रंगमंच एक ऐसी कला है जिसमें अनेक
कलाओं का संगम होता है। विविध कलाओं की इस विशिष्ट और अनोखी कला की सबसे बड़ी बात
यह है कि इसमें टीवी या सिनेमा की तरह रिकॉर्ड नहीं बल्कि लाइव प्रस्तुति दिखाई
देती है। 30 मिनट या उससे अधिक समय तक किसी प्रस्तुति पर
एक कलाकार या कलाकारों का समूह जब मंच पर सामूहिकता के साथ दर्शकों के समक्ष
प्रस्तुत होता है तो मात्र किसी किरदार में नहीं बल्कि जीवन के अनेक रंगों को
प्रस्तुत करने की एक ऐसी कुशलता के रूप में सक्षम होता है जो निश्चित रूप से आपको
चमत्कृत भी करती है और जैसा आप अपने इर्द-गिर्द देखते हैं वैसा ही आपको मंच पर
दिखाई देता है।
जयपुर और दिल्ली के मध्य बसे हुए अलवर
को यूँ तो एक सांस्कृतिक नगरी के रूप में जाना जाता है। महाराजा भर्तृहरि की
तपोभूमि के रूप में भी अलवर का एक विशिष्ट नाम है लेकिन अनेक समस्याओं की वजह से
रंगमंच यहां पर उस गति को नहीं प्राप्त कर पाया है जो सामान्यतः दूसरी जगह पर या
शहरों में दिखाई देती है। फिर भी कुछ युवा साथियों के सहयोग से गत 3
वर्षों से लगातार यह क्रम पुनः चल रहा है। अलवर में छुपी हुई रंगकर्म की विशिष्टता
को जगाया जाए और लोगों को प्रेरणा के रूप में प्रेरित कर इससे जोड़ा जाए, इसी
तरह का प्रयास कर रहे हैं रंगकर्म को सक्रिय रखने वाले लोग।
रंग संस्कार थिएटर ग्रुप लगातार यह
प्रयास कर रहा है कि अलवर में रंगमंच की गतिविधियां किस तरह से बढे़। अर्थात
लगातार नाटक हों एवं नाटक से संबंधित सेमिनार, कार्यशालाएं,
गोष्ठियां
तथा अन्य गतिविधियां सुचारू रूप से चलती रहें। इन सबके पीछे रंग संस्कार थिएटर
ग्रुप का उद्देश्य यही है कि अलवर शहर सांस्कृतिक रूप से बहुत विशाल है। अतः इसकी
सांस्कृतिक एवं कलात्मक छवि को और उभारने के लिए रंगमंच की गतिविधियों का लगातार
होना निश्चित रूप से सोने में सुहागा की तरह काम करेगा और इसी प्रयास में 2015 से
लगातार रंगमंचीय गतिविधियों को अलवर शहर में प्रस्तुत करने की कोशिश में लगा हुआ
है रंग संस्कार थियेटर ग्रुप। इसका तात्पर्य यह कतई नहीं है कि 2015 से
2018 के मध्य अन्य संस्थाएं रंगमंचीय गतिविधियां या नाटक नहीं कर रही हैं
या उससे पूर्व नाटक नहीं होते थे। रंग संस्कार थिएटर ग्रुप के अलावा अलवर की
थियेटर की अन्य संस्थाएं समय-समय पर नाटक प्रस्तुत करती रही हैं और कर रही हैं।
लेकिन रंग संस्कार थिएटर ग्रुप अन्य संस्थाओं की अपेक्षा अधिक नाट्य गतिविधियां
सक्रिय और सुचारु रुप से कर रहा है। अतः रंग संस्कार थिएटर ग्रुप का यह कार्य
निश्चित रूप से सराहनीय भी है और रंगमंचीय गतिविधियों को सक्रिय रखने में एवं अन्य
संस्थाओं को प्रेरित करने में प्रेरणादायक भी।
रंग संस्कार थिएटर ग्रुप एवं कारवां
फाउंडेशन की ओर से आयोजित इस पांच दिवसीय अलवर रंग महोत्सव 2018 ने
निश्चित रूप से जनवरी महीने की कड़कती ठंड में कलात्मक रूप से एक गर्माहट का एहसास
पैदा किया है। देश के श्रेष्ठ नाटकों का मंचन अलवर में गत 3 वर्षों से
लगातार रंग संस्कार थिएटर ग्रुप और कारवां फाउंडेशन के सहयोग से हो रहा है। देश की
चर्चित हस्तियां और ग्रुप्स के नाटक अलवर के दर्शकों के मध्य करवाने का प्रयास ये
संस्थाएं कर रही हैं। निश्चित रूप से आज की चकाचोंध भरी दुनिया में रंगमंच के
सरोकार से लोगों को जोड़ने का यह प्रयास रंग संस्कार थिएटर ग्रुप और कारवां
फाउंडेशन दोनों का बहुत ही सराहनीय कार्य है।
यह लगभग बहुत पूर्व से ही होता रहा है
की कला को करने वाले लोग संख्यात्मक दृष्टि से बहुत कम रहे हैं। हां कला को चाहने
वाले, उसके प्रशंसक या यूं कहें कि कलाप्रेमी अत्यधिक मिल जाते हैं और
इन्हीं कला प्रेमियों में से कुछ लोग जो आर्थिक रुप से संपन्न होते हैं, वे
इस तरह की कलाओं को प्रश्रय देते हैं, तो कलाएं संवरती हैं, फलीभूत
होती हैं। रंग संस्कार थिएटर ग्रुप भी इसी तरह के कलाप्रेमी लोगों के साथ जुड़कर गत
तीन वर्षों से अलवर रंग महोत्सव का आयोजन कर रहा है। इस आयोजन में बराबर की
भागीदारी उसके साथ निभा रहा है कारवां फाउंडेशन। कारवां फाउंडेशन और रंग संस्कार
थिएटर ग्रुप दोनों मिलकर ही अलवर रंग महोत्सव का आयोजन करवा रहे हैं।
अलवर रंग महोत्सव 2018, 10
जनवरी से 14 जनवरी तक हुआ। निश्चित रूप से अलवर रंग
महोत्सव 2018 में विविध प्रकार की प्रस्तुतियों का आयोजन,
अलवर
के दर्शकों के लिए कलात्मक रूप से एक बहुत बड़ी उपलब्धि साबित हुआ है। अलवर रंग
महोत्सव 2018 में कुल 7 नाटक प्रस्तुत
किए गए तथा साथ ही संगीत एवं गायन के भी दो दिवसीय कार्यक्रम रखे गए। इसी के साथ
रंग संवाद के तहत एक कार्यक्रम रंगमंच और शिक्षा के जुड़ाव को लेकर किया गया।
एजुकेशन सिस्टम में थियेटर को जोड़ने की मुहिम को लेकर शहर के वरिष्ठ एवं युवा
रंगकर्मी तथा साहित्यकारों ने गंभीर चर्चा की। इस रंग संवाद में प्रो. जीवन सिंह मानवी, हरिशंकर गोयल, अशोक राही, सतीश शर्मा, सुनील शर्मा, प्रदीप माथुर, दलीप वैरागी, अविनाश सिंह, राजेश मकरध्वज, अखिलेश, हितेश जैमन, बजरंग चौहान, संदीप शर्मा, नीलाभ ठाकुर आदि उपस्थित थे.
10 जनवरी को थियेटर एवं फिल्म अभिनेता
जयंत गाडेकर द्वारा लिखित, निर्देशित और अभिनीत एकल नाटक ‘पापा
पेट का सवाल’ से अलवर रंग महोत्सव 2018 का आगाज हुआ।
इस नाटक के दो शो किए गए। पहली प्रस्तुति चिनार पब्लिक स्कूल में दिन में 12.30
बजे की गई और दूसरी प्रस्तुति सायं 6.30 बजे जय किशन क्लब में की गई। निश्चित
रुप से दोनों ही प्रस्तुतियां बहुत ही बेहतरीन रही।
इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में व्यक्ति
अपने लिए समय ही नहीं निकाल पाता है। क्योंकि आधुनिक चकाचौंध भरी दुनिया ने हमारे
लिए विकास का पैमाना सबसे तेज गति से दौड़ने की रफ्तार के आधार पर तय कर दिया है।
जिसके पास सबसे अधिक पैसा है, बड़ी गाड़ी है, प्रतिष्ठा है,
वह
अत्यधिक आधुनिक तथा श्रेष्ठ या बड़ा है। लेकिन इन सबके मध्य परिवार, समाज
और यहां तक कि स्वयं और देश तक को व्यक्ति भूल गया है। अपने लिए एवं अपनों के लिए
समय जैसे कि गायब हो गया है। इस तरह के अनेक सवाल उठाता है नाटक ‘पापा
पेट का सवाल’। जीवन के अनेक रंगों की तह तक ले जाता है यह
नाटक। दर्शकों को मजबूर करता है यह सोचने के लिए कि हम अपने और परिवार की बजाये
बहुत सारी ऐसी चीजों पर पैसा खर्च कर देते हैं जो कई बार अनुपयोगी सी लगती हैं।
दर्शकों द्वारा दी गई प्रतिक्रिया के आधार पर यह एहसास होता है कि नाटक से एक घंटे
तक दर्शक ऐसे जुड़े रहे जैसे कि यह कोई अन्य कहानी नहीं बल्कि उन्हीं की कहानी कोई
मंच पर खड़ा हो करके उन्हीं से कह रहा है। ठहाकों के साथ साथ अंत में नाटक आंखें नम
कर मजबूर करता है सोचने के लिए की अच्छा दिखने के आधुनिक पैमाने के चक्कर में कहीं
न कहीं संबंधों की डोर टूट रही है।
अलवर रंग महोत्सव 2018 के
दूसरे दिन यानी 11 जनवरी को ‘स्वामी
विवेकानंद एक युगपुरुष’ नाटक का मंचन किया गया। इस नाटक का मंचन नागपुर
से पधारी दीपाली घोंघे ने किया। दीपाली घोंघे नागपुर यूनिवर्सिटी से ड्रामा में
प्रशिक्षित अभिनेत्री हैं। अभिनय के क्षेत्र में अनेक पुरस्कार भी उन्हें मिल चुके
हैं। ‘स्वामी विवेकानंद एक युगपुरुष’ नाटक का मंचन एक
महिला अभिनेत्री के द्वारा किया जाना अपने आप में एक चुनौती भी है और उत्सुकता भी।
लेकिन दीपाली घोंघे ने जितनी खूबसूरती से इस नाटक को अपनी बेहद संजीदा और बेस भरी
आवाज से प्रस्तुत किया, वह निश्चित रूप से एक सराहनीय प्रस्तुति के रूप
में अलवर के दर्शक याद करेंगे। ‘स्वामी विवेकानंद एक युगपुरुष’ नाटक
कि इस एकल प्रस्तुति में स्वामी विवेकानंद के साथ-साथ अनेक पात्रों का अभिनय करती
हुई दीपाली घोंघे मंच के छोटे से भाग पर भी दर्शकों के समक्ष विवेकानंद का पूरा
जीवन चरित्र अभिनीत करने में सक्षम रहीं। अपनी बेहतरीन आवाज और अभिनय क्षमता के
बलबुते पर उन्होंने दर्शकों के समक्ष विवेकानंद का सशक्त रूप प्रस्तुत किया। ‘स्वामी
विवेकानंद एक युग पुरुष’ नाटक में स्वामी विवेकानंद का रामकृष्ण
परमहंस मिलना, ईश्वर की प्राप्ति के लिए इच्छा जाग्रत करना,
ईश्वर
की पहचान करना, समाज और धर्म की सही व्याख्या करना, विश्व
धर्म सम्मेलन में शिकागो जाकर भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए व्याख्यान देना आदि
अनेक पक्षों को दिवाली घोंघे बहुत खूबसूरत अंदाज में मंच पर प्रस्तुत करती हैं। इस
प्रस्तुति में मंच परे दीपाली घोंघे का साथ दिया नागपुर यूनिवर्सिटी से पधारी डॉ.
संयुक्ता थोरात ने एवं संगीत संचालन किया सुमित भोथरे ने। यह महज एक संयोग ही कहा
जा सकता है कि 12 जनवरी को स्वामी विवेकानन्द की ज्यंती होती है
और उससे एक दिन पूर्व ‘स्वामी विवेकानन्द एक युगपुरुष’ नाटक
का मंचन किया गया। इस नाटक के भी दो शो किये गए। पहला शो दिन में 12
बजे एन.आई.ई.टी, कॉलेज चिकानी में। दूसरा शो शाम 6.30
बजे जय किशन क्लब अलवर शहर में। दोनों ही प्रस्तुतियां बहुत ही खूबसूरत रहीं।
12 जनवरी को प्रताप ऑडिटोरियम में
प्रख्यात टी.वी एवं फिल्म अभिनेता पुनीत इस्सर द्वारा अभिनीत नाटक ‘रावण
की रामायण’ नाटक का मंचन हुआ। निश्चित रूप से अलवर रंग
महोत्सव 2018 की यह सबसे चर्चित और हाउसफुल प्रस्तुति रही। ‘रावण
की रामायण’ नाटक में रावण की मुख्य भूमिका में पुनीत इस्सर
थे। उनकी संवाद अदायगी और उनके पूर्व के किरदारों के आधार पर लोगों का उत्साह
देखते ही बन रहा था। अतुल सत्य कौशिक के निर्देशन एवं उन्हीं के द्वारा लिखे गए इस
नाटक में वास्तव में रावण के पक्ष से रामायण को देखना एवं उनसे जुड़े अनेक पक्षों
को उद्घाटित करना इस नाटक की विशेषता रही।
‘रावण की रामायण’ नाटक का प्रमुख
बिन्दु जहां से इस नाटक या रामायण में रावण का आगमन प्रारंभ होता है, वह
है सूर्पनखा का लक्ष्मण एवं राम के द्वारा अनादर करना तथा उसके नाक, कान
एवं स्तन आदि अंगों को काटना। यह बात सूर्पनखा अपने भाई रावण की सभा में आकर जब
कहती है तो रावण अपनी बहन का प्रतिशोध लेने के लिए सीता का हरण करते हैं। ‘रावण
की रामायण’ नाटक में यह भी दर्शाया गया है कि सीता का हरण
भले ही रावण ने किया है लेकिन बिना सीता की इजाजत के रावण न तो उसे छूते हैं और न
ही उनके साथ किसी प्रकार का अनैतिक कार्य करते हैं। इस बात का इस नाटक में रावण
बार-बार हवाला देते हैं कि मैं रावण हूं राम नहीं। इसलिए जैसा शूर्पणखा के साथ राम
ने कृत्य किया है मैं वैसा सीता के साथ नहीं करूंगा। अर्थात स्त्री का सम्मान,
उसकी
इज्जत एवं उसके अधिकार के पक्ष की लड़ाई लड़ता हुआ दिखाई देता है रावण ‘रावण
की रामायण’ नाटक में। दूसरी विशेष बात इस नाटक की यह रही
कि नाटक के अंत में जो रावण संवाद बोलता है, उसमें यह भी
कहता है कि इस युद्ध में न राम जीता है, न रावण हारा है, बल्कि लक्ष्मण
जीता है और विभीषण हारा है। क्योंकि राम तुम्हारे साथ तुम्हारा भाई था। अतः तुम
मुझ पर विजय प्राप्त कर सके और मेरे साथ मेरा भाई नहीं था। इसलिए मैं पराजित हुआ।
अतः यह न मेरी हार है, न तुम्हारी जीत। मेरे भाई ने मेरा साथ नहीं
दिया। यदि उसे राज्य की आवश्यकता थी तो वह मुझे कहता मैं उसके लिए राज्य त्याग
देता। भविष्य में अपने शिशु का नाम विभीषण कोई नहीं रखेगा लेकिन विश्वासघात का जब
भी जिक्र किया जाएगा तो विभीषण का नाम जरुर लिया जाएगा। इस तरह से अनेक बिंदुओं पर
रावण अपना पक्ष रखते हैं। ‘रावण की रामायण’ नाटक देखते हुए
रावण के पक्ष काफी मजबूत भी दिखाई देते हैं। नाट्य प्रस्तुति की बात करें तो रावण
की भूमिका में पुनीत इस्सर निश्चित रुप से अपनी दमदार आवाज और शारीरिक डील डोल के
आधार पर रावण को बहुत की खूबसूरती के साथ अभिनीत करते हैं। शेष कलाकारों में पुनीत
इस्सर की मौजूदगी का अहसास बेहतरीन अभिनय की क्षमता की अपेक्षा करता है। अतः वे
लोग भी इस विश्वास पर खरे उतरते हैं। भाषा एवं वेशभूषा का चयन भी इस नाटक के लिए
बहुत खूबसूरत रहा। इस नाटक में पारसी शैली की तरह कवितानुमा संवाद रखे गए। इस
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के नाटक के लिए इस तरह के संवाद नाटक को प्रभावी बनाने में
सहयोगी रहे। अन्य पात्रों में राम की भूमिका में गौरव जाखू, सीता-लतिका जैन,
मेघनाथ-तरुण
डांग, अतिकाय-भरत शर्मा, मंदोदरी-निशता पालीवाल, शूर्पणखा
एवं त्रिजटा-शक्ति सिंह, लक्ष्मण-अखिलेश अरोड़ा, सुमाली
एवं विभीषण-सचिन जोशी, द्वारपाल-नसीम खान, अंगद-मनमीत
तनेजा, शिव-भानु राणा थे। इस नाटक के लेखक/निर्देशक अतुल सत्य कौशिक ने यह
नाटक बहुत ही खूबसूरत लिखा है और निर्देशित किया है। उनकी निर्देशकीय क्षमता मंच
पर साकार हो रही थी।
तकनीकी रूप से एक दिक्कत ‘रावण
की रामायण’ नाटक में दिखाई दी। एक जगह रावण जब सीता से
मिलने के लिए आते हैं तो त्रिजटा सीता से रावण के आने का संदेश देती है। लेकिन यह
संदेश देने के लिए त्रिजटा मंच के बाईं तरफ से आती हैं, जबकि रावण मंच
के दाईं तरफ से आते हैं। नाटक को देखते हुए मन में ख्याल आया कि इतने मंजे हुए
निर्देशक, अभिनेता एवं इस नाटक के लगभग 40 शो करने के बाद
भी इस तरह की तकनीकी गलती कैसे हो सकती है। नाटक के बाद जब डायरेक्टर एवं
अभिनेताओं से इस पक्ष को लेकर बात हुई तो उसमें कमी कलाकारों की नहीं बल्कि प्रताप
ऑडिटोरियम की निकली। दरअसल प्रताप ऑडिटोरियम के मंच के पीछे से दाएं से बाएं जाने
के लिए बहुत सकड़ा रास्ता है और पुनीत इस्सर जैसे भारी भरकम शरीर वाले अभिनेता के
लिए और ऊपर से वजनदार कोस्ट्यूम पहनने के बाद वहां से निकलना निश्चित रुप से कठिन
ही नहीं असंभव था। इसलिए उन्होंने एंट्री उसी जगह से ली जहां से पूर्व के दृश्य
में एक्जिट हुए थे। दरअसल प्रताप ऑडिटोरियम के अंदर इस तरह की अनेक तकनीकी खामियां
हैं। जिसकी ओर युआईटी, अलवर प्रशासन तथा अलवर के राजनेताओं को ध्यान
देना चाहिए। लाइट एवं साउंड की भी अनेक खामियां इस ऑडिटोरियम में हैं। ‘रावण
की रामायण’ नाटक खत्म होने के बाद इस नाटक के डायरेक्टर
एवं लेखक अतुल सत्य कौशिक ने भी प्रताप ऑडिटोरियम की इन खामियों को रेखांकित किया
और उस समय जिला कलेक्टर मौजूद थे। उम्मीद है इस खूबसूरत और भव्य ऑडिटोरियम में इन
छोटी-छोटी कमियों को दूर करने का प्रयास प्रशासन करेगा और साथ ही ऑडिटोरियम की
उपयोगिता को समझते हुए इसकी दर भी कम करेगा। क्योंकि इस ऑडिटोरियम का महत्त्व तब
ही है जब यहां पर इसी तरह की नाट्य प्रस्तुतियां या सांस्कृतिक गतिविधियां लगातार
होती रहें। लेकिन ये गतिविधियां तभी संभव हो पाएंगी जब इसकी कमियों को दूर करने के
साथ साथ इसके भारी भरकम शुल्क, इसका एक दिन का किराया कम किया जाए। ‘रावण
की रामायण’ नाटक का बहुत ही खूबसूरत सैट बनाया अलवर के
आर्टिस्ट मुकेश जी ने और प्रकाश परिकल्पना एवं संचालन किया अतुल सत्य कोशिक
ने।
13 जनवरी को अशोक राही द्वारा निर्देशित
एवं शरद जोशी द्वारा लिखित मशहूर नाटक ‘एक था गधा उर्फ अलादाद खां’ मंचित
किया गया। ‘एक था गधा उर्फ अलादाद खां’ शरद
जोशी का बहुत ही लोकप्रिय और बहु मंचित नाटक है। यह नाटक मूलतः इमरजेंसी की
तानाशाही को बयां करता हुआ राजनीति के साथ साथ सामाजिक एवं सांस्कृतिक रुप से अनेक
विसंगतियों पर बहुत गहरा कटाक्ष करता है। किंतु नाटक को पढ़ते और देखते हुए ऐसा
आभास होता है कि वे विसंगतियां इमरजेंसी के समय में ही नहीं बल्कि आज भी यथावत
दिखाई देती हैं। फिर चाहे वह राजनीति हो या अन्य पक्ष। आम जनता के सामने अपनी
प्रसिद्ध के लिए एक शव को कंधा देने की खातिर नवाब एक व्यक्ति तक को मरवा देता है,
इससे
बड़ी तानाशाही और क्या होगी। ‘एक था गधा उर्फ अलादाद खां’ नाटक
की प्रस्तुति की बात करें तो यह प्रस्तुति बहुत अच्छी नहीं रही। नाटक के बहुत
खूबसूरत संवाद एवं हास्य-व्यंग्य की स्थिति होने के बावजूद भी दर्शकों को नाटक जोड़
नहीं पाया। अभिनेता जिस किरदार को अभिनीत कर रहे थे, मंच पर उस
किरदार के बजाए वे स्वयं दिखाई दे रहे थे। अर्थात उस चरित्र को वे पकड़ ही नहीं
पाये। बेहतरीन संवाद और हास्यास्पद स्थिति होने के कारण लोगों की प्रतिक्रिया जिस
तरह से इस नाटक में आनी चाहिए थी, वह नहीं आई। मुख्य रुप से यह
निर्देशकीय अभाव कहा जा सकता है। दूसरा कारण यह भी हो सकता है, जो
इस नाटक के निर्देशक अशोक रही जी ने भी कहा था, कि इस नाटक में
अनेक कलाकार ऐसे हैं जो पहली बार नाटक कर रहे हैं। लेकिन पूर्वाभ्यास कुछ बेहतर और
अधिक करवाकर तथा किरदार की बारीकियां समझाकर निर्देशक इसकी कमियों को दूर कर सकते
थे। अन्य अभिनेताओं की ही नहीं बल्कि इस नाटक के मुख्य किरदार नवाब की भूमिका में
स्वयं अशोक राही भी अपने किरदार के साथ बहुत अधिक न्याय नहीं कर पाये। अन्य पात्र
इस प्रकार थे-सूत्रधार-नलिन माहेश्वरी, कोतवाल-राहुल शर्मा, रामकली-प्रतिभा
पारीक, जुग्गन-संजय महावर, नत्थू-रितेश सिसोदिया, अलादाद-पुनीत
खत्री, चिंतक एक-नितिन सैनी, चिंतक दो-अपेक्षा जैन, चिंतक
तीन-विपिन जोशी, नागरिक एक-शिवम सांगावत, नागरिक दो-मनीष
बैरवा, नागरिक तीन-आशीष जादम, दरबारी एक-आशीष अरोड़ा, दरबारी
दो-हनी मिश्रा, दरबारी तीन-माधव भाटिया, दरबारी
चार-दीपांशु कुमार, देवीलाल पानवाला-अनिल बैरवा, मंच
व्यवस्था-कृष्णा कश्यप, संगीत-राकेश दीक्षित, प्रकाश-सुनील
शर्मा, वेशभूषा-मधु शर्मा, साज सज्जा-रवि बांका, सहायक
निर्देशक-शुप्रिया शर्मा।
‘एक था गधा उर्फ अलादाद खां’ नाटक शायं 4.30 से 6.00 बजे तक प्रस्तुत किया गया और इसके आधे घंटे के अंतराल के बाद ‘नेटुआ’ नाटक प्रस्तुत किया गया। चंूकि ऑडिटोरियम में मंच पर इस तीस मिनट के अंतराल में ‘नेटुआ’ का सेट लगाना था। अतः ऑडिटोरियम के बाहर इसी अंतराल के मध्य झारखंड से आए कलाकार दिनकर शर्मा की एक एकल नाट्य प्रस्तुति रखी गई। दिनकर शर्मा ने बहुत कम संसाधनों में, चलते-फिरते हुई दर्शकों के मध्य स्वयं की लिखी कहानी ‘लेफ्ट-राइट’ को मंचित किया। उनका अभिनय बहुत ही खूबसूरत रहा। एक सामान्य कहानी को बेहतरीन अदायगी के साथ प्रस्तुत करने की क्षमता दिनकर शर्मा के अभिनय में दिखाई दी। मात्र 15 मिनट के इस नाटक में दिनकर शर्मा यूं तो लेफ्ट-राइट दो हाथों के संवाद को बयां करते हैं और दोनों ही हाथों के द्वारा अपनी अपनी विशेषता और दूसरे की कमियां गिनाई जाती हैं, जो कि बहुत ही सहज विषय लगता है किंतु दिनकर शर्मा की प्रस्तुति जब इस सहज विषय को प्रस्तुत करती है तो उनके सात्विक अभिनय की बदौलत दर्शक रोमांचित ही नहीं अभिभूत हो जाते हैं। यह नाटक दाएं और बाएं हाथ का संवाद है जो सामान्य लगता है परंतु यदि थोड़ा सा उसको सोचे तो वे समाज, राजनीति, ऊंच-नीच, वर्ग विशेष आदि अनेक संदर्भों पर अप्रत्यक्ष रूप से अनेक कटाक्ष करता हुआ नजर आता है। 15 मिनट में दाएं और बाएं हाथ के संवाद के माध्यम से दिनकर शर्मा अनेक सवाल खड़े करते हुए नजर आते हैं। जो निश्चित रूप से एक नाटककर्मी और नाटक का दायित्व भी होता है कि वह एक विषय से अनेक विषय एवं पक्षों तक हमें ले जाता है, जहां तक हम नहीं सोच पाते हैं वहां तक की यात्रा हमें करवाता है। मैं समझता हूं यह नाटक की निश्चित रूप से एक सही और सार्थक कलात्मक यात्रा है, जिसे दिनकर शर्मा ने अपने नाटक के माध्यम से बखूबी प्रस्तुत किया।
‘एक था गधा उर्फ अलादाद खां’ नाटक शायं 4.30 से 6.00 बजे तक प्रस्तुत किया गया और इसके आधे घंटे के अंतराल के बाद ‘नेटुआ’ नाटक प्रस्तुत किया गया। चंूकि ऑडिटोरियम में मंच पर इस तीस मिनट के अंतराल में ‘नेटुआ’ का सेट लगाना था। अतः ऑडिटोरियम के बाहर इसी अंतराल के मध्य झारखंड से आए कलाकार दिनकर शर्मा की एक एकल नाट्य प्रस्तुति रखी गई। दिनकर शर्मा ने बहुत कम संसाधनों में, चलते-फिरते हुई दर्शकों के मध्य स्वयं की लिखी कहानी ‘लेफ्ट-राइट’ को मंचित किया। उनका अभिनय बहुत ही खूबसूरत रहा। एक सामान्य कहानी को बेहतरीन अदायगी के साथ प्रस्तुत करने की क्षमता दिनकर शर्मा के अभिनय में दिखाई दी। मात्र 15 मिनट के इस नाटक में दिनकर शर्मा यूं तो लेफ्ट-राइट दो हाथों के संवाद को बयां करते हैं और दोनों ही हाथों के द्वारा अपनी अपनी विशेषता और दूसरे की कमियां गिनाई जाती हैं, जो कि बहुत ही सहज विषय लगता है किंतु दिनकर शर्मा की प्रस्तुति जब इस सहज विषय को प्रस्तुत करती है तो उनके सात्विक अभिनय की बदौलत दर्शक रोमांचित ही नहीं अभिभूत हो जाते हैं। यह नाटक दाएं और बाएं हाथ का संवाद है जो सामान्य लगता है परंतु यदि थोड़ा सा उसको सोचे तो वे समाज, राजनीति, ऊंच-नीच, वर्ग विशेष आदि अनेक संदर्भों पर अप्रत्यक्ष रूप से अनेक कटाक्ष करता हुआ नजर आता है। 15 मिनट में दाएं और बाएं हाथ के संवाद के माध्यम से दिनकर शर्मा अनेक सवाल खड़े करते हुए नजर आते हैं। जो निश्चित रूप से एक नाटककर्मी और नाटक का दायित्व भी होता है कि वह एक विषय से अनेक विषय एवं पक्षों तक हमें ले जाता है, जहां तक हम नहीं सोच पाते हैं वहां तक की यात्रा हमें करवाता है। मैं समझता हूं यह नाटक की निश्चित रूप से एक सही और सार्थक कलात्मक यात्रा है, जिसे दिनकर शर्मा ने अपने नाटक के माध्यम से बखूबी प्रस्तुत किया।
6.30 बजे प्रस्तुत
हुआ नाटक ‘नेटुआ’। ‘नेटुआ’ दरअसल उत्तर
प्रदेश की परंपरागत लोक नाट्य एवं नृत्य शैली है। जिसके अंतर्गत पुरुष महिला का
वेस धारण करके सामंत तथा जमीदारों के यहां होने वाले उत्सव, तीज-त्यौहार एवं
मेलों में उनका मनोरंजन करने के लिए लोक गीत गाता हुआ नृत्य करता है। ये सामंत तथा
जमीदार लोग ‘नेटुआ’ की कला का ही आनंद नहीं लेते हैं बल्कि
उसके साथ उसका शारीरिक, पारिवारिक एवं सामाजिक शोषण भी करते हैं।
इन्हीं सब स्थितियों को गीत-संगीत एवं लोक शैली के माध्यम से ‘नेटुआ’
नाटक
में प्रस्तुत किया गया।
प्रस्तुति के लिहाज से ‘नेटुआ’ नाटक बहुत बेहतरीन और खूबसूरत प्रस्तुति रही। निश्चित रुप से अपने गीत-संगीत के उमंग एवं करुणामय भावों के माध्यम से तथा बहुत ही खूबसूरत संजीदा अभिनय के बलबूते पर दिलीप गुप्ता एवं उनकी टीम ने दर्शकों को दांतों तले उंगुली दबाने के लिए मजबूर कर दिया। मस्ती के साथ साथ करुणामय वातावरण में डूबने वाले दृश्यों तथा शोषण की चक्की में पिसने वाले गरीब के दर्द को बयां करने वाले संवादों तथा भावों ने दर्शकों को सोचने के लिए विवश कर दिया। बहुत ही खूबसूरत अभिनय और संवाद अदायगी की बदौलत यह नाटक निसंदेह एक खूबसूरत प्रस्तुति के रूप में याद किया जायेगा। भोजपुरी भाषा का प्रभाव भी नाटक को सहयोगी बनाने में कामयाब रहा। यौन विकृति, सामंतवाद एवं सामाजिक प्रताड़ना को प्रस्तुत करता हुआ नाटक ‘नेटुआ’ में विद्याबाबू, झमना और नारायण मिश्र का अभिनय करने वाले नरेंद्र कुमार, दिलीप गुप्ता एवं राजेश बक्शी ने अपने बहुत ही खूबसूरत अभिनय के दम पर अपने किरदार को मंच पर जीवंत कर दिया। ‘नेटुआ’ की भूमिका में दिलीप गुप्ता ने नाटक के प्रारंभ से लेकर अंत तक लोगों को उस किरदार से इस तरह से जोड़ दिया जैसे यह घटना मंच पर नहीं उनके इर्द-गिर्द घटी रही हो। अन्य पात्रों की भूमिका निभाने वाले कलाकर थे-रामप्रताप-राज तंवर, सितिया-रुबीना सैफी, मास्स साहब एवं समाजी-अविनाश तिवारी, सत्रोहन एवं समाजी-ललित सिंह, समाजी-संदीप कुमार, समाजी-सुमन कुमार, समाजी-आकिब खान, समाजी-दीपक राणा। इसके अलावा मंच परे हारमोनियम-सचिन, नक्कारा-जमील खान, ढोलक-रवि भट्ट, डफ-प्रसून नारायण, गायन-अमरजी राय, गीत-महेन्दर मिश्र, सुधांशु फिरदौस, सहायक-आकिब खान, मंच सामग्री-ललित सिंह एवं सुमन कुमार, रूप सज्जा-मुकेश झा, वस्त्र परिकल्पना व नृत्य संचालन-यशस्विनी बोस, मंच व प्रकाश परिकल्पना-मुरली बासा एवं श्याम कुमार साहनी, संगीत सहायक-प्रसून नारायण, संगीत-सैंडी सिंह, प्रस्तुति प्रभारी-ललित एवं सुमन, प्रस्तुति प्रबंधक-यशस्विनी बॉस, लेखक-रतन वर्मा, निर्देशक, नाट्य रूपांतरण एवं परिकल्पना-दिलीप गुप्ता।
प्रस्तुति के लिहाज से ‘नेटुआ’ नाटक बहुत बेहतरीन और खूबसूरत प्रस्तुति रही। निश्चित रुप से अपने गीत-संगीत के उमंग एवं करुणामय भावों के माध्यम से तथा बहुत ही खूबसूरत संजीदा अभिनय के बलबूते पर दिलीप गुप्ता एवं उनकी टीम ने दर्शकों को दांतों तले उंगुली दबाने के लिए मजबूर कर दिया। मस्ती के साथ साथ करुणामय वातावरण में डूबने वाले दृश्यों तथा शोषण की चक्की में पिसने वाले गरीब के दर्द को बयां करने वाले संवादों तथा भावों ने दर्शकों को सोचने के लिए विवश कर दिया। बहुत ही खूबसूरत अभिनय और संवाद अदायगी की बदौलत यह नाटक निसंदेह एक खूबसूरत प्रस्तुति के रूप में याद किया जायेगा। भोजपुरी भाषा का प्रभाव भी नाटक को सहयोगी बनाने में कामयाब रहा। यौन विकृति, सामंतवाद एवं सामाजिक प्रताड़ना को प्रस्तुत करता हुआ नाटक ‘नेटुआ’ में विद्याबाबू, झमना और नारायण मिश्र का अभिनय करने वाले नरेंद्र कुमार, दिलीप गुप्ता एवं राजेश बक्शी ने अपने बहुत ही खूबसूरत अभिनय के दम पर अपने किरदार को मंच पर जीवंत कर दिया। ‘नेटुआ’ की भूमिका में दिलीप गुप्ता ने नाटक के प्रारंभ से लेकर अंत तक लोगों को उस किरदार से इस तरह से जोड़ दिया जैसे यह घटना मंच पर नहीं उनके इर्द-गिर्द घटी रही हो। अन्य पात्रों की भूमिका निभाने वाले कलाकर थे-रामप्रताप-राज तंवर, सितिया-रुबीना सैफी, मास्स साहब एवं समाजी-अविनाश तिवारी, सत्रोहन एवं समाजी-ललित सिंह, समाजी-संदीप कुमार, समाजी-सुमन कुमार, समाजी-आकिब खान, समाजी-दीपक राणा। इसके अलावा मंच परे हारमोनियम-सचिन, नक्कारा-जमील खान, ढोलक-रवि भट्ट, डफ-प्रसून नारायण, गायन-अमरजी राय, गीत-महेन्दर मिश्र, सुधांशु फिरदौस, सहायक-आकिब खान, मंच सामग्री-ललित सिंह एवं सुमन कुमार, रूप सज्जा-मुकेश झा, वस्त्र परिकल्पना व नृत्य संचालन-यशस्विनी बोस, मंच व प्रकाश परिकल्पना-मुरली बासा एवं श्याम कुमार साहनी, संगीत सहायक-प्रसून नारायण, संगीत-सैंडी सिंह, प्रस्तुति प्रभारी-ललित एवं सुमन, प्रस्तुति प्रबंधक-यशस्विनी बॉस, लेखक-रतन वर्मा, निर्देशक, नाट्य रूपांतरण एवं परिकल्पना-दिलीप गुप्ता।
‘नेटुआ’ नाटक के बाद 13
जनवरी को सुरीले पल एक संगीत का कार्यक्रम रखा गया। जिसके अंतर्गत अलवर के सितारों
के माध्यम से नृत्य, गायन एवं वादन का कार्यक्रम था। जिसमें अलवर के
पं. चांद गिरधर चरण, प्रकाश नागर, सुधीर माथुर,
मम्मल
खां, कनीका जैन, शिल्पी यादव एवं अलवर के अंतरराष्ट्रीय
ख्याति प्राप्त भपंग वादक युसुफ खां एवं उनके ग्रुप आदि ने अपनी कलाओं के माध्यम
से लोगों को गीत-संगीत एवं नृत्य से सराबोर कर दिया।
14 जनवरी को ‘गालिब इन न्यू
दिल्ली’ नाटक प्रस्तुत किया गया। डॉ. सईद आलम द्वारा लिखित एवं निर्देशित ‘ग़ालिब
इन न्यू दिल्ली’ बहुचर्चित एवं बहुमंचित हास्य नाटक है। इस नाटक
के करीब 430 से अधिक सो अभी तक हो चुके हैं। ‘गालिब
इन न्यू दिल्ली’ नाटक एक ऐसी कल्पित कहानी है जिसमें ग़ालिब का
दूसरा जन्म दिखाया है। गालिब दिल्ली के अपने पुराने मकान के पते पर जाना चाहते हैं
तो इस बदली हुई दिल्ली, वातावरण एवं आधुनिक परिवेश में उन्हें क्या
क्या समस्याओं को सामना करना पड़ता है, यही इस नाटक का कथानक है। भाषा के साथ
साथ समसामयिक राजनीतिक, सामाजिक, पारिवारिक,
धार्मिक
एवं क्षेत्रवाद आदि विषयों पर हास्य के साथ साथ जबरदस्त कटाक्ष करता है यह नाटक।
पैसा, प्रतिष्ठा और खुशियों की चाह में क्या क्या परिवर्तन हो रहे हैं,
इन
सभी पक्षों पर बहुत गहरा कटाक्ष हास्य के साथ प्रस्तुत करता है नाटक ‘गालिब
इन न्यू दिल्ली’। हरियाणवी एवं भोजपुरी भाषाओं के संवाद नाटक
को जबरदस्त प्रभावी बनाने में कामयाब रहे। नाटक के पात्रों में मिर्जा गालिब की
भूमिका में स्वयं निर्देशक डॉ. एम. सईद आलम ने बहुत ही खूबसूरत अभिनय किया। शराबी
और बस कंडेक्टर की भूमिका से लोगों को प्रभावित किया हिमांशु श्रीवास्तव ने। अन्य
पात्रों में पानवाली-जसकिरण चोपड़ा, मिस. चड्ढा एवं अलका माथुर-नीति पुल,
जय
हिंद-अमान अंसारी, दिल्ली पुलिस और एडवर्टाइजमेंट व्यक्ति-मनीष
सिंह, ऑटो वाला-आर्यन प्रताप सिंह, तांगा वाला-जमीर बख्श, रिक्शावाला-पवनेश
कुमार।
14 जनवरी को ‘गालिब इन न्यू
दिल्ली’ नाटक के बाद 'एन इवनिंग इन म्यूजिक' प्रोग्राम रखा गया। इसमें भोपाल से पधारी
भारती विश्वनाथन ने बहुत ही खूबसूरत गजलें प्रस्तुत कीं। उसके बाद जयपुर से आए
सुदेश शर्मा जी ने बहुत खूबसूरत गीत प्रस्तुत किए। इस प्रकार इस पांच दिवसीय अलवर
रंग महोत्सव 2018 की सभी प्रस्तुतियां निश्चित रुप से अलवर के
लिए बहुत बड़ी सांस्कृतिक हलचल रही। इसी तरह की प्रस्तुतियां लगातार अलवर में होती
रहें, ऐसी आशा और उमीद रंग संस्कार थियेटर गु्रप एवं कारवां फाउंडेशन के
साथ-साथ अन्य थियेटर की संस्थाओं से भी है। कारवां फाउंडेशन के जिन कलाप्रेमी
साथियों की वजह से यह आयोजन हुआ वे हैं-अमित गोयल, संजय जैन,
डॉ.
जी.डी. मेहंदीरत्ता, अनिल कौशिक, अमित छाबड़ा,
नीरज
गर्ग, जुगल गांधी, देवेंद्र विजय, अनिल खंडेलवाल,
दिनेश
शर्मा, अभिषेक तनेजा एवं सुरेंद्र जैन आदि। इन सभी कला प्रेमियों के माध्यम
से एवं विशेष रुप से रंग संस्कार थियेटर गु्रप के देशराज मीणा के जुनून के कारण
अलवर रंग महोत्सव में लगातार देश के श्रेष्ठ नाटकों की तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम
की प्रस्तुति अलवर में आयोजित रही हैं। इन सभी को साधुवाद। साथ ही इस महोत्सव में
किसी भी प्रकार का सहयोग करने वाले अर्थात अपना तन, मन और धन खर्च
करने वाले सहयोगी मित्रों का एवं दर्शकों का बहुत बहुत धन्यवाद। इन सबकी जितनी
प्रशंसा की जाए उतनी कम है। क्योंकि ये सब वे सूत्र हैं जिनके माध्यम से हम सब
नाटकों की बेहतरीन प्र्रस्तुतियों तक पहुंच पाते हैं।
प्रस्तुति-डॉ. प्रदीप प्रसन्न
बढ़िया प्रदीप भाई।
ReplyDeleteधन्यवाद जी
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