अलंकार
अलंकार सम्पूर्ण परिचय
आज हम काव्यशास्त्र
के अंतर्गत अलंकार
पढेंगे। परीक्षा के लिए उपयोगी
उदाहरण भी अच्छे से जानेंगे साथ
ही वीडियो के अंत में या अलंकार
से संबंधित एक अलग वीडियो
आपके लिए परीक्षापयोगी महत्त्वपूर्ण
वस्तुनिष्ठ प्रश्न -उत्तर की भी
तैयार की जायेगी।
अलंकार का अर्थ एवं परिभाषा-
अलंकार शब्द दो शब्दों के योग से
मिलकर बना है- ‘अलम्’ एवं ‘कार’,
जिसका अर्थ है- आभूषण या
विभूषित
करने वाला। काव्य की शोभा बढ़ाने
वाले तत्व को अलंकार कहते हैं।
दूसरे शब्दों में जिन उपकरणों या
शैलियों से काव्य की सुंदरता बढ़ती
है, उसे अलंकार कहते हैं।
अलंकारों की निम्न विशेषताएँ होती
हैं
अलंकार काव्य सौन्दर्य का मूल है।
अलंकारों का मूल वक्रोक्ति या
अतिशयोक्ति है।
अलंकार और अलंकार्य में कोई भेद
नहीं है।
अलंकार काव्य का शोभाधायक धर्म
है।
अलंकार काव्य का सहायक तत्त्व
है।
स्वभावोक्ति न तो अलंकार है तथा न
ही काव्य है अपितु वह केवल वार्ता
है।
ध्वनि, रस, संधियों, वृत्तियों, गुणों,
रीतियों को भी अलंकार नाम से
पुकारा जा सकता है।
अलंकार रहित उक्ति श्रृंगाररहिता
विधवा के समान है।
अलंकार के प्रकार-
अलंकार तीन प्रकार के होते हैं।
ष्1. षब्दालंकार
2. अर्थालंकार
3. उभयलंकार
1. शब्दालंकार-
जहाँ शब्दों के कारण काव्य की
शोभा बढ़ती है, वहाँ शब्दालंकार
होता है। इसके अंतर्गत
अनुप्रास, यमक, श्लेष और
पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार आते हैं।
2. अर्थालंकार-
जहाँ अर्थ के कारण काव्य की शोभा
में वृध्दि होती है, वहाँ अर्थालंकार
होता है। इसके अंतर्गत
उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अतिशयोक्ति,
अन्योक्ति, अपन्हुति, विरोधाभास आदि
अलंकार शामिल हैं।
3. उभयालंकार
जहाँ अर्थ और शब्द दोनों के कारण
काव्य की शोभा में वृध्दि हो,
उभयालंकार होता है। इसके दो
भेद हैं-
1. संकर 2. संसृष्टि
शब्दालंकार के प्रकार-
1.अनुप्रास अलंकार-
जहाँ काव्य में किसी वर्ण की आवृत्ति
एक से अधिक बार होती है, वहाँ
अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण-
”तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर
बहु छाए।”
यहाँ पर ‘त’ वर्ण की आवृत्ति एक से
अधिक बार हुई है। इसी प्रकार
अन्य उदाहरण निम्नांकित हैं-
‘चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल
रही हैं जल-थल में।’
यहाँ पर ‘च’ वर्ण की आवृत्ति एक से
अधिक बार हुई है।
‘बंदउँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।।’
यहाँ पर ‘स’ वर्ण की आवृत्ति एक से
अधिक बार हुआ है।
‘रघुपति राघव राजा राम।
पतित पावन सीताराम।।’
यहाँ पर ‘र‘ वर्ण की आवृत्ति चार
बार एवं ‘प‘ वर्ण की आवृत्ति एक
से अधिक बार हुई है।
अतः यहां अनुप्रास अलंकार है।
2. यमक अलंकार-
जिस काव्य में एक शब्द एक से
अधिक बार आए किन्तु उसके अर्थ
अलग-अलग हों, वहाँ यमक
अलंकार होता है।
उदाहरण-
‘कनक कनक ते सौ गुनी मादकता
अधिकाय।
या खाए बौरात नर या पाए
बौराय।।’
इस पद में ‘कनक’ शब्द की आवृत्ति
दो बार हुई है। पहले ‘कनक’ का
अर्थ ‘सोना’ तथा दूसरे ‘कनक’ का
अर्थ ‘धतूरा’ है। अतः यहां यमक
अलंकार है।
अन्य उदाहरण-
‘माला फेरत जुग गया, फिरा न मन
का फेर।
कर का मनका डारि दे, मन का
मनका फेर।।’
इस पद में ‘मनका‘ शब्द की आवृत्ति
दो बार हुई है। पहले ‘मनका‘ का
अर्थ ‘माला की गुरिया या माला का
मनका है।‘ तथा दूसरे
‘मनका‘ का अर्थ ‘मन’ है।
‘ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं।’
इस पद में ‘घोर मंदर‘ शब्द की
आवृत्ति दो बार हुई है। पहले ‘घोर
मंदर‘ का अर्थ ‘ऊँचे महल‘ तथा
दूसरे ‘घोर मंदर‘ का अर्थ ‘कंदराओं
से‘ है।
‘कंद मूल भोग करैं कंदमूल भोग
करैं,
तीन बेर खाती ते बे तीन बेर खाती
हैं।’
इस पद में ‘कंदमूल‘ और ‘बेर’ शब्द
की आवृत्ति दो बार हुई है। पहले
‘कंदमूल‘ का अर्थ ‘फलों से’ है तथा
दूसरे ‘कंदमूल‘ का अर्थ ‘जंगलों में
पाई जाने वाली जड़ियों से‘ है। इसी
प्रकार पहले ‘तीन बेर’ से आशय
तीन बार से है तथा दूसरे ‘तीन बेर’
से आशय मात्र तीन बेर (एक
प्रकार का फल) से है ।
‘भूषण शिथिल अंग,
भूषण शिथिल अंग,
बिजन डोलाती ते बे
बिजन डोलाती हैं।’
‘तो पर वारों उर बसी,
सुन राधिके सुजान।
तू मोहन के उर बसी,
ह्वै उरबसी समान।।’
‘देह धरे का गुन यही,
देह देह कछु देह,
बहुरि न देही पाइए,
अबकी देह सुदेह।’
‘मूरति मधुर मनोहर देखी।
भयउ विदेह-विदेह विसेखी।।’
’’सारंग ले सारंग उड्यो,
सारंग पुग्यो आय।
जे सारंग सारंग कहे,
मुख को सारंग जाय।।’’
3. श्लेष अलंकार-
श्लेष का अर्थ- चिपका हुआ। किसी
काव्य में प्रयुक्त होनें वाले किसी एक
शब्द के एक से अधिक अर्थ हों,
उसे श्लेष अलंकार कहते हैं। इसके
दो भेद हैं- शब्द श्लेष और अर्थ
श्लेष।
शब्द श्लेष- जहाँ एक शब्द के
अनेक अर्थ होते हैं, वहाँ शब्द श्लेष
होता है। जैसे-
‘रहिमन पानी राखिए,
बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे,
मोती, मानुस, चून।।’
यहाँ दूसरी पंक्ति में ‘पानी’
शब्द तीन अर्थों में प्रयुक्त हुआ है।
मोती के अर्थ में- चमक, मनुष्य के
अर्थ में-सम्मान या प्रतिष्ठा तथा चून
के अर्थ में-जल।
अर्थ श्लेष- जहाँ एकार्थक शब्द से
प्रसंगानुसार एक से अधिक अर्थ
होते हैं, वहाँ अर्थ श्लेष अलंकार
होता है।
जैसे-नर की अरु नल-नीर की
गति एकै कर जोय
जेतो नीचो ह्वै चले, तेतो ऊँचो
होय।।
इसमें दूसरी पंक्ति में ‘नीचो ह्वै चले’
और ‘ऊँचो होय’ शब्द सामान्यतः
एक अर्थ का बोध कराते है, किन्तु
नर और नलनीर के प्रसंग में भिन्न
अर्थ की प्रतीत कराते हैं।
‘जो रहीम गति दीप की,
कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो करे,
बढ़ै अंधेरो होय।’
यहाँ बारे का अर्थ ‘लड़कपन’ और
‘जलाने से है और ’बढे’ का अर्थ
‘बड़ा होने’ और ‘बुझ जाने’ से है
‘‘चरण धरत चिन्ता करत
भावत नींद न सोर।
सुबरण को ढूँढ़त फिरै,
कवि कामी अरु चोर।।’’
4. प्रश्न अलंकार-
जहाँ काव्य में प्रश्न किया जाता है,
वहाँ प्रश्न अलंकार होता है। जैसे-
जीवन क्या है? निर्झर है।
मस्ती ही इसका पानी है।
5.वीप्सा अलंकार या पुनरुक्ति प्रकाश
अलंकार-
घबराहट, आश्चर्य, घृणा या रोचकता
आदि को प्रकट करने के लिए
किसी शब्द को काव्य में दोहराना
ही वीप्सा या पुनरुक्ति प्रकाश
अलंकार है।
उदाहरण-
‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।
विहग-विहग
फिर चहक उठे ये पुंज-पुंज
कल- कूजित कर उर का निकुंज
चिर सुभग-सुभग।
लहरों के घूँघट से झुक-झुक,
दशमी शशि निज तिर्यक मुख,
दिखलाता, मुग्धा-सा रुक-रुक।
अर्थालंकार-
1. उपमा अलंकार-
काव्य में जब दो भिन्न वस्तुओं में
समान गुण धर्म के कारण तुलना या
समानता की जाती है, तब वहाँ
उपमा अलंकार होता है।
उपमा के अंग-
उपमा के 4 अंग हैं।
1 उपमेय- जिसकी तुलना की जाय
या उपमा दी जाय। जैसे-
‘मुख चन्द्रमा के समान सुंदर है।’
इस उदाहरण में मुख उपमेय है।
2 उपमान- जिससे तुलना की जाय
या जिससे उपमा दी जाय। उपर्युक्त
उदाहरण में चन्द्रमा उपमान है।
3 साधारण धर्म- उपमेय और
उपमान में विद्यमान समान गुण या
प्रकृति को साधारण धर्म कहते हैं।
ऊपर दिए गए उदाहरण में ‘सुंदर‘
साधारण धर्म है जो उपमेय और
उपमान दोनों में मौजूद है।
4 वाचक षब्द-समानता बताने वाले
शब्द को वाचक शब्द कहते हैं।
ऊपर दिए गए उदाहरण में वाचक
शब्द ‘समान’ है। (सा, सरिस, सी,
इव, समान, जैसे, जैसा, जैसी आदि
वाचक शब्द हैं)
उल्लेखनीय- जहाँ उपमा के चारों
अंग उपस्थित होते हैं, वहाँ पूर्णाेपमा
अलंकार होता है। जब उपमा के
एक या एक से अधिक अंग लुप्त
होते हैं, तब लुप्तोपमा अलंकार होता
है।
उपमा के उदाहरण-
1. पीपर पात सरिस मन डोला।
2. राधा जैसी सदय-हृदया विश्व
प्रेमानुरक्ता ।
3. माँ के उर पर शिशु -सा,
समीप सोया धारा में एक द्वीप।
4. सिन्धु सा विस्तृत है अथाह,
एक निर्वासित का उत्साह
5. ”चरण कमल -सम कोमल”
2. रूपक अलंकार-
जब उपमेय में उपमान का निषेध
रहित आरोप करते हैं, तब रूपक
अलंकार होता है। दूसरे शब्दों में
जब उपमेय और उपमान में
अभिन्नता या अभेद दिखाते हैं, तब
रूपक अलंकार होता है।
उदाहरण-
चरण-कमल बंदउँ हरिराई।
राम कृपा भव-निशा सिरानी
बंदउँ गुरुपद पदुम- परागा।
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।।
चरण सरोज पखारन लागा
‘‘उदित उदयगिरि मंच पर,
रघुवर बाल-पतंग।
बिकसे संत सरोज सब,
हरषे लोचन-भृंग।।’’
‘‘बीती विभावरी जाग री।
अम्बर-पनघट में डूबो रही
तारा-घट उषा नागरी।।’’
‘‘नारि-कुमुदिनी अवध सर
रघुवर विरह दिनेश।
अस्त भये प्रमुदित भई,
निरखि राम राकेश।।’’
3. उत्प्रेक्षा अलंकार-
जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना
की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार
होता है। उत्प्रेक्षा के लक्षण- मनहु,
मानो, जनु, जानो, ज्यों, जान आदि
षब्द होते हैं। उदाहरण-
दादुर धुनि चहु दिशा सुहाई।
वेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई।।
मेरे जान पौनों सीरी
ठौर कौ पकरि कौनों,
घरी एक बैठि कहूँ
घामैं बितवत हैं।
मानो तरु भी झूम रहे हैं,
मंद पवन के झोकों से’
4. अतिशयोक्ति अलंकार-
काव्य में जहाँ किसी बात को बढ़ा
चढ़ा के कहा जाए, वहाँ अतिशयोक्ति
अलंकार होता है। उदाहरण-
‘हनुमान की पूँछ में,
लग न पायी आग।
लंका सगरी जल गई,
गए निशाचर भाग।।’
‘आगे नदिया पड़ी अपार,
घोडा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार,
तब तक चेतक था उस पार।।’
‘देखि सुदामा की दीन दसा,
करुना करिकै करणानिधि रोए।
पानी परात को हाथ छुयौ नहिं,
नैनन के जल सों पग धोए।’
5. अन्योक्ति अलंकार-
जहाँ उपमान के बहाने उपमेय का
वर्णन किया जाय या कोई बात सीधे
न कहकर किसी के सहारे की जाय,
वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है।
जैसे-
‘नहिं पराग नहिं मधुर मधु,
नहिं विकास इहिकाल।
अली कली ही सौं बंध्यो,
आगे कौन हवाल।।’
इहिं आस अटक्यो रहत,
अली गुलाब के मूल।
अइहैं फेरि बसंत रितु,
इन डारन के मूल।।’
‘माली आवत देखकर
कलियन करी पुकार।
फूले-फूले चुन लिए,
काल्हि हमारी बार।।
6. अपन्हुति अलंकार
अपन्हुति का अर्थ है छिपाना या
निषेध करना। काव्य में जहाँ उपमेय
को निषेध कर उपमान का आरोप
किया जाता है, वहाँ अपन्हुति
अलंकार होता है। उदाहरण-
‘यह चेहरा नहीं
गुलाब का ताजा फूल है।
नये सरोज, उरोजन थे,
मंजुमीन, नहिं नैन।
कलित कलाधर, बदन नहिं
मदनबान, नहिं सैन।।
सत्य कहहूँ हौं दीन दयाला।
बंधु न होय मोर यह काला।।
7. व्यतिरेक अलंकार-
जब काव्य में उपमान की अपेक्षा
उपमेय को बहुत बढ़ा चढ़ा कर
वर्णन किया जाता है, वहाँ व्यतिरेक
अलंकार होता है। जैसे-
जिनके जस प्रताप के आगे ।
ससि मलिन रवि सीतल लागे।
8. संदेह अलंकार-
जब उपमेय में उपमान का संशय हो
तब संदेह अलंकार होता है। या
जहाँ रूप, रंग या गुण की समानता
के कारण किसी वस्तु को देखकर
यह निश्चित न हो कि वही वस्तु
है और यह संदेह अंत तक बना
रहता है, वहाँ सन्देह अलंकार होता
है। उदाहरण-
‘कहूँ मानवी यदि मैं तुमको
तो ऐसा संकोच कहाँ?
कहूँ दानवी तो उसमें है
यह लावण्य की लोच कहाँ?
वन देवी समझूँ तो वह
तो होती है भोली-भाली।।
विरह है या वरदान है।
सारी बिच नारी है कि
नारी बिच सारी है।
कि सारी ही की नारी है
कि नारी ही की सारी है।
कहहिं सप्रेम एक-एक पाहीं।
राम-लखन सखि होहिं की नाहीं।।
9. विरोधाभास अलंकार-
जहाँ बाहर से विरोध दिखाई दे
किन्तु वास्तव में विरोध न हो।
जैसे-
‘ना खुदा ही मिला
ना बिसाले सनम।
ना इधर के रहे
ना उधर के रहे।।
जब से है आँख लगी
तबसे न आँख लगी।
या अनुरागी चित्त की,
गति समझे नहिं कोय।
ज्यों-ज्यों बूड़े स्याम रंग,
त्यों-त्यों उज्ज्वल होय।।
सरस्वती के भंडार की
बड़ी अपूरब बात।
ज्यों खरचौ त्यों-त्यों बढे,
बिन खरचे घट जात।
शीतल ज्वाला जलती है,
ईंधन होता दृग जल का।
यह व्यर्थ साँस चल-चलकर,
करती है काम अनिल का।
10. वक्रोक्ति अलंकार-
जहाँ किसी उक्ति का अर्थ जान
बूझकर वक्ता के अभिप्राय से अलग
लिया जाता है, वहाँ वक्रोक्ति
अलंकार होता है। उदाहरण-
‘कौ तुम? हैं घनश्याम हम।
तो बरसों कित जाई।
मैं सुकमारि नाथ बन जोगू।
तुमहिं उचित तप मो कहँ भोगू।।
इसके दो भेद हैं-
(1) श्लेष वक्रोक्ति
(2) काकु वक्रोक्ति
(1) श्लेष वक्रोक्ति- जहाँ शब्द के
श्लेषार्थ के द्वारा श्रोता वक्ता के
कथन से भिन्न अर्थ अपनी रुचि या
परिस्थिति के अनुकूल अर्थ ग्रहण
करता है, उसे श्लेष वक्रोक्ति
अलंकार कहते हैं।
जैसे- एक कबूतर देख हाथ में
पूछा, कहाँ अपर है?
उसने कहा, अपर कैसा? वह तो
उड़ गया सपर है।।
नूरजहाँ से जहाँगीर ने पूछा कि
‘अपर’ अर्थात दूसरा कबूतर कहाँ
है? नूरजहाँ ने ‘अपर’ का अर्थ
लगाया- पर (पंख) से हीन और
उत्तर दिया कि वह पर-हीन नहीं
था, बल्कि परवाला था, इसलिए तो
उड़ गया। यहाँ वक्ता के अभिप्राय से
बिल्कुल भित्र अभिप्राय श्रोता के
उत्तर में है।
श्लेष वक्रोक्ति दो प्रकार के होते हैं-
(1) भंगपद श्लेषवक्रोक्ति
(2) अभंगपद श्लेषवक्रोक्ति
(1) भंगपद श्लेषवक्रोक्ति का
उदाहरण इस प्रकार है-
प्रश्र- अयि गौरवशालिनी, मानिनि,
आज सुधास्मित क्यों बरसाती नहीं?
उत्तर- निज कामिनी को प्रिय, गौ,
अवशा, अलिनी भी कभी कहि जाती
कहीं ?
यहाँ नायिका को नायक ने
गौरवशालिनी कहकर मनाना चाहा
है। नायिका नायक से इतनी तंग
और चिढ़ी थी कि अपने प्रति इस
गौरवशालिनी सम्बोधन से चिढ़ गयी;
क्योंकि नायक ने उसे एक नायिका
का गौरव देने के बजाय गौ
(सीधी-सादी गाय, जिसे जब चाहो
चुमकारकर मतलब गाँठ लो),
अवशा (लाचार), अलिनी (यों ही
मँडरानेवाली मधुपी) समझकर
लगातार तिरस्कृत किया था।
नायिका ने नायक के प्रश्र का उत्तर
न देकर प्रकारान्तर से वक्रोक्ति या
टेढ़े ढंग की उक्ति से यह कहा,
हाँ, तुम तो मुझे गौरवशालिनी ही
समझते हो ! अर्थात,
गौः$अवशा$अलिनी=गौरवशालिनी।
जब यही समझते हो, तो तुम्हारा
मुझे गौरवशालिनी कहकर पुकारना
मेरे लिए कोई अर्थ नहीं रखता-
नायिका के उत्तर में यही दूसरा अर्थ
वक्रता से छिपा हुआ है, जिसे
नायक को अवश्य समझना पड़ा
होगा। कहा कुछ जाय और
समझनेवाले उसका अर्थ कुछ ग्रहण
करें- इस नाते यह वक्रोक्ति है। इस
वक्रोक्ति को प्रकट करनेवाले पद
गौरवशालिनी में दो अर्थ (एक हे
गौरवशालिनी और दूसरा गौः,
अवशा, अलिनी) श्लिष्ट होने के
कारण यह श्लेषवक्रोक्ति है। और,
इस गौरवशालिनी पद को
गौः$अवशा$अलिनी में तोड़कर
दूसरा श्लिष्ट अर्थ लेने के कारण
यहाँ भंगपद श्लेषवक्रोक्ति अलंकार
है।
(2) अभंगपद श्लेषवक्रोक्ति का
उदाहरण इस प्रकार है-
एक कबूतर देख हाथ में पूछा,
कहाँ अपर है?
उसने कहा, अपर कैसा?
वह उड़ गया, सपर है।
यहाँ जहाँगीर ने नूरजहाँ से
पूछा-एक ही कबूतर तुम्हारे पास है,
अपर (दूसरा) कहाँ गया! नूरजहाँ
ने दूसरे कबूतर को भी उड़ाते हुए
कहा- अपर (बे-पर) कैसा, वह तो
इसी कबूतर की तरह सपर (पर
वाला) था, सो उड़ गया।
अपने प्यारे कबूतर के उड़ जाने पर
जहाँगीर की चिन्ता का मख़ौल
नूरजहाँ ने उसके अपर (दूसरे)
कबूतर को अपर (बे-पर) के
बजाय सपर (परवाला) सिद्ध कर
वक्रोक्ति के द्वारा उड़ाया। यहाँ
अपर शब्द को बिना तोड़े ही
दूसरा और बेपरवाला दो अर्थ
लगने से अभंगश्लेष हुआ।
(2)काकु वक्रोक्ति- जहाँ किसी
कथन का कण्ठ की ध्वनि के कारण
दूसरा अर्थ निकलता है, उसे काकु
वक्रोक्ति अलंकार कहते हैं।
कण्ठध्वनि की विशेषता से अन्य अर्थ
कल्पित हो जाना ही काकु वक्रोक्ति
है।
यहाँ अर्थ परिवर्तन मात्र कण्ठध्वनि
के कारण होता है, शब्द के कारण
नहीं। अतः यह अर्थालंकार है।
किन्तु मम्मट ने इसे कथन-शैली के
कारण शब्दालंकार माना है।
काकु वक्रोक्ति का उदाहरण है-
कह अंगद सलज्ज जग माहीं।
रावण तोहि समान कोउ नाहीं।
कह कपि धर्मसीलता तोरी।
हमहुँ सुनी कृत परतिय चोरी।।
-तुलसीदास
रामचरितमानस के
रावण-अंगद-संवाद में काकु
वक्रोक्ति देखी जा सकती है।
वक्रोक्ति और श्लेष में भेद- दोनों में
अर्थ में चमत्कार दिखलाया जाता
है। श्लेष में चमत्कार का आधार
एक शब्द के दो अर्थ हैं, वक्रोक्ति में
यह चमत्कार कथन के तोड़-मरोड़
या उक्ति के ध्वन्यर्थ द्वारा प्रकट
होता है। मुख्य अन्तर इतना ही है।
श्लेष और यमक में भेद- श्लेष में
शब्दों की आवृत्ति नहीं होती- वहाँ
एक शब्द में ही अनेक अर्थों का
चमत्कार रहता है। यमक में अनेक
अर्थ की व्यंजना के लिए एक ही
शब्द को बार-बार दुहराना पड़ता
है।
दूसरे शब्दों में, श्लेष में जहाँ एक
ही शब्द से भिन्न-भिन्न अर्थ लिया
जाता है, वहाँ यमक में भिन्न-भिन्न
अर्थ के लिए शब्द की आवृत्ति करनी
पड़ती है। दोनों में यही अन्तर है।
11. भ्रांतिमान अलंकार-
जहाँ प्रस्तुत को देखकर किसी
विशेष साम्यता के कारण किसी
दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाता है,
वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है।
उदाहरण-
चंद के भरम होत मोड़ है कुमुदनी।
नाक का मोती अधर की कान्ति से,
बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से,
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है,
सोचता है, अन्य शुक कौन है।
बादल काले-काले
केशों को देखा निराले।
नाचा करते हैं हरदम
पालतू मोर मतवाले।।
12. ब्याज स्तुति अलंकार
काव्य में जहाँ देखने, सुनने में निंदा
प्रतीत हो किन्तु वह वास्तव में
प्रशंसा हो, वहाँ ब्याजस्तुति अलंकार
होता है।
दूसरे शब्दों में- काव्य में जब निंदा
के बहाने प्रशंसा की जाती है, तो
वहाँ ब्याजस्तुति अलंकार होता है।
उदाहरण-
गंगा क्यों टेढ़ी-मेढ़ी चलती हो?
दुष्टों को शिव कर देती हो।
क्यों यह बुरा काम करती हो?
नरक रिक्त कर दिवि भरती हो।
स्पष्टीकरण-यहाँ देखने, सुनने में
गंगा की निंदा प्रतीत हो रही है
किन्तु वास्तव में यहाँ गंगा की
प्रशंसा की जा रही है, अतः यहाँ
ब्याजस्तुति अलंकार है।
रसिक शिरोमणि, छलिया ग्वाला,
माखनचोर, मुरारी।
वस्त्र-चोर ,रणछोड़, हठीला‘
मोह रहा गिरधारी।
स्पष्टीकरण- यहाँ देखने में कृष्ण
की निंदा प्रतीत होता है, किन्तु
वास्तव में प्रशंसा की जा रही है।
अतः यहाँ व्याजस्तुति अलंकार है।
13. ब्याजनिंन्दा अलंकार
काव्य में जहाँ देखने, सुनने में
प्रशंसा प्रतीत हो किन्तु वह वास्तव
में निंदा हो, वहाँ ब्याजनिंदा अलंकार
होता है।
दूसरे शब्दों में- काव्य में जब
प्रशंसा के बहाने निंदा की जाती है,
तो वहाँ ब्याजनिंदा अलंकार होता
है।
उदाहरण
तुम तो सखा श्यामसुंदर के,
सकल जोग के ईश।
स्पष्टीकरण- यहाँ देखने, सुनने में
श्रीकृष्ण के सखा उध्दव की प्रशंसा
प्रतीत हो रही है, किन्तु वास्तव में
उनकी निंदा की जा रही है। अतः
यहाँ ब्याजनिंदा अलंकार हुआ।
समर तेरो भाग्य यह
कहा सराहयो जाय।
पक्षी करि फल आस जो,
तुहि सेवत नित आय।
स्पष्टीकरण- यहाँ पर समर
(सेमल) की प्रशंसा करना प्रतीत हो
रहा है किन्तु वास्तव में उसकी निंदा
की जा रही है। क्योंकि पक्षियों को
सेमल से निराशा ही हाथ लगती है।
राम साधु तुम साधु सुजाना
राम मातु भलि मैं पहिचाना
14. विशेषोक्ति अलंकार
काव्य में जहाँ कारण होने पर भी
कार्य नहीं होता, वहाँ विशेषोक्ति
अलंकार होता है।
उदाहरण
न्हाये धोए का भया,
जो मन मैल न जाय।
मीन सदा जल में रहय,
धोए बास न जाय।।
नेहु न नैननि कौ कछु,
उपजी बड़ी बलाय।
नीर भरे नित प्रति रहै,
तऊ न प्यास बुझाय।।
मूरख ह्रदय न चेत,
जो गुरु मिलहिं बिरंचि सम
फूलहि फलहि न बेत,
जदपि सुधा बरसहिं जलद
स्पष्टीकरण- उपर्युक्त उदाहरण में
कारण होते हुए भी कार्य का न
होना बताया जा रहा है ।
15. विभावना अलंकार-
जहाँ कारण के न होते हुए भी कार्य
का होना पाया जाय, वहां विभावना
अलंकार होता है ।
जैसे-
बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु करम करै विधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी ।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
स्पष्टीकरण- उपर्युक्त उदाहरण में
कारण न होते हुए भी कार्य का
होना बताया जा रहा है । बिना पैर
के चलना, बिनाकान के सुनना,
बिना हाथ के नाना कर्म करना,
बिना मुख के सभी रसों का भोग
करना और बिना वाणी के वक्ता
होना कहा गया है । अतः यहाँ
विभावना अलंकार है ।
निंदक नियरे राखिए,
आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन
निरमल करे स्वभाव।।
16. मानवीकरण अलंकार
जब काव्य में प्रकृति को मानव के
समान चेतन समझकर उसका वर्णन
किया जाता है, तब मानवीकरण
अलंकार होता है
जैसे-
1. है विखेर देती वसुंधरा
मोती सबके सोने पर,
रवि बटोर लेता उसे
सदा सबेरा होने पर ।
2. उषा सुनहले तीर बरसाती
जय लक्ष्मी- सी उदित हुई ।
3. केशर -के केश
कली से छूटे ।
4. दिवस अवसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही
वह संध्या-सुन्दरी सी परी
धीरे-धीरे।
17.समासोक्ति अलंकार
जहाँ पर कार्य, लिंग या विशेषण की
समानता के कारण प्रस्तुत के कथन
में अप्रस्तुत व्यवहार का समावेश
होता है अथवा अप्रस्तुत का स्फुरण
होता है तो वहाँ समासोक्ति अलंकार
माना जाता है।
समासोक्ति में प्रयुक्त शब्दों से प्रस्तुत
अर्थ के साथ-साथ एक अप्रस्तुत
अर्थ भी सूचित होता है जो यद्यपि
प्रसंग का विषय नहीं होता है, फिर
भी ध्यान आकर्षित करता है।
उदाहरण
1. ‘‘कुमुदिनी हुँ प्रफुल्लित भई,
साँझ कलानिधि जोई।’’
यहाँ प्रस्तुत अर्थ है- ‘‘संध्या के
समय चन्द्र को देखकर कुमुदिनी
खिल उठी।’’
अर्थ- इस अर्थ के साथ ही यहाँ
यह अप्रस्तुत अर्थ भी निकलता है
कि संध्या के समय कलाओं के निधि
अर्थात् प्रियतम को देखकर नायिका
प्रसन्न हुई।
2. ‘‘चंपक सुकुमार तू,
धन तुव भाग्य विसाल।
तेरे ढिंग सोहत सुखद,
सुंदर स्याम तमाल।।’’
3. ‘‘नहिं पराग नहिं मधुर मधु
नहिं विकास इहि काल।
अली कली ही सों बिन्ध्यो,
आगे कौन हवाल।।’’
यहाँ भ्रमर के कली से बंधने के
प्रस्तुत अर्थ के साथ-साथ राजा के
नवोढ़ा रानी के साथ बंधने का
अप्रस्तुत अर्थ भी प्रकट हो रहा है।
अतः यहाँ समासोक्ति अलंकार है।
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर अलंकार
1. ’’ध्वनि-मयी कर के गिरी कंदरा।
कलित-कानन केलि निकुंज को।’’
उपर्युक्त पंक्तियों में अलंकार है ?
(अ) छेकानुप्रास (ब) वृत्त्यनुप्रास
(स) लाटानुप्रास (द) यमक
उत्तर- वृत्त्यनुप्रास
2. रंभा भूमत हौ कहा,
कुछक दिन के हेत।
तुमते केते है गए,
और हैं यदि खेत।
उपुयक्त पंक्तियों में अलंकार है ?
(अ) वक्रोक्ति (ब) विरोधाभास
(स) लोकोक्ति (द) अन्योक्ति
उत्तर-अन्योक्ति
3. बङे न हूते गुनन बिनु विरद
बङाई पाए।
कहत धतूरे सों कनक गहनो
गढ़ो न जाए।
उपर्युक्त पंक्तियों में अलंकार है ?
(अ) अतिशयोक्ति (ब) प्रतिवस्तूपमा
(स) अर्थान्तरन्यास
(द) विरोधाभास
उत्तर-अर्थान्तरन्यास
4. बढ़त-बढ़त सम्पत्ति सलिल
मन-सरोज बढ़ जाए।
घटत-घटत फिर ना घटै करु
समूल कुम्हिलाय।।
उपुर्यक्त पंक्तियों में अलंकार है ?
(अ)यमक (ब) विरोधाभास
(स) श्लेष (द) रूपक
उत्तर-रूपक
5. अब अलि रही गुलाब में, अपत
कटीली डार।
उपर्युक्त पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) उपमा (ब) उत्प्रेक्षा
(स) अन्योक्ति (द) अतिशयोक्ति
उत्तर-अन्योक्ति
6. तू रूप में किरन में, सौदर्य है
सुमन में।
पंक्ति में अलंकार है-
(अ) विभावना (ब) रूपक
(स) यथासंख्य (द) उल्लेख
उत्तर-उल्लेख
7. माया महाठगिनि हम जानी।
तिरगुन फांस लिए कर डौले, बोलै
मधुरी बानी।
उपर्युक्त पंक्तियों में अलंकार है ?
(अ) श्लेष (ब) यमक
(स) रूपक (द) अन्योक्ति
उत्तर-श्लेष
8. पट-पीत मानहुं तङित रुचि,
सुचि नौमि जनक सुतावंर।
पंक्ति में अलंकार निहित है ?
(अ) उपमा (ब) रूपक
(स) उत्प्रेक्षा (द) उदाहरण
उत्तर-उपमा
9. गर्व करउ रघुनन्दन जिन मन
माँह,
देखउ आपन मूरति सिय के छाँह।
उपर्युक्त पंक्तियों में अलंकार है ?
(अ) व्यतिरेक (ब) रूपक
(स) अतिशयोक्ति (द) प्रतीप
उत्तर-प्रतीप
10. ’कमल-नैन’ में अलंकार है ?
(अ) रूपक (ब) उपमा
(स) उत्प्रेक्षा (द) श्लेष
उत्तर-रूपक
11. नहिं पराग नहिं मधुर, मधु,
नहिं विकास बेहि काल।
अली कली ही सों बध्यो,
आगे कौन हवाल।।
उपर्युक्त पंक्तियों में अलंकार है ?
(अ) रूपक (ब) विशेषोक्ति
(स) अन्योक्ति (द) अतिशयोक्ति
उत्तर-अन्योक्ति
12. भरतहि होई न राजमदु
विधि हरि हर पाद पाई।
कबहुँ कि काँजी सीकरनि
छीर सिंधु बनसाई।।
इसमें अलंकार निहित है ?
(अ) उदाहरण (ब) दृष्टान्त
(स) निदर्शना (द) व्यतिरेक
उत्तर-दृष्टान्त
13. माला फेरत युग गया,
फिरा न मन का फेर।
कर का मनका छाङि दे,
मन का मनका फेर।।
उपर्युक्त पंक्तियों में अलंकार है ?
(अ) अनुप्रास (ब) श्लेष
(स) यमक (द) रूपक
उत्तर-यमक
14. सोहत ओढ़े पीत पट,
स्याम सलोने गात।
मनहुँ नील मनि सैल पर
आतप परयो प्रभात।।
इसमें अलंकार निहित है ?
(अ) यमक (ब) उत्प्रेक्षा
(स) रूपक (द) श्लेष
उत्तर-उत्प्रेक्षा
15. मुख बाल-रवि-सम लाल होकर
ज्वाल-सा बोधित हुआ-
में अलंकार है ?
(अ) उपमा (ब) उत्प्रेक्षा
(स) उपमेयोपमा (द) रूपक
उत्तर-उपमा
16. मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्त्र दृग सुमन फाङ,
अवलोक रहा था बार-बार
नीचे जल मंे निज महाकार।
उपर्युक्त पंक्तियों में अलंकार है ?
(अ) उपमा (ब) रूपक
(स) उत्प्रेक्षा (द) यमक
उत्तर-रूपक
17. निरजीवौ जोरी जुरै,
क्यों न सनेह गंभीर।
को घटि ये वृषभानुजा,
वे हलधर के बीर।।
उपर्युक्त पंक्तियों में अलंकार है ?
(अ) यमक (ब) रूपक
(स) श्लेष (द) उत्प्रेक्षा
उत्तर-श्लेष
18. सब प्राणियों के मत्तमनोमयूर
आ नचा रहा।
उपर्युक्त पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) उपमा (ब) रूपक
(स) श्लेष (द) उत्प्रेक्षा
उत्तर-रूपक
19. वह इष्ट देव के मंदिर की
पूजा-सी,
वह दीप शिखा-सी शांत भाव में
लीन
वह टूटे तरू की छूटी लता-सी
दीन,
दलित भारत की विधवा है- में
अलंकार है ?
(अ) उपमा (ब) रूपक
(स) उत्प्रेक्षा (द) यमक
उत्तर-उपमा
20. राम-नाम अवलंबु बिनु,
परमार्थ की आस,
अरसत बारिद बूंद गहि,
चाहत चढ़न अकास।
इसमें अलंकार निहित है ?
(अ) रूपक (ब) उत्प्रेक्षा
(स) उपमा (द) अतिशयोक्ति
उत्तर-उत्प्रेक्षा
21. वही मनुष्य है जो मनुष्य के
लिए मरे।
इसमें अलंकार निहित है ?
(अ) छेकानुप्रास (ब) वृत्यनुप्रास
(स) लाटानुप्रास (द) यमक
उत्तर-लाटानुप्रास
22. तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर
बहु छाए- में अलंकार है ?
(अ) अनुप्रास (ब) यमक
(स) उत्प्रेक्षा (द) उपमा
उत्तर-अनप्रास
23. मखमल के झूले पर पङे हाथी
-सा टीला।
उपर्युक्त पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) रूपक (ब) उपमा
(स) उत्प्रेक्षा (द) उल्लेख
उत्तर-उपमा
24. अति मलीन, वृषभानु कुमारी।
अधमुख रहित, उरध नहीं चितवत्,
ज्यांे गथ हारे थकित जुआरी।
छूटे चिकुर बदन कुम्हिलानो, ज्यों
नलिनी हिसकर की मारी।।
उपर्युक्त पंक्तियों में अलंकार है ?
(अ) अनुप्रास (ब) उत्प्रेक्षा
(स) रूपक (द) उपमा
उत्तर-उपमा
25. पीपर पात सरिस मन डोला-
में अलंकार निहित है ?
(अ) उपमा (ब) उत्प्रेक्षा
(स) रूपक (द) उल्लेख
उत्तर-उपमा
26. तीन बेर खाती थी वे तीन बेर
खाती हैं- में अलंकार निहित है ?
(अ) अनुप्रास (ब) श्लेष
(स) यमक (द) अन्योक्ति
उत्तर-यमक
27. बीती विभावरी जाग री।
अम्बर-पनघट में डुबो रही
तारा-घट उषा-नागरी।
उपर्युक्त पंक्ति में अलंकार है-
(अ) उपमा (ब) उत्प्रेक्षा
(स) रूपक (द) उपमेयोपमा
उत्तर-रूपक
28. चर मरर खुल गए अरर
रवस्फुटों से- में अलंकार है ?
(अ) अनुप्रास (ब) श्लेष
(स) यमक (द) उत्प्रेक्षा
उत्तर-अनुप्रास
29. बाँधा था विधु को किसने,
इन काली जंजीरों से।
मणिवाले फणियों का मुख,
क्यों भरा हुआ हीरों से।।
उपर्युक्त पंक्तियों में अलंकार है ?
(अ) रूपक (ब) अतिशयोक्ति
(स) श्लेष (द) विरोधाभास
उत्तर-अतिषयोक्ति
30. कनक-कनक ते सौगुनी
मादकता अधिकाय।
उपर्युक्त पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) उपमा (ब) यमक
(स) अनुप्रास (द) श्लेष
उत्तर-यमक
31. ज्यों-ज्यों बूङे स्याम रंग,
त्यौं-त्यौं उज्ज्वल होय।
पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) उत्प्रेक्षा (ब) विरोधाभास
(स) उपमा (द) यमक
उत्तर-विरोधाभास
32. चरण-कमल बन्दौ हरि राई।
पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) श्लेष (ब) उपमा
(स) रूपक (द) अतिशयोक्ति
उत्तर-रूपक
33. तापस बाला-सी गंगा कूल।
पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) श्लेष (ब) उत्प्रेक्षा
(स) रूपक (द) उपमा
उत्तर-उपमा
34. नवल सुन्दर श्याम शरीर।
पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) उल्लेख (ब) उपमा
(स) रूपक (द) अतिशयोक्ति
उत्तर-उल्लेख
35. ऊंचे घोर मन्दर के अंदर
रहनवारी,
ऊंचे घोर मन्दर के अंदर रहती है।
पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) यमक (ब) उपमा
(स) श्लेष (द) रूपक
उत्तर- यमक
36. यह देखिए, अरविंद से शिशुवृंद
कैसे सो रहे।
पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) उत्प्रेक्षा (ब) उपमा
(स) रूपक (द) यमक
उत्तर-उपमा
37. हनुमान की पूँछ में
लग न पाई आग।
लंका सिगरी जल गई,
गए निसाचर भाग।।
पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) श्लेष
(ब) रूपक
(स) अतिशयोक्ति
(द) विरोधाभास
उत्तर-अतिषयोक्ति
38. मो सम कौन कुटिल खल
कामी। पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) वक्रोक्ति (ब) उत्प्रेेक्षा
(स) उपमा (द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- वक्रोक्ति
39. रहिमन जो गति दीप की,
कुल कपूल गति सोय।
बारे उजियारे लगै,
बढ़ै अंधेरो होय।।
पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) उपमा (ब) रूपक
(स) यमक (द) श्लेष
उत्तर-श्लेष
40. संदेसनि मधुवन-कूप भरे।
पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) रूपक (ब) वक्राक्ति
(स) अन्योक्ति (द) अतिशयोक्ति
उत्तर-अतिषयोक्ति
41. रहिमन पानी राखिये,
बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै,
मोती मानूस चून।।
पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) श्लेष (ब) उत्प्रेक्षा
(स) रूपक (द) अनुप्रास
उत्तर-श्लेष
42. जहाँ उपमेय में उपमान की
समानता की संभावना व्यक्त की
जाती है, वहाँ अलंकार होता है ?
(अ) उत्प्रेक्षा (ब) उपमा
(स) रूपक (द) सन्देह
उत्तर-उत्प्रेक्षा
43. उपमेय पर उपमान का अभेद
आरोप होने पर होता है
(अ) उपमालंकार (ब) रूपकालंकार
(स) श्लेषालंकार (द) उत्प्रेक्षालंकार
उत्तर- रूपकालंकार
44. जहाँ उपमेय का निषेध करके
उपमान का आरोप किया जाय, वहाँ
होता है ?
(अ) रूपक अलंकार
(ब) उत्प्रेक्षा अलंकार
(स) अपह्नुति अलंकार
(द) उपमा अलंकार
उत्तर- अपह्नुति अलंकार
45. निम्नलिखित में से कौन
सादृश्यमूलक अलंकार नहीं है ?
(अ) उपमा (ब) रूपक
(स) विशेषोक्ति (द) उत्प्रेक्षा
उत्तर- विशेषोक्ति
46. किस पंक्ति में ’अपह्नुति’ अलंकार
है ?
(अ) इसका मुख चन्द्रमा के समान
है।
(ब) चन्द्र इसके मुख के समान है।
(स) इसका मुख ही चन्द्र है।
(द) यह चन्द्र नहीं मुख है।
उत्तर-यह चन्द्र नहीं मुख है।
47. ’रावण सिर सरोज बनचारी।
चलि रघुवीर सिली-मुख धारी।’
सिली-मुख में अलंकार है ?
(अ) श्लेष (ब) लाटानुप्रास
(स) वृत्यनुप्रास (द) उपमा
उत्तर-उपमा
48. ’उषा सुनहले तीर बरसती
जयलक्ष्मी सी उदित हुई।’
इसमें अलंकार है
(अ) मानवीकरण (ब) दृष्टान्त
(स) सन्देह (द) विरोधाभास
उत्तर-मानवीकरण
49. ’उसी तपस्वी से लम्बे थे देवदार
दो-चार खङे’-में अलंकार है ?
(अ) श्लेष (ब) अतिशयोक्ति
(स) परिसंख्या (द) प्रतीप
उत्तर-परिसंख्या
50. ’बिनु पद चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।’
इस चौपाई में अलंकार है
(अ) विषम (ब) विभावना
(स) असंगति (द) तद्गुण
उत्तर-विभावना
51. ’अब अलि रही गुलाब में,
अपत कँटीली डार’ मंे कौनसा
अलंकार है ?
(अ) उपमा (ब) उत्प्रेक्षा
(स) अन्योक्ति (द) अतिशयोक्ति
उत्तर-उपमा
52. नहिं पराग नहिं मधुर मधु,
नहीं विकास इहि काल।
अली कली ही सौं बिध्यौं,
आगे कौन हवाल।।
प्रस्तुत पंक्तियों में कौनसा अलंकार
है ?
(अ) रूपक (ब) विशेषोक्ति
(स) अन्योक्ति (द) अतिशयोक्ति
उत्तर-अन्योक्ति
53. ’’खिली हुई हवा आई फिरकी
सी आई, चल गई’’- में अलंकार
है?
(अ) संभावना (ब) उत्प्रेक्षा
(स) उपमा (द) अनुप्रास
उत्तर-अनुप्रास
54. ’’पापी मनुज भी आज मुख से,
राम नाम निकालते’’ -इस
काव्य-पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) विभावना (ब) उदाहरण
(स) विरोधाभास (द) दृष्टान्त
उत्तर-विरोधाभास
55. ’’काली घटा का घमंड घटा’’
उपर्युक्त पंक्ति में कौनसा अलंकार
है?
(अ) यमक (ब) उपमा
(स) उत्प्रेक्षा (द) रूपक
उत्तर-यमक
56. कनक कनक ते सौ गुनी,
मादकता अधिकाय।
वा खाए बौराए जग,
या पाए बौराय ।।
ऊपर के दोहे में ’कनक’ का क्या
अर्थ है ?
(अ) कण (ब) सोना
(स) धतूरा एवं सोना (द) धतूरा
उत्तर- धतूरा एवं सोना
57. दुपहर दिवस जानि घर सूनो
ढूँढ़ि-ढँढोरि आपही आयो- में
अलंकार है ?
(अ) यमक (ब) अनुप्रास
(स) उपमा (द) रूपक
उत्तर-अनुप्रास
58. कै वह टूटी-सी छानी हती,
कहँ कंचन के अब धाम सुहावत।
पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) रूपक (ब) उपमा
(स) यमक (द) श्लेष
उत्तर-उपमा
59. पुष्प-पुष्प में तद्रांलस लालसा
खींच लूँगा मैं। पंक्ति में अलंकार है?
(अ) श्लेष (ब) पुनरावृति
(स) उपमा (द) रूपक
उत्तर-उपमा
60. दिन में रास्ता भूल जाएगा
सूरज। पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) उपमा (ब) अतिशयोक्ति
(स) रूपक (द) श्लेष
उत्तर-अतिषयोक्ति
61. सावन के अंधहि ज्यांे सूझत रंग
हरो। पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) उपमा (ब) रूपक
(स) श्लेष (द) उत्प्रेक्षा
उत्तर-उत्प्रेक्षा
62. देख लो साकेत नगरी है यही
स्वर्ग से मिलने गगन जा रही है।
पंक्ति में अलंकार है ?
(अ) रूपक (ब) अतिशयोक्ति
(स) उपमा (द) श्लेष
उत्तर-अतिषयोक्ति
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