रंगमंच एक ऐसी कला है जिसमें अनेक कलाओं का संगम आपको मिल जाएगा. विविध
कलाओं की इस विशिष्ट और अनोखी कला की सबसे बड़ी बात यह है कि यह आपको टीवी या
सिनेमा की तरह रिकॉर्ड नहीं बल्कि लाइव प्रस्तुति दिखाई देती है और 30 मिनट या उससे अधिक समय तक किसी
प्रस्तुति पर एक कलाकार या कलाकारों का समूह जब मंच पर सामूहिकता के साथ दर्शकों
के समक्ष प्रस्तुत होता है तो मात्र किसी किरदार में नहीं बल्कि उस सामूहिक रूप से
बैठे हुए दर्शकों के समक्ष जीवन के अनेक रंगों को प्रस्तुत करने की एक ऐसी कुशलता
के रूप में समक्ष होता है जो निश्चित रूप से आपको चमत्कृत भी करती है और जैसा आप
अपने समाज के इर्द-गिर्द देखते हैं वैसे ही पात्र आपको मंच पर दिखाई देते हैं.
जयपुर और दिल्ली के मध्य बसे हुए अलवर को यूँ तो एक सांस्कृतिक नगरी के रूप
में जाना जाता है. निश्चित रूप से महाराजा भर्तृहरि की तपोभूमि के रूप में भी अलवर
का एक विशिष्ट नाम है लेकिन अनेक समस्याओं की वजह से रंगमंच यहां पर उस गति को
नहीं प्राप्त कर पाया है जो सामान्य दूसरी जगह पर या शहरों में दिखाई देती है. फिर
भी कुछ युवा साथियों के सहयोग से गत 3 वर्षों से लगातार यह क्रम चल रहा है.
दिल्ली और जयपुर की निकटता के मध्य में बसे हुए इस शहर अलवर में छुपी हुई रंगकर्म
की विशिष्टता को जगाया जाए और लोगों को प्रेरणा के रूप में प्रेरित कर इससे
जुड़ा जाए इसी तरह का प्रयास कर रहे हैं ये लोग.
रंग संस्कार थिएटर ग्रुप एवं कारवां फाउंडेशन की ओर से आयोजित यह पांच
दिवसीय अलवर रंग महोत्सव निश्चित रूप से जनवरी माह की कड़कती ठंड में कलात्मक रूप
से एक गर्माहट का एहसास पैदा करेगा, ऐसी आशा ही नहीं पूरी उम्मीद है. देश
के श्रेष्ठ नाटकों का मंचन अलवर में गत 2 वर्षों से लगातार रंग संस्कार थिएटर
ग्रुप और कारवां फाउंडेशन के सहयोग से हो रहा है. देश ही नहीं पूरी दुनिया में
रंगमंच की दुनिया में चर्चित हस्तियां और ग्रुप्स के नाटक हैं उन्हें यहां पर अलवर
के दर्शकों के मध्य करवाने का प्रयास ये संस्थाएं कर रही हैं. निश्चित रूप से आज
की चकाचोंध भरी दुनिया में रंगमंच के सरोकार से लोगों को जोड़ने का यह प्रयास रंग
संस्कार थिएटर ग्रुप और कारवां फाउंडेशन दोनों का बहुत ही सराहनीय कार्य है.
10 जनवरी को थियटर एवं फिल्म अभिनेता जयंत गडकरे जी द्वारा लिखित, निर्देशित और अभिनीत एकल नाटक ‘पापा पेट का सवाल’ से अलवर रंग महोत्सव का आगाज किया गया.
इस नाटक के दो शो किए गए. पहली प्रस्तुति चिनार पब्लिक स्कूल में दिन में 12:30 बजे की गई और दूसरी प्रस्तुति साईं 6:30 बजे जय किशन क्लब में की गई. निश्चित
रुप से दोनों ही प्रस्तुतियां बहुत ही बेहतरीन रही.
इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में व्यक्ति अपने लिए समय ही नहीं निकाल पाता है
क्योंकि आधुनिक चकाचौंध भरी दुनिया ने हमारे लिए विकास का पैमाना सबसे तेज गति से
दौड़ने की रफ्तार के आधार पर तय कर दिया है. जिसके पास सबसे अधिक पैसा है, बड़ी गाड़ी है, प्रतिष्ठा है वह अत्यधिक आधुनिक तथा
श्रेष्ठ या बड़ा है. लेकिन इन सब के मध्यम परिवार, समाज और यहां तक कि स्वयं और देश तक को
भूल गए हैं. अपने लिए एवं अपनों के लिए समय जैसे कि गायब हो गया है.
इस तरह के अनेक सवाल उठाता है यह नाटक निश्चित रुप से जीवन के अनेक रंगों
से त हमे ले जाता है. निश्चित रूप से दर्शकों को मजबूर करता है यह सोचने के लिए कि
हम अपने और परिवार के बजाए बहुत सारी ऐसी चीजों पर पैसा खर्च कर देते हैं जो कई
बार अनुपयोगी सी लगती हैं. दर्शकों द्वारा दिए गई प्रतिक्रिया के आधार पर यह एहसास
होता है कि निश्चित रूप से नाटक से एक घंटे तक दर्शक ऐसे जुड़े रहे जैसे कि यह कोई
अन्य कहानी नहीं बल्कि उन्हीं की कहानी कोई मंच पर खड़ा हो कर के कह रहा है, उन्ही के समक्ष. ठहाकों के साथ साथ अंत
में नाटक आंखें नम कर मजबूर करता है सोचने के लिए की रिश्ते और परिवार के मध्य कहीं न कहीं संबंधों डोर टूट
रही है.
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