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Friday, January 10, 2020

मजा ही नहीं सजा भी देता है नाटक


मजा ही नहीं सजा भी देता है नाटक
-डॉ. प्रदीप कुमार
द ग्रेट राजा मास्टर ड्रामा कंपनी’ नाटक दिनेश भारती द्वारा लिखा गया है। यह नाटक हास्य-व्यंग्य शैली का नाटक है। लेकिन इसमें हास्य अधिक प्रभावी है। नाटक की कथा बहुत विशेष है और लेखक ने इसे पूरे नाट्कीय रूप में लिखकर इसे और अधिक प्रभावी तथा विशेष बना दिया है। कथा कुछ इस प्रकार है। एक राजा मास्टर नाम का टेलर है और एक उसका शागिर्द है। जिसका नाम दिलेनादां होता है। उन्हें लगता है कि टेलरिंग के काम में अब बरकत नहीं रह गई है। अधिक पैसा और नाम कमाने के लिए अब कुछ ऐसा काम करना चाहिए जिससे आसानी के साथ सब चीजें मिल जाएं। राजा मास्टर और दिलेनादां दोनों ही विचार करते हैं कि ड्रामा कंपनी खोली जाए और एक स्क्रिप्ट लिखकर अपने इर्द-गिर्द के लोगों से उनमें काम करवाकर सफलता, शोहरत और पैसा हासिल किया जाए। राजा मास्टर और उसका चेला दिलेनादां मिलकर एक कंपनी खोलते हैं। जिसका नाम होता है-‘द ग्रेट राजा मास्टर ड्रामा कंपनी’। अपनी कंपनी के लिए दिलेनादां अपना पहला नाटक लिखते हैं-‘शहजादा सलीम उर्फ डाकू सुलेमान’। टेलरिंग कंपनी छोडकर ड्रामा कंपनी खोलने एवं पहला नाटक करने तथा इसके प्रचार के लिए राजा मास्टर अखबार वालों को बुलाकर उन्हें अपना इंटरव्यू देते हैं। अखबार के इंटरव्यू में नाटक के बारे में, अपने तजुर्बे के बारे में एवं नाटक के पहले शो के बारे में राजा मास्टर सब बयां करता है।
अपने आस काम करने वाले लोगों को वे नाटक में रोल देते हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि सबको एक ही नाटक करने के बाद मुंबई का रास्ता दिखाई देता है या फिर पहली बार में, पहले ही नाटक में बड़ा रोल करके अपनी प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा, पहचान बनाने की चाह होती है। आमतौर पर जैसा कि नाटक वाले करते हैं, वह सब राजा मास्टर के नाटक के कलाकार करते हैं। यथा-शराब पीना, लड़कियों से इश्क करना या एक दो नाटक करके मुंबई की ओर फिल्मों में जाने की इच्छा जाहिर करना। ये सब चीजें नाटक में बयां होती हैं। एन शो वाले दिन उन्हें पता चलता है कि उनका एक कलाकार लोटा मुरादाबादी जो डाकू खूंखार सिंह का रोल कर रहा था, नाटक की मुख्य नायिका गुलाब बाई जो अनारकली का रोल कर रही थी, उसे लेकर भाग गया। दूसरा कलाकार गाजर गाजीपुरी जो कि सलीम और डाकू सुलेमान का रोल कर रहा है, वह एन शो वाले दिन तक अपने डॉयलोग याद नहीं कर पाता है। उसके बाद आता है खदेरवा, जो कि नाटक में अकबर का रोल कर रहा है। लेकिन खदेरवा शराब बहुत पीता है और अमिताभ बच्चन की नकल करता है। वह शर्त रखता है कि बिना पिए स्टेज पर नहीं जाएगा और हाथ में तलवार नहीं बल्कि बोतल लेकर जाएगा। शराब अधिक पीने के कारण वह शो के लिए मंच पर आता ही नहीं है। अब राजा मास्टर के सामने समस्या यह खडी होती है कि अकबर किसे बनाएं। राजा मास्टर दिलेनादां को कहते हैं तुम बन जाओ अकबर। दिलेनादां अकबर बन जाता है। दिलेनादां राजा मास्टर को एक समस्या के बारे में और बताता है। वह कहता है नाटक का उद्घाटन करने वाले नेता नौरंगी लाल नहीं आ सकते, वे कब्रिस्तान का उद्घाटन करने गए है। अब क्या होगा? राजा मास्टर कहते हैं अपने पर्दे खिंचने वाले मंहगवा को नेता बनाकर उद्घाटन करवाते हैं। अब सवाल यह उठता है कि बाकी सब तो हो गया लेकिन अनारकली कहां से लाएं? तब राजा मास्टर दिलेनादां को कहता है कि नुक्कड पर पान बेचने वाली चंपाकली को ले आ थोडी देर के लिए। अनारकली का रोल उसी से करवा लेते हैं। दिलेनादां चंपाकली को ले आता है। राजा मास्टर अनारकली को चंपाकली का रोल करने के लिए तैयार कर लेते हैं। लेकिन इतनी ही देर में चंपाकली की अम्मा उसके पीछे-पीछे आ जाती है और वह दिलेनादां और सलीम बने हुए गाजर गाजीपुर को पीट कर चली जाती है और अपनी बेटी चंपाकली को भी साथ ले जाती है। राजा मास्टर के सामने फिर मुसीबत आ जाती है, तो राजा मास्टर दिलेनादां से कहते हैं कि तुम अकबर का रोल करके और गाजर गाजीपुरी सलीम का रोल करके किसी तरह से नाटक को खत्म करो। दिलेनादां स्टेज पर जाते हैं लेकिन स्टेज पर जाकर वे गिर जाते हैं। गलतफहमी में दिलेनादां सलीम के डॉयलोग बोलते हैं और गाजीपुरी अकबर के। जबकी गाजीपुरी का मेकअप जवान का है और दिलेनादां का बूढे का। खूब हास्यास्पद स्थिति होती है। राजा मास्टर खूब माथा पीटते हैं और अंत में राजा मास्टर दोनों को गोली मार कर जैसे तैसे नाटक खत्म करते हैं।


यह सहज सी कहानी है नाटक ‘द ग्रेट राजा मास्टर ड्रामा कंपनी’ की। लेकिन इस सामान्य सी कहानी को नाटक के लेखक दिनेश भारती ने बड़े ही खूबसूरत अंदाज में बयां किया है। यह तो हुआ नाटक का कथासार। अब नाट्य प्रस्तुति की समीक्षा लिखने से पहले नाटक के पूर्वाभ्यास की समीक्षा लिखनी जरूरी है जो कि निश्चित रुप से इस नाट्य प्रस्तुति का एक अभिन्न अंग है। नाटक का पूर्वाभ्यास प्रारंभ किया गया 22 अक्टूबर 2019 से। लेकिन दीपावली की वजह से 25 से 29 तक पूर्वाभ्यास नहीं हो सका। एक तरह से पूर्वाभ्यास प्रारंभ हुआ 1 नवंबर 2019 से। इस नाटक में कुल 11 पात्र हैं। 22 अक्टूबर से 24 अक्टूबर तक सभी कलाकार मौजूद थे। लेकिन दीपावली के बाद एक एक कलाकार गायब होता रहा। उस गायब होने के क्रम में नाटक के निर्देशक देशराज मीणा और स्टेज मैनेजर हितेश जैमन लगातार दूसरे कलाकारों को तलाश करते रहे और उन्हें रोल देते गए। लेकिन दिपावली के बाद एक भी रिहर्सल ऐसी नहीं हुई जिसमें सभी कलाकार मौजूद हों। यहां तक की नाटक में प्रमुख चार कलाकार हैं-राजा मास्टर, दिलेनादां, गाजीपुरी और खदेरवा, ये भी चारों एक साथ एक भी दिन मौजूद नहीं रहे। देशराज मीणा ने मुझे 20 अक्टूबर को ही कह दिया था कि अबकी बार आप बैक स्टेज रहिए और इस नाटक में प्रकाश व्यवस्था संभालिए। मैंने कहा ठीक है। क्योंकि प्रतिदिन किशनगढ से अलवर जाकर पूर्वाभ्यास करना संभव नहीं हो पायेगा। इसलिए प्रकाश व्यवस्था संभालनी ही ठीक रहेगी। प्रकाश व्यवस्था के लिए नाटक के शो के एक या दो दिन पहले जाकर रिहर्सल देख लूंगा या उसी दिन स्टेज पर जो फाइनल रिहर्सल होगी उसे जाकर देख लूंगा। कहने का तात्पर्य यह है कि एक तरह से मैं निश्चिन्त हो गया कि मुझे नाटक के शो के एक या दो दिन पूर्व जाना है बस। 

इसी मध्य राजा मास्टर का रोल कर रहे संदीप शर्मा अलवर छोडकर धोलपुर काम करने चले गए। अब वो रविवार को या छुट्टी के दिन ही रिहर्सल करते थे। इस नाटक के स्टेज मैनेजर एवं नाटक में दिलेनादां की भूमिका निभाने वाले हितेश जैमन का भी तबादला अलवर से हनुमानगढ़ हो गया। कुछ अन्य कलाकारा भी चले गए। अब समस्या यह आ गई कि दोनों ही मुख्य भूमिका निभाने वाले व्यक्ति अलवर से बाहर चले गए एवं अन्य कलाकार भी रिहर्सल पर नहीं आ रहे। कुछ ने अप्रत्यक्ष रूप से नाटक में काम करने से मना कर दिया। ऐसी स्थिति में राजा मास्टर का रोल करने की नाटक के निर्देशक देशराज मीणा ने ठानी। संदीप शर्मा को गाजर गाजीपुरी का रोल दिया गया। इसी बीच चंपाकली की भूमिका करने वाली कलाकार का पैर फ्रैक्चर हो गया। चंपाकली की अम्मा की तलाश तो निर्देशक को पहले ही थी, अब चंपाकली भी ढूंढनी पडेगी। यानी एक के बाद एक मुसिबत नाटक की रिहर्सल के दौरान आती गईं। खदेरवा के रोल के लिए कैलाश वर्मा को फाइनल किया। मंहगवा के रोल के लिए नवीन शर्मा को फाइनल किया। लेकिन नवीन शर्मा रविवार को नहीं आ सकते थे। संदीप शर्मा रविवार को ही आ सकता थे। पत्रकारों की भूमिका निभाने वाले कलाकार वंशक और रजत रिहर्सल पर शाम 6.30 बजे बाद ही आते थे। कहने का तात्पर्य समस्याएं ही समस्याएं आ रही थी। लेकिन इस बीच हितेश जैमन ने दो चार दिन हनुमानगढ जाकर 1 दिसंबर 2019 तक छुट्टी ले ली। इस नाटक के दो शो फाइनल हो चुके थे। पहला 29 नवंबर को अलवर में एवं दूसरा 1 दिसंबर को फरिदाबाद में। इसी बीच चंपाकली और उसकी अम्मा का रोल करने वाली अभिनेत्रियां भी तलाश करली गईं। अब तारीख हो चुकी थी 23 नंवबर। मैं सोच रहा था मुझे कुछ खेती का काम है उसे दो चार दिन में खत्म करके, यदि समय मिला तो 28 को एक बार प्रकाश व्यवस्था के लिए रिहर्सल देखने जाऊंगा और यदि समय नहीं मिला तो 29 को ही जाऊंगा। 20 नंवबर के बाद मेरे पास देशराज का फोन भी नहीं आया था।
अचानक से 25 तारीख को रात 8 बजे मेरे पास देशराज मीणा का फोन आया। मैं उस समय खाना खा रहा था। इसलिए सोचा बाद में बात कर लूंगा। अक्सर देशराज मेरे पास एक ही बार फोन करते हैं, यदि मैं नहीं उठाता हूं तो वो फिर दो चार घंटे का गैप देकर बाद में करते हैं। लेकिन देशराज ने फिर फोन किया। मैंने खाने के मध्य में ही फोन उठाया, मैंने सोचा कुछ जरूरी है तभी देशराज ने लगातार फोन किया है। देशराज ने मुझसे कहा-‘प्रदीप जी नाटक में रोल कर लोगे?’ मैंने सोचा शायद कोई कम संवाद का रोल होगा, कोई कलाकार अब चला गया होगा। फिर भी मैंने मना कर दिया। क्योंकि खेती के काम की वजह से मेरे पास समय नहीं था। देशराज जी ने कहा-‘फिर या तो सब कैंनसिल करना होगा या.......?’ मैंने कहा क्यों ऐसा क्यों? तब उन्होंने मुझे बताया कि उनके पैर का फैक्चर हो गया है इसलिए। मैंने कहा अरे कैसे, कब, कहां? उन्होंने कहा वो सब तो बाद में बताऊंगा पहले यह बताओ रोल कर लोगे या नहीं? मैंने कहा यार खेती के काम में व्यस्त हूं। उधर कॉलेज भी है। इसलिए थोडा मुश्किल है लेकिन बताओ कौनसा रोल है। मैं कोशिश करता हूं। मैंने सोचा कोई कम संवाद वाला रोल होगा। लेकिन उन्होंने कहा राजा मास्टर का रोल है। मुख्य किरदार है नाटक का। मैंने पांच सेकिंड सोचा और कहा ठीक है, शो होगा आप नाटक की स्क्रिप्ट भेजो। मैंने पहले कई बार सुना था ‘शो मस्ट गो ऑन’ लेकिन उसे चरितार्थ नहीं किया था। उस समय मेरे मन में यह विचार आया कि यही है ‘शो मस्ट गो ऑन’। देशराज जी ने 9 बजे मुझे स्क्रिप्ट भेजी और कहा आप गाजर गाजीपुर का रोल याद करलो। राजा मास्टर का संदीप शर्मा कर लेगा, क्योंकि उसने रिहर्सल के प्रारंभ में राजा मास्टर की प्रोक्सी की थी और वह रोल भी किया था। इसलिए संदीप को राजा मास्टर के अधिकतर संवाद याद हैं और आप गाजीपुरी का कीजिए।’ मुझे खुद को नहीं पता था कि मैं आगे के 2 दिन कैसे एडजस्ट कर लूंगा। मैंने कहा ठीक है और मन में सोचा अच्छा है, गाजीपुर के कम संवाद होंगे उसे आसानी से एक दिन में याद किया जा सकता है। लेकिन स्क्रिप्ट पढने के बाद पता चला गाजीपुरी के भी संवाद काफी हैं। खैर मैं 26 तारीख को रिहर्सल पर गया। उस दिन भी सभी कलाकार नहीं थे। संदीप ही नहीं थे। संदीप 28 को आयेंगे ऐसा मुझे बताया गया। मेरे संवाद अधिकतर संदीप के साथ थे। इसलिए मैं 27 को रिहर्सल पर नहीं गया। 28 को भी सारे कलाकार एक साथ मौजूद नहीं थे लेकिन टुकडो में हमने रिहर्सल की।

इससे पहले मैं दो बार देशराज मीणा को कह चुका था मुझे नाटक की स्क्रिप्ट भेज दो, ताकि प्रकाश व्यवस्था के अनुसार नाटक को पढ सकूं और समझ सकूं। लेकिन वो किसी कारण से स्क्रिप्ट नहीं भेज पाए।
खैर 29 तराीख को शो वाले दिन स्टेज पर एक पूरी रिहर्सल की, जिसमें सभी कलाकार मौजूद थे। यह पहली रिहर्सल थी जब सभी कलाकार पूरी रिहर्सल में मौजूद थे। मैं थोडा असमंजस में था। क्योंकि मैं जो किरदार कर रहा था गाजर गाजीपुरी का, वह मैंने अपने तरीके से तैयार किया था। निर्देशक का अपना दृष्टिकोण क्या है, उस किरदार को लेकर यह मुझे बताया नहीं गया था। क्योंकि इतना समय ही नहीं था। लेकिन मेरे अलावा बाकी सारे कलाकार ऐसे थे जो रिहर्सल पर कम से कम 15 बार आ चुके थे और टुकड़ों में ही सही पर कभी कभी रिहर्सल भी कर चुके थे। उन्हें किस तरह से अपना किरदार अभिनीत करना है यह देशराज ने उन्हें समझा दिया था।
अब बात करते हैं नाटक की प्रस्तुति की। राजा मास्टर का किरदार अभिनीत किया संदीप शर्मा ने। संदीप शर्मा अलवर के मंजे हुए अभिनेता के रुप में जाने जाते हैं और पिछले कुछ वर्षों से लगातार आप नाटकों में मुख्य भूमिकाओं में नजर आ रहे हैं। निसंदेह आपके अभिनय की ताकत निर्देशकों को आपकी ओर खींच लाती है और आपको मुख्य भूमिका करने के लिए मजबूर करती है। क्योंकि निर्देशक भी कई बार ऐसा सोचता है कि वह ऐसे कलाकार से अपना मुख्य किरदार अभिनीत करवाए जिससे वह नाटक को बेहतर प्रस्तुत कर सके। लेकिन ‘द ग्रेट राजा मास्टर ड्रामा कंपनी’ नाटक में संदीप शर्मा को मुख्य भूमिका सहज नहीं मिली बल्कि करनी पड गई। फिर भी दो तीन दिन में संदीप शर्मा ने राजा मास्टर के किरदार को तैयार किया। यह उनकी काबिले तारीफ है। लेकिन मंच पर अभिनीत किए गए राजा मास्टर के साथ संदीप शर्मा पूर्णतः न्याय नहीं कर पाए। अनेक जगह पर संदीप शर्मा न की संवाद भूले बल्कि राजा मास्टर के किरदार में भी वे नहीं दिखाई दिए। अनेक जगह पर संवादों में जिस तरह का उतार चढ़ाव चाहिए था, वह टूटता नजर आया।
एक दो जगह कुछ संवाद या दृश्य उन्होंने छोड भी दिए। इन कारणों की वजह से दूसरे अभिनेताओं को भी दिक्कत हुई। क्योंकि राजा मास्टर के किरदार के लिए शारीरिक रूप से जिस तरह का अभिनेता चाहिए, उसमें संदीप शर्मा बहुत फिट नहीं होते हैं। लेकिन फिर भी बहुत अधिक असुविधा नाटक को प्रस्तुत करने में नहीं हुई। उसके पीछे दो कारण थे। पहला, यह नाटक इस तरह से लिखा गया है कि इसमें मंच पर भी स्क्रिप्ट देखी जा सकती है (हालांकि देखी नहीं गई) और कुछ तब्दीली भी की जा सकती है। दूसरा संदीप शर्मा का नाट्य अनुभव काम आया। संदीप शर्मा के अभिनय में जो परिपक्वता दिखाई देती है, उसकी झलक राजा मास्टरों के किरदार में भी दिखाई दी। संदीप शर्मा राजा मास्टर को किसी हद तक निकालने में सक्षम भी हुए तो सिर्फ उनके अनुभव और परिपक्वता के आधार पर। अन्यथा नाटक के पूर्वाभ्यास की कमजोरी नाट्य प्रस्तुति में साफ दिखाई दे रही थी।
दिलेनादां का किरदार अभिनीत किया हितेश कुमार जैमन ने। हितेश जैमन अलवर के एक कर्मठ, निष्ठावान और परिश्रमी कलाकार के रूप में उभर रहे हैं। वे लगातार अपने किरदारों के साथ न्याय कर रहे हैं। इसके पीछे कारण है रंगमंच के प्रति उनकी मेहनत, लगन और निर्देशक के द्वारा बताए गए किरदार के अनुसार बेहतर कार्य करना और होम वर्क करना। दरअसल इस नाटक में मुख्य किरदार राजा मास्टर न होकर दिलेनादां ही है। क्योंकि राजा मास्टर को नाटक में सिर्फ आदेश वाली भूमिका में रहना होता है। जबकि दिलेनादां को अन्य कार्य भी करने पडते हैं। साथ ही दिलेनादां को नाटक में दिलेनादां के अलावा अकबर की भूमिका भी अभिनीत करनी पडती है। नाटक के बाहर हितेश जैमन इस नाटक के स्टेज मैनेजर और थे। इसलिए नाटक के अंदर एवं बाहर हितेश जैमन दोहरी भूमिका में थे। क्योंकि स्टेज मैनेजर के रूप हितेश जैमन ने नाटक के प्रारंभ से अंत तक अनेक तरह की मुश्किलों का सामना और समाधान किया। नाटक की रिहर्सल के समय जितनी चिंता देशराज मीणा को नहीं थे, उससे अधिक हितेश जैमन को थी। इन सब जिम्मेदारियों के बावजूद उन्होंने अपनी भूमिका नाटक के बाहर एवं नाटक के अंदर दिलेनादां के किरदार के रूप में बखूबी निभाई।
हितेश न तो नाटक में संवाद भूले और न नाटक को कहीं बाधित किया। इसके पीछे कारण यह था कि नाटक की रिहर्सल से मंचन तक यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन उपस्थित था तो वो हितेश जैमन था। इस कारण उन्हें अपने संवाद एवं ब्लोकिंग अच्छी तरह से याद थे । साथ ही अन्य कलाकारों के संवाद और पूरे नाटक की संरचना भी उन्हें याद थी। हितेश जैमन अलवर रंगमंच में अब एक ऐसा नाम बन गया है जो एक बेहतर व्यक्ति के साथ साथ एक संजीता अभिनेता के रूप में भी पहचाना जाता है। हितेश जैमन अपने काम के प्रति काफी ईमानदारी रखते हैं। उनकी मेहनत, ईमानदारी और समय के प्रति सचेत दृष्टि तथा समय की पाबंदी के कारण उनका कलाकार भी धीरे-धीरे निखरता जा रहा है। उनमें अभिनय के प्रति एवं कला के प्रति अलग रंग चढ़ा हुआ दिखाई देता है। सबसे बड़ी बात उनमें हमेशा सीखने की ललक रहती है। शांत स्वभाव से अपने काम के प्रति समर्पित यह जोशिला अभिनेता निश्चित रुप से अलवर का एक बड़ा सितारा बनेगा, ऐसी आशा और उम्मीद दोनों है।
पत्रकारों के रूप में तीन कलाकार थे। पत्रकार एक वंशक शर्मा, पत्रकार दो रजत शर्मा और पत्रकार तीन राहुल शर्मा। ये तीनों ही कलाकार अभी रंगमंच की दुनिया में नए अभिनेता हैं। इनमें उत्साह तो है लेकिन धैर्य की कमी है। विशेष रूप से रजत एवं वंशक में। अभी काम के प्रति एक जल्दबाजी दिखाई देती है। अपने संवाद अदा करने की बजाय उन्हें खत्म करना चाहते हैं और सिर्फ संवाद बोलने को ही अभिनय समझ रहे हैं। लेकिन अभी नए कलाकार हैं। धीरे धीरे सीखेंगे और बेहतर करेंगे, ऐसी आशा है।
ग्राहक की भूमिका निभाई ऋतिक चेलानी ने। ऋतिक चेलानी भी एक युवा कलाकार है। उसमें भी एक युवा और नए कलाकार में जो जल्दबाजी दिखाई देती है, वह दिखाई दी। ग्राहक के और पत्रकारों के कम संवादों के किरदारों में भी संभावना बहुत है। लेकिन ये युवा कलाकार उनके साथ अपना सामंजस्य ठीक से नहीं बैठा पाए। लेकिन इन चारों में रंगमंच के प्रति उत्साह है और सीखना चाहते हैं, यह अच्छी बात है। इन चारों में संभावना बहुत है। दरअसल रंगमंच बहुत धैर्य की मांग करता है। उसका इन चारों में अभी अभाव दिखाई देता है। लेकिन परिश्रम के साथ यदि लगातार ये रंगमंच से जुड़े रहे तो धीरे-धीरे 4-5 नाटकों के बाद उनके काम में निखार आने लगेगा। फिर इन्हें स्वयं भी महसूस होने लगेगा।
खदेरवा की भूमिका निभाई कैलाश वर्मा ने। कैलाश वर्मा बहुत अच्छे नर्तक हैं। समय-समय पर नाटकों में भी काम करते रहे हैं। कैलाश वर्मा द्वारा अभिनीत किया गया खदेरवा का किरदार काफी तक सफल रहा। कैलाश वर्मा को इस किरदार में अमिताभ बच्चन की नकल करनी थी। अमिताभ बच्चन की नकल करने में भी काफी हद तक कैलास वर्मा उसके आसपास नजर आए। लेकिन इस नाटक की स्क्रिप्ट के अनुसार खदेरवा का किरदार जिस तरह का होना चाहिए, वह कैलाश वर्मा अभिनीत नहीं कर पाए। कैलाश के साथ एक दिक्कत यह है कि वह एक नर्तक कलाकार है। अर्थात उसका अपना एक निश्चित दायरा है। उससे अधिक या उससे बाहर वह अभी जाता हुआ नहीं दिखाई देता। जिस दिन वे उस छवि से बाहर निकलेंगे उनके अभिनय में अलग प्रकार की चमक दिखाई देने लग जायेगी। किसी भी किरदार को अभिनीत करना उनके लिए फिर कठिन नहीं होगा। जैसे कि वे अपनी तरफ से कुछ नहीं करते हैं या करने में असमंजस की स्थिति महसूस करते हैं। निर्देशक ने जितना बताया है उतना ही कर पाते हैं। जबकि एक करैक्टर को विकसित करने के लिए कलाकार को अपनी तरफ से बहुत कुछ जोडना पडता है। प्रस्तुति में नहीं, रिहर्सल के दौरान ही। कैलाश वर्मा के व्यक्तित्व में एक मौलिक सहजता है। जो उनके किरदार पर भी हावी हो जाती है। इससे कैलाश को बाहर निकलना होगा। कैलाश वर्मा मंच पर पिछले 20 वर्षों से हैं। इसलिए मंच का डर उनमें नहीं है और मंच की समझ भी है। लेकिन नाटक के दृष्टिकोण से अभी वो मंच का बेहतर स्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं।
महंगवा का अभिनय किया वरिष्ठ रंगकर्मी नवीन शर्मा ने। महंगवा नाटक में पर्दा खींचने वाला होता है और नेता के नहीं आने पर राजा मास्टर महंगवा से उद्घाटन करवाता है, पर्दा खिंचवाता है। नाटक में महंगवा का एक भी संवाद नहीं है। सामान्यतः बिना संवाद के कोई भी व्यक्ति किसी नाटक में काम करने के लिए सहज रुप से तैयार नहीं हो पाता है। वह भी वरिष्ठ तो बिल्कुल नहीं। क्योंकि सबको बडा रोल चाहिए और बडा रोल अक्सर लोग उसे मानते हैं जिसके नाटक में सबसे अधिक संवाद होते हैं। जबकि संवादों से किसी भी रोल की लंबाई चौडाई नहीं मापी जा सकती। हां यह बात अलग है कि नाटक में जिस पात्र के संवाद अधिक होते हैं, उसे अधिक बोलना पडता है और जो कलाकार उस किरदार के संवाद उतनी देर तक बोल सके और उस किरदार में रह सके, वह रोल या कलाकार बडा होता है। इसलिए अधिक संवाद बोलने से वह रोल बडा नहीं हुआ बल्कि उस कलाकार के बेहतर निभाने से रोल बडा या छोटा बनता है। जब तक कलाकार मंच पर रहे, तब तक वह स्वयं न लगे। अपनी शारीरिक भंगिमा से, संवादों से, अपने साथी कलाकार से संवाद करते समय या अन्य प्रकार की अभिनयात्मक गतिविधि करते समय, वह किरदार लगे जो नाटक में अभिनीत कर रहा है। मान लीजिए रमेश नामक कलाकार किसी नाटक में एक शराबी का किरदार निभा रहा है। तो जितनी देर तक रमेश मंच पर रहे तो ऐसा लगे जैसे मंच पर रमेश नहीं एक शराबी है। यदि पूरे नाटक में रमेश की जगह शराबी नजर आता है, इसका मतलब रमेश का रोल बडा था। शराबी का रोल बडा नहीं था, बल्कि रमेश के अभिनय ने शराबी के रोल को बडा कर दिया। लेकिन नवीन कुमार शर्मा ने महंगवा का रोल किया और अपने अभिनय के द्वारा उन्होंने दर्शकों को खूब हंसाया और अपने किरदार के साथ काफी न्याय किया। हालांकि महंगवा के दृश्य का घटनाक्रम और स्थितियां कुछ इस तरह की हैं कि नवीन के अलावा कोई भी कलाकार होता तो निश्चित रूप से दर्शक खूब हंसते और उसका आनंद लेते। लेकिन जितनी सिद्दत के साथ नवीन शर्मा ने महंगवा को नाटक में जीवंत किया, उतना कोई नहीं कर पाता या नवीन शर्मा जैसा नहीं कर पाता। दर्शकों ने नवीन शर्मा के इस परिश्रम का पुरुस्कार भी भरपूर दिया।
चंपाकली का और उसकी अम्मा का किरदार निभाया मनीषा नावरिया और डिम्पल शर्मा ने। अलवर में ही नहीं बल्कि हर जगह पर नाटक के लिए महिला कलाकार मिलना बडी चुनौति है। ऐसी ही स्थिति रही इस नाटक के साथ। चंपाकली और उसकी अम्मा के किरदार के लिए दोहरी चुनौति थी। एक तो महिला कलाकार मिलना, दूसरा इन संवादों का लहजा भोजपुरी है। अतः भोजपुरी में बोलना। हालांकि संवाद बहुत बड़े नहीं थे, किन्तु भोजपुरी का लहजा और साथ में अभिनय दोनों ही बडी बात थी। उस पर भी नए कलाकारों के लिए निश्चित रुप से यह थोड़ा कठिन था।
लेकिन मनीषा और डिम्पल ने इसे अपनी तरफ से काफी बेहतर करने की कोशिश की और दोनों ही कलाकार इसमें किसी हद तक सफल भी रही। दोनों ही नवोदित कलाकार होने के बावजूद खडी बोली की बजाय भोजपुरी के संवादों को अपने अभिनय के साथ में प्रभावी रूप से प्रस्तुत कर पाईं। डिंपल शर्मा के साथ में कुछ पारिवारिक परेशानी थी, बावजूद इसके उन्होंने अम्मा का किरदार अच्छा किया। उनकी कोशिश निसंदेह एक सराहनीय कोशिश है।
इस नाटक में मंच पर कुल 11 कलाकार काम करते हैं। इनमें से 6 कलाकार ऐसे रहे जो नवोदित कहे जा सकते हैं। या जिनका यह दूसरा नाटक है। अतः इन कलाकारों में रंगमंच के अनुशासन की अपेक्षा उम्र का प्रभाव, उसके अनुसार कार्य और फोन से लगाव अधिक दिखाई दे रहा था। जिसका प्रभाव इनके किरदार और अभिनय पर भी पडा। जो कि इन्हें अभी महसूस नहीं हो रहा है। लेकिन अभी नए हैं, धीरे धीरे जानेंगे और सीखेंगे।
गाजर गाजीपुर का रोल अभिनीत किया प्रदीप प्रसन्न ने यानी मैंने। स्वयं की समीक्षा लिखना वास्तव में बडे न्याय के सिंहासन पर बैठना है और उसके लिए अधिक परिपक्वता चाहिए। मुझे लगता है वह अभी मुझमें नहीं है। दूसरी बात मुझे यह भी लगता है कि स्वयं की समीक्षा लिखना पता नहीं उचित या अनुचित? क्योंकि प्रशंसात्मक लिख दी जाएं तो अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना है और सब कुछ नकारात्मक लिख दिया जाए तो यह समीक्षात्मक नीर-झीर विवेक नहीं हुआ। खैर, नाटक को अभिनीत करते हुए जो मुझे महसूस हुआ एवं दर्शकों की जैसी प्रतिक्रिया मिली (प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूप से) उसके आधार पर मैं प्रदीप प्रसन्न के द्वारा अभिनीत किए गए गाजर गाजीपुरी के किरदार की समीक्षा करने की कोशिश कर रहा हूं।
दो-तीन जगह पर संवाद भूले। इससे नाटक में स्थिलता और रिक्तता दोनों दिखाई दी। नाटककार ने गाजर गाजीपुरी के संवादों को दिलीप कुमार की स्टाइल में बोलने का संकेत दिया है। लेकिन गाजर गाजीपुरी के किरदार में प्रदीप प्रसन्न, दिलीप कुमार नहीं प्रदीप प्रसन्न ही नजर आए। प्रदीप प्रसन्न ने अनेक नाटक किए हैं। अतः अनुभव के आधार पर उनसे गलतियां न हो ऐसी आशा की जाती है लेकिन वे आशा पर खरे नहीं उतरे। इन सबके पीछे बड़ी कमी रही पूर्वाभ्यास की। मात्र दो दिन में प्रदीप प्रसन्न गाजर गाजीपुरी के किरदार को बेहतर तरीके से नहीं समझ पाए और जितना समझने की उन्होंने कोशिश की वह अपने नजरिए से समझा। निर्देशक क्या चाहता है, यह नहीं पता लगा। क्योंकि पूर्वाभ्यास नहीं हुआ। अक्सर कलाकार जब किसी किरदार को तैयार करता है तो वह अपने ही किरदार के बारे में विचार करता है, कि वह डेवलप कैसे करेगा, उसका प्रभाव क्या होगा आदि। लेकिन नाटक का निर्देशक पूरे नाटक को देखकर हर किरदार के बारे में विचार करता है। वह सबको लेकर सोचता है। अर्थात एक तरह से कलाकार व्यक्तिगत रूप से सोचता है और निर्देशक सामाजिक रूप से। जबकि नाटक एक सामुहिक सामाजिक विधा है। और जब तक कोई कलाकार सिर्फ अपने ही बारे में या अपने ही किरदार के बारे में सोचेगा तब तक वह न स्वयं सामाजिक बन पायेगा और न वह प्रस्तुति सामाजिक बन पायेगी। अपवाद स्वरूप कुछ निर्देशक भी अपने बारे में सोचते हैं या किसी एक किरदार के बारे में सोचते हैं तो ऐसी स्थिति में किसी हद तक वह निर्देशक या कलाकार तो सफल हो सकते हैं लेकिन वह प्रस्तुति सफल नहीं कही जा सकती। इसलिए कलाकार को अपना किरदार तैयार करते समय, अपने सहयोगी कलाकार और विशेष रूप से निर्देशक के विचारों को आत्मसात करना चाहिए। यदि किसी मुद्दे पर असहमति हो तो बात की जा सकती है। क्योंकि नाटक एक सामुहिक कलात्मक प्रस्तुति है।
यह सामुहिक प्रस्तुति बहुत आकर्षक तभी बन सकती है जब सब लोग मिलके कार्य करें। अर्थात सिर्फ मंच पर अभिनय करने वाले कलाकार ही नहीं
, बल्कि उसका संगीत, रूप सज्जा, प्रकाश व्यवस्था, मंच सज्जा एवं दर्शक। ये सब साथ होने चाहिएं। इनमें से कोई भी चीज अलग दिखाई दी तो इसका मतलब वह एक संपूर्ण सफल सामाजिक सामुहिक कलात्मक नाट्य प्रस्तुति नहीं है। उस सामुहिक प्रस्तुति में कोई व्यक्ति विशेष कम या ज्यादा कर सकता है। यह उसकी क्षमता-अक्षमता, अनुभव, आत्मविश्वास, समझ, समर्पण आदि पर निर्भर है। कई बार ऐसा होता भी है, कि कोई एक पात्र या एक कलाकार, अपने किरदार को बहुत ही अच्छे से अभिनीत कर जाता है और कोई एक पात्र या एक कलाकार अपने किरदार के साथ न्याय नहीं कर पाता है। तो ऐसी स्थिति में वह पात्र या अभिनेता तो सफल है लेकिन निर्देशक और वह नाटक सफल नहीं है। निर्देशक इसलिए सफल नहीं है क्योंकि निर्देशक अपनी तरफ से बहुत कुछ बताने की कोशिश तो करता है, लेकिन अभिनेता यदि उसे नहीं पकड़ पा रहा है, जैसा निर्देशक चाह रहा है तो यह उस कलाकार के साथ-साथ निर्देशक की भी कमी मानी जानी चाहिए। हालांकि इसमें बहुत सारे सवाल खड़े हो सकते हैं। क्योंकि रंगमंच के लिए कलाकारों का मिलना ही बड़ी मुश्किल बात है और उनमें भी ऐसी उम्मीद और आशा लगाना कि रंगमंच की समझ वाले कलाकार मिल जाएं। यह थोड़ा कठिन और चुनौतिपूर्ण है। विशेष रुप से अलवर में इस समय। इन सबके बावजूद ‘द ग्रेट राजा मास्टर ड्रामा कंपनी’ नाटक ने दर्शकों को खूब हंसाया, गुदगुदाया और सोचने के लिए मजबूर किया। प्रस्तुति के समय एवं बाद में दर्शकों की टिप्पणी और उनकी प्रतिक्रियाओं से यही आभास होता है कि यह नाटक सफल रहा। किन्तु एक समीक्षक की दृष्टि से मुझे यह नाटक औसत लगा। क्योंकि नाटक के लेखन में एवं नाटक में काम करने वाले सभी कलाकारों में ऐसी क्षमता है कि यह नाटक और बेहतर हो सकता है। 
नाटक की प्रस्तुति पर दर्शक भरपूर आनंद ले रहे थे। इसका एक कारण यह है कि इस नाटक का कथासूत्र ही कुछ इस तरह का है कि दर्शक उससे तुरंत जुड जाता है। नाटक में घटना इस तरह से घटती हैं कि कुछ देर बाद ही दर्शक अपने आप हास्य रस के मोड़ पर चला जाता है। यदि कलाकार उसके अनुसार अपना अभिनय और घटना क्रम को सही रूप से गढ लें तो दर्शक उसके साथ सहज रूप से हास्य रस में बहता चला जायेगा। लेकिन जहां पर भी थोड़ी सी स्थिलता दिखाई देगी दर्शक तुरंत नाटक एवं कलाकार दोनों से पृथक हो जायेगा। क्योंकि हास्य की खास बात यह होती है कि वह उतरोत्तर बढ़ता जाता है और इसी रूप में उसकी श्रेष्ठता मानी जाती है। दर्शक यही अपेक्षा अभिनेता से करता है कि वह हास्य की जो आधारशिला रखता है, न कि उस पर कायम रहे अपितु आगे के संवाद, घटनाक्रम तथा दृश्य में हास्य और ऊंचाई पर जाए, और ऐसा होगा तभी दर्शक अपनी सहज प्रतिक्रिया प्रकट कर सकेगा। हास्य अपने आरोही क्रम में बढता जाता है तो दर्शक और अभिनेता दोनों एक दूसरे से जुडते जाते हैं। दोनों की ही अपेक्षा उतरोत्तर बढ जाती है। ‘द ग्रेट राजा मास्टर ड्रामा कंपनी’ नाटक भी इसी तरह की स्थितियां पैदा करता है। नाटक की प्रस्तुति में दर्शकों की प्रतिक्रिया से ऐसा बार-बार आभास भी हुआ कि यह अपने आरोही क्रम में बढ़ा है। बीच बीच में कुछ जगह पर यह क्रम टूटा भी है। चाहे किसी भी कलाकार या वजह से टूटा और जब क्रम टूटा तो अभिनेता नाटक से, नाटक दर्शक से, दर्शक अभिनेता से और अभिनेता दर्शक से टूटे तथा सभी रस से टूटे। फिर भी एक अच्छी और यादगार प्र्रस्तुति कही जा सकती है ‘द ग्रेट राजा मास्टर ड्रामा कंपनी’ नाटक।

प्रकाश व्यवस्था नाटक के निर्देशक देशराज मीणा ने संभाली। मंच परिकल्पना भी उनकी ही रही। संगीत व्यवस्था राहुल शर्मा और ऋितिक चेलानी ने संभाली। रूप सज्जा मनीषा नावरिया, वस्त्र  सज्जा तथा अन्य तमाम जिम्मेदारियां स्टेज मैनेजर हितेश जैमन के कंधे पर रही। मंच संचालन एवं नाट्य प्रस्तुति में सहयोग दिया मनमोहन सिंह ने और अखिलेश ने।
प्रस्तुति-
डॉ. प्रदीप कुमार
ग्राम/पोस्ट-बास कृपाल नगर,
तहसील-किशनगढ़-बास, जिला-अलवर,
राजस्थान, पिन न. 301405, मोबाईल नं.-9460142690,






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