नाटक
प्रो. बाटलीवाला
(यह नाटक कॉलेज के समय में हम कुछ मित्रों ने इम्प्रोवाईजेशन करके, एक छोटे रूप में कुछ अलग ढंग से खेला था. लेकिब अब इसका बहुत कुछ बदल कर और इसे महाभारत से जोड़ कर बिलकुल नये रूप में लिखा गया है. फिर भी इसका सूत्र वहीँ से है. अतः उन सभी साथियों का आभार.)
पात्र
1 न्यूज रिपोर्टर
2 प्रो. बाटलीवाला
-:लेखक:-
डॉ. प्रदीप कुमार
ग्राम/पोस्ट-बास कृपाल नगर,
तहसील-किशनगढ़-बास, जिला-अलवर,
राजस्थान, पिन न. 301405, मोबाईल नं.-9460142690,
CykWx&http://pradeepprasann.blogspot.in,
youtube chainal-pradeep prasann
(एक समाचार चैनल का स्टूडियो। मंच के
बांई तरफ एक बड़ी मेज रखी है। साथ में दो आरामदायक कुर्सियां। दांई तरफ एक फ्रेम
बना हुआ है, टीवीनूमा। वहां या तो प्रोजेक्टर लगाया
जाएगा या लाइव कुछ कलाकार खड़े होंगे, जो
एक टीवी के रूप में काम करेंगे। इनकी संख्या 6 या
7 हो सकती है। जिसमें दो लड़कियां होनी
चाहिए, शेष लड़के। पर्दा खुलने से पहले ये टीवी
वाले सारे कलाकार स्टेज पर एक पंक्ति में फ्रीज खड़े हैं। जब भी कलाकार कोई एक्ट
नहीं करेंगे फ्रीज रहेंगे। यदि कलाकारों की कमी है तो निर्देशक अपनी सुविधानुसार
एक रिपोर्टर एवं एक प्रो. ये दोनों लोगों से पूरा नाटक करवा सकता है। इस स्थिति
में टीवी वाले दृश्य पहले से रिकार्ड करके प्रोजेक्टर से दिखाये जा सकते हैं। वैसे
यह नाटक दो पात्रों को ही ध्यान में रखकर लिखा गया है। यदि कलाकार पर्याप्त हैं तो
एक लड़की रिपोर्टर और रखी जा सकती है और प्रो. भी दो रखे जा सकते हैं। प्रो. झटकेवाला और प्रो. बाटलीवाला। टेबल पर पानी की बोतल, गिलास, न्यूज़ रिपोर्ट्स के सामने उसकी फाइल, उनमें कुछ पेपर्स रखे होते हैं। न्यूज रिपोर्टर बैठा हुआ है। समाचार
सुनाता है।)
रिपोर्टर-नमस्कार। मैं हूं राहुल श्रीधर। आप
देख रहे हैं न्यूज चैनल ‘कल तक’। जो रखता है आपको सबसे आगे। आज तारीख है 18 जून 2525। यानी 25वीं सदी का यह पच्चीसवां वर्ष है। कल
तक न्यूज चैनल के सर्च रिसर्च कार्यक्रम में आपका स्वागत है। दोस्तों मैं आपको बता
दूं कि हमारा बहुत ही पॉपुलर कार्यक्रम ‘सर्च
रिसर्च’ जिसका आप लोग बेसब्री से इंतजार करते
हैं, जिसमें हम हर बार देश दुनिया के बड़े
वैज्ञानिकों, दार्शनिकों को बुलाते हैं और उनके
द्वारा की गई रिसर्च पर लाईव चर्चा करते हैं। आज सर्च रिसर्च कार्यक्रम में विश्व
विख्यात साइंटिस्ट, रिसर्चर, इतिहासविद, वैज्ञानिक, दार्शनिक प्रोफ़ेसर बाटलीवाला आ रहें
हैं। उनके द्वारा ‘21वीं सदी और महाभारत’ पर एक बहुत बड़ी रिसर्च की गई है जो कि 21वीं सदी और महाभारत पर एक तुलनात्मक
रिसर्च है। उसे आज पहले बार दुनिया के सामने हम प्रस्तुत कर रहे हैं, कल तक न्यूज चैनल के माध्यम से। इसे
आपको हम लाईव दिखायेंगे। बस 10
मिनट बाद प्रो. बाटलीवाला आने वाले हैं। उससे पहले एक नजर आज की सुर्खियों पर
डालते हैं। हमारे विशेष संवाददाता से अभी-अभी ताजा समाचार मिला है कि जयपुर में दो
मोटर साइकिलों में टक्कर होने के कारण अहिंसा स्थल पर भारी भीड़ जमा हो गई। भीड़ को
काबू में करने के लिए पास के मॉल में फ्री 4जी
मोबाईल सैट बांटे गए लेकिन कोई लेने ही नहीं गया। क्योंकि शायद उनको पता नहीं था
कि यह 21वीं सदी नहीं है बल्कि 25वीं सदी है और अब यहां 10जी सिम काम करती है। लेकिन बाद में
सूत्रों द्वारा पता चला की जिस कंपनी ने मोबाईल सैट बांटे वह जानती थी कि यह 25वीं सदी है और अब 10जी चलता है। चुंकि 4जी को कोई खरीद नहीं रहा था इसलिए फ्री
में बांटने का प्लान किया गया। लेकिन वह तुरंत कामयाब नहीं हुआ। लेकिन मोबाईल सैट
बाद में 10जी कहके सौ-सौ रूप्ये में दिए गए तो
भारी भीड़ उमड़ पड़ी। 25वीं सदी में भी भारत में फ्री की चीजों
के प्रति जबरदस्त आकर्षण है। बाद में पता चला की वो मोटर साइकिल सवार तो सही सलामत
उठकर अपने-अपने काम पर लौट गए किंतु वहां जमा भीड़ के कारण हिंसा हो गई। जिसके कारण
आपसी झगड़ा हो गया और घटना स्थल से तीन पुरुष व एक महिला गायब हो गए। जिनका अभी तक
पता नहीं लग पाया है। एक अन्य जानकारी के अनुसार आश्रम एक्सप्रेस रेलगाड़ी जिसका
रुट दिल्ली से अहमदाबाद हवाई मार्ग है। यह ट्रेन 21वीं सदी मंे जमीन के रास्ते से चलती थी तब भी और आज आसमान के रास्ते
से चलती है तब भी खूब सवारियां ढोती है। यह अजमेर, जयपुर और अलवर के ऊपर से होकर निकलती है। अलवर में यह हसन खां मेवात
नगर के ऊपर से गुजरती है। हसन खां मेवात नगरवासियों को इससे बड़ी परेशानी हो रही
है। इसलिए उन्होंने एक सक्त प्रार्थना पत्र रेलवे विभाग को लिखा है कि आश्रम
एक्सप्रेस के यात्रियों के थूकने, ब्रेश
करने, मुंह धोने एवं अन्य कुछ धोने से जो
पानी उनके ऊपर गिरता है उससे उनके कपड़े महीनों तक सूख नहीं पाते हैं। इसी कारण
उन्हें अक्सर अपने काम पर देरी से जाना पड़ता है और बार-बार उन्हीं कपड़ो के पहनने
से उनकी औरतों को कपड़े ने धोने की काम चोरी की आदत पड़ती जा रही है। जिसके कारण
इसका प्रभाव पड़ौसी मकान, पड़ौसी जिला एवं पड़ोसी राज्य पर भी पड़
रहा है और इन सभी जगह की औरतें ज्यादातर समय या तो सास बहू वाले सीरियल देखती हैं
या गैर पुरुषों के साथ बातें करती रहती हैं। अतः आश्रम एक्सप्रेस टेªन का रूट जल्दी से चेंज किया जाए।
हालांकि गुप्त सूत्रों का यह भी कहना है कि हसन खां मेवात नगर वासियों ने यह
शिकायती पत्र एक तरह से शिवाजी पार्क वालों से बदला लेनी की योजना से लिखा है।
क्योंकि 2520 में शिवाजी पार्कवासियों ने डबल डैकर
रेलगाड़ी का हवाई रूट हसन खां मेवाती नगर से करवाया था। क्रिकेट में आज कुछ खास
नहीं है। क्रिकेट का सबसे बड़ा एक-एक ओवर का टूरनामैंट इस साल भारत जीतने से पहले
ही हार गया। छह बोलो के बहुत ही लंबे मैच में दर्शक बोर हो गए। टीम इंडिया के
बोलर्स ने ढाई बाल तो वाइड ही डाल दीं। जो कि पिछले 5 वर्षों का यह ऐतिहासिक रिकार्ड है।
वैसे भारत हार गया है। हालांकि अभी भारत की बल्लेबाज शेष है। दोस्तों ये थीं अभी
तक की कुछ खास खबरें। हालांकि इसमें खास कुछ भी नहीं है लेकिन आम को बेवकूफ बनाने
का यह खास का खास तरीका है। अब हम लेते हैं 2 मिनट
का ब्रेक। आप लोग कहीं मत जाइयेगा, ऐसा
मैं बिल्कुल नहीं कहूंगा,
बल्कि आप लोग अपने जरूरी एवं गैर जरुरी
जो भी कार्य हैं, वे फटाफट निपटा लें, ताकि फिर आप इतमिनान से सर्च रिसर्च
कार्यक्रम देख सकंे। मैं एक बार फिर से आपको बता दूं कि आज हम सर्च रिसर्च
कार्यक्रम में विश्व विख्यात साईंटिस्ट प्रो. बाटलीवाला से आपको मिलवायेंगे।
जिन्होंने 21वीं सदी एवं महाभारत पर तुलनात्मक रूप
से एक बहुत बड़ी रिसर्च की है। तो अभी लेते हैं दो मिनट का ब्रेक। (खड़ा होेके एक
तरफ जाता है।) अरे महेश लाईट इज आके, शिव
साउंड इज ओके। (नेपथ्य से आवाज आती है-ओके सर।) इट इज ओके गुड। फातिमा फोन लगाके
पूछो प्रो. साहब कितनी देर में पहंुच रहे हैं और नाश्ते का क्या हुआ। जल्दी मंगवाओ
भैई। कलाकंद जरूर मंगवाना ठाकुरदास वाले का बड़ा फेमस है। और हां एक पैकिट पैक भी
करवा लाना। अलवर की याद रहेगी उनको। फातिमा क्या हुआ?........(अंदर से आवाज आती है ‘सर आ गये।’) अच्छा आ गए, ठीक है। प्रो. बाटलीवाला को स्टूडियो
में ही ले आओ सीधे।
(ओडियेंस
मंे से ही प्रो. बाटलीवाला आते हैं। कुछ दर्शक उन्हें नमस्कार करते हैं। उम्र लगभग
60 के करीब। सर के बाल और दाढ़ी बड़ी हो
सकती, बाल बिखरे हुए। साइंटिस्टों वाला
हुलिया। एक व्यक्ति एक बहुत बड़ा बैग लेके उनके साथ में आ रहा है। ऐसा लगता है कि
बैग में बहुत सारी रिसर्च की पुस्तके हैं। लेकिन वास्तव में इस बड़े बैग में रिसर्च
का सिर्फ एक पेपर होता है,
बाकी कपड़े भरे होते हैं।)
रिपोर्टर-सर नमस्कार।
प्रो. बाटलीवाला-नमस्कार।
रिपोर्टर-सर कोई दिक्कत तो नहीं हुई आने में।
प्रो.-नहीं नहीं, कोई दिक्कत नहीं।
रिपोर्टर-आईये सर यहां बैठिए।.........सर शुरू
करें।
प्रो.2-हां
कीजिए।
रिपोर्टर-सर वो आपने कुछ सी.डी. भिजवाई थी उनका
क्या करना है?
प्रो.-उन्हें फ्रिज में रखवा दीजिए। कल तक ठंडी
हो जायेंगी फिर खायेंगे।
रिपोर्टर-क्या सर, फ्रिज में!
प्रो.2-अरे
बेवकूफ उन्हें चलवाओ, उन्हें ही तो देखके बातचीत होगी।
रिपोर्टर-ओ सर सॉरी।...........मजाक अच्छा करते
हैं सर आप।................महेश वो सी.डी लगवाओ।........सर शुरू करें।
प्रो.-हां कीजिए।
रिपोर्टर-महेश,.....लाईट, कमैरा, साउंड सब ओके। (नेपथ्य से आवाज आती है। ओके सर।) ठीक है हम लोग
इंटरव्यू स्टार्ट करते हैं।
प्रो.-एक मिनट, इंटरव्यू तुम लोगे?
रिपोर्टर-हां सर, कोई दिक्कत सर?
प्रो.2-लेकिन
मुझे तो कहा गया था कि कोई लड़की इंटरव्यू..........लेगी।
रिपोर्टर-वो सर हां, लड़की ही थी लेकिन..........।
प्रो.-लेकिन-वेकिन कुछ नहीं लड़की को बुलाओ।
रिपोर्टर-सर..........वो....क्या है.....लड़की
ही थी लेकिन अचानक उसकी.......लड़की की अचानक तबियत खराब हो गई सर।.......सॉरी सर।
प्रो.2-फिर
अब कैसे होगा।
रिपोर्टर-सॉरी सर...........इसलिए मुझे कहा गया
सर, मैं लेता हूं। ...........।
प्रो.-तुम क्या लोगे............और क्या दोगे।
रिपोर्टर-मैं भी सर ठीक-ठाक ही ले लेता हूं
इंटरव्यू।..............मैंने अभी-अभी प्रधानमंत्री का इंटरव्यू लिया था सर। आपने
तो देखा होगा हमारे चैनल पर आया था।
प्रो.2-तुमने
लिया था न।
रिपोर्टर-हां सर अच्छा लगा न आपको?
प्रो.-इसीलिए तो नहीं देखा
मैंने।.............देखो यह ठीक नहीं है।...........मैं लड़कों का इंटरव्यू न देखता
हूं और न देता हूं। .............पता है लड़की इंटरव्यू लेगी इस चक्र में तो मैंने
जेएनयू के वीसी के साथ मीटिंग छोड़ दी, जो
अभी होने वाली थी।
रिपोर्टर-सॉरी सर, सो सॉरी.......सर प्लीज...........मेरी
नौकरी का सवाल है। .............मना मत कीजिए।
प्रो.2-कोई
बात नहीं.........लेकिन आगे से ध्यान रखिये।
रिपोर्टर-(धीरे से) इस बुढ्ढे को इस उम्र में
भी लड़की चाहिए।............(तेज आवाज में) ठीक है सर, आगे से ध्यान
रखेंगे।............थैंक्स सर।..........आपका बहुत बहुत धन्य........।
प्रो.-अब ये नौंटकी बंद करो। इंटरव्यू शुरू
करो।
रिपोर्टर-जी सर। हम शुरू करते हैं। (थोड़ा पानी
पीता है। पानी गिर जाता है।)
प्रो.2-आराम
से, इतना डर क्यों रहे हो।
रिपोर्टर-सॉरी सर,............वो.........जल्दबाजी
में................सर वो...........आपका रिसर्च मैटिरियल कहां है?
प्रो.-हां वो...........बैग में है। (प्रो. के
चश्मा लगा हुआ है, उसमें बड़ी सी डोरी है। वे जब भी विजव्ल
देखते हैं, चश्मा हटा लेते हैं और बात करते समय
लगा लेते हैं।) निकालो।
रिपोर्टर-जी सर।.........सर बहुत भारी है। लगता
है बड़ी-बड़ी और बहुत सारी किताबें लिख दी आपने तो इस रिसर्च पर। (बैग को सामने लाकर
खोलता है। बैग में बहुत सारे कपड़े निकलते हैं। बैग सारा खाली कर देता है। कपड़ों के
अलावा कुछ नहीं मिलता है।)........सर इसमें तो कुछ नहीं है। सिवाय कपड़ो के। कपड़े
ही कपडे़ हैं।
प्रो.2-अरे
इसी में था, इसी में होगा, ध्यान से देखो।
रिपोर्टर-(फिर से एक-एक कपड़ा इधर उधर करके
देखता है।).........नहीं मिला सर। कपड़ो के अलावा कुछ नहीं मिला।
प्रो.-अरे उस छोटी वाली जेब में देखो।
रिपोर्टर-(बैग की छोटी वाली जेब में देखता है।
एक पेपर मिलता है। उसे वह साईड में फंेंक देता है।) सर इसमें भी नहीं है? एक कागज जरूर मिला है, बेकार सा।
प्रो.2-अरे
वही तो है रिसर्च मैटिरियल। लेके आओ।
रिपोर्टर-(उठाके लाता है और गौर से देखता है।)
सर इस छोटे से कागज में क्या है?
प्रो.-यही तो दिक्कत है। तुम लोग जानते तो हो
नहीं। आप लोग रिसर्च नहीं करते हो, न
पढ़ते हो। आप लोग तो सिर्फ न्यूज़ पढ़ते हो या सुनाते हो। यह 25वीं सदी है। नई तकनीक आ गई है। इस कागज
के एक-एक वाक्य क्या, एक-एक शब्द में मेरी दस-दस बुक्स हैं।
रिपोर्टर-(कागज को उलट-पलट कर गौर से देखता
है।) सर इसमें, कमाल है।..........लीजिए
सर।..........शुरू करें सर।
प्रो.2-हां
जल्दी करो। .............वो बीच में ब्रेक व्रेक तो लोगे ना।
रिपोर्टर-हां सर।..........दोस्तों नमस्कार।
ब्रेक के बाद आप सबका कल तक न्यूज़ चैनल में बहुत-बहुत स्वागत है। आप देख रहे हैं
राहुल श्रीधर के साथ अपना मनपसंद कार्यक्रम सर्च रिसर्च। दोस्तों आज हमारे साथ हैं
विश्व विख्यात साईंटिस्ट प्रोफ़ेसर बाटलीवाला। सर आपका सर्च रिसर्च कार्यक्रम में
बहुत-बहुत स्वागत है।
प्रो.-नमस्कार। थैंक्यू।
रिपोर्टर-दोस्तों प्रो. बाटलीवाला ने ‘21वीं सदी और महाभारत’ पर एक बहुत बड़ी रिसर्च की है जो कि 21वीं सदी और महाभारत पर एक तुलनात्मक
अध्ययन है। हम आज उसी रिसर्च से संबंधित बातचीत प्रो. बाटलीवाला से करेंगे। यह
पूरे विश्व की सबसे बड़ी रिसर्च आज तक की मानी गई है। उसी के कुछ बिंदुओं को लेकर
हम आज प्रो. बाटलीवाला से चर्चा करेंगे।
क्योंकि इनकी रिसर्च बहुत लंबी है, बहुत
बड़ा काम है। उसके लिए इन्होंने सैकड़ों बुक्स उस रिसर्च पर लिखी हैं। प्रो.
बाटलीवाला मेरा पहला सवाल आपसे यह है कि आपको यह रिसर्च करने की प्रेरणा कैसे मिली?
प्रो.-देखिए जब में बहुत छोटा था तो एक बार
हमारे गांव में एक जीप आई थी। वह कुछ प्रचार कर रही थी और पर्चे एवं छोटी छोटी
झंडियां बांट रही थीं। हम बच्चे थे। पर्चे और झंडियां लेने के लिए उसके पीछे-पीछे
दौड़ रहे थे। उस चक्कर में दौड़ते हुए मुझे एक झंडी तो मिल गई लेकिन मेरी दाहिनी
टांग टूट गई। तबसे मेरा नाम झंडा वाला हो गया। बाद में बाटली का अधिक प्रयोग करने
के कारण बाटलीवाला हुआ। जब मेरी टांग टूट गई तो हॉस्पिटल में मुझे भर्ती कराया
गया। वहां मैंने न्यूज़पेपर में 21वीं
सदी का एक समाचार देखा कि एक महिला के बहुत लंबे बाल हैं। मेरे मन में सवाल उठा कि
सुंदर, काले, लंबे, मजबूत बालों का कारण क्या है? तब से ही मेरी रुचि 21वीं सेंचुरी के बारे में जानने की बनी।
बाद में मैं ऐसे ही महाभारत देख रहा था तो मैंने नोट किया महाभारत की स्थितियों
में और 21वीं सदी की स्थितियों में बहुत
समानताएं हैंं। उसके बाद हमने कुछ और विजव्ल देखें तो हमने यह देखा कि जो लोग यह
कहते हैं की 21वीं सदी में बहुत भ्रष्टाचार, बलात्कार, अनैतिकता, बेईमानी ये पनप रही थीं या यह सभी बहुत
बदल गई थीं, ऐसा कुछ नहीं था। दरअसल यह सारी चीजें
महाभारत काल में मौजूद थीं। हमने पाया कि दोनों में बहुत समानता है। हमने आपको जो
सीडी दीं हैं उनको देखने से सब पता लग जायेगा। बस फिर क्या था। मैंने इन पर काम
करना प्रारंभ कर दिया और यह रिसर्च आपके सामने है।
रिपोर्टर-क्या बात है सर। देखिए प्रो.
बाटलीवाला ने अपने आप से प्रेरणा लेकर, अपने
आप से प्रभावित होकर यह रिसर्च शुरू की। यह वास्तव में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है
हमारे देश के लिए और आप सब युवाओं के लिए एवं हमारे दर्शक जो इस कार्यक्रम को देख
रहे हैं उनके लिए तथा पूरी दुनिया के लिए। मैं आप लोगों को बता दूं कि इस
कार्यक्रम के अंत में हम कुछ सवाल ऑडियंस की तरफ से लेंगे जो आप सीधे प्रो.
बाटलीवाला से पूछ सकते हैं। ........सर मेरा दूसरा सवाल...........।
प्रो.2-देखिए
ऐसे सवालों से तो बहुत समय खराब हो जायेगा। आप एक काम कीजिए जो हमने आपको सीडी दी
थी, उसे चलाईये। पहले कुछ विज्वल देखिए फिर
उन बिन्दुओं पर हम चर्चा करेंगे।
रिपोर्टर-हां यह ठीक रहेगा। (रिमोट से टीवी या
प्रोजेक्टर ऑन करता है। एक विज्वल आता है। मैगी का।)
बच्चा-मम्मी, मम्मी भूख लगी है।
पाप-ओ, बेटा, मम्मी कहां हैं? यहां तो पापा हैं, मम्मी गई मामा के। अब मुझे ऑफिस जाना
है, अब इतनी जल्दी तुम्हें क्या
दूं।..........ठीक है। रुको दो मिनट में अभी तैयार करता हूं। मैगी 2 मिनट में तैयार, यह लो।
बच्चा-वहा पापा यह तो बहुत टेस्टी है। (विज्वल
खत्म।)
रिपोर्टर-प्रो. बाटलीवाला यह कौनसा पदार्थ है? जो थोड़ा सा खाने से पेट भर जाता है और
दो मिनट में तैयार हो जाता है?
प्रो.-देखिए इस पदार्थ का नाम है मैगी। यह 2 मिनट में तैयार हो जाता था। दरअसल 21वीं सदी में लोग इतने भागते दौड़ते थे, कि उनके पास समय नहीं होता था। खाना
बनाने में खाने में बहुत समय जाया हो जाया करता था। उस समय, समय का बहुत अभाव था। न खाना बनाने के
लिए और न खाना खाने के लिए मिलता था। उस समय बड़े-बड़े साइंटिस्टों ने मिलकर एक ऐसा
खाद्य पदार्थ तैयार किया,
जो बहुत जल्दी तैयार हो जाए और थोड़ा सा
ही खाने से पेट भर जाए और उससे एनर्जी भी पूरी मिले।
रिपोर्टर-इसको खाने के बाद तीन चार घंटे तो भूख
नहीं लगती होगी?
प्रो.2-तीन
चार घंटे, अरे तीन चार दिन कहो, तीन चार दिन। कई-कई लोग तो मैगी को
खाने के बाद, महीनों तक कुछ नहीं खाते थे। एक दो
व्यक्ति तो ऐसे भी मिले हैं जो मैगी खाने के बाद एक साल तक खाना नहीं खाते थे।
जैसे मान लीजिए चांद पर जाए कोई तो अपने साथ दो तीन पैकिट मैगी के ले जाए, तीन चार महीने तो ऐसे ही निकल जायेंगे।
बाद में हमने रिसर्च किया तो पता चला कि इसका निर्माण किसने और क्यों किया?
रिपोर्टर-हां प्रो. सहाब बताइये इसका निर्माण
क्यों और किसने किया?
प्रो.-देखिये 21वीं सदी में जब रूठ के, या
किसी अन्य कारण से पत्नी मायके चली जाती थी तो पति नामक प्राणी बेचारा परेशान हो
जाता था, वह सोचता था बाकि सब तो ठीक है लेकिन
खाना बनाने में उसे बहुत दिक्कत होती थी। तो एक बार विश्व पीड़ित पति सम्मेलन
आयोजित किया गया और उसमें यह मुद्दा प्रमुख रूप से उठाया गया। उस सम्मेलन में एक
शादी सुदा साईंटिस्ट भी आए हुए थे। वह भी पीड़ित था इस समस्या से। वैसे उसकी पता
नहीं शादी कैसे हो गई, नहीं बहुधा साईंटिस्ट, कलाकार, पत्रकार, साहित्कार, कलमकार, इन कारों की शादियां या तो बहुत मुश्किल से होती थी, होती थी तो टिक नहीं पाती थी। खैर बाद
में उस पीड़ित साईंटिस्ट ने यह मैगी नामक खाद्य पदार्थ तैयार किया। ताकि पतियों को
कम मेहनत में अधिक खाना मिल सके। अक्सर उस समय पति कामचोर होते थे।
रिपोर्टर-लेकिन सर मैंने सुना है उस समय कुछ
समय के लिए इस पर बैन वगैरा लग गया था।
प्रो.2-नहीं, नहीं, ऐसा कुछ खास नहीं था। वह बैन तो दो चार महीने के लिए लगा था। और
दरअसल उसके पीछे भी महिलाओं की एक योजना थी। जब महिलाओं को यह पता लगा कि पुरुषों
ने एक ऐसा खाद्य पदार्थ तैयार किया है जो दो मिनट में तैयार हो जाता है और उसको
खाने के बाद कई दिनांे तक भूख नहीं लगती है तो उनका भी मन हुआ कि इस खाद्य पदार्थ
को खाया जाए और बनाया जाये। लेकिन मैगी का आविष्कार पीड़ित पति सम्मेलन से हुआ था।
इसलिए इस प्रोडक्शन के साथ ही यह शर्त रख दी गई थी कि यह सिर्फ पुरुष ही बनायेंगे।
महिलाओं को यह पदार्थ नहीं दिया जाता था।
रिपोर्टर-इसका मतलब महिलाओं ने कभी मैगी न खाया
न बनाया।
प्रो.-नहीं, नहीं, ऐसा नहीं है। उनको खाने के लिए तो कभी
कभार कोई पत्नी भक्त या गुलाम पति मैगी दे देते थे। लेकिन बनाने पर उनका
प्रतिबंद्ध था। क्योंकि यह एक खास विधी से बनाया जाता था जो कि सिर्फ पुरुषों को
ही सिखाई जाती थी। जैसे-बहुत सारी चीजें 18
वर्ष से कम उम्र वाले के लिए प्रतिबंधित होती हैं उसी तरह से। लेकिन जैसे ही
महिलाओं को इसके बारे में पता चला उन्होंने आंदोलन कर दिया। रामलीला मैदान पर कई
दिनों तक यह आंदोलन चला। पुरुषों को जब इसके बारे में पता चला तो उन्होंने एक
पुरुष को सूंट सलवार पहनाकर महिलाओं के इस आंदोलन में भेजा, कि जाओ पता करो महिलाएं क्या षडयंत्र
रच रहीं हैं। लेकिन महिलाओं को जल्द ही पता लग गया कि यह सूंट सलवार में महिला
नहीं पुरुष है तो उन्होंने उसे आंदोलन से खदेड़ दिया। बड़ी मुश्किल से वह पुरुष
महिला बनकर अपने आप को बचा पाया। दरअसल यह पुरुष अविवाहित था। इसलिए इसे महिलाओं
की मीटिंगों के बारे में अधिक अनुभव नहीं था। इसलिए पकड़ा गया। लेकिन बाद में इसी
पुरुष ने एक अन्य ब्रांड से मैगी का निर्माण किया और फिर यह महिलाओं के लिए भी
उपलब्ध होने लगा।
रिपोर्टर-महाभारत काल से इसका क्या संबंध है?
प्रो.2-बहुत
गहरा संबंध है।
रिपोर्टर-तो इसका मतलब महाभारत काल में मैगी
मिलती थी।
प्रो.-और क्या, महाभारत काल में भी मैगी मिलती थी। बस नाम अलग था। जब पांडव वनवास
में थे, उस समय उनके पास दुर्वासा ऋषी अपने
अनेक शिष्यों के साथ पहुंचे और द्रोपदी से कहा हम भोजन करेंगे, आप भोजन का प्रबंध करें। तब तक हम अपने
शिष्यों के साथ स्नान करके आते हैं। दुर्वासा ऋषी के आने से कुछ देर पूर्व ही
द्रोपदी और उनके पति भोजन कर चुके थे। हालांकि द्रोपदी के पास एक ऐसी सूर्य थाली
थी जिसमें जितना भोजन मांगों मिल जाता था। लेकिन वह सिर्फ दिन में एक बार ही
प्रयोग में ली जा सकती थी और द्रोपदी उसका प्रयोग कर चुकी थी। उसने अन्य बर्तन एवं
वह थाली धो कर रख दी थी। जब द्रोपदी इस चिंता में ग्रस्त थी कि अब इतनी जल्दी, इतने सारे लोगों के भोजन का प्रबंध
कैसे हो तो इतनी ही देर में कृष्ण वहां आ गए और उन्होंने भी आते ही द्रोपदी से
भोजन की मांग की। तब द्रोपदी ने कहा घर में कुछ भी खाने को नहीं है और दुर्वासा
ऋषि और उसके अनेक शिष्य भी आए हुए हैं भोजन करने के लिए, इसलिए मैं तो इसी दुविधा में परेशान
हूं कि इतने लोगों का भोजन अब कहां से लाऊं, ऊपर
से आप भी भोजन मांग रहे हैं। तो कृष्ण ने कहा मुझे बहुत जोर की भूख लगी है। तुम एक
काम करो वह थाली ही ले आओ हो सकता है उसमें कोई दाना ही लगा रह गया हो। द्रोपदी
थाली लाई तो उसमें एक चावल का दाना लगा हुआ था। वह कृष्ण ने खाया और उनका पेट भर
गया। पेट भरते ही उन्होंने डकार ली, तो
उधर दुर्वासा ऋषी एवं उनके शिष्यों को पेट भर गया। वह चावल क्या था, वही मैगी था। 21वीं सदी में उसी का नाम मैगी रखा गया।
रिपोर्टर-देखीए कितनी महत्त्वपूर्ण बात प्रो.
बाटलीवाला ने हमें बताई है। सर इसे कहते हैं रिसर्च। अब आपको पता लग रहा होगा कि
रिसर्च क्यों जरूरी है। सर हम लोग अगला विजव्ल देखें।
प्रो.2-हां
हां, जरूर। (रिपोर्टर रिमोट से फिर
प्रोजेक्टर ऑन करता है। एक लड़की आती है। उसे चार पांच लड़के घेर लेते हैं।)
लड़की-क्या है? क्या बदतमीजी हैै यह? मैं
पुलिस को फोन कर दूंगी।
एक लड़का-कह तो ऐसे रही है जैसे पुलिस इसके फोन
करते ही आ जायेगी।
दूसरा लड़का-मैडम पुलिस यदि फोन करते ही आने लग
जाये तो हम जैसे लोगों की हिम्मत ही कहां हो यह सब करने की, पुलिस और सिस्टम ही तो हमें यह सब करने
का होंसला देते हैं। (एक लड़का और आता है।)
अन्य लड़का-ऐ छोड़ो इसे। (सभी लड़के मिलके उसे ही
पीट देते हैं। वह लड़का पेप्सी पीता है और फिर उन लड़को को मार कर भगा देता है।)
ताकत और हिम्मत के साथ जीओ,
पैप्सी पिओ। (रिपोर्टर रिमोट से
प्रोजेक्ट को पोज कर देता है।)
रिपोर्टर-प्रो. बाटलीवाला यह बात समझ में नहीं
आई, एक व्यक्ति को चार पांच व्यक्ति पीटते
हैं। वह व्यक्ति बाद में एक पेय पदार्थ पीता है जिसके कारण उसमें इतनी ताकत आ जाती
है कि वह चार पांच लोगों को पीट देता है। यह कैसे? समझ में नहीं आया सर।
प्रो.-देखो आपकी समझ में नहीं आएगा। क्योंकि
रिसर्च हमने की है न। दरअसल यह एक एनर्जेटिक पेय पदार्थ होता था। इसको पीने के बाद
बहुत ताकत आ जाती थी। इसको पीने के बाद कई दिनों तक प्यास नहीं लगती थी। चार पांच
नहीं 50 लोगों को मार सकता है। बहुत ताकतवर
पेय पदार्थ होता था। अलग-अलग ब्रांड निकलते थे। 21वीं सदी में जब कहीं पर भी कोई झगड़ा हो जाता था, कोई विवाद हो जाता था तो लोग इसी पेय
पदार्थ को पी कर जाते थे और अपनी ताकत के माध्यम से सामने वाले को मार देते थे।
जैसे कई लोग ताकत बढ़ाने के लिए प्रोटीन, केल्सियम, विटामिन लेते हैं। इसको पीने के बाद यह
सब लेने की जरुरत नहीं है।
रिपोर्टर-प्रो. महाभारत से इसका क्या लिंक है।
मतलब महाभारत काल में भी इस तरह का ताकत देने वाला पेय पदार्थ मिलता था क्या?
प्रो.2-महाभारत
से इसका बहुत गहरा संबंध है। बल्कि वास्तविकता तो यह है कि 21वीं सदी का यह पेय पदार्थ जिसे पेप्सी, कोक, डियू कहा जाता था। यह महाभारत काल से ही प्रेरणा लेकर तैयार किया गया
था। जब कौरव और पांडव छोटे थे तो दुर्योधन ने भीम को खाने में जहर दे दिया। भीम
बेहोश हो गए, तो दुर्योधन ने भीम को सागर में डलवा
दिया। वहां बहुत सारे सांपों ने भीम को डस लिया, तो भीम को होश आ गया। होश आने पर भीम सांपों को मारने लगा। इस बात पर
सांप गुस्सा हो गए और भीम को सांपों के राजा वासुकी के पास ले गए। वहां पर एक सांप
जो कि कुंती के रिश्तें में कुछ लगता था, उसने
भीम को पहचान लिया और सांपों के राजा वासुकी को यह बताया। तो वासुकी ने भीम का एक
ऐसा पेय पदार्थ पिलाया जिससे भीम में दस हाथियों की ताकत आ गई। इसी पेय पदार्थ की
ताकत के बल पर भीम ने महाभारत का युद्ध जीता था।
रिपोर्टर-प्रो. बाटलीवाला ने कितनी
महत्त्वपूर्ण जानकारी हमें दी है। सर कमाल कर दिया आपने तो। सर अगला विजव्ल देखें।
प्रो.-हां देखिए।
रिपोर्टर-(रिमोट से प्रोजेक्टर ऑन करता है।
गाना बजता है। दिल के झरोखे में तुझको बैठाकर, रखूंगा
मैं दिल के पास, मत हो मेरी जां उदास।) प्रो. साहब मेरी
समझ में नहीं आया कि दिल,
झरोखा यह क्या है?
प्रो.2-देखिए
दिल की बातें जल्दी से सबको समझ में नहीं आती, फिर
आप कैसे समझ पाएंगे। इसलिए हम कुछ और विजव्ल देखते हैं फिर शायद आप समझ जाओ।
रिपोर्टर-(रिमोट से प्रोजेक्टर ऑन करता है।
गाना बजता है। दिल चोरी साडा हो गया ओय की करिये की करिये,...........दिल को चुरा कर अपना बनाकर।) प्रो.
साहब एक बात मेरी समझ में अभी भी नहीं आई। ये दिल चुराने की बात कर रहे हैं? क्या 21वीं सदी में दिल कोई बहुत महत्त्वपूर्ण वस्तु हुआ करती थी?
प्रो.-एग्जैक्टली। दरअसल दिल एक बहुत बड़ा
अपार्टमेंट होता था। इतना बड़ा अपार्टमेंट होता था कि उसके अंदर तांक झांक करने के
लिए झरोखे, खिड़कियां और रोशनदान तक होते थे। दिल
बहुत ही कीमती वस्तु हुआ करती थी। दिल बहुत प्रेसियस चीज हुआ करती थी। इसे सब लोग
चुराना चाहते थे। इसलिए चोरी के डर से लोग अपने दिलों को छुपा के रखते थे।
रिपोर्टर-मतलब आप यह कहना चाहते थे कि दिल एक
बहुत बड़ा कमरा हुआ करता था। तो प्रो. साहब इस अपार्टमेंट को सभी लोग चुरा लिया
करते होंगे। इसका मतलब इक्कीसवीं सदी में तो बहुत चोरी हुआ करती थीं?
प्रो.2-देखिए
ये दिल ऐसी कीमती चीज हुआ करती थी की उसे सब लेना चाहते थे। परन्तु यह सब को मिलता
नहीं था?
रिपोर्टर-प्रो. साहब आप कहना क्या चाहते हैं, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है?
प्रो.-आप एक विजव्ल और दिखिए फिर समझ जायेंगे।
रिपोर्टर-(रिमोट से प्रोजेक्टर ऑन करता है।
गाना बजता है। तुम दिल की धडकन में रहते हो रहते हो।) प्रो. साहब मेरी समझ में अभी
भी नहीं आया। ये अपार्टमेंट, झरोखा
ही समझ में नहीं आ रहे अब यह धड़कन और आ गई। मतलब यह धड़कन क्या था?
प्रो.-दिखिए दिल और धड़कन के बीच में कोलाबेरशन
और कोओरडीनेशन था।
रिपोर्टर-तो यह धड़कन क्या थी सर?
प्रो.-धड़कन इज...........ए स्पेशल रूम।
रिपोर्टर-मतलब धड़कन एक स्पेशल रूम था।
प्रो.2-एग्जैक्टली।
रिपोर्टर-तो यह जो धड़कन नामक स्पेशल रूम था, इसमें तो कोई भी रह सकता था आकर?
प्रो.-दिखिए मैंने बताया न धड़कन इज ए स्पेशल
रूम। और स्पेशल रूम में कौन रहता है, स्पेशल
लोग।
रिपोर्टर-मतलब आप यह कहना चाहते हैं कि दिल
नामक जो अपार्टमेंट हुआ करता था। उसमें धड़कन नामक एक तहखाना था, मतलब र्ड्राइंग रूम टाईप का। मतलब
इसमें एप्लाई तो सब करते थे लेकिन एंट्री किसी-किसी को ही मिलता थी।
प्रो.2-एग्जैक्टली।
बिल्कुल सही पकड़े हैं आप। ऑल आर इलिजबल बट नोट आर सूटेबल।
रिपोर्टर-देखिए कितनी महत्त्वपूर्ण जानकारी
प्रो. साहब दे रहे हैं। मैं चाहता हूं आप सब यह नोट करलें, हो सकता इस तरह के सवाल अगले साल
परीक्षा में आ जायें। प्रो. आपने बताया दिल, अपार्टमेंट..............लेकिन
एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही,............इसे
कौन लोग चुराते थे और क्यों चुराते थे?
प्रो.-कुछ और विजव्ल दिखिए, स्पष्ट हो जायेगी।
रिपोर्टर-(रिमोट से प्रोजेक्टर ऑन करता है।
गाना बजता है। चुरा के दिल मेरा गौरिया चली, मंजिल
मेरी बस तू ही तू।.......... चुरा लिया है तुमने जो दिल को नजर नहीं चुराना सनम।)
प्रो. साहब मेरी समझ में अभी भी नहीं आया कि दिल को चुराने वाले कौन थे?
प्रो.2-देखिए
मैंने आपको बताया कि दिल प्रेसियस चीज हुआ करती थी। महत्त्वपूर्ण। अब महत्त्वपूर्ण
चीज को तो सभी चुराना चाहेंगे। दिल को चुराने वाली एक गैंग हुआ करती थी। यह एक
विशेष प्रकार की गैंग थी। जो पूरे योजनाबद्ध तरीके से किसी के दिल को चुराती थी।
ये लोग पहले प्लान करते थे कि किसका दिल चुराना है, कहां चुराना है, कैसे
चुराना है? इस गैंग का नाम होता था माशूका, प्रियतमा, महबूबा, सनम, प्रेमी, प्रेमिका, आशिक आदि।
रिपोर्टर-कितनी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रो.
बाटलीवाला ने हमें दी है कि दिल को चुराने वाली एक महत्त्वपूर्ण गैंग हुआ करती थी।
लेकिन प्रो. साहब एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही...........।
प्रो.-एक और विजव्ल देंखे।
रिपोर्टर-जी प्रो. साहब, सही कहा आपने।
प्रो.-तो देखो।
रिपोर्टर-(रिमोट से प्रोजेक्टर ऑन करता है।
गाना बजता है। सीसा हो या दिल हो आखिर टूट जाता है।) प्रो. साहब आपने बताया दिल एक
अपार्टमेंट हुआ करता था। एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि फिर यह अपार्टमेंट टूटता
कैसे था। मतलब समझ में नहीं आया?
प्रो.2-देखिए
दिल नामक अपार्टमेंट में जो स्पेशल रूम था, जिसमें
स्पेशल लोग रहते थे। वे स्पेशल लोग कभी-कभी यह रूम छोड़कर चले जाते थे तो
अपार्टमेंट टूट जाता था। क्योंकि 21वीं
सदी में दिल बहुत ही कीमती चीज थी और जब यह कीमती चीज टूट जाती थी या चोरी हो जाती
थी तो कुछ लोग पागल हो जाते थे। उन लोगों को एक खास किस्म का रोग हो जाता था। जिसे
इश्क कहते थे। यह बिमारी अक्सर 16 से
35 वर्ष तक की आयु वाले युवक युवतियों को
अधिक होती थी। लेकिन कभी-कभी इस बिमारी के कुछ जीवाणु 60 या 65 की उम्र में भी सक्रीय हो जाया करते थे। किन्तु ऐसे केस कम ही मिलते
हैं।
रिपोर्टर-कोई एक दो, केस के नाम बता सकते हैं प्रो. साहब।
प्रो.-हां............जैसे, आशाराम, दिगविजय सिंह,
मटूकनाथ, जूली, रामपाल आदि।
रिर्पोटर-क्या बात है कितनी महत्त्वपूर्ण
जानकारी प्रो. साहब आज दे रहे हैं और आप सब ये जानकारियां हमारे चैनल के माध्यम से
देख रहे हैं। प्रो. साहब एक बात बताईये जब किसी का दिल चोरी होता था तो लोग
कम्पलैंड कहां करवाते थे?
प्रो.2-दरअसल
दिल को लोग अनलिगली तरीके से चुराते थे। इसलिए पुलिस में इसकी कम्पलैंड नहीं हो
सकती थी। इसीलिए लोग बीमार हो जाते थे। हां इसका ईलाज एक ही था जिसका दिल चोरी हो
गया, वह भी यदि किसी का दिल चुरा लेता था तो
संभवतः वह ठीक जाता था।
रिपोर्टर-तो प्रो. साहब महाभारत काल में भी
क्या इसी तरह से दिल नामक अपार्टमेंट चुराये जाते थे?
प्रो-यह दिल चुराने की परंपरा महाभारत काल से
चली आ रही है। महाभारत के समय में भी खूब दिल चोरी होते थे। कई बार तो इस दिल
चुराने के चक्कर में युद्ध तक हो जाते थे। दुर्याेधन की लड़की लक्ष्मणा ने कृष्ण के
लड़के का दिल चुरा लिया था। उर्वशी ने पुरुरवा का दिल चुराया लिया था। शकुंतला ने
दुष्यंत का दिल चुराया था। अम्बा ने शाल्वा का दिल चुराया। ययाती ने सर्वमिष्ठा का
दिल चुराया। सुभद्रा ने अर्जुन का दिल चुराया। यहां तक की भगवान कृष्ण का दिल भी
चोरी हो गया था। उसे चुराया था रूकमणी ने। इनके अलावा कर्ण का लड़का, कृष्ण, भीम इन सब के दिल भी चोरी हुई थे। महाभारत काल के समय राजा शांतनू का
दिल चोरी हो गया। बाद में बहुत छान बीन करने के बाद पता चला की उनका दिल एक घीवर
की कन्या सत्यवती ने चुराया है। सत्यवती से कहा गया कि दिल को वापिस कीजिए।
सत्यवती ने दिल वापिस करने के लिए बहुत बड़ी फिरोती की मांग की।
रिपोर्टर-सत्यवती की फिराती की मांग क्या थी?
प्रो.2-उसने
कहा जब तक राजा शांतनु मेरे पुत्र को राजा बनाने का वचन नहीं देंगे, वे दिल नहीं देंगी। शांतनु ने ऐसा करने
से मना कर दिया।
रिपोर्टर-फिर?
प्रो.-फिर क्या था, दिल नामक प्रेसियस चीज चोरी होने से
शांतनु को इश्क नामक भंयकर व्याधि हो गई। वैद्यों ने कहा इस बीमारी का एक ही ईलाज
है कि किसी भी तरह से इनका दिल वापस लाया जाए। तब उनके पुत्र भीष्म ने बहुत बड़ी
कीमत चुका कर शांतनु का दिल सत्यवती से लाकर दिया। इसलिए यह दिल चुराने की परंपरा
महाभारत काल से चली आ रही है। हां 21वीं
सदी में यह कुछ ज्यादा हो गई थी।
रिपोर्टर-वहा, क्या बात है। इसका मतलब यह दिल नामक अपार्टमेंट चुराने की परंपरा एवं
इश्क नामक बीमारी महाभारत काल से चली आ रही है। जो बाद में 21वीं सदी में कुछ अधिक ही फली फूली।
प्रो. साहब बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी आप दे रहे हैं, लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही
है।
प्रो.2-एक
बात मैं आपको ओर बताता हूं। और यह मैं नहीं बोल रहा हंू रिसर्च बोल रहा है, जब किसी का दिल टूटता था तो इसका असर
अनेक जगह पड़ता था। जैसे-शेयर मार्केट वगैरा।
रिपोर्टर-वहा प्रो. कितनी महत्त्वपूर्ण बात
आपने अभी अभी बताई है। तो इसका इसका मतलब 21वीं
सदी में ये जो शेयर के भावों में उतार चढ़ाव आता था वो किसी के दिल टूटने के कारण
होता था।
प्रो.-एग्जैक्टली। बिलकुल सही पकड़े हैं आप। यू
आर इंटैलिजेंट बॉय। तुम मुझसे मिलना मैं तुम्हारे लिए कुछ करता हूं।
रिपोर्टर-थैंक्यू सर। देखिए दिल टूटने का असर
शेयर मार्केट तक पर होता था। ........प्रो. साहब एक बात मेरी समझ में नहीं आई। आप
तो इतनी रिसर्च करते हैं और आज कल कॉलेज यूनिवर्सिटी में भी बहुत रिसर्च हो रही
है। जो स्टूडेंट रिसर्च करते हैं, उनमें
से कई स्टूडेंटस ने कंपलैंड की है कि उनका गाईड उनसे अपने नीजी काम करवाता है।
जैसे उनके कुत्तों को घुमाने ले जाना, उनके
घर में सब्जी लाना, बच्चों को खिलाना आदि आदि। यह सब क्या
है प्रो. साहब?
प्रो.2-गुरू
दक्षिणा।
रिपोर्टर-प्रो. बाटलीवाला यह तो गलत है। इस तरह
से तो..........।
प्रो.2-देखिये
इसमें कुछ गलत नहीं है। गुरु दक्षिणा वाला कांसेप्ट महाभारत काल से चला रहा है। यह
जो 21वीं सदी में गाइड स्टूडेंट से इतने
सारे काम करवाता था, यह गलत नहीं है। यह गुरु दक्षिणा है और
यह गुरु दक्षिणा की परंपरा महाभारत काल से चली आ रही है। बस 21वीं सदी में उसका रुप बदल गया। आप एक
विजव्ल देखिए, उससे सारी स्थिति स्पष्ट हो जायेगी।
रिपोर्टर-जी.......(रिमोट से प्रोजेक्टर ऑन
करता है। द्रोणाचार्य और एकलव्य का दृश्य।)
द्रोणाचार्य-इस कुत्ते के मुंह में बाण तुमने
चलाएं हैं?
एकलव्य-जी गुरूदेव।
द्रोणाचार्य-किसने सिखाई तुम्हें यह धनुर
विद्या? कौन है तुम्हारा गुरु?
एकलव्य-आप है मेरे गुरु, गुरुदेव, आपसे ही सीखी है मैंने यह धनुर विद्या।
द्रोणाचार्य-तो फिर धनुर विद्या सीखने का नियम
भी जानते होंगे। उसके लिए गुरु दक्षिणा देनी बहुत जरूरी है। अन्यथा आप पाप के भागी
बनेंगे।
एकलव्य-आदेश करें गुरुदेव, क्या गुरु दक्षिणा देनी है? हालांकि मैं बहुत गरीब और पिछड़े हुए
परिवार का लड़का हूं और अछूत भी। इसीलिए मुझे आप की पाठशाला में दाखिला भी नहीं
मिला। पर आप आज्ञा दीजिए,
क्या गुरु दक्षिणा देनी है।
द्रोणाचार्य-हमें आपके दाहिने हाथ का अंगूठा
चाहिए।
एकलव्य-(अंगूठा काट कर देता है।) यह लो
गुरुदेव।
रिपोर्टर-(विजव्ल को पॉज करता है।) प्रो. साहब
यह क्या है? गुरु ने अपने शिष्य का अंगूठा ले लिया।
प्रो.-यही तो है गुरु दक्षिणा।
रिपोर्टर-लेकिन यह तो गलत है। इस तरह का सिस्टम
नहीं होना चाहिए।
प्रो.2-यह
कुछ भी गलत नहीं है। गुरु दक्षिणा तो सबको देनी पड़ती है और देनी चाहिए।
रिपोर्टर-लेकिन प्रो. सबको देनी चाहिए तो फिर
अर्जुन ने गुरु दक्षिणा क्यों नहीं दी?
प्रो.-किसने कहा तुमसे अर्जुन ने गुरु दक्षिणा
नहीं दी? तुमने महाभारत पढ़ी है?
रिपोर्टर-नहीं वो देखी है,.......टी.वी. पर।
प्रो.-यही तो दिक्कत है। पढ़ना तो आज कल कोई
चाहता ही नहीं। न किताब, न चेहरा। सब देखना चाहते हैं। इसलिए
लोग अंदर से कैसे भी हों लेकिन ऊपर से अपने आप को बड़ा टिपटोप रखते हैं। सबको शार्ट
कट चाहिए। इसलिए आधी अधूरी जानकारी रखते हैं।..........अर्जुन ने भी गुरु दक्षिणा
दी थी। हां यह बात अलग है कि उसने गुरु दक्षिणा स्वयं नहीं दी। उसके फादर ने दी
थी। गुरु को दरबार में पद दिया, पैसा
दिया, प्रतिष्ठा दी, घर बार सब कुछ दिया, यह सब क्या था?
रिपोर्टर-गुरु दक्षिणा।
प्रो.2-एगजैक्टली।..............अब
एकलव्य जैसा स्टूडेंट अंगूठे के अलावा और दे भी क्या सकता था? क्योंकि उसकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति
बहुत निम्न थी। दूसरा गुरु ने दक्षिणा में मांगा ही अंगूठा था। गुरु जो मांगेगा
शिष्य वही तो देगा। इसलिए महाभारत काल से लेकर इक्कीसवीं सदी तक यह गुरु दक्षिणा
का कॉन्सेप्ट चला रहा है। जो स्टूडेंट स्वयं गुरु दक्षिणा देता है, वह बाद में गुरु बनता है तो वह भी गुरु
दक्षिणा लेकर इस परंपरा का निर्वहन करता है। क्योंकि उसने भी गुरु दक्षिणा दी है।
अतः यह गलत नहीं है। हां बहुत सारे राजा-महाराजाओं की संतानें गुरु दक्षिणा नहीं
देती थी लेकिन जो एकलव्य की तरह होते थे, उन्हें
तो देनी पड़ती थी।
रिपोर्टर-सर 21वीं सदी में राजा महाराजा होते थे?
प्रो.-मैंने कहा न आप लोग पढ़ते तो हो नहीं।
रिपोर्टर-सर जहां तक मुझे पता है, भारत में अंग्रेजों के शासन काल में 19वीं सदी तक तो कुछ राजा-महाराजा थे, लेकिन 21वीं सदी तक आते-आते राजतंत्र खत्म हो गया और लोकतंत्र स्थापित हो
गया। इसलिए राजा-महाराजा सब खत्म हो गए।
प्रो.2-अभी
हम लोग कौनसी सदी में हैं?
रिपोर्टर-25वीं
सदी में।
प्रो.-कितनी सदियां हो गईं 21वीं सदी बीते?
रिपोर्टर-चार सर।
प्रो.-यहां चार दिन पहले क्या हुआ था, यह तो लोगों को याद नहीं रहता, चार सौ साल पहले का क्या याद रहेगा। और
याद भी रह जाए पर ठीक से पढे़ तब न! तुम लोग इतिहास को ठीक से पढ़ते हो नहीं। राजा
महाराजा हमेशा से रहे हैं। बस उनका रूप बदला है। 21वीं सदी में सफेद वस्त्र पहने हुए, सर पर टोपी लगाए हुए, रंग
बिरंगी सदरी पहने हुए या शिफॉन कि कलफ दी हुई साड़ी पहने हुए, हाथ जोड़े हुए, मंचों पर बहुत लंबे लंबे आश्वासन भरे
भाषण देने वाले लोग, जिन्हें उस समय राजा का ही पर्यायवाची
राजनेता कहा जाता था। कौन थे ये लोग? राजा
ही तो थे और क्या थे? उनके भी ठाठ-बाट, रहन-सहन, चाल-चलन, राजा जैसे ही थे। महाभारत काल में जैसे
राजा महाराजाओं के बच्चे बड़े-बड़े निजी गुरुकुलों में, बड़े-बड़े निजी आश्रमों में विद्या
प्राप्त करते थे। जैसे-कौरव और पांडवों के बच्चे। और गरीबों के बच्चे राजकीय
आश्रमों में अध्ययन करते थे। एकलव्य जैसे। ऐसे ही 21वीं सदी में जो राजा थे उनके बच्चे भी बड़े-बड़े मंहगे और प्राईवेट
गुरुकुलों में पढ़ते थे। 21वीं सदी में इन गुरुकुलों और आश्रमों
के नाम बदल दिए गए। इन्हें इंस्टीट्यूट, कॉलेज
या यूनिवर्सिटी कहा जाने लगा। जैसे ऑक्सफोर्ड, फिलिपिंस, ब्रिटेनिया, अमेरिका तथा भारत में भी कुछ बड़ी-बड़ी
यूनिवर्सिटियों थी। अब जिन लोगों को पता नहीं है, वे कुछ भी कहते रहते हैं। बाकी 21वीं
सदी में ऐसा कुछ भी नया नहीं है जो महाभारत काल में नहीं था। सब परंपरागत रुप से
चला रहा है
रिपोर्टर-प्रो. साहब बड़ी दिलचस्प जानकारी आप
दें रहे हैं। निःसंदेह आप सब यह लिख लीजिए, क्योंकि
अन्य जगह इस तरह की महत्त्वपूर्ण जानकारी आपको मिलने वाली नहीं है। प्रो. साहब हम
कुछ और जानना चाहेंगे आपसे। लेकिन उससे पहले लेते हैंं हम एक छोटा सा ब्रेक। आप
कहीं मत जायेगा, हम अभी हाजिर होते हैं सिर्फ दो मिनट
में। (रिपोर्टर खड़ा होकर कहीं जाता है। इधर उधर कुछ व्यवस्था देखता है। एक युवक दो
प्लेट में नमकीन और स्वीट लेके आता। साथ में कुछ ठंडा भी है दो गिलासों
में।).............सर हम लोग ब्रेक में हैं। तब तक आप कुछ नाश्ता लीजिए।
प्रो.2-ब्रेक
थोड़ा जल्दी लिया करो। (प्रो. बाटलीवाला कुछ एक बीड़ी जला लेते हैं और बीड़ी पीते हुए
नाश्ता करते हैं। रिपोर्टर बीड़ी जलाने के बाद देखता है।)
रिपोर्टर-प्रोफेसर साहब यह क्या कर रहे हैं? यह स्टूडियो है।
प्रो.2-क्यों
क्या हुआ? अभी तुमने ही तो कहा हम ब्रेक में हैं।
क्या हम लोग ब्रेक में नहीं है क्या?
रिपोर्टर-सर ब्रेक में ही हैं।
प्रो.2-तो
फिर कोई देख थोडे़ ही रहा है।................क्या दिक्कत है?
रिपोर्टर-सर ऑडियंस बैठी है सामने, समझा करो सर। बाकि लोग नहीं देख रहे पर
ये तो देख रहे हैं। फिर पब्लिक पैलेस पर धूम्रपान वर्जित है। दिक्कत हो जाएगी सर।
यह स्टूडियो पूरा ऐसी है,
कवर्ड है। सब जगह धुआं ही..........।
प्रो.2-क्या
धुआं-धुआं लगा रखा है। कहां दिखाई दे रहा है तुम्हंे धुआं?
रिपोर्टर-सर बीड़ी से धुआं...........।
प्रो.2-अरे
तो कहां हैं धुआं, बताओ? (रिपोर्टर गंभीरता से एंव बाद में आश्चर्य के साथ इधर उधर देखता है।
उसे धुआं कहीं नहीं दिखाई देता है।)
रिपोर्टर-सर.............वो..............सर..............बीड़ी
से.............धुआं नहीं है..................वो बीड़ी से तो..........।
प्रो.2-क्या
वो......वो लगा रखा है।............धुआं कहीं दिखाई दिया तुम्हें। यह नई तकनीक से
बनाई गई, बहुत ही विशिष्ट बीड़ी है। इसमें से
धुआं नहीं निकलता समझे। हम लोग 2525
में बैठे हैं। यह 21वीं सदी नहीं है। 21वीं सदी में धुएं वाली बीड़ी चलती थी।
रिपोर्टर-प्रो. साहब सॉरी वो........दरअसल मैं
समझा......लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आई?
प्रो.2-तुम
हमेशा यही कहते हो एक बात मेरी समझ में नहीं आई, जबकि वास्तविकता यह है कि तुम्हें एक भी बात समझ में नहीं
आई।......बताओ कौनसी बात तुम्हारी समझ में आई?
रिपोर्टर-सर समझ में नहीं आई इसीलिए तो पूछ रहा
हूं।
प्रो.2-हां
पूछो, क्या पूछना चाहते हो।
रिपोर्टर-प्रो. साहब आप इतने बडे़ साईंटिस्ट
हैं, फिर भी बीड़ी पीते हैं? मेरा मतलब सिगरेट
वैगेरा................।
प्रो.2-हम
जैसे लोग गुरु भक्त और पिताजी की बात मानते हैं। दूसरे लोगों की तरह नहीं। एक बार
मैं सिगरेट पी रहा था, मेरे पिताजी ने देख लिया। उन्होंने
हमारे गुरुजी से शिकायत कर दी। हमारे गुरुजी ने कहा धुम्रपान सेहत के लिए हानिकारक
है, आज के बाद सिगरेट बंद। हमने कहा ठीक है
गुरुदेव। उस दिन से आज तक मैंने सिगरेट को हाथ नहीं लगाया।
रिपोर्टर-लेकिन प्रोफ़ेसर साहब आप बीड़ी तो पी
रहे हैं।
प्रो.2-भैई
उन्होंने सिगरेट के लिए मना किया था, बीड़ी
के नहीं।
रिपोर्टर-क्या बात है प्रो. साहब, क्या दिमाग पाया है। लेकिन एक बात मेरी
समझ में नहीं आई कि बीड़ी भी तो नुकसान करती है, इसमें
तंबाकू होती है।
प्रो.2-देखिए
आप जानते नहीं है, यह बीड़ी हमने बहुत शोध करके निर्मित की
है। इसमें धुआं निकलता ही नहीं। इसमें तंबाकू है ही नहीं है। यह तंबाकू रहित बीड़ी
है। इसे कोई भी पी सकता है। इससे कुछ भी हानि नहीं होती।
रिपोर्टर-सॉरी प्रो. साहब मुझे पता नहीं
था।.............हम लोग चलें सर?
प्रो.2-हां
चलिए, पर कहां चलना है?
रिपोर्टर-नहीं सर, वो हम लोग ब्रेक से निकल के शो के लिए
आगे चलें।
प्रो.2-तो
ऐसे बोला न, देखो सही भाषा का प्रयोग करोगे तो उसका
अर्थ भी सही निकलेगा।
रिपोर्टर-सॉरी सर।..........।
प्रो.2-कोई
बात नहीं। चलिए, अब जहां भी चलना है।
रिपोर्टर-दोस्तों नमस्कार। ब्रेक के बाद फिर से
आपका स्वागत है। मैं हूं राहुल श्रीधर और आप देख रहे हैं न्यूज चैनल कल तक चैनल पर
प्रसारित आपका खास कार्यक्रम सर्च रिसर्च। सर्च रिसर्च कार्यक्रम में आज हम बात कर
रहे हैं विश्वविख्यात साईंटिस्ट प्रो. बाटलीवाला से। जिन्होंने 21वीं सदी एवं महाभारत को लेकर एक
तुलनात्मक रिसर्च किया है। प्रो. बाटलीवाला फिर से आपको स्वागत है।
प्रो.-जी शुक्रिया।
रिपोर्टर-प्रो. साहब हम कुछ और दृश्य देखें
ताकि अन्य जानकारी हमें मिल सकें।
प्रो.-हां देखिए।
रिपोर्टर-(रिमोट से प्रोजेक्टर ऑन करता है। दो
तीन युवक बैठे हैं।)
एक-भाई क्या हुआ? तू तो बाप बनने वाला था न!
दो-हां तो बन गया?
तीन-क्या हुआ? लड़का या लड़की?
दो-लड़का। अपन ने तो पहले पता लगा लिया था
सोनाग्राफी से कि लड़का होगा। लड़की होती तो रखते ही नहीं, सफाई करवा देते।
एक/तीन-बधाई हो भाई।
एक-यह अच्छा किया। हम भी इस बार सोनाग्राफी
करवायेंगे और पहले ही पता लगा लेंगे।
तीन-और यदि लड़की हुई तो?
एक-सफाई...........।
रिपोर्टर-(विजव्ल पॉज करता है।) प्रो. साहब यह 21वीं सदी का विजव्ल है?
प्रो.-हां 21वीं
सदी का।
रिपोर्टर-सर यह तो बहुत गलत होता था। लड़कियों के
साथ अन्याय होता था। लड़कों की चाहत में लड़कियों को मार दिया जाता था। इसलिए 21वीं सदी में लिंगानुपात बहुत बढ़ गया
था। इसका मतलब 21वीं सदी में लड़कों की चाहत बहुत बड़ गई
थी। सर यह तो बहुत बड़ी समस्या थी।
प्रो.2-तुम
लोग पढ़ते नहीं हो इसलिए तुम्हें जानकारी नहीं है। दरअसल यह समस्या महाभारत काल से
चली आ रही है। लड़कियों की कमी तो महाभारत काल से ही है। धृतराष्ट्र के कितने पुत्र
थे।
रिपोर्टर-सौ।
प्रो.-आपको इनमें से दो चार के नाम भी याद
होंगे? आपको क्या दो चार के नाम तो लगभग सभी
को याद होंगे। उनकी पुत्रियां कितनी थीं?
रिपोर्टर-शा......यद..........एक।
प्रो.2-सही
कहा, एक। उसका नाम क्या था?
रिपोर्टर-वो.............वो...............।
प्रो.-क्या हुआ? याद नहीं है। (ओडियंश से।) आपमें से कोई बता सकता है। इनको भी नहीं
पता। दुःशला। पहली बात तो यह कि एक पुत्री होने के बाद भी उसका नाम याद नहीं है।
तो महिलाओं के बारे में हमारा नजरिया क्या है यह पता लग रहा है। दूसरी बात यह कि
अब आप देख लीजिए सौ पुत्र और एक पुत्री। यानी लड़कियों की संख्यां उसी समय से कम
है।
रिपोर्टर-यह तो सही कहा प्रो. साहब आपने।
प्रो.-एक तथ्य और देखिए। द्रोपदी के पांच पति
थे। यानी लड़कियों की कमी की वजह से पांच पुरुष एक ही स्त्री से शादी करते हैं।
इससे यह पता लगता है कि जो लोग यह कहते हैं कि 21वीं सदी में लड़कियों की बहुत कमी थी, वो कितना गलत कहते हैं। दरअसल लड़कियों की कमी तो महाभारत काल से ही
रही है।
रिपोर्टर-वहा प्रो. साहब। आपने बहुत सारे
लोेगों की आंखें खोल दी। अब तक बहुत सारे लोग इस तरह की बातों से अनभिज्ञ थे।
प्रो.2-जानेंगे
तो तब न, जब पढ़ेंगे या रिसर्च करेंगे। रिसर्च तो
हमने किया है न।
रिपोर्टर-प्रो. साहब इसका कारण क्या था? मेरा मतलब यह तो सिद्ध हो गया कि
लड़कियों की कमी महाभारत काल से ही रही है। लेकिन कमी क्यों थी? इसका कारण क्या था? आपने तो रिसर्च किया ही होगा।
प्रो.2-वैरी
गुड क्यूशचन। आप इंटैलिजेंट तो हैं।
रिपोर्टर-थैंक्यू सर। थैंक्यू।
प्रो.-देखिए हमने इसकी रिसर्च की। इसका कारण
खोजा तो यह पता लगा कि एक तो महाभारत काल के समय में युद्ध बहुत हुआ करते थे और
युद्ध के कारणों में जर, जोरु, और जमीन ये मुख्य कारक थे। तो उस समय के लोगों ने एक तो यह सोचा की
लड़कियांे के कारण युद्ध होते हैं। अगर लड़कियां ही कम होंगी तो युद्ध भी कम होंगे।
दूसरा युद्ध में पुरुष ही जाते थे। अतः युद्ध करने के लिए एवं जीतने के लिए लड़कों
की जरूरत होती थी। इसलिए लड़कियों से ज्यादा लड़कों की मांग होती थी। 21वीं सदी में भी एक तो यह पुराना और
पारंपरिक तरीका लोगों के मस्तिष्क में था, जिसके
कारण कन्या भ्रूण हत्या प्रारंभ हो गई। दूसरा कारण यह था कि लोगों की मान्यता थी
कि स्त्री को जीतना यानी कि हरण करना अपने आप में वीरता और महानता का कार्य है।
अतः हर कोई व्यक्ति अपनी शक्ति और बल का प्रयोग कर वीर, महान और विजेता बनना चाहता था। और इसके
लिए अपनी की बजाए दूसरे की स्त्री होनी चाहिए। इस सोच के कारण जिसकी कन्या या
स्त्री को जीता जाता है या हराया जाता है, वह
तो हारा हुआ माना जाता है और जो जीतता है वह विजेता कहलाता है। अतः हारना कोई नहीं
चाहता था। इसलिए सब जीतने के चक्कर में लड़के की इच्छा करते और लड़कियों की अनइच्छा
करते। इस कारण लड़कियों की संख्या 21वीं
सदी में कम होती चली गई। बाद में यह अपने आप में मॉडर्न, विशिष्ट और बड़ा दिखाने का भी एक कारण
बन गया।
रिपोर्टर-प्रो. बाटलीवाला ने कितनी
महत्त्वपूर्ण जानकारी हमें दी है। अब तक लोग समझ रहे थे कि 21वीं सदी में ही लड़कियांे की कमी थी।
लेकिन प्रो. बाटलीवाला ने सत्य हमारे सामने रख दिया। रिसर्च में बहुत ताकत होती
है। प्रो. बाटलीवाला नैक्सट विजव्ल देखें।
प्रो.2-जी
देखिए।
रिपोर्टर-(रिमोट से प्रोजेक्टर ऑन करता है।
द्रोपदी के चीर हरण का दृश्य। दुशासन द्रोपदी की साड़ी खींच रहा है। द्रोपदी घूम
रही है। बाकि सब मौन हैं। मुंह लटका रखा है।) प्रो. साहब यह क्या? पूरी सभा के सामने स्त्री को नग्न करने
का प्रयास किया जा रहा है और कोई भी कुछ नहीं बोल रहा है?
प्रो.2-यह
महाभारत काल का दृश्य है। पहली बात तो यह कि इस सभा में जितने भी लोग बैठे थे उनका
राजा कौन था?
रिपोर्टर-धृतराष्ट्र।
प्रो.-धृतराष्ट्र, जो कि बेचारा देख नहीं सकता था।
अर्थात् वह अंधा था। इसलिए उसे तो पता ही नहीं था कि सभा में क्या हो रहा है। उनकी
वाइफ गांधारी देख सकती थी पर उन्होंने भी पति के जैसी बनने के लिए अपनी आंखों पर
पट्टी बांध ली। यथा राजा तथा प्रजा। राजा के अनुसार ही प्रजा चलती थी। राजा जिस
तरह के कार्य करता था, प्रजा उसी की अनुपालन करती थी। मंत्री, संत्री, सेनापति, राजपुरोहित, पितामह, गुरु इन सबने भी कुछ नहीं देखा और दरबारियों की तो बात ही क्या है।
वे भी गांधारी की तरह देखना बंद कर चुके थे। अतः उस समय द्रोपदी को यदि नग्न कर भी
दिया जाता तो किसी को दिखाई नहीं देता। क्योंकि सब वहां अंधे बैठे हुए थे।
रिपोर्टर-अच्छा अच्छा, प्रो. साहब तभी तो मैं सोच रहा था, दरअसल यह महाभारत काल का दृश्य है।
इसलिए कोई कुछ नहीं बोल रहा था लेकिन 21वीं
सदी में स्त्री के साथ इस तरह हो तो लोग हला मचा देते होंगे। क्योंकि यह तो स्त्री
के साथ अन्याय और अपमान है।
प्रो.2-नहीं, नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। यह सब प्रोपेगेण्डा है, कुछ लोगों का वास्तविकता को छुपाने के
लिए। लोग पढ़ते नहीं हैं, डिस्कस नहीं करते हैं। इसलिए जानते
नहीं। देखिए मैं नहीं कह रहा यह रिसर्च बोल रही है कि 21वीं सदी में भी बहुत सारे राजा अंधे
थे।
रिपोर्टर-लेकिन प्रो. साहब 21वीं सदी में राजा-महाराज नहीं थे।
प्रो.-आप इतनी जल्दी भूल गए। अभी तो मैंने कुछ
देर पहले बताया थी 21वीं सदी के राजाओं की परिभाषा।
रिपोर्टर-अच्छा, अच्छा याद आ गया। सफेद वस्त्र पहने, उस पर सदरी पहने, मंचों
पर खूब आश्वासन और लच्छेदार भाषण देने वाले राजनेता ही 21वीं सदी के राजा थे। लेकिन वे अंधे
कैसे थे? और सारे ही अंधे थे क्या?
प्रो.2-उनको
भी इस तरह की घटनाएं दिखाई नहीं देती थी। महाभारत काल के राजाओं की तरह 21वीं सदी के राजा, मंत्री, संत्री भी इस तरह की घटनाएं नहीं देख पाते थे। मैं आपको एक उदाहरण
देता हूं। 21वीं सदी में दिल्ली नामक बहुत बड़े
प्रांत में, जहां पूरे आर्यवृत की शासन प्रणाली की
रणनीति तय होती थी, राजा का शाही दरबार वहीं लगता था। वहां
पर एक निर्भया नामक स्त्री के साथ व्यभिचार हुआ। राजा एवं राजा के मंत्री, संत्री सब वहीं थे लेकिन कोई नहीं देख
पाया। जब दिल्ली जनपद की यह हालत थी तो बाकि की जगह का आप स्वयं अनुमान लगा लीजिए।
रिपोर्टर-प्रो. साहब एक बात समझ में नहीं
आई........तो क्या कोई भी इस तरह की घटनाओं को नहीं देख पाता था?
प्रो.-नहीं, नहीं, ऐसा नहीं है। मैं नहीं बोल रहा, यह रिसर्च बोल रही है कि कुछ लोग इस
तरह की घटनाएं देख पाते थे। वह भी इसलिए कि वे लोग एक विशिष्ट प्रकार का चश्मा
यानी गोगल पहनते थे। कुछ विशिष्ट प्रकार के चश्मे आते थे यदि व्यक्ति उनको पहन
लेता था तो इस तरह की घटनाएं दिखाई दे जाती थीं। यह चश्मे कई कंपनियों के होते थे
जैसे समाजवादी, गांधीवादी, मार्क्सवादी, अंबेडकरवादी, मानवतावादी, साहित्यकार, कलाकार आदि। परंतु ये कंपनियां भी
प्रारंभ में अच्छा प्रोडक्शन करती थी बाद में मांग बढ़ने पर ये कंपनियां भी नकली
सामान बनाने लग गईं। लेकिन एक रिसर्च से यह भी पता लगा कि इन ओरिजनल कंपनियों ने
नकली चश्में नहीं बनाये बल्कि कुछ लोगों ने इन कंपनियों की डुपलीकेट ब्रांचे खोल
लीं और उन्होंने देखा कि इस सामान की डिमांड अब मार्केट में बहुत हो रही है तो
नकली चश्में बनाने लग गए। इसीलिए बाद में लोगों को चीर हरण, बलात्कार, व्यभिचार या इस तरह की घटनाएं दिखाई
देना बंद हो गई।
रिपोर्टर-प्रो. बाटलीवाला ने कितनी
महत्त्वपूर्ण जानकारी हमें दी है। यह होता है असली रिसर्च का फायदा। आप यह सब नोट
करलें जैसे चश्में बनाने वाली कंपनियों के नाम, लेकिन
ध्यान रखिये नकली कंपनियों से सावधान रहिए।
प्रो.2-दरअसल
लोग आजकल रिसर्च करना ही नहीं चहाते हैं। रिसर्च के नाम पर सिर्फ कट पेस्ट करते
हैं। इसलिए लोगों को असली जानकारी नहीं मिल पाती है।
रिपोर्टर-प्रो. साहब एक बात मेरी समझ में नहीं
आई, इस विजव्ल में हमने देखा कि द्रोपदी ने
बहुत लंबा वस्त्र पहन रखा था, उसे
साड़ी ही कहते था न उस समय?
प्रो.-हां साड़ी ही कहते थे।
रिपोर्टर-तो क्या उस समय सभी स्त्रियां इतनी
लंबी साड़ियां पहनती थीं और इसका कारण क्या था। दूसरी बात 21वीं सदी के कुछ विजव्ल में हमने देखा
कि कुछ स्त्रियों के वस्त्र बहुत छोटे होते थे। इतने छोटे कि माचिस की डिब्बी तक
में आ सकते थे। तो प्रो. साहब यह तो समानता नहीं असमानता हुई?
प्रो.2-देखिए
महाभारत काल में सभी स्त्रियां लंबे-लंबे वस्त्र धारण करती थीं। क्योंकि आप जानते
हो कि उस समय वस्त्र बनाने वाला कीड़ा जिसे रेशम कहते हैं, यह बहुत ज्यादा तादात में होता था। बाद
में लोग इस खाने लग गए।
रिपोर्टर-रेशम के कीडे़ को?
प्रो.-अजी कीड़े मकोड़े क्या बहुत सारी चीजें
खाने लग गए। तो क्या हुआ कि 21वीं
सदी में इन कीड़ों की संख्या हो गई कम। दूसरा महाभारत काल में सर्दी, बरसात बहुत ज्यादा मात्रा में होती थी।
तो सभी लोग उससे बचने के लिए अधिक से अधिक मात्रा में एवं बड़े वस्त्र पहनते थे। ये
बड़े वस्त्र सिर्फ स्त्रियां पहनती थीं, पुरुष
नहीं। 21वीं सदी में क्या हुआ कि एनवायरमेंट
चेंज हो गया। वातावरण दूषित हो गया। बाजारबाद, भूमंडलीकरण, आतंकवाद ये सब बढ़ गए। इससे मौसम
परिवर्तन हो गया। गिलेसियर्स पिघलने लग गए। पेड़ कटने लग गए। कंपनियां और
फैक्ट्रीयां बहुत सारी बन गईं। आदमी से अधिक मशीने हो गईं। बाद में आदमी भी मशीन
हो गया। बारिश कम होने लगी,
सर्दी कम होने लगी। इन सब कारणों की
वजह से गर्मी अधिक पड़ने लगी, तो
महिलाओं ने छोटे-छोटे वस्त्र पहने शुरु कर दिए। बाद में लोगों को ज्ञात हो गया कि
यह शरीर तो नश्वर है। सब ईश्वर की लीला है। साथ क्या लाए थे और क्या ले जाओगे। अतः
सब ने दिखावे को छोड़ कर अपने मूल रूप को धारण कर लिया।
रिपोर्टर-लेकिन प्रो. साहब छोटे वस्त्र पहनने
से तो समाज में अश्लीलता फैलती होगी, लोग
इसे अभद्र एवं अनैतिक मानते होंगे। दूसरा हर जगह इस तरह के छोटे वस्त्र पहनकर
जानें में स्वयं स्त्री भी संकोच महसूस करती होगी। मेरा कहने का मतलब यह है कि
छोटे वस्त्रों के कारण बहुत परेशानी होती होगी।
प्रो.2-नहीं, ऐसा नहीं था। छोटे वस्त्र पहनने से लाभ
भी होता था। आप देखिए, फ्लाइट में आप एक निश्चित मात्रा का
वजन अपने साथ ले जा सकते हैं। यदि ज्यादा वजन ले जाएंगे तो उसका पेमेंट अलग करना
होगा। अब मान लीजिए द्रोपदी स्टाइल की साड़ी यदि आपके लगेज में साथ है तो तीन चार
टिकट तो उस साड़ी की ही हो जाएगी अलग से। इसलिए 21वीं सदी में महिलाओं के छोटे वस्त्र पहनना, उस समय की जरूरत थी। बड़े वस्त्र पहनना
उस समय संभव ही नहीं था।
रिपोर्टर-क्यों प्रो. साहब, संभव क्यों नहीं था?
प्रो.-देखिए द्रोपदी स्टाईल की साड़ी को धोने के
लिए 40-50 लोगों की जरुरत होती थी। महाभारत काल
में धृतराष्ट्र वगैरा के सौ-सौ पुत्र होते थे। जैसा मैंने बताया युद्ध के कारण
लड़कों की अधिक मांग थी। अर्थात् उस समय बड़े परिवार और संयुक्त परिवार का प्रचलन
था। सब लोग मिलकर काम करते थे। जैसे-साड़ी धोना, सुखाना, उसे तह करना आदि। एक परिवार में सौ-दो
सौ लोग हों तो इस तरह की साड़ी को मैंनेज करना आसान होता था। जब युद्ध नहीं होते थे
तो लड़के यही काम करते थे। मगर 21वीं
सदी में अधिकतर लोगों के दो या तीन बच्चे। छोटा परिवार होने लग गया। अब आप बताइए
इतनी बड़ी साड़ी को दो-तीन लोग कैसे धोएंगे? कैसे
सुखायेंगे? कैसे उसको तय करेंगे? फिर यह साड़ी बांधने के लिए भी अनेक लोग
चाहिए थे और समय भी बहुत लगता था बांधने में। 21वीं
सदी में समय का बहुत अभाव था लोगों के पास। समय के अभाव की पुष्ठि मैगी वाले
विजव्ल से होती है। तो ये सब समस्या थीं। इसलिए स्त्रियों ने 21वीं सदी में इतने बड़े वस्त्र पहनना कम
कर दिए। दूसरा आपने देखा होगा महाभारत के समय पुरुष अर्द्धनग्न हुआ करते थे। ऊपर
से लगभग कोई भी वस्त्र नहीं पहनते थे। वे सिर्फ कटी के नीचे ही यानी अधोवस्त्र पहनते
थे। अतः 21वीं सदी में पुरुषों ने राजा के दरबार
में यह मुद्दा उठाया कि उन्हें भी पूरे वस्त्र पहनने का अधिकार दिया जाए। अर्थात
कटी के ऊपर भी वे वस्त्र धारण करना चाहते थे।
रिपोर्टर-प्रो. साहब एक बात मेरी समझ में नहीं
आई, 21वीं सदी में दरबार कहां होते थे? राजा का तो आपने बताया
लेकिन.............दरबार............?
प्रो.2-कौन
कहता है 21वीं सदी में दरबार नहीं होते थे? दरअसल 21वीं सदी में दरबार होते थे, बस
उनका नाम बदल गया था। पार्लियामेंट, विधानसभा, नगर परिषद, जिला परिषद, ग्राम पंचायत ये सब क्या थे?
रिपोर्टर-ये सब दर..............।
प्रो.-एग्जैक्टली, ये सब दरबार ही थे। उस समय नाम बदल दिए
गए थे। तो इन दरबारों में पुरुषों ने अपना मुद्दा रखा। राजा ने सोचा समस्या तो
वाजिब है और इसका समाधान भी होना चाहिए। क्योंकि 21वीं सदी में जनसंख्या बहुत बढ़ गई थी। उसके पीछे भी अनेक कारण हैं, जिन पर हम बाद में चर्चा करेंगे। तो 21वीं सदी में पुरुषों ने यह मुद्दा
उठाया कि हमें भी वस्त्र के अनुसार आरक्षण चाहिए। महिलाओं के साथ बराबरी चाहिए।
इसलिए 21वीं सदी के राजाओं ने यह फतवा जारी
किया कि महिलाएं जो इतने लंबे-लंबे वस्त्र पहनती हैं, ये कम करें और पुरुष जो महाभारत काल से
अर्धनग्न रहता आ रहा है, उसको ऊपर का वस्त्र पहने का अधिकार
मिले। इस तरह से लंबी साड़ी पर प्रतिबंध लगा दिया गया और पुरुषों को भी कमर से ऊपर
के वस्त्र पहनने का आरक्षण मिला। दूसरी बात यदि स्त्री के लिए इतनी लंबी साड़ी बना
दी जाती तो पुरुषों को वस्त्र कहां से मिलते? क्योंकि
21वीं सदी में रेशम बनाने वाले कीड़े की
संख्या कम हो गई। तो वस्त्र बनना कम हो गया, लेकिन
उसकी खपत बढ़ गई, मांग बढ़ गई। तो क्या किया जाए? इसलिए सभी को वस्त्र मिले इसके लिए
स्त्रियों के कपड़ों का आकार छोटा करना पड़ा। दूसरा जिस तरह से महाभारत के समय में
लंबी साड़ी पहनना, स्त्रियों के लिए अपने आपने में
विशिष्ट, महान, सभ्य और ऊँचा होना था, उसी
तरह 21वीं सदी में कम या छोटे कपड़े पहनना
अपने-आप में मॉडर्न, आधुनिक, बड़ा और इंटेलेक्चुअल होना था। महाभारत काल में राजघरानों की स्त्रियों
की साड़ियां आम स्त्रियों से दो गज बड़ी होती थी। इससे पता लग जाता था कि अमुक
स्त्री राजघराने की है, अमुक सामान्य घर से है। क्योंकि उस समय
पर्दा प्रथा रूपी फैशन का रिवाज था। पर्दे का भी कारण था। जब इतनी लंबी साड़ी थी तो
स्त्रियां पर्दा कर लिया करती थीं। 21वीं
सदी में वस्त्र छोटे हो गए तो बेचारी स्त्रियां चेहरा ढ़के कि कुछ और। और ऊपर से
लोग कहते हैं कि 21वीं सदी की स्त्रियां बेपर्दा हो गईं।
भैई जब आपको सत्य का पता नहीं है तो कुछ भी मत कहा करो। और फिर हर युग में फैशन
में भी तो बदलता है। इसलिए उसका भी प्रभाव था। तो जिस तरह से महाभारत काल में
राजघरानों की स्त्रियांे और आमजन की स्त्रियों की साड़ियों मंे अंतर होता था। उसी
प्रकार से 21वीं सदी में भी अंतर होता था। रिसर्च
से यह पता लगा है कि 21वीं सदी में कुछ महान, विक्टोरिया, विशिष्ट रानियां तो बहुत ही कम मात्रा
में छोटे-छोटे वस्त्र पहनती थीं।
रिपोर्टर-प्रो. साहब कोई एक दो उदाहरण। मेरा
मतलब कुछ नाम......यदि आप बता सकते तो........।
प्रो.2-जैसे, जैसे..........महारानी मल्लिका शेरावत, महारानी राखी सावंत, महारानी विक्टोरिया बिपाशा बसु, पूनम पाण्डे आदि। और बाद में तो एक
महारानी बहुत ही विशिष्ट हुईं। सन.....सनी लोन ऐसा कुछ उनका नाम था। 21वीं सदी में इन महारानियों को
प्रत्यक्ष देखना मना था। क्योंकि पर्दे में रहती थीं न। मतलब आम जन नहीं देख पाते
थे।
रिपोर्टर-तो प्रो. साहब आमजन इन्हें कैसे देखते
थे?
प्रो.-दरअसल उस समय के साईंटिस्टों ने बहुत ही
विशिष्ट, धार्मिक और सात्विक प्रकार की कुछ
पुस्तकों का आविष्कार किया,
आमजन उन्हीं पुस्तकों के माध्यम से
इन्हें देख पाते थे।
रिपोर्टर-अच्छा अच्छा प्रो. साहब, वो...........गीता, कुरान, रामायण, उपनिषद, आयात, आदि की बात कर रहे हैं..............।
प्रो.2-अरे
आप अभी महाभारत काल में ही अटेके हुए हो, हम 25वीं सदी में पहुंच गए। थोड़ा आगे आओ, कम से कम 21वीं सदी तक तो आओ, महाभारत से बाहर निकलो।...........आप
जो बता रहे हैं ये सब महाभारत या उससे पूर्व की धार्मिक पुस्तकें हैं। उस समय लिखी
गई थीं। 21वीं सदी में इनसे भी बड़ी धार्मिक
पुस्तकें लिखी गईं थीं और जिस प्रकार से महाभारत काल की पुस्तकों को लोग बड़े आदर
से पढ़ते थे, उसी प्रकार इन पुस्तकों को भी बड़े आदर
से पढ़ते थे।
रिपोर्टर-सर एक दो पुस्तकों के नाम तो बताइये?
प्रो.-लिखिए।
रिपोर्टर-नोट कर लीजिए आप लोग।
प्रो.-गूगल, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम आदि।
रिपोर्टर-अच्छा, अच्छा इन पुस्तकों में आमजन इन महान रानियों को खोजते थे।
प्रो.2-महाभारत
काल में अनेक लोग जिस तरह से सुबह-शाम गीता, रामायण
आदि पुस्तकों को पढ़ते थे। उसी प्रकार 21वीं
सदी में अधिकतर लोग गूगल,
फेसबुक, ट्विटर आदि धार्मिक पुस्तकों को सुबह-शाम देखते थे। ये पुस्तकें
ज्ञान का अथाह भंडार थीं। इसलिए इन विक्टोरिया रानियों के अलावा भी अनेक
महत्त्वपूर्ण चीजें 21वीं सदी के लोग इनमें खोजा करते थे।
जिस विक्टोरिया महारानी की मैं बात कर रहा था, सन
लोन या सन लियोन ऐसा कुछ उसका नाम था। रिसर्च ऐसा बताती है कि एक समय 21वीं सदी में यह महारानी इन धार्मिक
पुस्तकों में सबसे अधिक खोजी जाती थी। तो कहने का तात्पर्य यह कि ये सब कारण हैं
जिसकी वजह से 21वीं सदी में छोटे वस्त्रों को प्रचलन
बढ़ा। अनेक जगहों पर इन महारानियों की नकल भी की जाती थी। अनेक विशिष्ट अवसरों पर
सामान्य स्त्रियां भी अक्सर अपने आपको बड़ा और मॉडर्न साबित करने के लिए इस तरह के
छोटे वस्त्र धारण कर लिया करती थीं।
रिपोर्टर-प्रो. साहब आपने तो कमाल कर दिया। 21वीं सदी में छोटे वस्त्र पहनने के
कितने कारण आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। यह बात आज समझ में आई। अन्यथा इस
रिसर्च से पहले लोग अपने-अपने अनुसार गलत अनुमान लगा रहे थे। छोटे वस्त्र, छोटा परिवार, लड़कियों की संख्यां कम होना, लड़कों की संख्या अधिक होना ये सब किस
तरह से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, यह
बात आज समझ में आई है। स्त्रियों के बारे में, बड़े
एवं छोटे वस्त्रों के बारे में लोग अनेक प्रकार की गलत फहमी फैला रहे हैं। क्योंकि
वे लोग रिसर्च नहीं करते हैं। और इन सबका संबंध महाभारत काल से कितना गहराई से
जुड़ा हुआ है यह भी प्रो. बाटलीवाला ने अपनी रिसर्च से यहां सबके सामने स्पष्ट किया
है। दोस्तों पूरा विश्व आज पहली बार जानेगा की 21वीं सदी में वास्वत में क्या-क्या सच था। प्रो. बाटलीवाला की रिसर्च
एक बहुमूल्य निधि है। हम इसी तरह के अनेक दिलचस्प और रोचक सवाल और किस्से प्रो.
बाटलीवाला से और भी जानेंगे। अभी लेते हैं दो मिनिट का ब्रेक। आप कहीं मत जायेगा, हम अभी लौटकर आते हैं। (रिपोर्टर कहीं
जाता है। प्रो. साहब टोक देते हैं। उसे बहुत तेज टॉयलेट आ रहा है। इस तरह के भाव
प्रकट करता है जैसे टॉयलेट रोक रहा है।)
प्रो.-अरे कहां जा रहे हो।...........अब ब्रेक
लेने की क्या जरूरत थी। बस अब एक दो मिनट के बाद खत्म ही कर देते।
रिपोर्टर-नहीं नहीं प्रो. साहब अभी तो आपसे
बहुत कुछ जानना है? मैं अभी आता हूं। (वह जाने लगता है।)
प्रो.-इधर आओ, कहां जा रहे हो?
रिपोर्टर-.....वो..........आपके लिए कुछ लेके
आता हूं।
प्रो.-नहीं मुझे कुछ नहीं
चाहिए।..........देखिए यह रिसर्च बहुत बड़ी है। एक दो इंटरव्यूज में सारी बातें
नहीं बताई जा सकती। इसलिए आप शुरू करो।
रिपोर्टर-हां प्रो. साहब वह तो है। (जाने लगता
है।) प्रो. साहब एक मिनिट में शुरू करते हैं। मैं आता हूं।
प्रो.-अरे तुम छोड़ो रहने दो, कुछ मत लाओ।
रिपोर्टर-नहीं प्रो. साहब जरूरी है। मैं आपके
लिए कुछ लेके आता हूं। (फिर जाने लगता है। गेट तक चला जाता है।)
प्रो.-अरे आप समझते क्यों नहीं। देखो आप लोगों
को इस रिसर्च की जानकारी से मजा आ रहा होगा लेकिन.............।
रिपोर्टर-प्रो. साहब समझा करो। सिर्फ एक मिनट
की बात है। मैं बस अभी आता हूं। (फिर जाने लगता है।)
प्रो.-अच्छा ठीक है। ये बताओ लेके क्या आ रहे
हो?
रिपोर्टर-वो....प्रो. साहब...............मैं
टॉयलेट..............। (हड़बड़ाहट में कहके चला जाता है।)
प्रो.-क्या? अजीब
बदतमीज है। टॉयलेट लेके आ रहा है।..................ओ.............लगता है वह काफी
देर से परेशान था। बहुत देर से रोक रका था। इसीलिए। खैर कोई बात नहीं। (रिपोर्टर आ
जाता है। बड़ा फ्रेश लग रहा है।)
रिपोर्टर-सॉरी सर वो............वो क्या
है..........।
प्रो.-अरे कोई बात नहीं। लेकिन तुम बता
देते।...............लेकिन एक बात बताऊं......तुम आजकल के लोग दो घंटे भी नहीं रूक
सकते। महाभारत के समय दो-दो, चार-चार
दिन तक .............।
रिपोर्टर-क्या बात कर रहे हैं प्रो. साहब
महाभारत के समय चार-चार दिन तक ..............।
प्रो.-अब छोड़ो इस पर भी तुम सवाल मत पूछ लेना।
क्योंकि तुम मीडिया वाले कहीं भी शुरू हो जाते हो। किसी का जन्म हो या मरण यह भी
नहीं देखते। ............अब शुरू करो।
रिपोर्टर-जी प्रो. साहब। हम लोग शुरू करते
हैं।.................दोस्तों नमस्कार। हम लोग लोट आए हैं ब्रेक के बाद। आप देख
रहे हैं न्यूज चैनल कल तक। मैं हूं राहुल श्रीधर। और हमारा बहुत ही पोपुलर
कार्यक्रम सर्च रिसर्च जिसमें आज हमारे साथ हैं विश्व विख्यात साईंटिस्ट प्रो.
बाटलीवाला। प्रो. साहब ब्रेक के बाद आपका फिर से एक बार पुनः स्वागत है।
प्रो.2-नमस्कार।
रिपोर्टर-प्रो. बाटलीवाला अभी तक आपने बहुत
रहस्यमय जानकारियां दीं हैं। जिनसे अभी तक लोग बेखर थे। एक विजव्ल 21वीं सदी का हमें मिला है। उसके बारे
में हमें कुछ बताईये। पहले हम लोग विजव्ल देख लेते हैं।
प्रो.2-हां
देखिए।
रिपोर्टर-हां यह ठीक रहेगा। (रिमोट से टीवी या
प्रोजेक्टर ऑन करता है। एक विज्वल आता है। किसी शैंपों का एड है।) प्रो. साहब यह
कौनसा पदार्थ था, जिससे बाल, काले, लंबे और घने होते थे और क्या महाभारत काल में भी इस तरह का केश
प्रच्छालन पदार्थ मिलता है?
प्रो.-देखिए इसकी चर्चा मैंने इंटरव्यू के
प्रारंभ में की थी यदि आपको याद हो तो। मैंने अखबार में इसी तरह की कुछ तस्वीरें
देखीं थीं। जिसमें बालों की वृद्धि के कारण में इस पदार्थ का योगदान था। इसीसे तो
मेरे मन में जिज्ञासा जगी थी कि 21वीं
सदी पर रिसर्च करना चाहिए। खैर, यह
एक विशिष्ट, जैसा आपने कहा केश प्रच्छालन पदार्थ
था। जिसे 21वीं सदी में शैंपो कहा जाता था। इसे कई
कंपनियां निर्मित करती थीं। इससे बाल काले, लंबे
और बड़े होते थे। महाभारत काल में भी यह केश प्रच्छालन पदार्थ काम में लिया जाता
था। बल्कि 21वीं सदी में उसीसे प्रेरणा लेकर शैंपो
नामक पदार्थ बनाया गया था। जब पांडव वनवास थे तो एक बार द्रोपदी इस विशिष्ट केश
प्रच्छालन पदार्थ की मांग कर बैठी। अब वन में यह केश प्रच्छालन पदार्थ कहां से
मिलता। तो बेचारे पांडव बहुत परेशान हुए। अनेक जगह खोजा नहीं मिला। भीम को एक जगह
बहुत मुश्किल से वह पदार्थ मिला, तो
उन्होंने द्रोपदी को लाकर दिया। द्रोपदी ने कहा यह तो दूसरे ब्रांड का है। मुझे तो
उसी कंपनी का चाहिए, जिसके लिए मैंने कहा है। अब उसी कंपनी
का केश प्रच्छालन पदार्थ मिला ही नहीं। तो द्रोपदी ने सोंगध ले ली कि जब तक उसी
कंपनी का केश प्रच्छालन पदार्थ नहीं लाया जायेगा तब तक वे अपने बाल न धोयेंगी, न कंधी करेंगी और न गूंथेंगी, यूं ही खुले रखंेगी। आपने इस विजव्ल
में देखा, वो लड़की एक कंपनी का नाम लेती है कि
इसी कंपनी का शैंपो आप लें तो ही बाल अधिक लंबे और काले होंगे। यह आईडिया उन्होंने
द्रोपदी से ही लिया है। क्योंकि वह भी परटिक्यूलर कंपनी के शैंपो की जिद्द कर
बैठी। अब आप जानते हो पत्नी की जिद्द के आगे वो पांच पति थे तब भी नतमस्तक हो गए।
जो इकलौता पति हो उसकी क्या दाल गलेगी। बाद में इस विशिष्ट केश प्रच्छालन के लिए
तो पांडवों को युद्ध तक करना पड़ा। लेकिन अंततोगत्वा वो विशिष्ट कंपनी का केश
प्रच्छालन भीम लेके आए, तब जाके द्रोपदी ने उस शैंपो से अपने
केश धोए और वेणी गूंथी। 21वीं सदी में उसका नाम बदल दिया गया।
बाकि चीज तो वही थी।
रिपोर्टर-प्रो. साहब आपने बहुत ही उपयोगी
जानकारी दी है। लेकिन एक बात मेरी समझ मंे नहीं आई कि महाभारत के समय एवं 21वीं सदी में धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष इनमें क्या समानता या भिन्नता थी। इनके बारे में जारा
बताईये। हमने सुना है कि महाभारत काल में या उससे पूर्व इन सिद्धांतों पर बहुत जोर
दिया जाता था, तो 21वीं सदी में इनकी क्या स्थिति थी?
प्रो.2-देखिए
महाभारत काल में धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष, इन
चारों सिद्धांतों की अनुपालना लगभग बराबर थी और लोग इन्हें आला दर्जे के विशिष्ट
नियम मानते थे। विशिष्ट रुप से मोक्ष के लिए ही धर्म, अर्थ एवं काम की परिणीति होती थी। धर्म
अर्थात् सब के प्रति सही व उचित, निर्णय, न्याय करना। गलत तरीके से न कार्य करना, न करने देना। मान लीजिए कोई डॉक्टर है, तो डॉ. का धर्म है, ईमानदारी से, बिना भेदभाव के, बिना रिश्वत के मरीजों की सेवा करना।
कोई व्यापारी है, तो व्यापारी का धर्म है, ईमनदारी से, बिना बेईमानी के, बिना मिलावट के, बिना धोखाधड़ी के व्यापार करना। मतलब सब
अपने-अपने धर्म की पालना करते थे। अर्थ यानी कि पैसा। पैसा इतना ही चाहिए था कि
लोग अपना और अपने परिवार का ठीक ठाक पालन पोषण कर सकें। बस आज के खाने का जुगाड़ हो
जाए, कल का कल देखा जायेगा। और काम से
तात्पर्य था, की एक विशिष्ट उम्र के बाद, विशेष रूप से विवाह के बाद शारीरिक
संबंध एवं संतुष्टि। काम सृष्टि के संचालन के लिए एक आवश्यक उपक्रम। मोक्ष, मतलब ये तीनों कार्य इस तरह से, सही तरीके से किए जायें कि जीव को जन्म
मरण से छुटकारा मिले। आत्मा का परमात्मा से मिलन हो जाये। यानी मोक्ष की प्राप्ती
हो जाए। इसलिए इन सब सिद्धांतो का पालन लोग नियम बद्ध तरीके से, ईमानदारी से करते थे। लेकिन 21वीं सदी में क्या हुआ कि इन सब
सिद्धांतों का रूप काफी परिवर्तित हो गया। विकृत और विस्तृत भी हो गया। लोगों ने
नए तरीके से इनकी परिभाषाएं गढ़ दीं। धर्म का वर्गीकरण हो गया। धर्म-हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई आदि आदि में बंट गया। लोग धर्म का
मतलब बस यही समझने लग गए। अर्थ पर बहुत ज्यादा जोर दिया जाने लगा। किसी भी प्रकार
से अर्थ कमाओ, कैसे भी कमाओ। यह मत देखो कि वह कहां
से आ रहा है, कैसे आ रहा है। क्योंकि 21वीं सदी में अर्थ प्रतिष्ठा और
प्रसिद्धि के साथ जुड़ गया था। वह व्यक्ति बड़ा माना जाता था, जिसके पास ज्यादा अर्थ होता था। इस
चक्र में हर व्यक्ति अपने आप को बड़ा साबित करने के लिए अर्थ के चक्कर में लगा रहता
था। ‘काम’ का रूप बहुत ही खुला हो गया। 21वीं
सदी में पद एवं प्रतिष्ठा के माध्यम से अर्थ एकत्रित करना सबसे बड़ा धर्म बन गया और
जिसके पास ज्यादा मात्रा में अर्थ होता था, वह
काम के संसाधन और अधिक जुटा पाता था। वही मोक्ष प्राप्त करता था। 21वीं सदी में मोक्ष प्राप्त करने के लिए
स्वर्ग जाने की जरूरत नहीं थी। वह वहीं मिल जाता था।
रिपोर्टर-प्रो. साहब मोक्ष पृथ्वी पर ही मिल
जाता था? क्या कहना चाहते हैं आप? समझ में नहीं आ रहा है। फिर हमने
महाभारत काल के बारे में सुना है कि युधिष्ठिर स्वर्ग गए थे। और उनके साथ-साथ एक
कुत्ता भी स्वर्ग गया था। जब मोक्ष पृथ्वी पर ही मिल जाता था तो उन्हें स्वर्ग
जाने की क्या जरूरत थी? यह कैसे संभव हुआ। इसके बारे में आप
क्या कहना चाहेंगे?
प्रो.-देखिए महाभारत काल में तो पृथ्वी पर
स्वर्ग नहीं था इसलिए लोग मोक्ष प्राप्त करने के लिए स्वर्ग जाते थे। लेकिन 21वीं सदी में लोगों ने पृथ्वी पर ही
स्वर्ग का निर्माण कर लिया था। यदि कोई उस स्वर्ग में चला जाता था तो समझो उसे
मोक्ष मिल गया।
रिपोर्टर-प्रो. बाटलीवाला पृथ्वी पर स्वर्ग? यह तो हमने नहीं सुना?
प्रो.2-आपके
दादा के दादा का नाम सुना है?
रिपोर्टर-नहीं। लेकिन......।
प्रो.2-इसका
मतलब आपके दादा के दादा नहीं थे।
रिपोर्टर-नहीं, प्रो. साहब ऐसे कैसे नहीं थे...........दरअसल वो.....अभी.....याद
नहीं आ रहा......।
प्रो.2-इसका
मतलब थे।
रिपोर्टर-नहीं,..........हां..........नहीं...........हां थे प्रो. साहब। मेरा मतलब थे, पर मुझे याद नहीं है। मेरे पिताजी को
याद होगा।
प्रो.-एगजैक्टली। वही मैं कहना चहा रहा हूं।
अक्सर हम जिन चिजों के बारे में जानते नहीं है उन्हें मानने के लिए कई बार तैयार
नहीं हो पाते हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण हैं, हम काम चोर होते जा रहे हैं। कम से कम मेहनत में अधिक से अधिक चीजें
प्राप्त करना चाहते हैं।..........खैर उसे जाने दीजिए। तो मैं क्या कह रहा था?
रिपोर्टर-21वीं
सदी मंे पृथ्वी पर स्वर्ग बना लिया था। प्रो. साहब उसका नाम क्या था।
प्रो.2-हां, वही बता रहा हूं। उस स्वर्ग का नाम था
पार्लियामेंट। इसमें एक बार एंट्री मिल गई तो समझो फिर मोक्ष पक्का और अपना ही
नहीं अगली कई पीढ़ियों तक का। जिस तरह महाभारत काल में युधिष्ठिर के साथ में एक
कुत्ता स्वर्ग गया था। ऐसे अन्य उदाहरण आपको नहीं मिलेंगे। मैं नहीं बोल रहा हूं
यह रिसर्च बोल रही है कि जाते तो वहां मनुष्य ही थे लेकिन धीरे-धीरे उनमें से
अधिकतर लोग कुत्ते, गधे, घोडे़ इन जानवरों की तरह लड़ते थे और वैसी ही हरकते करते थे। तो
व्यक्ति कन्फ्यूज हो जाते थे कि ये मनुष्य हैं या जानवर? क्योंकि वहां जाने के बाद अनेक तरह के
सुख साधन मिलते थे।
रिपोर्टर-कितनी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रो.
बाटलीवाला ने हमें दी है। सर आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। प्रो. साहब एक दो बातें हम
आपसे और जानना चाहेंगे।
प्रो.-पूछिए, पूछिए।
रिपोर्टर-प्रो. साहब ‘महाभारत एवं 21वीं सदी’ इस विषय पर रिसर्च करते हुए आप अनेक कंट्री घूमे होंगे। आपने बहुत
सारे देश देखे होंगे?
प्रो.2-हां
बहुत सारे। बल्कि यह कहिए की कौनसा देश नहीं देखा।
रिपोर्टर-प्रो. साहब इनमें से आप अपने पसंददीदा
पांच देशों के नाम बनाईये,
जहां आपको इस रिसर्च से संबंधित बहुत
मैटिरियल मिला। मेरा मतलब सहयोग मिला।
प्रो.-देखिए वैसे तो बहुत सारे देशों से मुझे
इस रिसर्च से संबंधित मैटिरियल मिला है और अनेक देशों ने इस रिसर्च के लिए फैलोशिप
भी दी है। लेकिन आपने मेरे पसंद के पांच देश पूछे हैं तो .............मैं आपको
बताता हूं।.............अब रहने दीजिए पांच का नाम लूंगा तो बाकि देश नाराज हो
जायेंगे। क्योंकि आप नहीं जानते मुझे तो सारा विश्व जानता है।
रिपोर्टर-नहीं नहीं, प्रो. साहब हमारे दर्शक जानना चाहते
हैं। (ऑडियेंश से)..........जानना चाहेंगे न आप लोग।
प्रो.2-आप
न्यूज रिपोर्टर भी कमाल की चीज होते हैं। व्यक्ति कुछ बताना नहीं चाहे तो भी आप
जान ही लेते हैं।............ठीक है, मैं
आपको बताता हूं.............।
रिपोर्टर-जी प्रो. साहब...............(ऑडियेंश
से) आप चाहे तो नोट कर लीजिए।
प्रो.-लिखिए.........मेरे पसंददीदा पांच देशों
में पहला है-धौलीधूप, ठेकड़ा, मुण्डावर, तिजारा, रामगढ़, रावण देवरा।
रिपोर्टर-प्रो. साहब आप क्या कह रहे हैं? ये सब देश नहीं हैं। ये तो आसपास के
गांव एवं कुछ तहसीले हैं।
प्रो.2-अच्छा
इनके बारे में आप लोगों को जानकारी नहीं है, ज्यादा
छोटे बता दिए। मैं थोड़े बड़े बताता हूं।
रिपोर्टर-हां देशों के नाम बताईये।
प्रो.-लिखिए...........जैसे-कोटा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र,..........ये आपका राजस्थान।
रिपोर्टर-प्रो. साहब आप कमाल कर रहे हो, ये सब तो स्टेट हैं, देश नहीं।
प्रो.2-अरे
भैई, दरअसल तुम कभी गये ही नहीं, इसलिए तुम्हें क्या पता। और तुम्हें
क्या यहां बैठे बहुत सारे लोग इन देशों में गए ही नहीं होंगे और जाना तो दूर, नाम तक भी नहीं सुना होगा। क्योंकि
फौरैन कंट्री के नाम पर ले दे के हमारे आईकोन-अमेरिका, इंग्लैण्ड, ब्रिटेन, जापान, रूस आदि ही हैं।..............पड़ोसी के
बारे में कुछ नहीं पता लेकिन अमेरिका में क्या हो रहा है यह जानना जरूरी है। उसकी
हर खबर को जानेंगे। दरअसल यह एक तरह की बीमारी लग गई है। हाई प्रोफाईल मैंटिनेशन, इक्वैल टू दा राईट ऑर रांेग। बैट वाहट
इज दा मैटर नैथिंग, बिकाउज वी आर दा जीरो, निल बटा सन्नाटा।...........यह समझ में
आया आपको?
रिपोर्टर-(थोड़ा असमंजस की स्थिति में।)
नहीं............नहीं......सर। मेरा..........मतलब........।
प्रो.-तुम्हारी क्या बहुत सारे लोगों की समझ
में नहीं आया होगा। लेकिन इस तरह से विदेशी भाषा बोलने से आप विद्वान साबित होते
हैं। इंपैक्ट पड़ता है। और अधिकतर लोग करते कुछ नहीं हैं, सिर्फ इंपैक्ट ही पटकते हैं।
...............खैर इसे छोड़िए आप तो अपना काम कीजिए।
रिपोर्टर-हां सर............वो समय........समय
भी कम है।
प्रो.2-इसीलिए।
रिपोर्टर-तो प्रो. बाटलीवाला आप इतने देश गए, क्या आप कभी चाईना नहीं गए, मेरा मतलब चीन।
प्रो.-चाईना कंट्री है? कौन कहता है चाईना कंट्री है?
रिपोर्टर-प्रो. साहब आप क्या कह रहे हैं। ये
कार्यक्रम लाईव चल रहा है। पूरा विश्व देख रहा है। आप.............चाईना कंट्री है
सर। बड़ा फेमस और सबसे बड़ा कंट्री है।
प्रो.-चाईना इज नोट एक कंट्र, चाईना इज ए सपरेट वर्ल्ड। चीन देश नहीं
एक स्वतंत्र विश्व बना गया है।.............तुम लोग पढ़ते तो हो नहीं। इसलिए पता ही
नहीं है। लगता है 21वीं सदी और महाभारत पर बात करते-करते
आप भी वहीं पहुंच गए हैं। भैई यह 25वीं
सदी है और तुम जो बात कर रहे हो वह 21वीं
सदी की है। जनसंख्या अब इतनी बढ़ गई है कि ये सब जिन्हें 21वीं सदी में तहसील या स्टेट कहा जाता
था वे अब 25वीं सदी में छोटे छोटे देश बन गए हैं
और चाईना एक स्वतंत्र विश्व।
रिपोर्टर-क्या बात है सर। सॉरी सर हम तो भूल ही
गए थे। देखा आप लोगों ने कितनी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रो. बाटलीवाला ने हमें दी
है। मैं चाहता हूं आप यह सब नोट कर लें। क्योंकि इतनी सारी बातें आपको याद नहीं
होंगी। और चाईना तो ऐसा देश .............नहीं सॉरी ऐसा विश्व है जिसकी बनाई हुई
सबसे ज्यादा चीजें हम लोग स्तेमाल करते हैं। वह बात अलग है कि वे नेताओं के
आश्वासन और भाषण की तरह अधिक टिकाऊ नहीं होती हैं। इसलिए चीन के बारे में जीके के
सवाल परीक्षाओं में अक्सर आते ही रहते हैं। और फिर जैसा कि प्रोफेसर बाटलीवाला ने
बताया कि चीन, अमेरिका, रूस, इंग्लैण्ड ये कुछ ऐसे देश हैं जिनके
बारे में हमें क्या, बहुत सारे देशों को जानकारी रखनी होती
है। क्योंकि इनकी बात टालना आसान नहीं है।........प्रो. बाटलीवाला एक दो सवाल हम
ऑडियंस में से लेना चाहेंगे।
प्रो.2-ओके।
रिपोर्टर-आप कुछ पूछना चाहें तो पूछ सकते हैं। 21वीं सदी और महाभारत से संबंधित कोई
सवाल यदि आपके मन में हो तो आप प्रो. बाटलीवाला से पूछ सकते हैं। ............लगता
है 21वीं सदी और महाभारत पर प्रो. बाटलीवाला
ने काफी जानकारी दे दी है। इसलिए यहां बैठे हुए लोग यह समझ रहे हैं कि इस समय के
लिए यही पर्याप्त है।.......... खैर कोई बात नहीं। फिर कभी सही। प्रो. बाटलीवाला
आप हमारे दर्शकों को अपनी तरफ से क्या संदेश देना चाहेंगे।
प्रो.2-देखिए
वैसे तो मुझे कुछ खास नहीं कहना। हमारी तो रिसर्च ही अपने आप में संदेश है। फिर भी
मेरा इतना सा निवेदन है कि जब भी इस तरह के कार्यक्रम हो, इस तरह के शो हो, ये टीवी रिपोर्टर हम जैसे लोगांे को
यहां बुलायें और आप लोगों को कुछ दिखाना चाहें तो आप लोग अधिक से अधिक संख्या मंे
देखने आएं और इनका सहयोग करें। ये लोग बहुत अच्छा काम करते हैं। इन्हें पैसों की
नहीं आप लोगों की जरूरत है।
रिपोर्टर-प्रो. बाटलीवाला आपने हमें समय दिया। 21वीं सदी और महाभारत पर इतनी
महत्त्वूपर्ण जानकारियां दी। हमारी अनेक गलत फहमियों को दूर किया। आप हमारे निवेदन
पर हमारे चैनल पर आए। इसके लिए आपका तहे दिल से बहुत-बहुत, बहुत-बहुत धन्यवाद।
प्रो.-जी शुक्रिया। आपका भी और आप सभी सुद्धि
दर्शकों का भी। मुझे भी यहां आके अच्छा लगा।
रिपोर्टर-प्रो. साहब आपका फोन नं. मिल सकता है
क्या? जिससे लोग आपसे संपर्क करना चाहे या
बाद में कुछ पूछना चाहें तो। क्योंकि ऑडियंेश में कुछ लोग मुझे से कह रहे थे।
प्रो.2-हां
लिख लीजिए। फोन क्यों मोबाईल नं लिख लीजिए। हमारी तो हर चीज आप सब के लिए है।
रिसर्च हो या मोबाईल नं।
रिपोर्टर-नोट कर लीजिए आप लोग भी, प्रो. बाटलीवाला का मोबाईल नं.।
(रिपोर्टर भी नोट करता है।)
प्रो.-94601426909427962190।
रिपोर्टर-प्रो. साहब एक ही नं दे दीजिए और वह
भी जो वॉटसअप वाला है। ये तो आपने दो मोबाईल नं लिखवा दिए। 20 डिजिट हैं।
प्रो.2-आप 21वीं सदी से बाहर कब आयेंगे? 10 डिजिट के मोबाईल नं. 21वीं सदी में चलते थे। अब 25वीं सदी में 20 डिजिट के चलते हैं। और अब वॉटसअप का जमाना
गया। अब लूटसअप और लूटतंत्र आ गया है।
रिपोर्टर-ओ सॉरी.....सॉरी....प्रो.
साहब।........मेल और बेवसाईट.........भी मिल जाते तो.........मैं
नहीं...........ऑडियंेश मांग रही थी।
प्रो.2-हां
वह भी लिख लीजिए। और अब मेल की नहीं, फिमेल
की चलती है। यह नया वर्जन है।..........आप एक काम करें मेरी बेवसाईट नोट कर लीजिए
उस पर मेरा मोबाईल नं., फिमेल, माउथ टू माउथ बुक, बींटकर, सालाग्राम ये सब मिल जायेंगे।
रिपोर्टर-प्रो. माउथ टू माउथ बुक, बींटकर, सालाग्राम ये सब क्या हैं?
प्रो.-शोसल साईटस। देखिए जैसे 21वीं सदी में फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम आदि चलते थे। वैसे ही आजकल 25वीं सदी में माउथ टू माउथ बुक, बींटकर, सालाग्राम ये सब चलते हैं।
रिपोर्टर-हां यह ठीक है। बांटकर, सालीग्राम........आदि............नहीं
मेरा मतलब जो भी 25वीं सदी में आजकल सोशल साईट हैं वे सब
हैं।
प्रो.2-एमएमएमएमएमएमएमएमएमएमएमएम.
एमएमएमएम. एमएम। (प्रो. रिपोर्टर की तरफ देखता है। कुछ देर मौन। रिपोर्टर थोडी देर
बगलें झांकता है। फिर कहता है।) समझे या नहीं?
रिपोर्टर-मैं समझ गया सर। 25वीं सदी की बेवसाईट है यह।
प्रो.-अब जाके सही पकड़े हैं।
रिपोर्टर-प्रो. बाटलीवाला एक बात मेरी समझ में
नहीं आई?.........अब मैं यह नहीं कहूंगा। बल्कि यह
कहूंगा प्रो. बाटलीवाला ने बहुत सारी बातें हमें समझाई और हमारी समझ में आई। प्रो.
बाटलीवाला आपका एक बार पुनः बहुत बहुत धन्यवाद। और आप सबका भी बहुत-बहुत धन्यवाद।
जो अपना कीमती समय निकालकर यहां आए। नमस्कार। कुछ ही देर में हमारे दूसरे
संवाददाता आयेंगे। नये समाचार लेके। तब तक हम लेते हैं। दो मिनट का ब्रेक।
(पर्दा
गिरता है।)
बहुत मजेदार एवम कटाक्षी।
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