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Monday, February 14, 2022

आत्मकथा अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं एवं तत्व

 आत्मकथा 



अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं एवं तत्व

आत्मकथा के लिए अंग्रेजी में ‘आटोबायोग्राफी’ 

शब्द प्रचलित है। जब लेखक स्वयं के जीवन का 

क्रमिक ब्यौरा प्रस्तुत करता है, तो उसे 

आत्मकथा कहा जाता है। आत्म कथा में स्वयं 

की अनुभूति होती है। इसमें लेखक उन तमाम 

बातों का विवरण देता है, जो बातें उसके जीवन 

में घटी होती हैं। आत्मकथा में लेखक अपने 

अन्तर्जगत को बहिर्जगत के सामने प्रस्तुत करता 

है, इसमें आत्मविश्लेषण होता है। हिंदी साहित्य 

में आत्मकथा एक अपेक्षाकृत आधुनिक विधा है। 

आत्मकथा सत्य पर आधारित होती है, क्योंकि 

लेखक उसमें अपने दोषों को भी निर्ममता से 

उजागर करता है। हालॉकि कौंन कितना अपने 

दोषों को उजागर करता है यह बात तो लेखक 

की ईमानदारी पर ही निर्भर करती है। 

आत्मकथा में लेखक अपने जीवन के बारे में 

लिखता है तथा समाज के सामने स्वयं को 

प्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत करता है। जिससे समाज 

उसके जीवन के पहलुओं से परिचित होता है। 

आत्मकथा विधा के कई पयार्यवाची नाम भी 

मिलते हैं। आत्मकथा को परिभाषित करने से 

पहले हमको इस शब्द की उत्पत्ति एवं अर्थ को 

जान लेना चाहिए। ‘‘आत्म यह शब्द आत्मन 

शब्द से उत्पन्न हुआ है। इस का अर्थ लिया 

जाता है ‘स्वयं का’ आत्मचरित, आत्मकथा, 

आत्मकथन इन शब्दों का सामान्यतः एक ही अर्थ 

लिया जाता है। ‘‘अंग्रेजी के ंनजवइपवहतंचील 

को ही हिन्दी में आत्मकथा या आत्मवृत्त कहा 

जाता है। ‘स्वयं’ द्वारा लिखा गया जीवन चरित्र, 

जीवनी, आपबीती, आत्मकहानी आदि।

आत्मकथा की अवधारणा पर अनेक विद्वानों ने 

अपने विचार रखे हैं इन विचारों के आधार पर 

यह कहा जाता है कि जो आत्मकथाकार होता है 

वह अपने जीवन की प्रमुख घटनाओं, मानवीय 

अनुभूतियों, भावों विचारों तथा कार्यकलापों को 

निष्पक्षता एवं स्पष्टता से आत्मकथा में समाहित 

करता है। इसमें उसके जीवन की उचित एवं 

अनुचित घटनाओं का सच्चा चित्रण होता है। 

इसमें लेखक स्वयं के जीवन की स्मृतियों को 

प्रस्तुत करता है, जो आत्मनिरीक्षण, आत्मज्ञान 

तथा आत्म-न्याय के आधार पर होती हैं। 

इस़लिए आत्मकथा को हम सम्पूर्ण व्यक्तित्व के 

उद्घाटन की विधा के रूप में भी स्वीकार करते 

हैं।

आत्मकथा लेखन में लेखक के द्वारा कही गयी 

बातों पर विश्वास करते हुए उसको सच माना 

जाता है, क्योंकि उसके लिए लेखक स्वयं साक्षी 

एवं जिम्मेदार होता है। आत्मकथा लेखन 

आत्मकथाकार के जीवन के व्यक्तित्व उद्घाटन, 

ऐतिहासिक तत्वों की प्रामाणिकता तथा उद्देश्य 

के कारण महान होता है। आत्मकथा का उद्देश्य 

लेखक द्वारा स्वयं का आत्मनिर्माण करना, 

आत्मपरीक्षण करना तथा उसके साथ-साथ 

अतीत की स्मृतियों को पुनर्जीवित करना होता 

है। आत्मकथा लेखक इसके द्वारा आत्मॉकन, 

आत्मपरिष्कार तथा आत्मोन्नति भी करना चाहता 

है। इसका लाभ अन्य लोगों को भी मिलता है। 

इससे अन्य पाठक भी कुछ प्रेरणा ग्रहण कर 

सकते हैं।

आत्मकथा की विशेषताएं

1. आत्मविश्लेषण- आत्मकथा में लेखक खुद 

का विश्लेषण करता है। अपनी अच्छाइयों और 

बुराइयों का विश्लेषण करता है। इसमें लेखक 

उन तथ्यों को भी उजागर करता है जिससे 

उसके जीवन में सकारात्मक या नकारात्मक 

प्रभाव पड़ा। आत्मकथा लेखन को काफी हिम्मत 

का काम माना जाता है। क्योंकि हर व्यक्ति में 

इतना साहस नहीं होता कि वह अपनी 

कमजोरियों को समाज के सामने रख सके, 

शायद इसीलिए हिंदी में आत्मकथा लेखन का 

उद्भव काफी बाद में हुआ।

2. आत्मालोचन- आत्मलोचन आत्मकथा की 

काफी महत्वपूर्ण विशेषता है। आत्मकथा लेखक 

खुद को काफी करीब से देखता है तथा अपने 

सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलुओं का काफी 

निकटता से अवलोकन करता है। जिन घटनाओं 

ने उसके जीवन को प्रभावित किया या उसके 

जीवन के विकास में योगदान दिया, उन्हें 

उद्घाटित करता है।

3. लेखक का समाज से परिचय- आत्मकथा में 

लेखक का समाज से परिचय भी होता है। 

समाज लेखक की आत्मकथा को पढ़कर उसके 

जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त करता है। 

इससे समाज का लेखक के जीवन की उन 

घटनाओं और तथ्यों से परिचय होता है, जिससे 

समाज आज तक अनभिज्ञ था। इसमें बहुत बार 

वो बातें सामने आती हैं जिनके बारे में किसी 

को पता नहीं होता। इन बातों का परिचय 

आत्मकथा से ही होता है। आत्मकथाएं बहुत बार 

समाज को प्रेरणा प्रदान करने का काम भी 

करती हैं। समाज जब उन महान व्यक्तियों की 

आत्मकथा पड़ता है, जिन्होंने समाज के लिए 

अपना जीवन न्यौछावर कर दिया या जिन्होंने 

तमाम संघर्षों के बाद अपने जीवन में सफलता 

पाई, इस प्रकार की आत्मकथाओं से समाज को 

प्रेरणा मिलती है, जो भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा 

और मार्गदर्शन का काम करती हैं।

4. घटनाओं का विवरण- आत्मकथा में लेखक 

अपने जीवन में घटित घटनाओं का विवरण भी 

प्रस्तुत करता है। उस के साथ जो घटनाएं होती 

हैं, लेखक अपनी आत्मकथा में उसका 

सिलसिलेवार विवरण देता है। आत्मकथा उसके 

जीवन की घटनाओं को बयाँ करती है।

5. वास्तविक जीवन से परिचय- आत्मकथा 

लेखक के जीवन से वास्तविक परिचय कराती 

है। क्योंकि उसमें उन बातों का भी विवरण 

होता है, जिन बातों से पाठक वर्ग अनभिज्ञ होता 

है। क्योंकि हर आदमी के जीवन में वे बातें 

होती हैं, जो बस उसी से संबंधित होती हैं। उन 

बातों को लेखक अपनी आत्मकथा में उकेरता 

है। इसलिए आत्मकथा पाठक वर्ग को लेखक के 

वास्तविक जीवन से परिचय कराती है।

आत्मकथा के तत्व

किसी भी विधा को समझने के लिए उसके तत्वों 

को समझना आवश्यक है। जिसके आधार पर हम 

उसको अन्य विधाओं से अलग कर सकें। 

आत्मकथा की परिभाषाओं से उसकी विधा का 

पता चलता है। पर इसको और अधिक स्पष्ट 

करने के लिए हम आत्मकथा के तत्वों के बारे में 

विस्तार से चर्चा करेंगे। विभिन्न विद्वानों ने 

आत्मकथा के अनेक तत्व बतलाए हैं।

1. वर्ण्य विषय

2. चरित्र-चित्रण

3. देशकाल

4. उद्देश्य

5. भाषा-शैली

वर्ण्य विषय

आत्मकथा में इस तत्व को प्रमुख रूप में स्वीकार 

किया गया है। आत्मकथा में लेखक अपने जीवन 

की महत्वपूर्ण घटनाओं और विषयों का वर्णन 

करता है। लेखक द्वारा आत्मकथा में वर्णित 

विषय में सत्यता का होना जरूरी है। आत्मकथा 

लेखक का वर्ण्य विषय काल्पनिक नहीं वरन् 

यथार्थ पर आधारित होना चाहिए। आत्मकथा 

लेखक अपने जीवन की घटनाओं के साथ-साथ 

सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक 

परिस्थितियों का भी वर्णन करता है। आत्मकथा 

लेखक को इस बात का भी ध्यान रखना होता 

है कि आत्मकथा में अनावश्यक आत्मविस्तार 

तथा शील संकोच न आने पाए। अतः आत्मकथा 

के वर्ण्य विषय में सच्चाई और ईमानदारी का 

होना आवश्यक है। अन्य महत्वपूर्ण गुण जो कि 

वर्ण्य विषय को रोचक बनाता है वह है 

संक्षिप्तता। आवश्यकता से अधिक विस्तार विषय 

को नीरस बना देता है। अतः आत्मकथा में 

रोचकता, स्पष्टवादिता, यथार्थता, सत्यता, 

स्वभाविकता एवं संक्षिप्तता होनी चाहिए जिससे 

आत्मकथा श्रेष्ठ होती है।

चरित्र-चित्रण 

आत्मकथा साहित्य का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है 

चरित्र-चित्रण। इसका सम्बन्ध पात्रों से होता है। 

आत्मकथा लेखन में आत्मकथाकार ही खुद 

प्रमुख पात्र होता है। अतः आत्मकथा लेखक खुद 

के चरित्र के सभी पक्षों का विश्लेषण भी 

आत्मकथा में करता है। आत्मकथाकार के लिए 

यह नितांत आवश्यक है कि वह निष्पक्ष एवं 

निर्दाेष भाव से आत्मविवेचन करें। स्पष्ट है कि 

आत्मकथाकार को गुण दोषों का विवेचन सत्यता 

के धरातल पर करना चाहिए। उसके 

आत्मप्रकाशन में किसी तरह का मोह नहीं होना 

चाहिए। इस तरह की आत्मकथा ही सच्ची 

आत्मकथा है। प्रायः आत्मकथाकार अपने 

व्यक्तित्व को स्पष्ट करने के लिए उन व्यक्तियों 

का भी वर्णन करता है जिनका उसके जीवन पर 

प्रभाव पड़ा अथवा जिन व्यक्तियों से उसका 

संबंध रहा है। हरिवंष राय बच्चन ने अपनी 

आत्मकथा में अपने पिता जी के स्वभाव का भी 

वर्णन किया है। उनके सम्बन्ध में कहा है - 

‘मेरे पिता की अपने लड़कों के बारे में कोई 

महत्वाकांक्षा न थी। मेरे मैट्रिकुलेशन में फेल 

होने के बाद अगर उनकी चलती तो मुझे नौकरी 

करने को बाध्य कर देते।’ स्पष्ट है कि लेखक 

प्रसंगानुसार उन सभी लोगों का वर्णन करता है 

जिनका उससे सम्बन्ध रहा है। जिससे उसके 

खुद के व्यक्तित्व को समझने में सहायता मिलती 

है।

देशकाल

आत्मकथा में सजीवता लाने के लिए इसमें 

देशकाल का होना आवश्यक माना गया है। देश 

काल का असर प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व पर 

पड़ता है। इससे उसकी उन सामाजिक, 

राजनीतिक, धार्मिक, साहित्यिक प्रभाव क्षेत्र का 

पता चलता है जिससे वह आता है। इस प्रकार 

गौण रूप में तत्कालीन परिस्थितियों का पता भी 

चलता है।

भाषा-शैली 

आत्मकथा में भाषा शैली का अपना एक 

महत्वपूर्ण स्थान है। संप्रेषणीयता के लिए भाषा 

शैली का अच्छा होना बहुत जरूरी है। शैली 

अनुभूत विषयवस्तु को सजाने के उन तरीकों का 

नाम है, जो विषयवस्तु की अभिव्यक्ति को सुंदर 

एवं प्रभावपूर्ण बनाती है। इसमें असामान्य 

अधिकार के अभाव में लेखक की सफलता संभव 

नहीं। आत्मकथा की शैली में प्रभावोत्पादकता 

का होना अति आवश्यक है। इसी के कारण 

आत्मकथा पाठक के मन में अपना प्रभाव डाल 

पाती है। इसलिए लेखक को निःसंकोच अपने 

जीवन का वर्णन करना चाहिए, जिसका पाठक 

के ऊपर प्रभाव पड़ता है। लेखक को जीवन के 

उत्थान-पतन तथा गुण-दोषों का विवेचन इस 

प्रकार करना चाहिए कि वह पाठक को रूचिकर 

लगे। लेखक को अपने समस्त जीवन का वर्णन 

इस प्रकार करना चाहिए जिससे अनावश्यक 

विस्तार भी न हो और साथ में गठित भी हो। 

क्रमानुसार वर्णन अधिक रोचक होता है। 

आत्मकथाएँ विभिन्न शैलियों में लिखी जाती हैं। 

ये शैलियां आत्मनिवेदनात्मक, भावात्मक, 

विचारात्मक, वर्णनात्मक, ऐतिहासिक तथा हास्य 

प्रधान आदि हैं।

अतः कहा जा सकता है कि आत्मकथा में 

प्रभावोत्पादकता, लाघवता, निःसंकोच 

आत्मविश्लेषण, सुसंगठितता तथा स्पष्टता आदि 

गुणों को होना चाहिए। आत्मकथा में जहाँ तक 

भाषा की बात है, भाषा भावाभिव्यक्ति का साधन 

होती है। आत्मकथा में भाषा को भावानुकूल 

और विषयानुकूल होना चाहिए। लेखक की भाषा 

को शुद्ध, स्पष्ट, परिष्कृत और परिमार्जित होना 

चाहिए जिससे वह पाठकों को प्रभावित कर 

सकता है। भाषा को श्रेष्ठ बनाने के लिए शब्दों 

का चयन विषय एवं भावों के अनुकूल होना 

चाहिए तथा भाषा का प्रयोग पात्रों एवं परिवेश 

के अनुरूप होना चाहिए। 

हिन्दी की कुछ प्रमुख आत्मकथाएं


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