मुक्तक
मैं ऐसा जादूगर हूँ की हर जगह अपना पिटारा खोलता नहीं हूँ ,
पीके उल्लास की मधुशाला मैं हर चौराये पर डोलता नहीं हूँ |
मैं वक्त बेवक्त की नजाकत को पहचानता हूँ बखूबी ,
इसलिए हर किसी से मैं अपने दिल की बात बोलता नहीं हूँ |
प्रदीप प्रसन्न
मैं ऐसा जादूगर हूँ की हर जगह अपना पिटारा खोलता नहीं हूँ ,
पीके उल्लास की मधुशाला मैं हर चौराये पर डोलता नहीं हूँ |
मैं वक्त बेवक्त की नजाकत को पहचानता हूँ बखूबी ,
इसलिए हर किसी से मैं अपने दिल की बात बोलता नहीं हूँ |
प्रदीप प्रसन्न
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