कहानियों की प्रस्तुतियों ने यादगार
बनाया रंगमंच दिवस
27
मार्च यानी अंतरराष्ट्रीय रंगमंच दिवस। यह रंगकर्मियों के लिए ऐसा पर्व है, जिसे मंच पर अभिनीत एवं प्रस्तुत की
जाने वाली अनेक विधाओं के माध्यम से रंगकर्मी एक विशिष्ट जश्न के रूप में पूरे
विश्व में मनाते हैं। भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में एवं अनेक विद्वानों ने भी
नाटक को अनेक कलाओं का कुंभ कहा है। इसलिए नाटक अपने में अनेक कलाएं समाहित रखता
है। अपनी संप्रेषणीयता के कारण एवं अन्य विधाओं की तुलना में नाटक अधिक प्रभावी
होता है। अतः नाटक जब रंगमंच पर प्रस्तुत होता है तब विभिन्न कलाओं को अपने में
समाहित रखता है। ऐसा ही एक प्रयोगात्मक कार्यक्रम ‘कहानी रंगोत्सव’ के
रूप में महावर ऑडिटोरियम,
अलवर में विश्व रंगमंच दिवस के उपलक्ष
पर आयोजित किया गया। कहानी ‘रंगोत्सव
कार्यक्रम’ के अंतर्गत छह कहानियां मंचित की गईं।
पहली कहानी थी रवि बुले द्वारा लिखित ‘हीरो:
एक लव स्टोरी’। इसे दलीप बैरागी ने प्रस्तुत किया
था। ‘हीरो: एक लव स्टोरी’ प्रेम कहानी है। एक ऐसी प्रेम कहानी
जिसमें किस्सागोई के साथ साथ नाटकीयता की अनेक संभावनाएं उसके संवादों के मध्य
छुपी हुई नजर आती है। कहानी के पाठ के साथ-साथ उसके प्रस्तुतीकरण में भी वह
नाटकीयता नजर आती है। यह कहानी किशोरावस्था में होने वाले अनेक मानसिक एवं शारीरिक
बदलावों के कारण मन पर पड़ने वाले प्रभाव को दर्शाती है। जिसकी वजह से कहानी का
नायक अनेक तरह के द्वंद्व तथा दुविधाओं से होकर गुजरता है। रवि बुल्ले का कहानी
कहने का अंदाज ऐसा लगता है कि जैसे वह कहानी नहीं कह रहे हैं, बल्कि उसे प्रस्तुत कर रहे हैं। मंच पर
दलीप बैरागी के अभिनय एवं उसके प्रस्तुतीकरण के अंदाज ने ‘हीरो: एक लव स्टोरी’ को जीवंत कहानी बना दिया। प्रारंभ में
यह कहानी त्रिकोणिए प्रेम कथाओं की तरह लगती है। कहानी का नायक अथवा लेखक स्वयं इस
बात को महसूस करता है कि वह इस कहानी का हीरो है, लेकिन उसे कहानी के मध्य में ज्ञात होता है कि वह कहानी का हीरो नहीं
सहनायक है। दलीप बैरागी अपनी अभिनय क्षमता के आधार पर कहानी को एक विशिष्ट आकार
देते हैं। दलीप बैरागी अलवर के उत्साही युवा रंगकर्मी हैं। लेकिन अनेक वर्षों के
अंतराल के बाद वे मंच पर दिखाई दिए हैं। संभवतः वे आगामी वर्षों में इस अंतराल की
क्षति पूर्ति अपनी निरंतर एवं सार्थक प्रस्तुतियों के माध्यम से पूरी करेंगे, ऐसी आशा। कहानी में दुष्यंत कुमार की
गजलों का प्रयोग एवं संगीत का प्रभाव भी दिलीप बैरागी को सहयोग प्रदान करता
है।
पांचवी कहानी थी डॉ. प्रदीप कुमार की ‘उसके इंतजार में’। ‘उसके
इंतजार में’ कहने को एक युवक की प्रेम कहानी है, लेकिन यह उस अकेले युवक की कहानी नहीं
है, बल्कि अनेक लोगों की कहानी है। बस फर्क
इतना है, उस युवक ने यह कहानी लिख दी है या कह
दी है, बाकि कह नहीं पा रहे हैं। इसीलिए इसमें
एक पूरा जीवन नजर आता है। उम्र का वह दौर जो सबसे ऊर्जावान होता है-युवावस्था। उसका
अपना प्रभाव एवं उस प्रभाव से प्रभावित परिवेश। एक कवि हृदय, युवक जो प्रेम करता है, अपनी प्रेमिका से, अपने देश से, अपनी भाषा से, अपने हुनर से, अपने शोक से। लेकिन यह समाज उसे ऐसा
करने से रोकता है, टोकता है। फिर भी वह नाउम्मीद नहीं है।
समाज बदलेगा, उसका परिवार उसे समझेगा, बस आयेगी, उसकी कविताओं को एक पहचान मिलेगी, उसके काम को नाम मिलेगा, उसकी प्रेमिका उसे समझेगी, इसलिए आज भी वह बैठा है-‘उसके इंतजार में’। ‘उसके
इंतजार में’ कहानी में प्रदीप कुमार अपने मुक्तक
एवं कविता के माध्यम से दर्शकों को काव्यात्मक रसानंद के साथ भी जोड़ते हैं। आज की
अनेक समस्याओं पर बहुत ही गहरा कटाक्ष प्रदीप कुमार अपनी प्रस्तुती में इस अंदाज
में करते हैं कि दर्शक मजबूर हो जाते हैं ताली बजाने के लिए।
‘‘कहानी
रंगोत्सव’’ कार्यक्रम को सूत्रबद्ध किया रंग
संस्कार थियेटर ग्रुप के निदेशक देशराज मीणा ने। देशराज मीणा बहुत ही जुनूनी
रंगकर्मी हैं। वे अपने ग्रेजुएशन के दिनों से ही रंगकर्म में अपने विशिष्ट कार्य
के माध्यम से अलवर में एक मुहीम चलाकर काम करने की कोशिश करते रहे हैं। लेकिन बीच
में कुछ अंतराल आने की वजह से थोड़ा विराम हो गया था, लेकिन 2015 से वे पुनः अलवर रंगमंच में सक्रिय
हैं और उसके बाद लगातार प्रस्तुतियां दे रहे हैं। 2015 के बाद से लगातार यह कोशिश कर रहे हैं कि किस तरह से अलवर में
रंगकर्म उसी स्थिति में पहुंचे जो 1990 के
आसपास हुआ करता था या देश के अनेक कोनों में आज भी होता है। उस कोशिश के लिए वे
अनेक प्रकार की जद्दोजहद करते रहते हैं। उनके साथ अमित गोयल का जुड़ाव भी उनको बहुत
उर्जा देता है। उनकी कलात्मक एवं सहयोगात्मक रूचि इस तरह के कार्यक्रमों को संबंल
प्रदान करती है। देशराज मीणा जिस तरह से अलवर में लगातार रंगमंच को सक्रिय रखने
में एक बहुत बड़ी भूमिका निभा रहे हैं, संभवतः
वह दिन दूर नहीं जब अलवर में सार्थक एवं निरंतर रंगकर्म होने लगे। इसके लिए
प्रेक्षाग्रह वगैरा की समस्याओं के लिए भी अलवर रंगकर्मियों को एकजुट होकर मुहिम
चलानी होगी। 27 मार्च 2017 का दिन विश्व रंगमंच दिवस के रूप में अलवर के लिए एक विशेष दिन रहा।
इस अवसर पर अलवर जिले के अनेक वरिष्ठ रंगकर्मियों का सम्मान भी किया गया। जिन
लोगों ने रंगकर्म के क्षेत्र में अपना विशिष्ट योगदान दिया है, उन्हें इस दिन सम्मान पत्र, सॉल एवं प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित
किया गया। जैसे-जिसमें गिरीराज जैमिनी, भगवत
शर्मा, शशीभूषण जैन, अशोक राही, डॉ. वीरेन्द्र विद्रोही, राजेश शर्मा, महावीर सिंघल, जगदीश शर्मा, दौलत भारती, उमेशकांत वशिष्ठ, देवेन्द्र तिवारी, दलीप वैरागी, डॉ. प्रदीप कुमार, राजेन्द्र भारद्वाज, सतीश शर्मा, रमेश अग्रवाल, प्रकाश शर्मा, रामवतार पंडित, संदीप शर्मा आदि। कार्यक्रम के मुख्य
अतिथि राजर्षि भर्तृहरि मत्स्य विश्वविद्यालय, अलवर
के कुलपति प्रो. भारतसिंह जी थे। इस अवसर पर अलवर के अनेक रंगकर्मी, कला प्रेमी, साहित्यकार एवं सुधी स्रोता उपस्थिति रहे
जैसे-हरिशंकर गोयल, डॉ. जीवन सिंह मानवी, डॉ. विनय मिश्र, डॉ. छंगाराम मीणा, रेवती रमण शर्मा आदि। कार्यक्रम का
संचालन प्रदीप कुमार, दलीप वैरागी एवं देशराज मीणा ने किया।
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ReplyDeleteबहुत सटीक एवं बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत सटीक एवं बढ़िया।
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