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Wednesday, January 17, 2018

1921 movie does not seem 21 to be 19 : 1921. 21 नहीं बल्कि 19 ही लगती है


बीते साल सीक्वल फिल्मों ने टिकट खिड़की पर सफलता की नई कहानियां गढ़ी है. अतः उसी तर्ज पर विक्रम भट्ट ने 1920 की चौथी फ्रेंचाइज के रूप में 1921 फिल्म बनाई है. संभवत फिल्म सीक्वल है तो कहानी भी वही पुरानी होगी. अतः फिल्म को देखते हुए आपको यह पहले ही अंदाजा लग जाएगा कि इससे अगले वाले सीन में क्या होने वाला है.

फिल्म के मुख्य किरदार आयुष अर्थात करण कुंद्रा हैं जो इस फिल्म में एक बहुत ही प्रतिभाशाली संगीत प्रेमी हैं लेकिन उन्होंने संगीत में कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है. ऐसी स्थिति में उसके पिता के बोस उसके संगीत के प्रशिक्षण और पढ़ाई का पूरा खर्चा उठाने के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन उनकी शर्त यह होती है कि यह पढाई इंग्लेंड में होगी और उनके इंग्लैंड वाले घर की देखभाल वह करेंगे.

आयुष को यह प्रस्ताव पसंद आता है. लेकिन जैसे ही वह इंग्लैंड वाले घर में जाता है तो वहाँ  अजीबोगरीब हरकतें होनी शुरू हो जाती है . वह अनेक बुरी शक्तियों का सामना करने लगता है. जो आयुष को मारना चाहती हैं और इसी दरमियान आयुष की मुलाकात रोज यानी की जरीन खान से होती है. रोज की विशेषता यह होती है कि वह इन बुरी शक्तियों को देख सकती है. आयुष को एक उम्मीद जगती है कि रोज उसे इन बुरी शक्तियों से बचा लेगी.

लेकिन यही सवाल दर्शकों को सिनेमा घर तक ले जाएगा कि क्या रोज आयुष को बचा पाएगी या नहीं. इंटरवल से पहले फिल्म थोड़ी सी ठीक चलती है लेकिन इंटरवल के बाद तो कहानी बिल्कुल ही सहज लगने लगती है. फिल्म में अनेक फ्लैशबैक दिखाए जाते हैं जो कि दर्शक को बोर करने लगते हैं. फिल्म में जरूरत से ज्यादा रहस्य भी जोड़े गए हैं जो निश्चित रूप से दर्शक को आगे की कहानी के बजाए पीछे की ओर धकेलते हैं.

एक्टिंग के हिसाब से जरीन खान का काम फिर भी ठीक है लेकिन करण कुंद्रा के अभिनय में दम नहीं है. फिल्म के कई दृश्यों में करण कुंद्रा ओवर एक्टिंग करते हुए नजर आए हैं जिसके कारण फिल्म डराने के बजाए हंसाने का काम करती है. फिल्म का संगीत लगभग औसत है लेकिन प्रभावशाली नहीं है. अब देखना यह है कि यह फिल्म अपना प्रभाव दर्शकों पर कितना छोड पाती है.

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