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Saturday, May 12, 2012

How many sades of truth : सत्य तेरे कितने रूप

 सत्य तेरे कितने रूप
  आमिर खान द्वारा निर्मित कार्यक्रम  सत्य मेव जयते प्रथम शो के प्रदर्शन से ही बहु चर्चित हो गया |(कर दिया गया)
तमाम चैनल, अखबार,पत्र-पत्रिकाओं, ट्यूटर, कम्पूटर, फेसबुक आदि पर एक ही खबर, ‘आमिर का सत्य मेव जयते बहु संख्यकों द्वारा सराहा गया’ | सामजिक क्षेत्र में कन्याभ्रूण के कम होते लिंगानुपात पर आधारित कार्यक्रम सत्य मेव जयते बहुत ही ज्यादा हिट हुआ |
मूल प्रश्न है इस कार्यक्रम के हिट होने का ? क्या यह समस्या पहली बार उद्घाटित हुई है ?क्या यह समस्या नई है ? क्या इस समस्या से आज से पूर्व भारतीय समाज व यहाँ के लोग अनभिज्ञ थे ?क्या आम लोगों में इतनी चेतना आ गई है कि वे समाज व महिलाओं के प्रति बहुत सजग व सचेत हो गए हैं ? या इन सब से अलग भी कोई कारण है ? जैसे आमिर खान जैसे प्रतिष्ठित फिल्म अदाकार द्वारा यह कार्यक्रम प्रस्तुत करना ? या आमिर द्वारा साफ़ व संदेशात्मक फिल्मो की छवि के कारण सब के द्वारा  बिना सोचे समझे प्रशंसा करना या एक दूसरे को देखकर भेड़ चाल चलना ?
इससे भी आगे एक प्रश्न यह है की आज से पूर्व भी कन्या भ्रूण के घटते लिंगानुपात पर भारत के अलग अलग क्षेत्रों में भिन्न भिन्न माध्यमों से व भिन्न भिन्न लोगों द्वारा इस समस्या पर वास्तविक रूप से कार्य किया जा चुका है व समाज तथा सरकार के समक्ष रखा जा चुका है | परन्तु इस कार्यक्रम से पूर्व तो सरकार भी व आम लोग भी कुंभकर्ण की नींद ही ले रहे थे |
दूसरी बात माना यह कार्यक्रम बहुत अच्छा है |आमिर खान द्वारा समाज की एक बड़ी व ज्वलंत समस्या को उद्घाटित किया गया है, तो अब इस समस्या पर सकारात्मक रूप से कार्य कितने लोग करेगें ? क्या वे सब लोग जिन्होंने इस कार्यक्रम को देखा व प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से इस कार्यक्रम को सराहा ,वे सभी सिर्फ स्वयं और स्वयं के परिवार में आज के बाद भ्रूण का लिंग परीक्षण व कन्या भ्रूण का गर्भ पात नहीं करवायेंगें ? कार्यकर्म व दर्शक श्रोताओं की असली प्रशंसा का परिणाम तो तभी सार्थक होगा जब ऐसा वास्तविक रूप से हो |
परन्तु होगा नहीं |वजह हमारी मानसिकता में इस तरह की तमाम बातें ऐसे घर कर गई है कि जब भी अपने उपर बात आती है तो हम,  बगलें झाँकने लगते हैं | सारे आदर्श ,नियम, कानून व संविधान –ताक  में रखे रह जाते हैं |
 यंहा सिर्फ आलोचना करने के निमित नहीं कहा जा रह है बल्कि यह भारतीय लोगों की मानसिकता का व दृश्य है जिसे हम गत कई सदियों से देखते आ रहें हैं और ज्यों ज्यों ज्यादा शिक्षित, विकसित, आधुनिक हुयें हैं –त्यों त्यों उस विक्षिप्त मानसिकता का अनुपात बढ़ा ही है घटा नहीं | क्योंकि सत्य मेव जयते सही है सिर्फ और सिर्फ पुस्तकों में |

प्रदीप प्रसन्न
  

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