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Thursday, December 22, 2011

some poems : दो मुक्त मुक्तक

कसक ये नहीं की हम आज तक  कंवारे हैं,
कैसे उन बिन अपने आप को सँवारे हैं .
गहन पीड़ा तो  मन में तब होती है जब ,
वो कहते हैं बच्चो,यही हैं वो जो मामा तुम्हारे हैं .


लालू भी लोकपाल  बिल से मुलायम होने लगे हैं,
बिन पिए ही अपने होश वो  खोने  लगे हैं .
कहते हैं लोकपाल  से सांसदों की पूछ खत्म हो जायेगी,
राबड़ी पी हैं या चारा  खाया है पता लग जायेगा तो मूछ खत्म हो जाएगी   
प्रदीप प्रसन्न

1 comment :

  1. प्रदीप भाई अंतर्जाल(इंटरनेट) पर आपका स्वागत है ।

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