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Tuesday, February 6, 2018

This is the month of the phag, so say wah what is 2018 budget : यह फाग का महीना है इसलिए कहो वाह क्या बजट 2018 है

साल का फरवरी माह कई मामलों में बहुत विशिष्ट है. जैसे कि हर वर्ष इस माह में बसंत पंचमी आती है अर्थात एक नई आशा और उम्मीद की नई कोपल और किरणें में किसान ही नहीं पशु पक्षी और पेड़ पौधे तक हर्षोउल्लास से खिल उठते हैं और प्रकृति अपनी नवीनतम निधि के माध्यम से अपनी कोमल नव कोपलों के माध्यम से नए सृजन के संग्रह में जुट पड़ती है. नए गीतों की मधुर स्वर लहरी इस माह में हमें आभासित होने लगती है. युवा दिलों की धड़कन इस माह में विशिष्ट बढ़ जाती हैं. क्योंकि प्रेम का दिवस वैलेंटाइन डे इसी माह के मध्य में आता है. किसानों की फसलें भी लगभग पकने के कगार पर होती हैं. फागुन लगभग इस माह के प्रारंभ से ही लग जाता है. अर्थात होली की शुरुआत हो जाती है. लेकिन इसी माह में एक कार्य और भी होता है. बहुत प्रभाव डालता इन सब पर. बल्कि सबका आंकड़ा बिगाड़ देता है. सबकी गणित फ़ैल क्र देता है. चाहे वो किसान की फसल हो, प्रकृति का सौंदर्य हो, बसंत पंचमी के कार्यक्रम हो, प्रेमी युगल के मिलन का विशिष्ट कार्य हो या व्यापारिक लेखा जोखा हो, सबका ‘बजट’ बिगाड़ देता है इस माह में घोषित होने वाला ‘वितीय बजट’.

आप सभी जानते हैं कि सरकार द्वारा फरवरी में आगामी सत्र का बजट प्रस्तुत किया जाता है. इस बजट में लोगों को क्या-क्या मिलेगा, आगामी सत्र में इन सब की घोषणा की जाती है. क्या सस्ता हुआ, क्या महंगा हुआ, कौन सी नई योजना चलाई जाएगी, उन योजनाओं में कितना -कितना पैसा खर्च होगा तथा देश को उनसे क्या-क्या लाभ होंगे, किन-किन क्षेत्रों में युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवाए जायेंगे. इन तमाम मुद्दों पर खर्च होने वाले मद का ब्यौरा तथा पूरा विश्लेषण बजट के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या फरवरी माह के प्रारंभ में प्रस्तुत होने वाला यह बजट मैनिफेस्टो की तरह, जो सरकार सत्ता में होती है उसका आम जनता को अर्थात अपने वोटरों को आकर्षित करने का झुनझुना होता है या फिर पूरे साल में इस बजट के माध्यम से की गई घोषणाओं के आधार पर कार्य संपन्न होते हैं?

आप गौर कीजिए इन सभी मुद्दों के ऊपर तो निश्चित रूप से आप सोचेंगे, विचार करेंगे, कि हर वर्ष लोक लुभावने बजट के माध्यम से बहुत सारी घोषणाएं करती है सत्ता में रहने वाली सरकार. लेकिन वे घोषणाएं धीरे-धीरे उसी तरह से फुस हो जाती हैं जैसे किसी गुब्बारे में भरी हुई हवा फुस हो जाती है. लेकिन फिर सवाल यह खड़ा होता है कि यह बजट रूपी गुब्बारा बड़ी भव्यता, साज-सज्जा और रंग बिरंगे कलर के माध्यम से हर वर्ष कलर के त्योहार होली के पूर्व सरकार प्रस्तुत करती है परंतु धीरे-धीरे यह कलर सारे फीके पड़ जाते हैं. आम जनता का जीवन श्या और सफेद रह जाता है.
बसंत के माह में जिस तरह से नई  कोंपलों माध्यम से रंग बिरंगे उम्मीद के सपने वृक्षों की पत्तियों टहनियों से आभासित होते हैं. उसी तरह से इस समय आने वाली महाशिवरात्रि के पर्व पर अनेक लोग व्रतों का पालन करते हुए आशा और उम्मीद करते हैं और करवाते हैं की यह वर्ष निश्चित रूप से सभी के लिए बेहतर होगा. प्रेमी युगलों को भी यह आभास होता है कि अबकी बार उनका मीत उन्हें जरूर मिलेगा. इन्हीं तरह की आशाओं और उम्मीदों में बजट के माध्यम से किसान से लेकर व्यापारी वर्ग तक, विद्यार्थी से लेकर के सरकारी कर्मचारी तक सभी आशाएं और उम्मीद लगाते हैं की नई और बेहतर योजनाओं के माध्यम से देश का विकास होगा. आम जनता इस बसंत के महा में प्रस्तुत होने वाले बजट की नई प्रस्फुटित घोषणाओं से आनंदित होंगी और मधुर स्वर लहरियां इस बजट में घोषित होने वाली घोषणाओं की सुनाई देंगी. जिनसे कर्णप्रिय संगीत का आभास प्रकट होगा लेकिन आप और हम सब जानते हैं यह कर्णप्रिय संगीत धीरे-धीरे किस तरह से कर्ण कष्टदायक तथा अप्रिय लगने लगता है और अंत में आते आते तो यह इतना बेसुरा हो जाता है कि न इसमें गीत रहता है, न संगीत रहता है. बल्कि संसद सत्रों में होने वाली जूतमपैजार दिखाई देती है.
देश के गौरव का निर्माण करने वाली संसद में इस तरह के कार्य झंडे पर गर्व करने के लिए नहीं डंडे पर गर्व करने के लिए मजबूर करते हैं. वैचारिक रूप से हम जितने सुदृढ़ होते जा रहे हैं आचरण रूप से हम उतने ही निकृष्ट धीरे-धीरे बनते जा रहे हैं और इसका सबसे बड़ा कारण है हमारी भ्रष्ट राजनीति, भ्रष्ट तंत्र और समाज के भ्रष्ट लोग. जो इस तरह की अनैतिकता, असंगति, व्यभिचार या भ्रष्टाचार को विकसित करते हैं या करवाते हैं.

वित्तीय बजट से अक्सर देश की गरीब जनता को लोगों को तथा देश की उस माली हालत को मदद मिलने की उम्मीद होती है जो अनेक महकमों तथा क्षेत्रों में पिछड़ी हुई नजर आती है. लेकिन क्या सोचता है यह गरीब तबका, गरीब जनता गरीब तथा देश इस बजट के बारे में? क्या वास्तव में उसे मिल पाता है बजट में प्रस्तुत होने वाले लाभ का कोई हिस्सा या सिर्फ वह देखता रह जाता है एक उम्मीद भरे सपने के सच होने की तरह. किसान जिस तरह बादलों कि ओर उम्मीद लगाए देखता है बारिश के लिए, कि कब बारिश हो और कब उसकी फसल अच्छी हो. सरकारी भी ईश्वर की तरह आशाओं के पुल बांधकर बहुत इंतजार कराती है और फिर जल्दी ही ये आशा की किरणें निराशा में बदल जाती हैं.

इस गरीब तबके के बारे में क्या सोचते हैं मंत्री और सरकार आइए सत्र 2018 के बजट के माध्यम से एक व्यंगात्मक विश्लेषण लेते हैं. बजट 2018 में घोषणा की गई है की ग्रामीण क्षेत्रों में 5-5 लाख वाईफाई और हॉटस्पॉट बनाए जाएंगे और प्रसारित किए जाएंगे. डिजिटल इंडिया के तहत इस तरह की घोषणाएं चुनौती है या चेतावनी अभी तो पता नहीं. लेकिन कहीं न कहीं यह लगता है कि आज का युवक एक बार जमकर Facebook, WhatsApp, इंस्टाग्राम कि चैटिंग में ठीक से रंग जाए और इन्हीं के माध्यम से अपने विपरीत लिंगी की गोरी चमड़ी और नग्न जंगाओ ने उलझ कर रह जायेगा. और एक तरह से उसे प्राप्त करने का रोजगार मिल जायेगा तो वह जीवनयापन के लिए रोजगार की मांग खुद-ब-खुद बंद कर देगा और सरकार यही तो चाहती है कि उससे कुछ मांगा न जाए. यह प्रॉब्लम इस बजट २०१८  के माध्यम से खत्म होती हुई दिखाई देगी.
एक सवाल यह है कि बजट २०१८ में गरीबों के लिए अनेक तरह के लाभ की घोषणाए की हैं. लेकिन क्या है वह लाभ? क्या लगता है उन गरीबों को लाभ मिलेगा? लेकिन फिर एक सवाल उठता है कि ऐसा कौन सा बजट है, जब से देश आजाद हुआ है तब से उठाकर के इतिहास को देख लीजिए, हर बजट में गरीबों की लाभ की बात की जाती है. गरीबों के विकास की, उनकी उन्नति की बात की जाती है. सरकार चाहे जिस पार्टी की हो यही चाहती है कि गरीब उठे, उन्नति करें, गरीबी को त्यागे. लेकिन इस देश का गरीब ही बेवकूफ है. वह गरीबी से इस तरह से चिपका हुआ है जैसे बंदरिया अपने मरे हुए बच्चे से चिपकी रहती है. वह गरीबी छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं है. मंत्री जी कह रहे हैं -बताइए इसमें सरकार का क्या दोष है और फिर लोग कहेंगे कि सरकार गरीबों के लिए बजट में कुछ प्रावधान नहीं रखती. गरीब ही अब अपनी गरीबी में आनंद महसूस कर रहा है. उसे अपनी गरीबी में स्टारडम नजर आ रहा है. यदि वह अमीर हो गया, आधुनिक हो गया, अंग्रेजी बोलने लग गया तो फिर कौन बनाएगा उन पर ‘पीपली लाइव’ या ‘हिंदी मीडियम’ जैसी फिल्में. उनका महत्व कहां रह जाएगा.

दूसरा सवाल यह है कि सरकार यह भी मानती है की देश में सभी लोग गरीब हैं. हो सकता है आपको यह अटपटा भी लगे. लेकिन दिक्कत यह है कि गरीब कौन नहीं है. Maruti 800 कार वाला स्कार्पिओ वाले  के सामने गरीब है. मोटरसाइकिल वाला Maruti 800 कार वाले के सामने गरीब है. बाजरे की रोटी खाने वाला मैकडोनाल्ड का बर्गर और पिज्जा खाने वाले के सामने गरीब है. स्वामीनारायण मंदिर गुजरात का भिखारी अमेरिका में बने स्वामीनारायण मंदिर के भिखारी के सामने गरीब है.
हमारे वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि अब धीरे-धीरे गरीबी दूर हो रही है. हमारी सरकार लगातार प्रयास कर रही है. हमें सत्ता में रहे बहुत कम समय हुआ है. हम लोग गरीबी दूर करने का प्रयत्न कर रहे हैं. मुझे लगता है वित्त मंत्री जी सही कह रहे हैं. गरीबी धीरे-धीरे दूर हो रही है. जिन नेताओं की कारें पहले रिजर्व में चलती थी और पेट्रोल भरवाने की समस्या होती थी उनके खुद के अब 4-5 पम्प हैं. जिन नेताओं के पास रहने के लिए एक या दो मकान थे उनके शहर में १०- १० फ्लैट हैं. कई एकड़ जमीन है. लेकिन ये लोग फिर भी गरीब है. क्योंकि कई सौ एकड जमीन चाहते हैं और हर शहर में 10- 10 फ़्लैट चाहते हैं. नोटबंदी के प्रभाव वाले लोग बेचारे गरीब है. उसकी मार से शेयर बाजार से लुट कर के बैठे लोग गरीब हैं. जीएसटी वाले तो बहुत गरीब हैं.

वित्त मंत्री जी से एक सवाल यह पूछा गया कि इस वर्ष किसानों के लिए इस बजट में क्या-क्या योजनाएं हैं? तो उन्होंने कहा- देखिए खेती के लिए यूं तो हमने बहुत योजनाएं तय की थी. लेकिन अब धीरे-धीरे हमें महसूस होने लगा है की खेती से लोगों का ध्यान धीरे-धीरे हटने लगा है. आप आंकड़े उठा करके देख लीजिए. आपने 50 के दशक की फिल्में एवं उनकी हीरोइनों की स्टोरियां पढ़ी होंगी. उस समय वैजयंती माला, मीना कुमारी, नरगिस,  मधुबाला ये  सारी अदाकारा- नया दौर, मेरा गांव मेरा देश, पूरब पश्चिम, दो बीघा जमीन इस तरह की फिल्मों में हीरो के साथ साथ खेती करने का  काम करती थी और खेती के काम में हीरो के साथ हाथ बंटाती थी. यानी कि उस समय की हीरोइनों में और लोगों में खेती के प्रति रुचि थी. अब धीरे-धीरे खेती किसानी के प्रति सुंदरियों की रुचि घट रही है. इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. अब हम कुछ नई योजनाओं  के बारे में सोच रहे हैं. जिनके नाम कुछ ऐसे हो सकते हैं –‘कैटरीना कैफ कृषि प्रोत्साहन योजना’, ‘सनी लियोन बागवानी परियोजना’, ‘आलिया भट्ट किसान प्रोजेक्ट’. इन सब के माध्यम से खेती किसानी में सब्सिडी दी जाएगी. सनी लियोन, कैटरीना कैफ के चक्कर में बहुत सारे युवक खेटी किसानी के आएंगे कार्य में सहयोग करेंगे और आगे आयेंगे. इससे  देश का तथा खेती  किसानी का विकास होगा.
हमें कटघरे से बाहर निकलकर सोचने की आवश्यकता है. हमारी सरकार ‘श्रद्धा कपूर कृषक योजना’ बनाने के बारे में सोच रही है एवं ‘दीपिका पादुकोण मजदूर संगठन’ पर भी जल्दी ही काम करेगी. जिससे कि लोग इनकी ओर आकर्षित होंगे. साफ सफाई का ध्यान रखते हुए पूरे देश को उन्नत  और विकसित करने में सरकार का विशेष कोई मुद्दा रह जाएगा तो आप हमें अगले 5 साल और दीजिए. हम वादा करते हैं अगले बजट में इन सभी समस्याओं को, जो आपको अभी नजर आ रही हैं, संभवत यदि वे रहेंगी तो (वैसे ये समस्याएं रहेंगी ही) हम इन सब को समाप्त कर देंगे. बजट २०१८ पर इससे अधिक एक मंत्री से और क्या घोषणा करवाओगे. आखिर हमें भी आगे जवाब देना होता है. अभी हम एक बहुत लम्बी, लगभग 1.50 किलोमीटर लम्बी पैदल यात्रा में जायेंगे. एक मंत्री इतनी लम्बी यात्रा करेगा, वह भी पैदल, कितनी बड़ी बात है. जहाँ से यात्रा प्रारम्भ होगी वह स्थान यहाँ से 100 मीटर  दूर है, इसलिए हमारी मर्सिडीज निकालो. हम इतनी दूर तक पैदल नहीं चल सकते.  जय हिन्द, जय भारत. 

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