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Friday, December 30, 2011

discovers New Year : नव वर्ष का विमर्श

नव वर्ष का विमर्श 


वहा !
क्या बात है .
क्या आज कुछ खास है ?
नहीं .
तो इतना क्यों उछल रहे हो ,
बिना बात इतना क्यों चहक रहे हो,
मन कर रहा था,
इसलिए,
नाच रहा हूँ .
नये वर्ष का भविष्य बांच रहा हूँ .
ज्योतिषी लगते हो,
या किसी पार्टी के नेता हो ?
ये दो ही लोग कर सकते हैं 
एक से लेकर पञ्च वर्षीय योजनओं का
बखान
व उनका भविष्योंन्मुखी पञ्चनामा .
वरना कैसे बुझेगी पेट की भूख
साठ साल में
आम आदमी ने तो यही है जाना .
फिर भी
आपका मन कर रहा है तो चहकिए,
पटाखे बजाइए ,
ढोल नगाड़े जो भी हो सके. 
ख़ुशी इजहार करने के 
बहुत तरीकों का आज आविष्कार कर लिया है
मानव ने .
अपनी सभ्यता और संस्कृति से 
उसने बहुत कुछ सीखा है , 
और उसका पालन भी कर रहा है  
इस अति आधुनिक युग में भी .
भौतिक सांसारिक सुख सुविधाएँ 
मिथ्या है 
बकवास है -
इसलिए वह वैवाहिक बंधन के 
सांसारिक मोह में फंसना नहीं चाहता हैं -
लिव इन रिलेशन शिप में जीना चाहता हैं .
सत्य और स्पष्ट वादी इतना हो गया है 
की 
माँ बाप तक को स्पष्ट कह देता है 
की
मैं आप को 
सादी के बाद साथ नहीं रख सकता . 
स्पष्टता, 
वादा करने के बाद भी 
पूरा नहीं होता है 
तो स्पष्ट कह देता है 
सोरी .
सुरा और सुन्दरी का साम्य तो 
उसमें देवत्व गुण दर्शाते हैं.  
अत: इनका सेवन 
खास तो खास 
आम तक भी होने लगा है,
सभ्य व शिष्टता के रूप में.
पराये क्या 
माँ बाप तक के सामने 
इन चीजो का परहेज नहीं है 
इस नव .... में.  
टेरीकोट व लाइलोंन की तो बात अलग है 
उसे खादी 
व सूती वस्त्रों तक से 
परहेज हो गया है 
अत: 
मातऋ शक्ती ने तो 
परदे पर 
परदे से 
परहेज कर 
आदिम वेशभूषा की तरह 
न्यून से न्यूड धारण करने का 
सिद्धांत अपना लिया है . 
किसी को आपति है 
तो हो 
उनके बाप का क्या जाता है .
यदि फिर भी कोई 
चैत्र मास के
शुक्ल पक्ष की 
पड़वा को 
नव वर्ष कह कर 
नव अन्न व धान की पूजा का प्रावधान 
नव वर्ष के लिए बताता है
तो उसे इस उत्तर आधुनिक युग में 
पिछड़ा हुआ गाँव का 
भोंदू नहीं कहेगें 
तो और क्या कहेगें ? 
जो आज भी कुरकुरे व पोपकोन की जगह 
सकरपारे, गुलगुले व कसार बाँटता हैं 
नव वर्ष पर .
और सेम्पियन व विस्की की जगह 
मट्ठा व राबड़ी पीता है 
तथा नव वर्ष पर सीरा बनाता है 
अंपने बच्चों के लिए
पटाखों की जगह 
पीपा बजाता है  
चिड़िया उड़ाने के लिए.
केक की जगह 
धरती का सीना काटता है .
अन्न उगाने के लिए .
काजू की जगह भुनगड़े खाता है 
पेट की भूख मिटाने के लिए,
और दूसरी जगह की भूखों के लिए 
उसके पास न तन है. 
न धन है .
न मन है. 
न जीवन है .
न इस भागते हुए समय की लगाम है .
जो जा रहा है २०११ से २०१२ की ओर.      

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