एक कदम और रंगमंच की ओर
रंग संस्कार थियेटर ग्रुप अलवर की ओर
से ग्रीष्म नाट्य उत्सव 12 से 14 मई 2017
महावर ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया। रंग संस्कार थियेटर ग्रुप का यह इस वर्ष का
तीसरा नाट्य उत्सव है।
विमला डागला युवा है, सुंदर
है और उर्जान्वित है। उसकी अच्छी आवाज से और अधिक संभावनाएं उसके द्वारा किरदार को
बेहतर निभाने की दिखाई देती है। लेकिन इनका जब तक उपयोग नहीं किया जायेगा तब तक
उसे भी और नाटको को भी लाभ नहीं मिलेगा। उससे और बेहतर काम करवाया जा सकता था
लेकिन तालमेल की कमी के अभाव के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका। हालांकि धीरेन्द्र पाल
सिंह का यह प्रथम निर्देशन था, इसलिए उस दृष्टि से काफी सराहनीय कार्य
है। पहले नाटक में काफी कुछ करने का प्रयास उन्होंने एक निर्देशक के बतौर किया।
एक तरह से प्रस्तुति एक तरफी सी दिखाई
दी। दर्शकों के माध्यम से देखें तो दर्शक उससे जुड़ नहीं पाए। कलाकारों में भी
एक-दूसरे के प्रति सहयोग या जुड़ाव दिखाई नहीं दिया। एक समन्वय का भाव जिस तरह का
एक कलाकार से दूसरे कलाकार के मध्य होता है वह गायब था। दोनों के मध्य किसी तरह की
प्रतिक्रिया का आदान प्रदान ही नहीं हुआ। हालांकि स्क्रिप्ट भी इतनी प्रभावी नहीं
थी और न ही भाषा एवं संवाद अपनी छाप छोड़ पाए। किंतु फिर भी कुछ परिश्रम की मांग
करने वाला यह नाटक यदि अच्छे से प्रयास और तालमेल के द्वारा प्रस्तुत किया जाए तो
एक बेहतर प्रस्तुति साबित हो सकता है। इस नाटक की प्रकाश व्यवस्था संभाली शिव सिंह
पालावत ने। संगीत दिया देवेंद्र सिंह ने एवं मंच परे अन्य सहयोगी भूमिका में थे
साजिद आलम और रिषभ।
13 मई को मंचित होने वाला नाटक अर्थात दूसरा
नाटक था ‘आधी रात के बाद’। यह डॉक्टर शंकर शेष द्वारा लिखा गया
नाटक है जो कि काफी प्रसिद्ध है। ‘आधी रात के बाद’ ऐसा नाटक है
जिसमें चोर चोरी करने आता है एक जज के घर में। वह भी मात्र ढाई सौ रुपए की।
क्योंकि वह जानता है कि ढाई सौ रुपए की चोरी करने से वह जेल में बंद हो सकता है।
इसलिए वह चोरी जेल में बंद होने के लिए करना चाहता है। उसके पीछे की सारी कहानी वह
एक घंटे तक जज से बात करते हुए सुनाता है कि क्यों चोरी करना चाहता है। समाज की
अनेक विसंगतियों के ऊपर वह सवाल खड़ा करता है कि क्या इस तरह से छोटा मोटा सामान चुराने
वाले ही चोर है या बड़े-बड़े बिल्डर, उद्योगपति, नेता, मंत्री
जो समाज के साथ बेईमानी करते हैं, चीटिंग करते हैं, धोखा
देते हैं, अतिरिक्त पैसा और संपत्ति होने के बाद भी अनेक प्रकार के घोटाले
बेईमानियां करके लोगों को बेवकूफ बनाते हैं, सामान में
मिलावट करते हैं, ड्रग्स की सप्लाई करते हैं, ये
सब चोर हैं? ऐसे अनेक सवाल उठाता है ‘आधी रात के बाद’।
जज का एक पड़ोसी पत्रकार होता है, जो बीच बीच में घर में लाइट चलते हुए
देखकर उनसे सहज भाव से कुछ बात करने के लिए आ जाता है। जैसे चाय के लिए चाय पत्ती,
दूध
वगैरह मांगने के लिए आता रहता है और वह चोर को उनका विशिष्ट मेहमान समझकर, काफी
लंबी बात चलेगी, देर तक जागते रहोगे यह कहता है।
नाटक का निर्देशन किया शिव सिंह पालावत
ने और साथ ही चोर की दमदार भूमिका को भी शिव सिंह पालावत ने अभिनीत किया। अपने हाव
भाव एवं सशक्त अदाकारी के साथ चोर के किरदार को बखुबी प्रस्तुत किया शिव सिंह
पालावत ने। जज की भूमिका में थे योगेंद्र अग्रवाल। योगेंद्र अग्रवाल के पास कहने
के लिए विशेष संवाद नहीं थे। वे सिर्फ चोर की कहानी को सुन रहे थे या कहानी को आगे
बढ़ाने के लिए बस बीच-बीच में प्रश्न या जिज्ञासा प्रकट करते थे। फिर क्या हुआ?
आगे?
चोर
के द्वारा की गई चोरी से संबंधित सवाल, उसके द्वारा चुराए गए पैसों का क्या
किया? उसकी प्रेम कहानी किस तरह से आगे बढ़ी। इन सबको जानने के लिए उनके
बहुत सीमित संवाद थे। लेकिन उन सीमित संवादों में भी योगेंद्र अग्रवाल जज के रूप
में अपने अभिनय से अपना प्रमुख प्रभाव छोड़ते हैं। विशेष रुप से उनके शरीर का डील
डोल इस भूमिका के लिए एकदम सूट करता है। पड़ोसी की भूमिका निभाई कृष्ण कुमार शर्मा
ने। उनके भी नाटक में तीन या चार संवाद थे लेकिन प्रभावी थे। शंकर शेष ने यह नाटक
सच में बहुत खूबसूरत अंदाज में लिखा है। इस नाटक की बहुत अच्छी प्रकाश व्यवस्था को
संभाला देशराज मीणा ने। संगीत दिया हेमेंद्र सिंह ने। कुल मिलाकर एक अच्छी
प्रस्तुति का आभास कराया आधी रात के बाद ने। समसामयिक विसंगतियों के ऊपर कटाक्ष
करते हुए अनेक प्रश्नों को खड़ा करता है यह नाटक।
चौथी और इस ग्रीष्म नाट्य उत्सव की
अंतिम प्रस्तुति थी ‘उसके इंतजार में’। यह नाटक मेरे
द्वारा लिखा गया है और इसके दूसरे अंक की भूमिका में मैं हूं। ‘उसके
इंतजार में’ नाटक का निर्देशन एवं प्रकाश व्यवस्था संभाली
देशराज मीणा ने। संगीत दिया शिव सिंह पालावत ने। पहले अंक में दो बेरोजगार युवक
छोटी मोटी चोरी करते हैं। वे अखबार में कोई काम तलाश रहे हैं। इसी बीच वे समाज की
अनेक समस्याओं, घटनाओं तथा क्षेत्रों में व्याप्त अनैतिकता,
विसंगती
आदि पर बहुत ही गंभीर चोट करते हैं। अभिनय की दृष्टि से युवक एक भूमिका में रिषभ
और दो की भूमिका में हेमेंद्र सिंह ने काफी अच्छा प्रयास किया है। किंतु बीच बीच
में तालमेल की कमी यहां भी दिखाई दी। रिषभ का उतावलापन एवं हेमेन्द्र सिंह की धीमी
गति ने नाटक को अनेक जगह पर गति से अवरूद्ध किया। दोनों ही युवा कलाकार हैं। जोश
है, उमंग है, लेकिन अभी अनुभव की कमी नजर आ रही है।
हेमेन्द्र का स्वर अच्छा है लेकिन वह धीमा है। उसकी आवाज दर्शक तक नहीं पहुंच पा
रही थी, या जिस स्तर पर पहुंचनी चाहिए वह स्तर नहीं था। रिषभ में चंचलता है
इसलिए वह चलने के बजाय भागता है। वह तुरंत संवाद खत्म करना चाहता है। संवादों के
मर्म को जानने के बजाय उन्हें सिर्फ उच्चारित करने में प्रभाव कम हो जाता है। चाहे
संवाद कितने भी बेहतर क्यों न हों।
रिषभ में अपने संवादों को बोलकर उससे
निजात पाने की जल्दबाजी दिखाई देती है। जबकि हेमेंद्र बहुत धीमी गति से चलता है।
दोनों की यह स्वभावगत स्थिति है। जो कहीं न कहीं प्रस्तुति को बाधित कर बेहतर
प्रस्तुति बनाने में अड़चन पैदा करती है। लेकिन दोनों ने एक अच्छा प्रयास किया है।
दोनों में संभावना बहुत है। इसलिए आगे उसमें सुधार होगा। इसी प्रस्तुति के दूसरे
अंक में एक बाजार का दृश्य दिखाया गया है। जिसमें एक लड़की को अकेला पाकर कुछ लोग
उसके साथ बतमजी करते हैं और वह मौन रहती है। उसे छेड़ते हैं और उसका लाभ उठाते हैं।
एक दूसरे दृश्य में इसी तरह एक दूसरी लड़की आती है वे लड़के उसे भी छेड़ते हैं लेकिन
वह लड़की उनका मुकाबला करती है, उनका सामना करती है, उन्हें
जवाब देती और लड़कों को हताश और निराश कर देती है। वह एक बड़ा प्रश्न छोड़ती है कि
हमें स्वयं आगे आना होगा, कब तक हम दूसरों के सहारे छुपते रहेंगे,
चुप
रहेंगे और सहते रहेंगे। बाजार के दृश्य में नम्रता, विमला डागला,
धीरेंद्र
सिंह, योगेंद्र अग्रवाल, हेमेंद्र सिंह, रिषभ, कृष्ण
कांत शर्मा आदि मौजूद थे। प्रदीप कुमार इसी बाजार से निकलकर एक बस के लिए जाते हैं
लेकिन बस छूट जाती है। वे इंतजार करते हैं बस का और तब तक वहीं बैठकर एक प्रेम
कहानी के माध्यम से अनेक सवाल खड़े करते हैं। अपनी कविताओं से एवं संजिता संवादों
से दर्शकों को मजबूर करते हैं तालिया बजाने के लिए। समसामयिक घटनाओं पर गंभीर
कटाक्ष इस नाटक में दिखाई देता हैं तथा सहज हास्य के द्वारा लोगों को गुदगुदाते के
लिए भी वे मजबूर करते हैं।
रंगमंचीय दृष्टि से ‘ग्रीष्म
नाट्य उत्सव’ एक अच्छा कार्यक्रम साबित हुआ। अलवर में नाटकों
के क्षेत्र में एक सशक्त पहचान बनाने में रंग संस्कार थियेटर ग्रुप धीरे धीरे
सक्रिय है। रंग संस्कार थियेटर गु्रप जिस तरह से लगातार नाटक कर रहा है निश्चित
रुप से उसके सद्प्रयासों से अलवर के रंगकर्म का भविष्य बेहतर और सुनहरा है,
ऐसी
आशा की जा सकती है। अनेक रंगकर्मी एवं रंग संस्थाओं के सामने सवाल भी छोड़ता है,
कि
आप सब भी प्रयास करें तो उसका हौसला बुलंद होगा। दर्शकों की कमी उसे जरुर खलती है
लेकिन उन दर्शकों में जो भी आए हैं वे बहुत मायने रखते हैं। कला के लिए हमेशा कम
ही लोग रहे हैं लेकिन जो लोग सक्रिय रहे हैं वे विशिष्ट रहे हैं। इस नाट्य उत्सव
को नियोजित करने में देशराज मीणा जी का जितना आभार व्यक्त किया जाए कम है। निश्चित
रुप से देशराज मीणा थियेटर के लिए एक जुनूनी और समर्पित व्यक्ति हैं और इसी दिशा
में वह आगे बढ़ रहे हैं। वे ओर आगे बढ़े, बुलंदियों को छुएं, उन्नति
करें, ऐसी आशा एवं शुभेच्छा।
प्रस्तुति-
डॉ. प्रदीप कुमार
ग्राम/पोस्ट-बास कृपाल नगर,
तहसील-किशनगढ़-बास, जिला-अलवर,
राजस्थान, पिन न. 301405,
मोबाईल
नं.-9460142690,
esy&pradeepbas@gmail.com CykWx&http://pradeepprasann.blogspot.in/2017/03/blog-post.html
अलवर में बड़े अच्छे नाट्य आयोजन की पठनीय रपट।
ReplyDeleteबधाई और धन्यवाद।