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Friday, March 31, 2017

stores proformans are Memorial Made Theater Day : कहानियों की प्रस्तुतियों ने यादगार बनाया रंगमंच दिवस

कहानियों की प्रस्तुतियों ने यादगार बनाया रंगमंच दिवस

27 मार्च यानी अंतरराष्ट्रीय रंगमंच दिवस। यह रंगकर्मियों के लिए ऐसा पर्व है, जिसे मंच पर अभिनीत एवं प्रस्तुत की जाने वाली अनेक विधाओं के माध्यम से रंगकर्मी एक विशिष्ट जश्न के रूप में पूरे विश्व में मनाते हैं। भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में एवं अनेक विद्वानों ने भी नाटक को अनेक कलाओं का कुंभ कहा है। इसलिए नाटक अपने में अनेक कलाएं समाहित रखता है। अपनी संप्रेषणीयता के कारण एवं अन्य विधाओं की तुलना में नाटक अधिक प्रभावी होता है। अतः नाटक जब रंगमंच पर प्रस्तुत होता है तब विभिन्न कलाओं को अपने में समाहित रखता है। ऐसा ही एक प्रयोगात्मक कार्यक्रम कहानी रंगोत्सवके रूप में महावर ऑडिटोरियम, अलवर में विश्व रंगमंच दिवस के उपलक्ष पर आयोजित किया गया। कहानी रंगोत्सव कार्यक्रमके अंतर्गत छह कहानियां मंचित की गईं। पहली कहानी थी रवि बुले द्वारा लिखित हीरो: एक लव स्टोरी। इसे दलीप बैरागी ने प्रस्तुत किया था। हीरो: एक लव स्टोरीप्रेम कहानी है। एक ऐसी प्रेम कहानी जिसमें किस्सागोई के साथ साथ नाटकीयता की अनेक संभावनाएं उसके संवादों के मध्य छुपी हुई नजर आती है। कहानी के पाठ के साथ-साथ उसके प्रस्तुतीकरण में भी वह नाटकीयता नजर आती है। यह कहानी किशोरावस्था में होने वाले अनेक मानसिक एवं शारीरिक बदलावों के कारण मन पर पड़ने वाले प्रभाव को दर्शाती है। जिसकी वजह से कहानी का नायक अनेक तरह के द्वंद्व तथा दुविधाओं से होकर गुजरता है। रवि बुल्ले का कहानी कहने का अंदाज ऐसा लगता है कि जैसे वह कहानी नहीं कह रहे हैं, बल्कि उसे प्रस्तुत कर रहे हैं। मंच पर दलीप बैरागी के अभिनय एवं उसके प्रस्तुतीकरण के अंदाज ने हीरो: एक लव स्टोरीको जीवंत कहानी बना दिया। प्रारंभ में यह कहानी त्रिकोणिए प्रेम कथाओं की तरह लगती है। कहानी का नायक अथवा लेखक स्वयं इस बात को महसूस करता है कि वह इस कहानी का हीरो है, लेकिन उसे कहानी के मध्य में ज्ञात होता है कि वह कहानी का हीरो नहीं सहनायक है। दलीप बैरागी अपनी अभिनय क्षमता के आधार पर कहानी को एक विशिष्ट आकार देते हैं। दलीप बैरागी अलवर के उत्साही युवा रंगकर्मी हैं। लेकिन अनेक वर्षों के अंतराल के बाद वे मंच पर दिखाई दिए हैं। संभवतः वे आगामी वर्षों में इस अंतराल की क्षति पूर्ति अपनी निरंतर एवं सार्थक प्रस्तुतियों के माध्यम से पूरी करेंगे, ऐसी आशा। कहानी में दुष्यंत कुमार की गजलों का प्रयोग एवं संगीत का प्रभाव भी दिलीप बैरागी को सहयोग प्रदान करता है। 
दूसरी कहानी व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा लिखी गई प्रसिद्ध कहानी भोलाराम का जीवमंचित की गई। इसे अपने सशक्त अभिनय से अंकुश शर्मा, क्रिश सारेश्वर, मदन मोहन एवं चित्रा सिंह ने सफलता पूर्वक प्रस्तुत किया। भोलाराम का जीवसरकारी दफ्तरों के बाबुओं के काम के प्रति लापरवाही, छोटे छोटे काम के लिए रिश्वत लेना इस तरह के  भ्रष्टाचार को व्यक्त करती है। भोलाराम का जीवराजनीतिक एवं प्रशासनिक असंगतियों पर करारा व्यंग्य करती हुई मंच पर पात्रों की अदाकारी के कारण दर्शकों पर अपना पूरा प्रभाव डालती है। भोलाराम का जीव में मदन मोहन नारायण के रूप में गीत प्रस्तुत करते हैं और हारमोनियम बजाते हुए आते हैं और गीत भी बिल्कुल मॉडर्न स्टाइल में जस्ट जस्ट नारायणगाते हुए लोगों को प्रभावित करते थे। आज के आधुनिक रंगों का प्रभाव इस प्रस्तुति में देखा जा सकता है। अंकुश शर्मा इसके अंदर अपने निर्देशकीय के बल से अनेक संदर्भों को कल्पना के माध्यम से कुछ परिवर्तित करके उसके प्रस्तुतीकरण के पक्ष को प्रभावी बनाते हैं तथा दर्शक तुरंत जुडे़ इसके लिए उसमें आधुनिक टूल्स का प्रयोग भी वे करते हैं। जैसे यमराज और चित्रगुप्त के मध्य होने वाले आपसी संवादों मंे अंग्रेजी शब्दावली का प्रयोग, नारद का रेप स्टाइल में गीत गाते आना, बड़े बाबु का भोलपुरी पुट में बोलना इस तरह के प्रभाव तथा प्रयोग निश्चित रुप से नवीनीकरण तो लाते ही हैं साथ ही दर्शकों को आज की स्थिति से तुरंत जोड़ते भी हैं।
तीसरी कहानी नीलाभ पंडित जी द्वारा प्रस्तुत उन्मादीथी। यह कहानी फ्रेंच लेखक गाई द मोपासांकी लिखी हुई है। राजेन्द्र भट्ट ने इसका अनुवाद किया है। हिंसा के मनोविज्ञान की पड़ताल करने वाली उन्मादीएक गंभीर कहानी है। मनुष्य के अंदर हिंसा की मनोवृत्ति सदैव से विद्यमान रही है। कभी इस मनोवृत्ति के लिए नरबलि दी जाती थी, अब हम अपनी हिंसा की भूख को युद्ध से पूरा करते हैं। एक न्यायाधीश जिसने बहुत से लोगों को मृत्यु दंड दिया है, वह स्वयं हिंसा के मनोभावों से अपने को रोक नहीं पाता और एक हत्यारा बन जाता है। नीलाभ पंडित इस कहानी का वाचन अपनी चिरपरिचित बेस वाली आवाज में करते हैं तो कहानी एक नया रूप धारण करती है। निश्चित रुप से उनकी अपनी एक सैली का प्रभाव तो है ही जो उसके कथानक के पठन में दिखाई देता है। लेकिन वाचन के दम पर निलाभ पंडित इस कहानी को दर्शकों से बहुत देर तक नहीं जोड़ पाते हैं। इसका कारण यह भी था कि यह कहानी जिस जमीन की है, उससे भारतीय दर्शक सीधे सीधे नहीं जुड़ पाता है। दूसरा कारण-निलाभ पंडित जी इसका सिर्फ वाचन करते हैं, जो निसंदेह एक निरसता लाता है। 
चौथी कहानी गुलजार की लिखी हुई रावी पारथी। इस कहानी को अंकुश शर्मा, क्रिश सारेश्वर, मदन मोहन एवं चित्रा सिंह द्वारा प्रस्तुत किया गया। गुलजार की कहानी रावी पारभारत पाक विभाजन से हिंदुस्तान आए हुए मुहाजिरों के प्रमुख केंद्रों को ध्यान में रखते हुए उनके दर्द को गठित किया गया है। आजादी के समय हुए बंटवारे का दर्द और अपना सब कुछ खो देने की पीड़ा जिस तरह से दर्शन सिंह वहन करते हैं, वह मात्र उन्हीं की पीड़ा नहीं है बल्कि उस समय के अनेक लोगों की है। दर्शन सिंह पाकिस्तान को छोड़कर हिंदुस्तान में रहने आते हैं, तो वहां अपना सब कुछ छोड़ आते हैं। यहां तक की एक बच्चा भी। जिन बड़े बुजुर्गों ने इतना दर्द सह कर अपनी मेहनत के बल पर जो कुछ भी संजोया था, वह सब कुछ वहीं छूट जाता है। अपनी मातृभूमि-जन्म भूमि को भुलाना इतना आसान भी नहीं है। गुलजार निश्चित रुप से इस कहानी के माध्यम से संवदेना के भावों को बेहतरीन तरीके से प्र्रस्तुत करते हैं। उतने ही बेहतरीन अंदाज में मंच पर बंटवारे की त्रासदी, पारिवारिक पीड़ा, सब कुछ छूटने का दुख इन सबको कलाकार अपनी अभिनय क्षमता के बल पर प्र्र्र्र्र्र्र्र्र्रस्तुत करते हैं। बंटवारे के दर्द को एक परिवार कैसे झेलता है, वही मुख्य रुप से इस कहानी में प्रस्तुत किया गया है। सबसे प्रमुख बात यह रही इस प्रस्तुति की कि क्रिश सारेश्वर ने दर्शन सिंह की भूमिका को मंच पर जीवंत रूप दे दिया। क्रिश सारेश्वर के पास संवाद नहीं थे लेकिन उसके भाव एक पल के लिए भी संवाद हीन नहीं हुए। वह अपने अभिनय से वह सब कुछ कह गया जो कि बोलने के बाद भी अंकुश शर्मा और मदन मोहन नहीं कह पाए। अभिनय की क्षमता बिना संवादों के किस तरह से आदमी को सम्मोहित करती है और उसका साधारणीकरण होता है इस बात को क्रिश सारेश्वर का अभिनय दर्शकों को महसूस करता है। यह सब स्वयं दर्शकों ने एवं उनकी आंखों से निकले आंसुओं ने बंया किया। अंकुश शर्मा एवं क्रिश सारेश्वर इससे पूर्व में अलवर में चार पांच प्रस्तुतियां दे चुके हैं। इसलिए वे अलवर के लिए अनजान नहीं हैं। अपनी कुशल निर्देशकीय परिकल्पना के माध्यम से अंकुश शर्मा इस प्रस्तुति को बेहतर बनाते हैं। मदन मोहन एक अच्छे कलाकार के साथ साथ एक अच्छे संगीतकार भी हैं। वे अपनी गायकी के बल पर भी इस प्रस्तुति को प्रभावी बनाते हैं। चित्रा सिंह की उपस्थिति प्रस्तुति को संबंल प्रदान करती है। 
पांचवी कहानी थी डॉ. प्रदीप कुमार की उसके इंतजार मेंउसके इंतजार मेंकहने को एक युवक की प्रेम कहानी है, लेकिन यह उस अकेले युवक की कहानी नहीं है, बल्कि अनेक लोगों की कहानी है। बस फर्क इतना है, उस युवक ने यह कहानी लिख दी है या कह दी है, बाकि कह नहीं पा रहे हैं। इसीलिए इसमें एक पूरा जीवन नजर आता है। उम्र का वह दौर जो सबसे ऊर्जावान होता है-युवावस्था। उसका अपना प्रभाव एवं उस प्रभाव से प्रभावित परिवेश। एक कवि हृदय, युवक जो प्रेम करता है, अपनी प्रेमिका से, अपने देश से, अपनी भाषा से, अपने हुनर से, अपने शोक से। लेकिन यह समाज उसे ऐसा करने से रोकता है, टोकता है। फिर भी वह नाउम्मीद नहीं है। समाज बदलेगा, उसका परिवार उसे समझेगा, बस आयेगी, उसकी कविताओं को एक पहचान मिलेगी, उसके काम को नाम मिलेगा, उसकी प्रेमिका उसे समझेगी, इसलिए आज भी वह बैठा है-उसके इंतजार मेंउसके इंतजार मेंकहानी में प्रदीप कुमार अपने मुक्तक एवं कविता के माध्यम से दर्शकों को काव्यात्मक रसानंद के साथ भी जोड़ते हैं। आज की अनेक समस्याओं पर बहुत ही गहरा कटाक्ष प्रदीप कुमार अपनी प्रस्तुती में इस अंदाज में करते हैं कि दर्शक मजबूर हो जाते हैं ताली बजाने के लिए।
छठी और अंतिम कहानी टिकटों का संग्रहदिनकर शर्मा ने प्रस्तुत की। दिनकर शर्मा झारखंड के रहने वाले हैं। एकल प्रस्तुतियां में आजकल पूरे देश में उनका एक बड़ा नाम है। पश्चिम बंगाल में उन्होंने अपनी अनेक एकल प्रस्तुतियां दी हैं। प्रेमचन्द्र की कहानी बड़े भाई साहबके तो वे लगभग 500 से अधिक शौ कर चुके हैं। टिकटों का संग्रहकारेल चापेक की कहानी है, जिसे निर्मल वर्मा ने अनुदित किया है। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसे बचपन में टिकट संग्रह करने का शोक रहा है। बचपन में एक ऐसी घटना घटती है जिससे उसका जीवन बदल जाता है। साठ साल की उम्र में उसके जीवन में फिर एक घटना घटती है लेकिन इस बार की घटना उसे गिरजाघर में वह सब करने के लिए बाध्य कर देती है जो वह नहीं करना चाहता है। साठ साल की उम्र में वह व्यक्ति अपने वर्तमान के साथ चर्च पहुंचता है और अपने जीवन के अनेक संस्मरण उसमें किशोरावस्था और युवावस्था के प्रस्तुत करता है। दिनकर शर्मा जी का जीवंत अभिनय इस प्रस्तुति को एक बेहतरीन बनाता है। निसंदेह एक संवेदनशील तथा गंभीर कहानी को दर्शकों से कैसे जोड़ा जाए यह दिनकर शर्मा अपने अभिनय के बल पर महसूस कराते हैं।
‘‘कहानी रंगोत्सव’’ कार्यक्रम को सूत्रबद्ध किया रंग संस्कार थियेटर ग्रुप के निदेशक देशराज मीणा ने। देशराज मीणा बहुत ही जुनूनी रंगकर्मी हैं। वे अपने ग्रेजुएशन के दिनों से ही रंगकर्म में अपने विशिष्ट कार्य के माध्यम से अलवर में एक मुहीम चलाकर काम करने की कोशिश करते रहे हैं। लेकिन बीच में कुछ अंतराल आने की वजह से थोड़ा विराम हो गया था, लेकिन 2015 से वे पुनः अलवर रंगमंच में सक्रिय हैं और उसके बाद लगातार प्रस्तुतियां दे रहे हैं। 2015 के बाद से लगातार यह कोशिश कर रहे हैं कि किस तरह से अलवर में रंगकर्म उसी स्थिति में पहुंचे जो 1990 के आसपास हुआ करता था या देश के अनेक कोनों में आज भी होता है। उस कोशिश के लिए वे अनेक प्रकार की जद्दोजहद करते रहते हैं। उनके साथ अमित गोयल का जुड़ाव भी उनको बहुत उर्जा देता है। उनकी कलात्मक एवं सहयोगात्मक रूचि इस तरह के कार्यक्रमों को संबंल प्रदान करती है। देशराज मीणा जिस तरह से अलवर में लगातार रंगमंच को सक्रिय रखने में एक बहुत बड़ी भूमिका निभा रहे हैं, संभवतः वह दिन दूर नहीं जब अलवर में सार्थक एवं निरंतर रंगकर्म होने लगे। इसके लिए प्रेक्षाग्रह वगैरा की समस्याओं के लिए भी अलवर रंगकर्मियों को एकजुट होकर मुहिम चलानी होगी। 27 मार्च 2017 का दिन विश्व रंगमंच दिवस के रूप में अलवर के लिए एक विशेष दिन रहा। इस अवसर पर अलवर जिले के अनेक वरिष्ठ रंगकर्मियों का सम्मान भी किया गया। जिन लोगों ने रंगकर्म के क्षेत्र में अपना विशिष्ट योगदान दिया है, उन्हें इस दिन सम्मान पत्र, सॉल एवं प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। जैसे-जिसमें गिरीराज जैमिनी, भगवत शर्मा, शशीभूषण जैन, अशोक राही, डॉ. वीरेन्द्र विद्रोही, राजेश शर्मा, महावीर सिंघल, जगदीश शर्मा, दौलत भारती, उमेशकांत वशिष्ठ, देवेन्द्र तिवारी, दलीप वैरागी, डॉ. प्रदीप कुमार, राजेन्द्र भारद्वाज, सतीश शर्मा, रमेश अग्रवाल, प्रकाश शर्मा, रामवतार पंडित, संदीप शर्मा आदि। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजर्षि भर्तृहरि मत्स्य विश्वविद्यालय, अलवर के कुलपति प्रो. भारतसिंह जी थे। इस अवसर पर अलवर के अनेक रंगकर्मी, कला प्रेमी, साहित्यकार एवं सुधी स्रोता उपस्थिति रहे जैसे-हरिशंकर गोयल, डॉ. जीवन सिंह मानवी, डॉ. विनय मिश्र, डॉ. छंगाराम मीणा, रेवती रमण शर्मा आदि। कार्यक्रम का संचालन प्रदीप कुमार, दलीप वैरागी एवं देशराज मीणा ने किया।



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