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Friday, January 20, 2012

poem : अनुभव


अभी तो मै जवान हूँ 
इसलिये कह रहा हूँ 
वरना
 आपकी तरह 
 मैं  भी 
 कर लूंगा समझोता
जिससे  किया है आपने ,
उन्होंने, इन्होने .
जिंदा  रहने के लिए 
पर्याप्त ही नहीं  है 
सिर्फ पेट का भरना ,
वो ज़िंदा  रहने के लिए 
भरते हैं  कुछ और भी, 
सब
 सबसे कहने की
 हिम्मत  नहीं रखते, 
मैं
इसलिए आपसे
 नहीं कह राह हूँ 
क्योंकि
 सब सबसे
 सुनने की  हिम्मत  नहीं रखते,
माँ ने नहीं बताया था 
मुझे चक्रव्यूह को तोड़ने  का
मार्ग 
मै कौशिश भी नहीं करूँ 
यह भी तो नहीं बताया था 
माँ ने, 
मैंने बहूत ज्यादा कभी सोचा नहीं ,
इसलिए नहीं के फुर्सत नहीं मिली 
बल्की इसलिए भी नहीं
 की  जरूरत नहीं पडी 
बल्की इसलिए  भी नहीं
 की 
मैं अभावों मैं नहीं  पला 
बल्की इसलिए 
क्योंकी
 पुरानों  ने हमेशा
 यह एहसास दिलाया है 
की वे  अनुभवी हैं 
और
 अनुभव  के आधार पर 
गमले   के पौधे  की 
तुलना मे
 वट वृक्ष   
ज्यादा छायां देता है 
इस ज्यादा  छायां
 की  उम्मीद में
 मैं बैठा बैठा
 देख रहा हूँ 
वट वृक्ष की टहनियां  
कम होती जा रहीं हैं


प्रदीप प्रसन्न  

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