कविता की चिट्ठी कवि के नाम
इस कडकती ठण्ड रूपी
संसद सत्र के प्रकोप से
सूरज भी हड़ताल पर चला गया है ,
और युवाओ का जोश भी
सारा राहुल बटोर रहा है ,
रहे सहे बुड्डे व बच्चे
लाखो हजारे के पीछे लगे हुए हैं ,
कुछ नाम का वर करने वाले
व राजाओ के इंद्र व सूर्य के चेले,
अच्छी बुधि के ईस,
कालिये-धोलिये ,
अ शोक से तृप्त -
पकोड़ी बेच रहे है
, अपनी अलग अलग दुकान खोल कर -
ज्यादा तर दिल्ली में
व कुछ दायें बांयें ,
आलू चना
व सम इच्छा के नाम की चटनी मिलाकर.
अत: आपसे निवेदन है
आप जल्दी आ जाइये ,
वरना मेरे रहे सहे कपडे भी
फाड़ दिए जायेंगें
.वैसे आजकल
सबको अच्चा लगता है
कम कपडे पहनना
,पर मेरे पास कुछ छोड़ा ही न
जिसे में ढक कर रखूं ,
सब तो ले गए .
छन्द रूपी नुपुर ,
ताल रूपी करधनी ,
भाव रूपी चोली ,
अलंकार रूपी ओढ़नी ,
शिष्ट शब्द रूपी घघरी ,
लय रूपी केश,
यति -गति रुपि आभूषण व मोहकता ,
रस रूपी हरिद्यंगम श्रोता
-कुछ भी तो नहीं बचा है मेरे पास .
आप भी मुझसे रूठ गए हैं
व इन लोगो में ही शामिल हो गए हैं,
अत: दोष आपका भी कम नहीं है ,
फिर भी
अब तो आजाइए ,
वरना मैं भी
तीन बार कह दूंगी
त.. त... त..
जैसे आप व और लोग मुझसे कह चुके हैं
आप से फिर मिनले की आशा मैं
आ .....की .... सब ...की......कविता ....
प्रदीप प्रसन्न
इस कडकती ठण्ड रूपी
संसद सत्र के प्रकोप से
सूरज भी हड़ताल पर चला गया है ,
और युवाओ का जोश भी
सारा राहुल बटोर रहा है ,
रहे सहे बुड्डे व बच्चे
लाखो हजारे के पीछे लगे हुए हैं ,
कुछ नाम का वर करने वाले
व राजाओ के इंद्र व सूर्य के चेले,
अच्छी बुधि के ईस,
कालिये-धोलिये ,
अ शोक से तृप्त -
पकोड़ी बेच रहे है
, अपनी अलग अलग दुकान खोल कर -
ज्यादा तर दिल्ली में
व कुछ दायें बांयें ,
आलू चना
व सम इच्छा के नाम की चटनी मिलाकर.
अत: आपसे निवेदन है
आप जल्दी आ जाइये ,
वरना मेरे रहे सहे कपडे भी
फाड़ दिए जायेंगें
.वैसे आजकल
सबको अच्चा लगता है
कम कपडे पहनना
,पर मेरे पास कुछ छोड़ा ही न
जिसे में ढक कर रखूं ,
सब तो ले गए .
छन्द रूपी नुपुर ,
ताल रूपी करधनी ,
भाव रूपी चोली ,
अलंकार रूपी ओढ़नी ,
शिष्ट शब्द रूपी घघरी ,
लय रूपी केश,
यति -गति रुपि आभूषण व मोहकता ,
रस रूपी हरिद्यंगम श्रोता
-कुछ भी तो नहीं बचा है मेरे पास .
आप भी मुझसे रूठ गए हैं
व इन लोगो में ही शामिल हो गए हैं,
अत: दोष आपका भी कम नहीं है ,
फिर भी
अब तो आजाइए ,
वरना मैं भी
तीन बार कह दूंगी
त.. त... त..
जैसे आप व और लोग मुझसे कह चुके हैं
आप से फिर मिनले की आशा मैं
आ .....की .... सब ...की......कविता ....
प्रदीप प्रसन्न