शुरूआत में 2018 का जश्न पूरे विश्व में मनाया जा रहा है. बॉलीवुड के हिसाब से 2017 बहुत अच्छा रहा. 200 से अधिक फिल्में बनने के बाद अनेक फिल्में सुपरहिट रहीं एवं अनेक फ़िल्में फ्लॉप रही. लेकिन हमेशा की तरह व्यक्ति पीछे के आकंलन से सीखता है और आगे बेहतर करने की सोचता है. आईए हम बात करते हैं 2018 में कौन-कौन सी फिल्में धमाल मचाने वाली है.

ठग्स ऑफ हिंदुस्तान
आमिर खान-अमिताभ बच्चन अभिनीत एवं विजय कृष्णा आचार्य के निर्देशन में बनने वाली बहुप्रतीक्षित फिल्म ठग्स ऑफ हिंदुस्तान
दिवाली 2018 को रिलीज होगी. कहा जा रहा है की यशराज फिल्म्स का काफी यह काफी महंगा प्रोजेक्ट है.
बंधुआ
आनंद एल राय के डायरेक्शन में बन रही शाहरूख खान की फिल्म बंधुआ 21 दिसंबर 2018 को आएगी. इस फिल्म में शाहरूख खान एक बौने का किरदार निभाते हुए नज़र आएंगे.

दबंग 3
अरबाज खान निर्देशित एवं सलमान खान स्टारडम फिल्म दबंग के सीक्वल दबंर 3 के लिए 2018 की ईद की डेट फाइनल की जा रही है. यह फिल्म भी धमाल मचाने वाली है.
कृष 4
राकेश रोशन के निर्देशन में बनने वाली ऋतिक रोशन अभिनीत फिल्म कृष का चौथा पार्ट.. कृष 4 साल 2018 में रिलीज होगी.
गोलमाल 4
रोहित सेट्टी जल्द हो गोलमाल की सीरीज को आगे बढ़ाने वाले हैं. ऐसा कहा जा रहा है की गोलमाल 4 एक तमिल रीमेक होगी. इस फिल्म में भी वही  पुरानी कास्ट रिप्लेस होगी लेकिन कहानी नई होगी.
इत्तेफाक रीमेक
शाहरूख खान के साथ इस फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा और नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी भी दिखाई देंगे. एक्ट्रेस के रूप में होंगी सोनाक्षी सिन्हा. इत्तेफाक एक सस्पेंस फिल्म थी, जहां एक व्यक्ति को उसकी पत्नी के कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार किया जाता है.
रोबोट 2.0
लगभग 450 करोड़ के बजट से बनी डायरेक्टर एस शंकर की इस फिल्म में आपको साइंस फिक्शन और वर्ल्ड क्लास लेवल के वीएफएक्स तथा 3डी तकनीक का प्रयोग देखने को मिलेगा. रजनीकांत के साथ इस फिल्म में अक्षय कुमार भी हैं. जो की इस फिल्म से तमिल फिल्मों में डेब्यू करने जा रहे हैं. उनका विलेन का लुक बहुत पहले ही वायरल हो चुका है.
संजय दत्त की बायोपिक
संजय दत्त की बायोपिक बन रही है. इसे बना रहे हैं राजकुमार हिरानी. संजय दत्त की पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ दोनों लाइफ से जुड़े कई राज इस फिल्म में खुलेंगे. संजय दत्त का किरदार रणवीर कपूर निभाएंगे.
अय्यारी
एम एस धोनी और अ वेडनस डेजैसी फिल्मों के निर्देशक नीरज पांडे इया साल अय्यारी  लेकर आ रहे हैं. इस फिल्म में मनोज बाजपेयी, रकुल प्रीत सिंह और सिद्धार्थ मल्होत्रा मुख्य किरदार में हैं. इस फिल्म की कथा गुरु-शिष्य की सची कहानी पर निर्धारित है.
चंदा मामा दूर के
यह फिल्म  भारत की पहली स्पेस बेस्ड फिल्म होगी. इसे संजय पूरण सिंह चौहान डायरेक्ट कर रहे हैं. चंदा मामा दूर के फिल्म हॉलीवुड फिल्म 2001-ए स्पेस ओडिशी की हिंदी रीमेक होगी.
इसमें सुशांत सिंह राजपूत, श्रद्धा कपूर और आर माधवन जैसे स्टार अभिनय करते दिखेंगे.
मणिकर्णिका
झांसी की रानी की कहानी पर आधारित है यह फिल्म. इसके डॉयरेक्टर कृष हैं. इस फिल्म में बॉलीवुड क्वीन कंगना रनौत रानी लक्ष्मीबाई का रोल  निभा रही हैं.


 
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