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Monday, January 23, 2017

Some muktak : कुछ मुक्तक


1 मेरे दिल का यह सपना है कि सपना टूट न जाए।
किसी थोड़ी सी अनबन से कोई रिश्ता छूट न जाए।
सभी को अपना बनाने की कभी हसरत नहीं मेरी।
मेरी कोशिश है कि कोई अपना अपने से रूठ न जाए।

2 दिल से निकली है दिल के लिए दुआ।
अभी तक तू किसी का क्यों न हुआ।
कब तक रहेगा मौन यूं अकेले तू,
किसी वीणा की तार सा झंकृत क्यों न हुआ।

3 नव कोपल नव दीप जले हैं नव लय के नव छंदों में।
नए राग के नए तराने बजने लगे अब अनुबंधों में।
हृदय हमारा वरण हो गया नव पल्लव की ज्योति में,
सप्तपदी से पहले ही हम बंध गए वचनों के प्रतिबंधों में।

4 नव वर्ष पर तुम्हारा आगत कर रहा हूँ।
मैं दिल का थाल सजा कर नवागत कर रहा हूँ।
तुम प्रीत के आचमन से करलो वरण हमारा।
हृदय की कुटी में तुम्हारा स्वागत कर रहा हूँ।

5 हमारा दिल भी तुम्हारी यादों में बेचैन रहता है।
न सोता है न जगता है तड़फता दिन रैन रहता है।
इस कड़वाहट के दौर में कौन किसकी सुनता है।
फिर भी तुम चले आए सुनने कोई तो मीठे बैन कहता है।

6 श्वेत धरा पर हरीतिमा की एक अनौखी चादर देखी।
तुम पर मर मिटने को आतुर लाखों आंखें आतुर देखी।
हम शर्मिंदा क्यों हैं जिंदा ऐसे ऐसे नायक देखे।
हल का हलईया मरता देखा भाषण देती खद्दर देखी।

7 वह एक रितु मन भावन थी, अब लगते सारे मौसम फीके।
वह मधु की मधुर अंजूरी थी अब लगते सौ सौ घट भी रीते।
सारे जग को अपना कहना भी लगता जब बेईमानी है,
सब कुछ जीत कर हार गए जब लगा की एक हृदय न जीते।

8 न चांद मिला न चांदनी हम तो लुट गए तारों की तलाश में।
एक भी नहीं खोज पाए वो जो निकले थे सारों की तलाश में।
वो खोजते हैं दुश्मनों को हर गली-मौहल्ले-घाटी-बस्ती में।
हम तो हमेशा, हर जगह, हर देश में रहे यारों की तलाश में।
 
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